इस कविता के बारे में :
इस काव्य ‘मैं बिहारी हू और मेरी वाली हरियाने से है’ को The Realistic Dice के लेबल के तहत अभिनव प्रताप ने लिखा और प्रस्तुत किया है।*****
तू आँख मिला कर एक बार तो कह दे
कि रकीव चाहिए तुझको तेरी कसम
तुझे अपनी जिंदगी से अलविदा अभी
और आज कह दूँगा तू पलट कर फ़िर
से मेरी बाहों को तरसेगी ना तरसी तो
अपनी मोहब्बत को मज़ाक कह दूँगा
***
मेरी उम्मीद मेरे सामने बैठी है मुझसे
ही उम्मीद लगाए और हम इस कशमकश
में गुम है कि उसे देखे और गले से
लगाए और उनकी ये दो ही आदये काफ़ी
है मेरा दिल लुभाने को एक जब वो पलके
उठाए और एक जब वो पलके झुकाए और
***
बस इसी चाह मे मैने उन्हें सोने नहीं
दिया रात भर तमन्ना यह थी कि उनकी
जम्हाई लेती आखों प़र एक ग़ज़ल बनाई
जाये मेरी सबसे बड़ी ख्वाईश भी है बोहुत छोटी सी मेरे बाद
ये ग़ज़लें उसकी तारीफों
मे महफ़िलों मे सुनाई जाये
***
ये ना सोच के तू नजर मे नहीं तो मेरे
सामने भी नहीं मेरा ये दिल बंध आखों
से तुझे रुबरु देख सकता है और तुझे
क्या लगता है तेरी बेवफ़ाई बस मैं ही
जानता हूं मेरी ग़ज़लों मे तो कोई पागल
भी तुझे हूबुहू देख सकता है
***
इक्का दुक्का दुश्मनों से मेरा क्या होगा
मेरी तो ये लड़ाई पूरे ज़माने से है
और तुम्हें क्या लगता है कि ऐसे हिम्मत
कहा से आयी है मुझमे
मैं बिहारी हू और मेरी वाली हरियाने से है
***
तेरे ना कहने के डर से मैंने अपनी
मोहब्बत बढ़ा दी मैं अपना इज़हार-ए-इश्क़
आईने के सामने जता देता हू तेरी रुस्वाई
का खौफ इतना ज्यादा है मेरी जान तेरा
नाम लिखता हू एक बार और
सो बार मिटा देता हुँ
***
जिस इश्क़ को मारते मारते मैं खुद
मर गया था वो इश्क़ कल खुद जाकर
फंदे पर झूल गया और मेरी मोहब्बत का
बह्म टूटना कितना आसान था कल उसका
जन्मदिन था और मैं भूल गया