इस कविता के बारे में :
इस काव्य ‘अगर मैं कहु तो मेरा साथ दोगे क्या‘ को G Talks के लेबल के तहत ‘गूँज चाँद और आरव सिंह नेगी’ ने लिखा और प्रस्तुत किया है।*****
गूँज:
अगर मैं कहु तो मेरा साथ दोगे क्या
मेरे अपनों को भी अपना मान लोगे क्या
और ज़िंदगी के किसी मोड़ पर मुझे तुम्हारी
जरुरत पड़ी तो मेरे बिन कहे
मेरे हालत जान लोगे क्या
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आरव:
तेरे कहने से पहले तेरे साथ खड़ा मिलूंगा
तुझे ही नहीं तेरे अपनों को
भी साथ लेकर चलूँगा
एक बार भरोसा करके तो देख मुझ पर
तेरी आँखों से आंसू गिरे ऐसा
वक़्त न आने दूंगा
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गूँज:
लोग ऐसा ही कहते है साथ निभाने से पहले
और रात आती है अक्सर सुबह आने से पहले
और ऐसा नहीं मुझे तुमपे भरोसा नहीं है
पर थोड़ा सोचना पड़ता है
कदम उठाने से पहले
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आरव:
किसी एक की बेवफाई को यूं दिल से न लगा
भुला कर पुरानी यादे एक नया जहाँ बसा
और में साथ हु तुम्हारे ये वादा है मेरा
जब तुम्हारा जी चाहे तब चली आ
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गूँज:
कोशिश तो करती हु पर डर जाती हु
और चाहा कर भी किसी पे दोबारा
भरोसा नहीं कर पाती हु
और आज न जाने तुमसे ये कैसे सवाल
पूछ लिया वरना में तो इश्क़ के
नाम से ही घबराती हु
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आरव:
घबराना ही तो मोहब्बत की शुरुवात है
ये वो सवेरा है जिसकी होती कभी न रात है
और आ तुझे ले चालू एक ऐसे जहाँ में
जहाँ होती सिर्फ मोहब्बत की बरसात है
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गूँज:
अपने किये सरे वादे निभाओगे
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आरव:
मरते दम तक
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गूँज:
मेरा साथ कबतक दे पाओगे
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आरव:
जन्मो जनम तक…