सरे दुःख तीन लफ़्ज़ों पर आके खत्म हो जाता है मुर्शिद
अल्लाह है ना
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बैचनी के आलम में तुम्हारी बाते बहुत सुकून देती है
मुर्शिद
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कुछ तो अदा करो मेरा मुर्शिद
इतनी महोब्बत कौन उधार देता है
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रिश्ते चाहे जो भी पासवर्ड सिर्फ एक है मुर्शिद
वो है भरोषा
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ओये मुर्शिद देखना एक दिन
तुम मुझे फिर से पाने के लिए तरस जाओगे
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बिजी कोन नहीं होता मुर्शिद
बात बस इम्पोर्टेंस की होती है
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जो छोड़ गया उसे याद मत करना मुर्शिद
गयी हुई चीजों की फरियाद मत करना मुर्शिद
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बात तो सिर्फ जज्बात की है मुर्शिद
वरना महोबब्बत तो सात फेरो के बाद भी नहीं होती
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कर्ज होता तो उतर देते मुर्शिद
कम्बख्त इश्क़ था चढ़ गया
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बात सिर्फ इतनी सी है मुर्शिद
या तो तुम या कोई नहीं
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तेरी चाहत के पहले सोचा न था मुर्शिद
इतने नाज़ुक मिज़ाज़ होंगे हम
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कभी मिलोगे तो जान जाओगे मुर्शिद
हम वैसे नहीं जैसे बताये जाते है
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एक अल्लाह ही है मुर्शिद
जो एक सजदे में अपना बना लेता है
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तन्हाई में मुस्कराना भी इश्क़ है
और इस बात को छुपाना भी इश्क़ है
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हमारी शराफत ही सबसे बड़ी आफत है जनाब
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