Namaj aur Quran की बहुत जरुरी बातें हिंदी में

Namaj aur Quran की बहुत जरुरी बातें हिंदी में


क्या आप जानते हैं कि इस्लाम धर्म क्या है, सच्चा मुसलमान कौन है, क़ुरान क्या है, नमाज क्या है, नमाज कितने तरह की होती है, पैगम्बर हज़रत मुहम्मद स. कौन थे, एक मुसलमान की जिंदगी कैसी होनी चाहिए? नहीं जानते तो कोई बात नहीं।

यहाँ आपको इस्लाम धर्म और नमाज के बारे में सटीक जानकारी दी जायेगी।बहुत सारी गलतफहमियां दूर हो जाएँगी।


मुसलमान कौन?​

इस्लाम धर्म को मानाने वाले को मुसलमान कहते है।

अगर कोई व्यक्ति दिल से पहला कलमा पढ़ ले तो वह मुसलमान हो जाता है।

पहला कलमा है- “ला इलाह इल्लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह स.”। इसका मतलब है- “अल्लाह के सिवाय कोई इबादत के लायक नहीं है।हज़रत मुहम्मद स. अल्लाह के रसूल यानि की पैगम्बर हैं।” जिसने भी अपनी ख़ुशी से इस कलमे को ज़ुबान से पढ़ा और दिल से इकरार किया वह मुसलमान है।

हज़रत मुहम्मद स. कौन?​

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम (स.) अल्लाह के भेजे हुए पैगम्बर (देवदूत) हैं।

आपका जन्म कुरैश घराने में सोमवार सुबह 9 रबीउल अव्वल 01 ( अप्रैल, 571 ईस्वी ) को मक्क़ा में हुआ था। आपकी प्रारंभिक परवरिश हज़रत दाई हलीमा ने की।

आपकी पहली शादी हज़रत ख़दीजा से हुई।

आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम अपने सच्चाई, ईमानदारी, मीठे व्यवहार व अमानतदारी के लिये मशहूर थे।

लोग कहीं बहार जाते तो अपने घर के कीमती सामान आपके पास रख जाते और लौटने पर आपसे वापस ले लेते।

आप बचपन से ही एकांत प्रिय थे।

गुफ़ा में कई कई दिनों तक रहते, चिंतन, मनन, इबादत में मशगूल रहते।

फरिश्तों के जरिये आपको अल्लाह का पैग़ाम मिलता रहता था।

मक्का में उस वक़्त बहुत ज़ाहिलियत थी।

बुत परस्ती, शराब, जुआ, लड़कियों को जिन्दा दफ़न कर देना आम बात थी।

क़बीलों की आपसी दुश्मनी खानदान दर खानदान चलती थी। बात-बात पर तलवारें निकलती थीं और खून खराबा होता था।

हज़रत मुहम्मद स. ने लोगों को बुतपरस्ती न करने को कहा।

आपने एक अल्लाह के इबादत के लिए प्रेरित किया। बुरे कामों से रोका।

अच्छे कामों की तरफ बुलाया। इस काम में आपको बहुत तकलीफें भी उठानी पड़ी।

बहुत से लोग आपके दुश्मन हो गए और परेशान करना शुरू कर दिया।

जब मक्का के लोगों का आपके ऊपर अत्याचार हद पार करने लगी तो आप अपने कुछ साथियों के साथ मक्का से मदीना हिज़रत कर गये जहाँ आपका शानदार स्वागत हुआ और हर तरह का सहयोग मिला। वह्य के जरिये प्राप्त अल्लाह के संदेशों को आपने लोगों तक पहुँचाया।

आपने अल्लाह के हुक़्म के मुताबिक अपनी जिंदगी जी।

मदीना आने के बाद भी मक्का वाले बाज नहीं आये। दुश्मनी निभाते रहे। कई लड़ाइयां हुईं।

अंत में हज़रत मुहम्मद स. की सेना ने जीत हासिल की। ये बुराई पर अच्छाई की जीत थी।

इस विजय के बाद मक्का के दुश्मनों का क़त्ल सुनिश्चित था, लेकिन नबी करीम हज़रत मुहम्मद स. ने अपने सभी दुश्मनों को माफ़ कर दिया।

आपके दरिया दिली से मुतास्सिर होकर मक्का वालों ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी इच्छा से इस्लाम क़ुबूल किया।


क़ुरान QURAN books​

क़ुरान QURAN books


वह्य के जरिये अल्लाह ने जो बातें आपको बतायीं आप उनकी चर्चा अपने सहाबा (साथियों) से करते थे।

आपके विसाल के बाद सहाबा लोगों ने आपकी बताई सभी आसमानी संदेशों को लिखित रूप दिया। अल्लाह के भेजे गए संदेशों का ये कलेक्शन ही क़ुरान है। क़ुरान में कुल 30 पारा (खंड) हैं।

इसमें 114 सूरह हैं। पहला सूरह का नाम है- अल फ़ातिहा। यह सूरह मक्का में उतरी थी।

इसमें कुल 7 आयतें हैं। सूरह फ़ातिहा पूरे क़ुरान का एक तरह से सार है।

क़ुरान या कोई सूरह पढ़ने से पहले बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम पढ़ा जाता है जिसका मतलब है- शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम (कृपाशील और दयावान ) है।

सूरह फ़ातिहा के सातों आयतें (वाक्यों ) और उनका मतलब ये हैं-

1- अलहम्दोलिल्लाही रब्बिलआलमीन – सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए है, जो सारे आलम (संसार) का रब है।

2- अर्रहमानिर्रहीम – जो बड़ा कृपाशील और दयावान है।

3- मालिकेयौमिद्दीन – उस दिन का मालिक है जिस दिन फैसला (The Day of Judgment) दिया जायेगा

4- यीयाकनाबोदोवइया कनसतईंन – हम तेरी ही बंदगी करते हैं और तुझसे ही सहायता मांगते हैं

5- इह दिनस सेरातल मुस्तकीम – हमें सीधा रास्ता दिखा

6- सिरातल लजीना अन अमता अलैहिम- उन लोगों का रास्ता जो तेरे कृपा पात्र बनें

7- गैरिल मगदूब अलैहिम व लदद्वालीन- जो न प्रकोप के भागी हुए, न रास्ते से भटके।

क़ुरान अल्लाह के हुक्मों /संदेशों का कलेक्शन है। इसीलिए इसे आसमानी क़िताब माना जाता है, जो अल्लाह की तरफ से भेजी गई है। नमाज के हर रकात में सूरह फातिहा के साथ कोई एक दूसरी सूरह पढ़ी जाती है।

मुसलमान पर चार काम फ़र्ज़ हैं, यानि कि अनिवार्य हैं-

पहला- हर दिन 5 टाइम नमाज़ पढ़ना

दूसरा- रमजान माह में रोज़े रखना

तीसरा- अपने माल में से ज़कात निकाल कर ग़रीबों में बांटना

चौथा- यदि मालदार है तो अपने हलाल कमाई से हज़ करने जाना .

नमाज Ek Muslin Lady​

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हर दिन 5 टाइम नमाज पढ़ना इस्लाम धर्म में अनिवार्य है।

तय समय पर दिन भर में ५ बार नियम के मुताबिक नमाज पढ़ना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।

जानबूझ कर नमाज़ छोड़ने की माफ़ी नहीं है।

आइये जानते हैं कि ये पांच नमाज़ें कौनकौन सी हैं-

1-फज़र की नमाज​

ये नमाज सूर्योदय से पहले जाती है। इसमें कुल 4 रकअतें होती हैं। २ रकात सुन्नत और उसके बाद 2 रकात फ़र्ज़।

2-ज़ोहर की नमाज​

जब दोपहर का सूरज ढलना शुरू होता है तब ये नमाज पढ़ी जाती है। इसमें कुल 12 रकातें होती हैं- 4 सुन्नत , 4 फ़र्ज़ , 2 सुन्नत , 2 नफ़िल

3-असर की नमाज़​

ये नमाज सूरज डूबने के लगभग एक डेढ़ घंटे पहले पढ़ी जाती है। इसमें कुल 8 रकअतें होती हैं- 4 सुन्नत, 4 फ़र्ज़,

4-मगरिब की नमाज​

इसनमाज का टाइम सूरज डूबने के तुरंत बाद है। इस नमाज में कुल 7 रकअतें होती हैं – ३ फ़र्ज़, २ सुन्नत और 2 नफिल

5-ईशा की नमाज​

इस नमाज का टाइम सूरज डूबने के लगभग डेढ़ दो घंटे बाद है। पांचों नमाजों में ये नमाज सबसे ज्यादा लम्बी है। इसमें कुल 17 रकअतें हैं- 4 सुन्नत, 4 फ़र्ज़, 2 सुन्नत , 2 नफ़िल, ३ वित्र, 2 नफ़िल

जुमा की नमाज​

जुमा की नमाज भी मुसलमान पर फर्ज़ है। जुमा की नमाज दो रकात फ़र्ज़है। फ़र्ज़ नमाज के पहले ख़ुत्बा भी जरूर सुनना चाहिए । फ़र्ज़के पहले 4 रकात सुन्नत , फ़र्ज़ के बाद ४ रकात सुन्नत, 2 सुन्नत, २ नफिल। जुमा हफ्ते का खास दिन होता है। इस नमाज की बड़ी फ़ज़ीलत है। जरूर पढ़नी चाहिए।

इन सब नमाजों के अलावा ईद व बकरीद की 2-2 रकात नमाज वाज़िब है और जरूर पढ़नी चाहिए।

अज़ान AZAN​

पांचों नमाज़ का वक़्त होने और मस्ज़िद में नमाज़ के लिए आमंत्रित करने के संकेत के रूप में मस्जिद में अज़ान दिया जाता है। अज़ान के शब्द और उनके मतलब ये हैं –

अल्लाहु अक़बर, अल्लाहु अक़बर, अल्लाहु अक़बर, अल्लाहु अक़बर

अशशहदु अल्लाह इलाह इल्लल्लाह, अशशहदु अल्लाह इलाह इल्लल्लाह

अशशहदु अन्ना मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह, अशशहदु अन्ना मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह

हैया अलस्स्लाह, हैया अलस्स्लाह

हैया अलल फलाह, हैया अलल फलाह

अल्लाहु अक़बर, अल्लाहु अक़बर,

ला इलाह इल्लल्लाह


रोज़ा ROZA​

रमज़ान के महीने में पूरे महीने रोज़ा रखना हर मुस्लमान पर फ़र्ज़ है, रमजानके पवित्र महीने की बड़ी फज़ीलत है। इसकी बहुत अहमियत है। ये बरकत का महीना है। इस महीने में हर नेकी का सत्तर गुना ज़्यादा सवाब मिलता है।

रोज़ा रखने के लिए सूर्योदय से तक़रीबन 2 घंटे पहले कुछ कुछ खा पी लेना चाहिए। इसकोसहरी करना कहते हैं. फिर दिन भर कुछ भी खाना पीना माना है. रोज़ाके साथ ही पांचों वक़्त की नमाज़ भी जरुरी होता है।

शाम को सूरज डूबने के बाद अज़ान होने पर रोज़ा खोला जाता है जिसे इफ़्तार करना कहते हैं। खजूर से रोज़ा खोलना सुन्नत है। रमजान के महीने में ईशा के नमाज़ के तुरंत बाद 20 रकात तराबीह नमाज़ पढ़ी जाती है।

रमजान के महीना में अल्लाह के लिए रोज़ा रखने भूखे प्यासे रहने के अलावा अपने मन, नफ़्स (इन्द्रियों ) पर भी कंट्रोल रखना अति आवश्यक होता है।

रोज़े की हालत में किसी का बुरा करना तो दूर, बुरा सोचना भी महा पाप है। यहाँ तक की किसी को बुरी नज़र से देखना भी गुनाह है। रमजान का महीना रोज़ा रखने, इबादत करने, नेकी करने और गुनाहों के बख्शीश का महीना है।

ज़कात ZAKAT​

इस्लाम धर्म में हलाल कमाई पर जोर दिया गया है और हराम के माल से हर तरह से परहेज़ करने करने के सख्त आदेश दिए गए हैं। यदि आपके पास साढ़े सात तोला सोना या बावन तोला चांदी है या उसके बराबर नकदी है तो आप पर ज़कात देना अनिवार्य है। साल भर के जमा पूंजी पर ढाई परसेंट ज़कात (टैक्स) निकाल कर ग़रीबों, जरूरतमंदों में बाँट देना चाहिए।

ये इस्लाम धर्म की ऐसी शानदार व्यवस्था है कि यदि हर मालदार ज़कात निकाल कर बाँट दे तो कोई लाचार, तंगहाल न रहे । ज़कात देने से माल घटता नहीं, बढ़ता है। माल में बरक़त होताहै।

हज HAJ Haj- Makka​

हज HAJ Haj- Makka


जिस मुसलमान के पास हलाल कमाई का इतना धन हो कि वह हज का खर्च उठा सकता है तो उस पर हज करना फ़र्ज़ है। मक्क़ा में खाना ए क़ाबा और मदीना जैसी मुक़द्दस जगहों की ज़ियारत करना हज कहलाता है। इसमें लगभग चालीस दिन लग जाते हैं। बकरीद के अवसर पर वहां क़ुरबानी देना भी हज का हिस्सा होता है। इसके साथ ही हज समाप्त होता है। हज कर चुके लोगों को हाजी कहा जाता है।

जन्नत और जहन्नम​

अल्लाह त आला पूरी दुनिया के मालिक हैं।जमीं और आसमान के बीच जो कुछ भी है सबका मालिक अल्लाह ही है।

उनके वजूद व ताक़त का अंदाजा लगाना इंसानी दिमाग के वश की बात नहीं। अल्लाह ने इंसान और जिन्नात को अपनी इबादत के लिए पैदा किया। क़यामत के दिन सारे मुर्दे जिन्दा कर दिए जायेंगे। दुनिया में किये गए कर्मों के इनाम दिए जायेंगे। किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। सभी लोग अपने कर्म के अनुसार फल पाएंगे। जिसने अपनी जिंदगी अल्लाह के हुक्मों और नबी करीम हज़रत मुहम्मद स. के अनुसार गुजारा होगावह जन्नत में जायेगा और जिसने अल्लाह और उसके रसूल की नाफरमानी करके जिंदगी गुजारी होगी वह जहन्नम में डाल दिया जायेगा।

एक मुसलमान की ज़िन्दगी कैसी हो ?​

एक मुसलमान अपनी मन-मानी जिंदगी नहीं जी सकता। मुसलमान की जिंदगी कैसी हो, ये क़ुरान पाक़ में लिखा हुआ है। क़ुरान के मुताबिक ही हज़रत मुहम्मद स. की जिंदगी रही। जिंदगी के हरपहलू को क़ुरान में बताया गया है। इसीलिए एक सच्चे मुसलमान को हज़रत मुहम्मद स. के नक़्शे क़दम पर जिंदगी जीनी चाहिए। इसी को सुन्नत तरीका कहा जाता है। हज़रत मुहम्मद स. के तरीके से जिंदगी जीने में ही कामयाबी है और अल्लाह की रज़ामंदी भी।

सूद खोरी, शराब, जुआ, ज़िना ( पराई औरत से रिश्ता), चोरी, बेईमानी, झूठ, क़त्ल को इस्लाम में हराम और बड़ा गुनाह मन गया है. रिश्तों की बड़ी अहमियत है। रिश्तेदारों के साथ अपनी फ़र्ज़ अदायगी जरुरी है। नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज मुसलमान पर फ़र्ज़ है। वक़्त पर पांचों नमाजों की अदायगी जरूरी है।

मौत के बाद जिंदगी पर यकीन होना लाज़मी है। जन्नतकी ख़्वाहिश और जहन्नम का डर मन में होना चाहिए इससे इंसान बुराई से बचेगा और नेक काम करेगा। दुनिया में हर पल हर उम्र के लोग किसी न किसी बहाने मरते हैं। किसी के भी मौत का भरोसा नहीं है। इसलिए हर इंसान की कोशिश होनी चाहिए की जितने दिन भी जिए बिलकुल पाक साफ सुन्नत तरीके से जिंदगी गुजारे ताकि मौत के वक़्त कोई अफ़सोस न हो।

नोट- नमाज, कुरान, इस्लाम की दीनी बातें दूसरों तक पहुंचाना भी सवाब का काम है। इसलिए इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा मोमिन लोगों के साथ शेयर करें। ज़ज़ाकल्लाहु खैरन।
 
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