बिना आवाज किए रोना…
रोने से ज्यादा दर्द देता है।
याद आएगी हर रोज मगर तुझे आवाज न दूँगा,
तेरे लिए हर गजल हर शायरी लिखुंगा मगर तेरा नाम न लूँगा।
कुछ जलते है तेरी खूबियों पर
कुछ तेरी खामियों पर भी नाज करते है,
अरे लोगों की छोड़ो
खाली लिफाफें हमेशा आवाज करते हैं।
सिक्के हमेशा आवाज करते हैं पर नोट खामोश रहते हैं इसलिए जब आपकी कीमत बढे तो शांत रहिये क्योंकि हैसियत का शोर मचाने का ज़िम्मा आपसे कम कीमत वालों का है।
लय में डूबी हुई मस्ती भरी आवाज़ के साथ
छेड़ दे कोई ग़ज़ल इक नए अंदाज़ के साथ।
करूँगा बात उससे उस दिन मगर रोऊंगा नहीं,
क्योंकि इतनी औकात कहा उसकी आवाजों में जो मुझे रूला सके।
शरमा के मत छुपा चेहरे को पर्दे में,
हम चेहरे के नहीं तेरे आवाज के दिवाने हैं।
हर आह में दबी हुई आवाज ढुढ लेता हैं,
हर शायर, शायरी का आगाज ढुँढ लेता हैं।
काश मेरा घर तेरे घर के सामने होता,
तू ना आती तो क्या तेरी आवाज़ तो आती।
पलट के देख लेना जब दिल की आवाज सुनाई दे,
तेरे दिल के अहसास में शायद मेरा चेहरा दिखाई दे।
बैठती वहीं हूँ जहाँ अपनेपन का अहसास है मुझको,
यूं तो जिन्दगी में कितने ही लोग आवाज देते हैं मुझको।
चलो अब आवाज दी जाये नींद को,
कुछ थके थके से लग रहे हैं ख्वाब मेरे।
यूँ तो एक आवाज दूँ और बुला लूँ तुम्हें मगर,
कोशिश ये है कि खामोशी को भी आजमा लूँ जरा।
ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी,
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था।
मेरी आवाज़ तुझे छू ले बस इतनी मोहलत दे,
तेरे कूचे से गुज़र जाऊँगा साधू की तरह।
सुकून मिलता है दो लफ्ज़ काग़ज़ पर उतार कर,
कह भी देता हूँ और आवाज़ भी नहीं आती।
बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे,
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता।
काश की लम्हे भर के लिये रुक जाये ज़मी की गर्दिशे,
और कोई आवाज ना हो तेरी धड़कने के सिवा।
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फसाने पे न जा,
मेरी नज़रों की तरफ देख ज़माने पे न जा।
तुझे इधर उधर ढूंढती हैं मेरी आंखे ,
जब सुनता हूँ किसी के पायल की आवाज़।
सुनना चाहते है एक बार आवाज उनकी मगर बात करने का बहाना भी तो नहीं आता मुझे :-
किसने सोचा था कि ख़ुद से मिल कर,अपनी आवाज़ से डर जाना है।
कोई आवाज़ पे आवाज़ दिए जाता है,
आज सोता ही तुझे छोड़ के जाना होगा।
दिल में सोए हुए नग़्मों को जगाना है अगर,
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाते चलिए।
मुझ को आवाज़ पे आवाज़ दिए जाती है
इक सुलगती हुई सिगरेट का बलखाता धुआँ
शर्मा कर मत छुपा चहरे को पर्दे में,
हम चेहरे के नहीं, तेरी आवाज के दीवाने है।
सुनना चाहते है एक बार आवाज उनकी
मगर बात करने का बहाना भी तो नहीं आता मुझे।
कहाँ होता है इतना तजुर्बा किसी हकीम के पास…
माँ आवाज सुनकर बुखार नाप लेती है…!!
मेरी आवाज को महफूज कर लो, मेरे दोस्तों…
मेरे बाद बहुत सन्नाटा होगा तुम्हारी महफ़िल में…!!
हो जाओ जब तन्हा कभी तुम राहों में,
चले आएंगे बस एक आवाज़ तुम लगा देना।
कुछ टूटा है शायद, दिल के भीतर,
के अबकी बार कोई आवाज़ नहीं आई।