तूने अपनी बाहों का सहारा ही क्यों दिया,
जब मुझे इस तरहा बेसहारा ही करना था।
तेरी तलब ने निखारा है मेरे सावले पन को,
तेरी आगोश में ही मुकम्मल नज़र आता हूँ।
तेरे आगोश में मिल जाये पनाह,
हम इतने खुश नसीब कहाँ।
छुपा रखा है अपने अकेलेपन का आलम इन अल्फ़ाज़ों के आगोश में,
जरा संभल के पढ़िएगा, कहीं आप इनमें खो ना जाये।
लाल जोड़े मे सजी अपनी हीर का घूंघट उठाने से पहले,
तिरंगे की आगोश में लिपटना पसंद किया उसने…
ढल जाता है चाँद भी आसमाँ के आग़ोश में
मेरे ख़्वाबों के जुगनू मगर सोते क्यों नहीं?
ये दूरी और हमसे सही नहीं जाती,
तेरे पास आने को दिल करता है….
भुला कर सारे दुनिया भर के ग़मों को,
तेरे आगोश में सो जाने को दिल करता है….
आओ आगोश में कि ,इश्क का अंजाम हो जाएँ,
थोड़ा बुझें थोड़ा जलें ,आज की शाम हो जाए।
कितना गुस्ताख़ी से खींचा है तुझे आग़ोश में,
मैं गले का हार हूँ तेरे गले के हार का।
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है,
उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं।