मुड़ के जो आ नहीं पाया होगा उस कूचे में जा के ‘ज़फ़र’
हम जैसा बेबस होगा हम जैसा तन्हा होगा।
मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का,
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है।
नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो
हम ने बेबस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग।
अपनी तन्हाई में वापस आ जाता हूँ
अपनी बेबसी पर आँसू बहाने के लिए।
भँवर जब भी किसी मजबूर कश्ती को डुबोता है,
तो अपनी बेबसी पर दूर से साहिल तड़पता है।
आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ,
लग रहा है दर्द की तस्वीर बन जाएँगे हम।
दर्द से कह दो कि अब कोई और मकाँ ढूंढ ले…..
मेरे दिल ने बेबसी को पनाह देना बंद कर दिया हैं।
बेबसी भी कभी क़ुर्बत का सबब बनती है
रो न पाएँ तो गले यार से लग जाते हैं।
मोहब्बत, इंतजार, बेबसी, तङप…!!!
इतने कपङो मेँ भला ठंड लगती है क्या…!!!
बेबसी की इक हद ये भी है,
ना तुम मेरे हो और ना मैं अपना हूँ..!
सामने होते हुए भी तुझसे दूर रहना….
बेबसी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी…!
हम बेबस हैं बे-परवाह नहीं; हम उदास हैं खफ़ा नहीं; कदर करते हैं दोस्तों की दिल से; हम जिंदगी में मजबूर तो हो सकते हैं लेकिन बेवफ़ा नहीं।
बेबसी तो तब होगी..
जब सामने होकर भी
तू मुझसे दूर होगी…!
किसी और के पास कम से कम आबाद तो होगा,
हमारे पास बेबसी के शिवाय कुछ था भी तो नहीं।
बेबसी किसी थान सी खुलती चली गई साहब,
और सारे सुकून एक पल में ही खर्च होते गए…!
शोरगुल ये बेबसी का तुम कब तक करोगे,
आराम दो जुबान को कभी औरों की सुनोगे?
कभी तन्हाई कभी तड़प कभी बेबसी तो कभी इंतज़ार,
ये मर्ज़ भी क्या खूब है जिसे इश्क़ कहते है।
कोई बेबस, कोई बेताब, कोई चुप, कोई हैरान,
ऐ जिंदगी, तेरी महफ़िल के तमाशे ख़त्म नहीं होते…!
सच देखना भी हर किसी के वश में नहीं होता,
इंसान भी बेबस है अपनी किस्मत के आगे।
देने को तेरे पास बस बेरुखी है।
फिर भी तुझे चाहना मेरी बेबसी है।
अपने किरदार में छुपकर मैं महफूज़ हूँ,
बाहर तो जंग छिड़ी है बेबसों और धाकड़ों की।
तेरी यादो में, ये दिल बेबस हैं,
ना टूटता हैं, न भूलता है…!