Hindi Mai Achi Purani Kahani का अंश:
हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ विशेषता अवश्य होती है। मेरे जीवन की विशेषता यह है कि मैं अपने धर्म को कभी भी नहीं छोड़ता…। इस Hindi Mai Achi Purani Kahani को अंत तक जरुर पढ़ें…
विद्वदूजनों की सभा जुड़ रही थी ! विभिन्न विषयों पर प्रश्नोत्तर हो रहे थे! नगर के गणमान्य व्यक्ति भी वहां उपस्थित थे । अचानक एक मानव नया रूप धारण करता हुआ वहां आ पहुंचा ।
किसी गोष्ठी सदस्य ने उससे जिज्ञासा-भरी भाषा में पूछा–बन्धुवर ! तुम्हारे जीवन की विशेषता कया है ?
वह बोला–हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ विशेषता अवश्य होती है। मेरे जीवन की विशेषता यह है कि मैं अपने धर्म को कभी भी नहीं छोड़ता।
सभी विद्वानों ने उसे आश्यर्य भरी दृष्टि से निहारा। सभी के कान उसकी बात सुनने को उत्कंधर हो रहे थे।
वह बोला–मैंने जरूस्त पड़ने पर शराब पी ली, जुआ खेल लिया, पर धर्म को नहीं छोड़ा । भूख की समस्या बड़ी जटिल होती है। क्षुधातुर को सब कुछ करना पड़ता है । जीवन-निर्वाह हेतु कभी-कभी चोरी भी करता हूं। डाका भी डाल देता हूं । किन्तु धर्म को नही छोड़ा ।
मन की दुर्बलता हर आादभी में होती है। युवावस्था में इन्द्रियां अन्धी बन जाती हैं। काम-वासना की ओर मन-वानर दौड़ता रहता है । इन्द्रिय-अधीन मन-कर वेस्यागमन भी कर लेता हूं, पर मैंने धर्म नहीं छोड़ा । प्रतिकूल अवस्था में क्रोध भी कर लेता हूं। कभी-कभी तो पारा इतना गरम हो जाता है कि क्रोध अग्नि में जलकर मैंने खून भी कर डाला, पर धर्म नहीं छोड़ा।
बवह आँख मुंदकर स्वप्रशंसा के गीत गाता चला गया।
किसी एक सदस्य से रहा नहीं गया तो उसने सवाल पूछा—महाश्य ! आपका कथन विचित्र-सा लगा, बताईये तो सही,’आपका धर्म क्या है
वह अपनी गर्व की भाषा में बोल पडा—मैंने अछूत के हाथ का नहीं खाया । अनेक विपतियों का सामना करना पडा, फिर भी मैंने अपने इस धर्म पर अटल रहा।
ऐसे धामिकों से समाज का कभी भी कल्याण नहीं हो सकता। धार्मिक कह जाना जितना सरल है उतना ही धर्म को आचार ओर व्यहवार में लाना कठिनतम माना जाता है। सच्चा घामिक वही है जिसका आचार पवित्र हो ।
सच्चा धार्मिक है वही, जिसका ह्रदय पवित्र ।
“मुनि कन्हैया” मानता, दुश्मन को भी मित्र ॥
हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ विशेषता अवश्य होती है। मेरे जीवन की विशेषता यह है कि मैं अपने धर्म को कभी भी नहीं छोड़ता…। इस Hindi Mai Achi Purani Kahani को अंत तक जरुर पढ़ें…
विद्वदूजनों की सभा जुड़ रही थी ! विभिन्न विषयों पर प्रश्नोत्तर हो रहे थे! नगर के गणमान्य व्यक्ति भी वहां उपस्थित थे । अचानक एक मानव नया रूप धारण करता हुआ वहां आ पहुंचा ।
किसी गोष्ठी सदस्य ने उससे जिज्ञासा-भरी भाषा में पूछा–बन्धुवर ! तुम्हारे जीवन की विशेषता कया है ?
वह बोला–हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ विशेषता अवश्य होती है। मेरे जीवन की विशेषता यह है कि मैं अपने धर्म को कभी भी नहीं छोड़ता।
सभी विद्वानों ने उसे आश्यर्य भरी दृष्टि से निहारा। सभी के कान उसकी बात सुनने को उत्कंधर हो रहे थे।
वह बोला–मैंने जरूस्त पड़ने पर शराब पी ली, जुआ खेल लिया, पर धर्म को नहीं छोड़ा । भूख की समस्या बड़ी जटिल होती है। क्षुधातुर को सब कुछ करना पड़ता है । जीवन-निर्वाह हेतु कभी-कभी चोरी भी करता हूं। डाका भी डाल देता हूं । किन्तु धर्म को नही छोड़ा ।
मन की दुर्बलता हर आादभी में होती है। युवावस्था में इन्द्रियां अन्धी बन जाती हैं। काम-वासना की ओर मन-वानर दौड़ता रहता है । इन्द्रिय-अधीन मन-कर वेस्यागमन भी कर लेता हूं, पर मैंने धर्म नहीं छोड़ा । प्रतिकूल अवस्था में क्रोध भी कर लेता हूं। कभी-कभी तो पारा इतना गरम हो जाता है कि क्रोध अग्नि में जलकर मैंने खून भी कर डाला, पर धर्म नहीं छोड़ा।
बवह आँख मुंदकर स्वप्रशंसा के गीत गाता चला गया।
किसी एक सदस्य से रहा नहीं गया तो उसने सवाल पूछा—महाश्य ! आपका कथन विचित्र-सा लगा, बताईये तो सही,’आपका धर्म क्या है
वह अपनी गर्व की भाषा में बोल पडा—मैंने अछूत के हाथ का नहीं खाया । अनेक विपतियों का सामना करना पडा, फिर भी मैंने अपने इस धर्म पर अटल रहा।
ऐसे धामिकों से समाज का कभी भी कल्याण नहीं हो सकता। धार्मिक कह जाना जितना सरल है उतना ही धर्म को आचार ओर व्यहवार में लाना कठिनतम माना जाता है। सच्चा घामिक वही है जिसका आचार पवित्र हो ।
सच्चा धार्मिक है वही, जिसका ह्रदय पवित्र ।
“मुनि कन्हैया” मानता, दुश्मन को भी मित्र ॥