रोजगार क्या है यह सवाल आपके मन में है तो फिर इस पोस्ट में आपको रोजगार संबंधित सारी जानकारियां शेयर करने वाले हैं साथ में ही आपको यह भी बताने वाले हैं कि रोजगार किस प्रकार के हो सकते हैं.
आपने हमारी पिछली पोस्ट पढ़ी होगी तो उसमें हमने बताया था कि बेरोजगारी क्या है और उस पोस्ट में हमने विस्तार के साथ बेरोजगारी संबंधित सारी जानकारियां शेयर की है आज हम इस पोस्ट में रोजगार संबंधित सारी जानकारियां आपके साथ साझा करने वाले हैं.
रोजगार क्या है रोजगार कितने प्रकार के होते हैं
रोजगार क्या है: बेरोजगार और रोजगार यह दो ऐसे पहलू है जिससे हर कोई प्रभावित होता है कोई बेरोजगार है तो वह रोजगार की तलाश में अपना सारा दिन लगा देता है और किसी के पास रोजगार है तो वह भी अन्य रोजगार की तलाश में लगा रहता है.कोई व्यक्ति अपने जीवन में कोई कार्य करता है जिसके बदले में उससे पैसा मिलता है और उसी पैसे से वह कुछ भी खरीद सकता है यानी कि कोई काम करके जो पैसा मिलता है उसी को हम रोजगार कह सकते हैं.
आमतौर पर किसी व्यक्ति को काम के बदले में जीवन गुजारने के लिए जो पैसा मिलता है उसी ही हम रोजगार कह सकते है यानी कि किसी व्यक्ति को अपने जीवन काल के दरमियां अपनी जरूरतों के हिसाब से काम मिलता है उसे हम रोजगार कह सकते हैं.
हर व्यक्ति को अपने जीवन का गुजारा करने के लिए कोई न कोई जीवन व्यवसाय यानी कि कोई कार्य करना पड़ता है यह जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति एक ही काम करके अपना गुजारा कर सकता है.
हर व्यक्ति अपने पसंदीदा कार्य को ही करना चाहता है लेकिन हम यहां पर यह नहीं कह रहे हैं कि यदि कोई व्यक्ति को पसंदीदा काम नहीं मिला और वह दूसरा काम कर रहा है तो वह रोजगार नहीं होगा यकीनन वह भी एक तरह से रोजगार है.
रोजगार कितने प्रकार के होते हैं
रोजगार के यह कुछ प्रकार है जिससे व्यक्ति अपने जीवन का गुजारा करने के लिए करता है.- सरकारी नौकरी
- प्राइवेट कंपनी में नौकरी
- खुद का बिजनेस
- डॉक्टर
- वकील
- राजनेता
- मजदूरी करने वाला
- कलाकार
रोजगार के परंपरा वादी सिद्धान्त की मान्यता क्या है
रोजगार क्या है: आप रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त क्या है जानना चाहते होंगे तो चलिए इसके बारे में आपको बता देते है रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि रोजगार के लिए बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है.
वैसे तो रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त के अनुसार कीमतों, मजदूरी तथा ब्याज की दर में लोचशीलता पाई जाती है यानि की आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सकते है इस सिद्धान्त के अनुसार पैसा केवल एक आवरण मात्र है इसका आर्थिक क्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
आर्थिक क्रियाओं में सरकार की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं है बाजार मांग और पूर्ति की शक्तियां कीमतों को निर्धारित करने के लिए स्वतन्त्र है वैसे तो रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त अल्पकाल में लागू होता है.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त के निष्कर्ष कया है
आप ये भी जानना चाहते होंगे की रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त का निष्कर्ष क्या है तो चलिए इस के बारे में बात कर लेते है पूर्ण रोजगार की स्थिति एक सामान्य स्थिति है जो पूर्ण रोजगार का अर्थ है.अनैच्छिक बेरोजगारी की अनुपस्थिति पूर्ण रोजगार की अवस्था में संघर्षात्मक, ऐच्छिक आदि कई प्रकार की बेरोजगारी पाई जा सकती है.
आपको हम बता दे की सन्तुलन की अवस्था केवल पूर्ण रोजगार की दशा में ही सम्भव है सामान्य बेरोजगारी सम्भव नही है परन्तु अल्पकाल के लिये असाधारण परिस्थितियों में आंशिक बेरोजगारी पाई जा सकती है.
स्वरोजगार क्या है
स्वरोजगार क्या है जब आप कोई रोजगार अपनाते हैं तो आप वह कार्य करते हैं जो आपका रोजगारदाता आपको सौंपता है तथा बदले में आपको मजदूरी अथवा वेतन के रूप में एक निश्चित राशि प्राप्त होती है.लेकिन कोई काम नौकरी के स्थान पर अपनाता है और कोई कार्य कर सकता हैं तथा अपनी आजीविका कमा सकते हैं तो उसे हम सवेतन रोजगार कह सकते है.
आप अच्छे से समज पाए इसके लिए में आपको एक उदहारण देता हु मान लीजिये की आप एक दुकान चलाते है यानि के कोई एक व्यक्ति आर्थिक क्रिया करता है तथा स्वयं ही इसका प्रबंधन करता है तो इसे स्वरोजगार कहते हैं.
हर इलाके में आप छोटे-छोटे स्टोर, मरम्मत करने वाली दुकानें अथवा सेवा प्रदान करने वाली इकाइयां देखते हैं इन प्रतिष्ठानों का एक ही व्यक्ति मालिक होता है तथा वही उनका प्रबंधन करता है.
कभी-कभी एक या दो व्यक्तियों को वह अपने सहायक के रूप में रख लेता है तो इन कार्य को हम स्वरोजगार कह सकते है.
किराना भंडार, स्टेशनरी की दुकान, किताब की दुकान, दवा घर, दर्जी की दुकान, नाई की दुकान, टेलीफोन बूथ, ब्यूटी पार्लर, बिजली, साइकिल आदि की मरम्मत की दुकानें स्वरोजगार आधारित क्रियाओं के उदाहरण हैं.
स्वरोजगार तथा सवेतन रोजगार में अंतर क्या है
रोजगार क्या है: मान लीजिए की नौकरी या सवेतन रोजगार में व्यक्ति कर्मचारी होता है जबकि स्वरोजगार में वह स्वयं मालिक की तरह होता है नौकरी में आमदनी पर व्यक्ति निर्भर करता है जबकि स्वरोजगार में उस व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है.नौकरी में व्यक्ति दूसरों के लाभ के लिए कार्य करता है जबकि स्वरोजगार में व्यक्ति अपने ही लाभ के लिए कार्य करता है नौकरी में आय सीमित होती है जो पहले से ही तय कर ली जाती है जबकि स्वरोजगार में लगे हुए व्यक्ति की लगन व योग्यता पर निर्भर आय करती है.
नौकरी में कर्मचारी को कार्य विशेष द्वारा आय दिया जाता है जबकि स्वरोजगार में वह अपनी आवश्यकतानुसार कार्य चुनता है स्वरोजगार में जोखिम सदैव बना रहता है तथा आय घटती या बढ़ती रहती है नौकरी में कोई जोखिम नहीं है जब तक कि एक कर्मचारी कार्य करता है.
स्वरोजगार के क्षेत्र कौन से है
अब आपको ये जनाना होगा की स्वरोजगार के क्षेत्र कौन से है तो चलिए इस पर बात कर लेते है वैसे तो स्वरोजगार में बहुत से क्षेत्र मान लीजिये की आप एक छोटी दुकान खोलना चाहते है तो वो एक स्वरोजगार क्षेत्र है.जो लोग अपनी विशिष्ट निपुणता के आधर पर ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करते हैं वह भी स्वरोजगार में सम्मिलित किए जाते हैं उदाहरण के लिए साईकिल, स्कूटर, घड़ियों की मरम्मत, सिलाई, बाल संवारना आदि ऐसी सेवाएं है जो ग्राहक को व्यक्तिगत रूप से प्रदान की जाती है वे सभी स्वरोजगार के क्षेत्र है.
पेशेगत योग्यताओं पर आधारित व्यवसाय जिन कार्यों के लिए पेशे सम्बन्धी प्रशिक्षण एवं अनुभव की आवश्यकता होती है वह भी स्वरोजगार के अंतर्गत आते हैं.
उदाहरण के लिए पेशे में कार्यरत डॉक्टर, वकील, चाटर्ड एकाउन्टैंट, फार्मेसिस्ट, आरकीटैक्ट आदि भी अपने विशिष्ट प्रशिक्षण एवं निपुणता के आधर पर स्वरोजगार की श्रेणी में आते हैं.
इनके छोटे प्रतिष्ठान होते हैं जैसे क्लीनिक, दफ्रतर का स्थान, चैम्बर आदि तथा यह एक या दो सहायकों की सहायता से अपने ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करते हैं.
छोटे पैमाने की कृषि भी स्वरोजगार के क्षेत्र में आती है जैसे की कृषि के छोटे पैमाने के कार्य जैसे डेरी, मुर्गीपालन, बागबानी, रेशम उत्पादन आदि में स्वरोजगार सम्भव है.
आज की इस पोस्ट में हमने रोजगार क्या है इस बारे में बात की है यदि हमारे से इस पोस्ट में कोई गलत जानकारी दी गई हो तो उसके बारे में आप कमेंट में बता सकते है.