संस्कृत वैदिक व्याकरण

संस्कृत वैदिक व्याकरण


संस्कृत का सबसे प्राचीन (वेदकालीन) व्याकरण ‘वैदिक व्याकरण’ कहलाता है। यह पाणिनीय व्याकरण से कुछ भिन्न था।

संस्कृत में लिखित बृहद् साहित्य के मुख्यतः दो खण्ड हैं – वैदिक साहित्य और लौकिक साहित्य। वैदिक साहित्य के मुख्यतः पाँच विभाग हैं-

(1) संहिताएं (सूक्तों के संग्रह)

(2) ब्राह्मण,

(3) अरण्यक

(4) उपनिषद

(5) कल्पसूत्र

कल्पसूत्र जो प्रधानतः तीन प्रकार के हैं,

(क)
श्रौतसूत्र, जो यज्ञों से सम्बन्धित हैं,

(ख) गृह्यसूत्र, जिनका गृह के विधानों से सम्बन्ध है,

(ग) धर्मसूत्र, जो सामाजिक नियमों एवं व्यवहारों से सम्बन्धित हैं।

ये तीन प्रकार के सूत्र ‘कल्पसूत्र’ के अन्तर्गत लिए जाते हैं। इनके अतिरिक्त हैं- शुल्वसूत्र जो यज्ञवेदी सम्बन्धी रेखाणित रूपों का नियोजन करते हैं और इस कारण कभी-कभी कल्पसूत्रों के ही भीतर गिने जाते हैं। उपर्युक्त कल्पसूत्रों के अतिरिक्त कुछ और भी ग्रंथ हैं जिनका सम्बन्ध ध्वनि, विज्ञान, व्याकरण, छन्द और नक्षत्रविद्या से है। यह ग्रन्थ वेदांगों में परिगणित होते हैं। ये ग्रन्थ भी सूत्र-शैली में ही मिलते हैं और इनका समय है वैदिक एवं लौकिक संस्कृत का सन्धिकाल।
 

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