घमंड से जुड़े संस्कृत श्लोक

घमंड से जुड़े संस्कृत श्लोक


नमस्कार दोस्तों तो आज हम आपके लिए घमंड से जुड़े संस्कृत श्लोक लेके आए हैं तो आईए शुरू करते हैं।

घमंड से जुड़े संस्कृत श्लोक​

1.अश्रुतश्च समुत्रद्धो दरिद्रश्य महामनाः।
अर्थांश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥​

हिंदी अर्थ:- बिना पढ़े ही स्वयं को ज्ञानी समझकर अहंकार करने वाला, दरिद्र होकर भी बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाने वाला तथा बैठे-बिठाए धन पाने की कामना करने वाला व्यक्ति मूर्ख कहलाता है ।

2.मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।
कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।​

हिंदी अर्थ:- अहंकार को त्याग कर मनुष्य प्रिय होता है, क्रोध ऐसी चीज है जो किसी का हित नहीं सोचती। कामेच्छा को त्याग कर व्यक्ति धनवान होता है तथा लोभ को त्याग कर व्यक्ति सुखी होता है।

3.यदा किञ्चिज्ञोहं द्विप इव मदान्धः समभवम्।
तदा सर्वज्ञोस्मित्यभवदवलिप्तं मम मनः।।
यदा किञ्चित् किञ्चित् बुधजनशकाशादवगतम्।
तदा मूर्खोस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः।।​

हिंदी अर्थ – जब मैं थोड़ा थोड़ा जानता था तब मैं उन्मत्त हाथी की तरह अपने आप को समझता था और मैं सोचता था कि मैं तो सब कुछ जानता हूँ, मेरे से ज्यादा कौन जानता है? पर जब मैं धीरे धीरे विद्वान लोगों के सम्पर्क आया तब मैंने देखा और जाना कि अरे! मैं तो कुछ भी नहीं जानता हूँ। तब मेरा घमण्ड ऐसे उतर गया जैसे कि बुखार उतर जाता है।

4.अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः ।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः ॥​

हिंदी अर्थ:- वे अहंकार, हठ, घमण्ड, कामना और क्रोध का आश्रय लेने वाले मनुष्य अपने और दूसरों के शरीर में (रहने वाले) मुझ अन्तर्यामी के साथ द्वेष करते हैं तथा (मेरे और दूसरों के गुणों में) दोष दृष्टि रखते हैं।

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