बेटी की विदाई में माँ के दिल की करुण आवाज

नौ महीने तक गर्भ में सम्हाला जिसको,
घर के हर काम काज करती भी रही,
नन्ही सी बेटी ने जन्म लिया,
जिसे देख देख खिलती भी रही।

जिस पर न्यौछावर कर दी अपनी ममता,
जिसके प्यार दुलार में हँसती रही,
ना लगने दिया किसी की नज़र जिसे,
वो आँचल में मेरे छिपती रही।

जिसका रोना ना सुन सकती,
रात रात भर जिसे सहलाती ही रही,
चैन से सोये बिटिया रानी,
प्यारी निंदिया को बुलाती ही रही

बचपन की हर ख़ुशी जिसे दी,
जिसके सपनों में मैं भी खोई रही,
जिसकी इक मुस्कान मुझे,
सौ जन्मों सी लगती रही।

रहन सहन के तौर तरीके सीखाये,
जो गलतियाँ भी करती रही,
फिर से अच्छा कर लेगी बेटी,
ये सोच सोच माफ़ भी करती रही।

अच्छे बुरे की पहचान कराई,
रिश्ते नातों का सच्चा ज्ञान दिया,
ना सोचा कभी अपनी ख़ुशी,
जिसकी खुशियों पर ध्यान दिया।

हे ऊपर वाले ज़रा बता,
एक माँ से तेरी कैसी रुसवाई,
इतना सब कुछ करे जो बेटी के लिए,
पल भर में क्योँ हो जाती है पराई।


 

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