हेलो दोस्तों, हमारे ब्लॉक में आपका स्वागत है, आज हम जलमंडल क्या है? । Hydrosphere in Hindi, जल के स्रोत, तरंगे, धाराएं, ज्वार-भाटा आदि इन सबके बारे में जानेंगे। तो चलिए शुरू करते है।
महासागरों में सबसे बड़ा और सबसे पुराना प्रशांत महासागर है। पृथ्वी के क्षेत्रफल के 35.25% भाग पर इसका विस्तार है। इसका क्षेत्रफल 15 करोड़ 55 लाख किलोमीटर से अधिक है और इसकी सर्वाधिक गहराई 11033 मीटर है। अटलांटिक महासागर दूसरा सबसे बड़ा महासागर पृथ्वी के क्षेत्रफल के 20.9% भाग को गिरे हुए है। इसका क्षेत्रफल 7 करोड़ 67 लाख किलोमीटर से अधिक है और इसकी सर्वाधिक गहराई 9219 मीटर है। हिंद महासागर तीसरा सबसे बड़ा महासागर भारत में कन्याकुमारी से दक्षिणी ध्रुव अण्टार्कटिका तक फैला हुआ है। यह पृथ्वी के कुल धरातल क्षेत्र के 14.65%भाग में है। इसका क्षेत्रफल 6 करोड़ 85 लाख किलोमीटर से अधिक है और इसके सर्वाधिक गहराई 7455 मीटर है। महासागरों की औसत गहराई 3000 मीटर से अधिक है।
महासागरों की संख्या चार और सागरों की संख्या 7 है विख्यात 7 सागरों की रचना पहले तीन महासागरों को भूमध्य रेखा के साथ साथ उत्तर और दक्षिण में विभाजित करने से और उनमें आर्कटिक को जोड़ने से हुई है। इस प्रकार उत्तरी प्रशांत दक्षिणी प्रशांत उत्तरी अटलांटिक दक्षिणी अटलांटिक उत्तरी हिंद दक्षिणी हिंद आवर और आर्कटिक सागर है। सागरों के नामकरण के आधार पर वर्तमान में दक्षिणी चीन सागर कैरेबियन सागर भूमध्य सागर पूर्वी चीन सागर आदि प्रमुख सागर है।
महासागरीय तरंगों के प्रकार
1. दोलन तरंग – इसका निर्माण अधिक गहरे जल वाले क्षेत्र में होता है तथा इसमें जल की प्रत्येक बूंदे वृत्ताकार रूप में गतिशील होती है।
2. स्थानांतरण तरंग – इसमें जल की गति तरंग की गति की दिशा में होती है। इसमें ऊपरी सतह से लेकर सागर तली तक समस्त जल तरंग की गति की दिशा में गतिशील होता है।
3. संक्रमणीय सील तरंग – गहरे जल की तरंगों एवं जल की तरंगों के मध्य उत्पन्न होने वाली महासागरीय तरंग को संक्रमण सील तरंग कहते हैं।
4. दैत्याकार तरंग – अचानक एवं अधिक ऊंची ऊंची उत्पन्न प्रचंड तरंग को दैत्याकार तरंग कहते हैं इसे सुपर तरंग भी कहते हैं। यह अत्यधिक प्रचंड एवं विध्वंस कारी होती है।
5. रचनात्मक तरंग – दीर्घ तरंग धैर्य एवं निम्न आवर्ती वाले सागरीय तरंगों को रचनात्मक तरंगे कहते हैं। क्योंकि यह सागरीय पुलों का निर्माण एवं संवर्धन करती है।
6. विनाशी तरंग – छोटी तरंगदैर्ध्य ऊंचे शिखर एवं उच्च आकृति वाले सागरीय तरंगों को विनाशी तरंग कहते हैं। क्योंकि यह सागर यह तटवर्ती भागों का अपरदन एवं सागर यह पुलिनो का विनाश करती है।
सागरों में जल के एक निश्चित दिशा में प्रभावित होने की गति को धाराएं कहते हैं। इनका वेग प्राय 2 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा तक होता है। इनका महत्व भारी मात्रा में विशाल जलराशि को हजारों किलोमीटर दूर तक बहाने के लिए है। तापक्रम के अनुसार धाराएं दो प्रकार की होती है।
1. गर्म धारा तथा 2. ठंडी धारा
इनकी गति आकर एवं दिशा में पर्याप्त अंतर होता है इस आधार पर यह धाराएं 3 प्रकार की होती है।
1. प्रवाह – पवन की दिशा में गति से प्रभावित होकर सागरीय सतह यह का जल मंद गति से आगे बढ़ता है। परवाह की सीमा और गति स्थाई नहीं होती है। उत्तरी अटलांटिक तथा दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह के उदाहरण हैं।
2. धारा – निश्चित सीमा के भीतर निश्चित दिशा में तीव्र गति से बहने वाली जलराशि को धारा कहते हैं। क्यूरोसिवो , पेरू, बेंगुएला इत्यादि धारा इसके उदाहरण है।
3. विशाल धारा – नदियों की भांति अधिक जलराशि तीव्र गति तथा निश्चित सीमा में बहने वाली सागरीय धारा को विशाल जलधारा कहते हैं। गल्फ स्ट्रीम इसका उत्तम उदाहरण है।
धाराओं की दिशा को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरीय धाराएं की परवाह दिशा कभी भी एक सी नहीं रहती है। उन पर निम्न प्रश्नों को प्रभाव पड़ता है।
प्रचलित स्थाई हवाएं, पृथ्वी की घूर्णन गति, तत्वों की आकृति, समुद्री तल
1. प्रशांत महासागर की धाराएं
प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर की अपेक्षा अधिक विस्तृत तथा विभिन्न आकार के तत्व के प्रदेशों से युक्त है। अतः इसमें धाराओं के क्रम कुछ बन पाए जाते हैं। इस महासागर के प्रमुख धाराएं निम्नलिखित है।
A. उत्तरी विषुवतरेखीय धारा
B. क्यूरोशिवो धारा
C. क्यूराइल की धारा
D. दक्षिण विषुवतीय धारा
E. पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई धारा
F. पेरू धारा
G. एलनीनो या विपरीत रेखीय धारा
2. अटलांटिक महासागर की धाराएं
प्रचलित व्यापारिक पवन विषुवत रेखा के उत्तर और दक्षिण में महासागर के धरातलीय जल को बहने के लिए प्रेरित करती है। इससे यहां का जल दो धाराओं के रूप में पश्चिम की ओर बहता है। इस महासागर की निम्नलिखित धाराएं है ।
A. उत्तरी विषुवत रेखीय धारा
B. फ्लोरिडा की धारा
C. गल्फ स्ट्रीम धारा
D. नार्वे की धारा
E. लैब्राडोर की धारा
F. पूर्वी ग्रीनलैंड की धारा
G. केनरी की धारा
H. दक्षिण भूमध्य रेखीय धारा
I. ब्राजील धारा
J. बेंगुला धारा
K. फ़ॉकलैंड धारा
L. अटलांटिक परवाह
3. हिंद महासागर की धाराएं
उत्तर में पूर्णता स्थल से गिरा केवल अर्ध महासागर होने के कारण हिंद महासागर में धाराओं के संचरण की विशेषताएं अटलांटिक और प्रशांत महासागर से भिन्न है। हिंद महासागर के उत्तरी भाग की धाराएं सामान्य प्रवाह तंत्र से बिल्कुल अलग है। मानसूनी मौसमी व्यवस्था के अनुसार धाराएं भी एक मौसम से दूसरे मौसम में अपनी दिशायें बदलती रहती है। इस प्रकार में पवन का प्रभाव अधिक स्पष्ट होता है।
A. दक्षिणी विषुवतीय रेखीय धारा
B. उत्तरी पूर्वी मानसून धारा
C. दक्षिणी पश्चिमी मानसून धारा
D अगुलहस धारा
E. दक्षिण हिंद महासागर की धारा
F. मोजांबिक धारा
ज्वार भाटा समुद्र की अस्थिर गतियों में से एक गति है इस प्रक्रिया में सागर का जल कभी ऊपर कभी नीचे होता है। इस क्रिया को ज्वार भाटा कहा जाता है। जल के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे गिरने को भाटा कहते हैं। समुद्र जल का ऊपर उठना या नीचे गिरना सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण शक्ति के कारण होता है। महासागर और समुद्रों में ज्वार की उत्पत्ति चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण बल तथा पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल के कारण होती है। एक समय में दो ज्वार केंद्रों की उत्पत्ति होती है चंद्रमा के सामने पृथ्वी की सतह वाले भाग पर चंद्रमा के आकर्षण शक्ति के कारण जबकि विपरीत भाग पर पृथ्वी के अपकेंद्रीय बल के कारण ज्वार की उत्पत्ति होती है।
1. दीर्घ ज्वार – जब सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं तो इस स्थिति को सिजिगी कहते हैं। सूर्य और चंद्रमा का सम्मिलित आकर्षण बल पृथ्वी पर पड़ता है इस कारण उच्च या दीर्घ ज्वार है। ऐसी अवस्था अमावस्या पूर्णिमा को होती है।
2. लघु ज्वार – जब चंद्रमा और सूर्य पृथ्वी से समकोण बनाते हैं तो दोनों अपनी तरफ जल को खींचने का प्रयास करते हैं। फल स्वरुप जल अधिक ऊपर नहीं उठ पाता अतः लघु ज्वार का अनुभव होता है। यह अवस्था अमावस्या और पूर्णिमा के अतिरिक्त तिथियों पर होती है विशेषकर सच में और अष्टमी को होती है।
3. उच्च भूमि तथा निम्न भूमि ज्वार – चंद्रमा पृथ्वी का गोलाकार पथ तथा पृथ्वी सूर्य की अंडाकार परिक्रमा करती है। इस क्रिया में चंद्रमा और पृथ्वी जब एक दूसरे के नजदीक आते हैं तो चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति अधिक होने के कारण ऊंचा ज्वार आता है। जिसे निम्न भूमि ज्वार कहते हैं तथा चंद्रमा और पृथ्वी एक दूसरे से दूर होते हैं तो आकर्षण शक्ति कम होने के कारण निम्न ज्वार आता है। जिसे उच्च भूमि ज्वार कहते हैं।
4. अयनवृति तथा विषुवत रेखीय ज्वार – सूर्य के समान चंद्रमा की स्थिति भी उत्तरायण और दक्षिणायन होती है। चंद्रमा का यह झुकाव सूर्य के वार्षिक झुकाव के बराबर होता है। किंतु चंद्रमा इसे 29.5 दिन के संयुक्त मार्ग में पूरा कर लेता है। जब चंद्रमा का झुकाव उत्तर की ओर होता है तो ज्वारीय केंद्र कर्क रेखा के पास तथा झुकाव दक्षिण की ओर होने पर ज्वारीय केंद्र मकर रेखा के पास होता है। अतः कर्क और मकर रेखा पर उत्पन्न होने वाले ज्वार को अयनवृत्तीय ज्वार कहा जाता है तथा चंद्रमा के भूमध्य रेखा पर प्रत्येक महीने लंबवत पढ़ने से ज्वार की दैनिक असमानता समाप्त हो जाती है। क्योंकि दो उच्च ज्वारों और दो निम्न ज्वारों की ऊंचाई सम्मान होती है। इसे विषुवतीय रेखीय ज्वार कहते हैं इसे ज्वार भाटे महीने में दो बार आते हैं।
5. दैनिक ज्वार – जब एक ही स्थान पर एक ज्वार और एक भाटा आता है तो इसे दैनिक ज्वार भाटा कहते हैं। इन चारों में 24 घंटे 52 मिनट का अंतर होता है इससे सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी की गतियां समयानुसार काफी प्रभावित होती है।
6. अर्द्ध दैनिक ज्वार – ऐसा ज्वार भाटा दिन में दो बार आता है यह प्रत्येक दिन समय अनुसार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है
दोस्तों, आज हमने आपको जलमंडल क्या है? । Hydrosphere in Hindi, जल के स्रोत, तरंगे, धाराएं, ज्वार-भाटा आदि के बारे में बताया, आशा करता हूँ आपको यह अनुच्छेद बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट द्वारा बताएं, मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा| धन्यवाद |
जलमंडल क्या है? । Hydrosphere in Hindi
जलमण्डल से आशय जल के उस समूह से है, जो पृथ्वी के तल पर महासागरों सागरों झीलों नदियों व अन्य जलाशयों के रूप में फैला है। पृथ्वी तल के 70.8 % भाग पर जल का विस्तार मिलता है जिसमें महासागर सागर नदियां झीलें इत्यादि के जल सम्मिलित हैं। इन सभी जलाशयों को समूह रूप से जलमंडल कहते हैं तथा महासागर अन्य तलराशियों तापमान को मृदु बनाती है। तटीय भागों के तापमान में ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में अधिक अंतर नहीं होते जलमंडल में परिसंचरण के कारण पृथ्वी पर वर्षा होती है। नदियों तालाबों झीलों और विशेषकर वर्षा का पानी मृदा और शेलो से रिस – रिसकर भू – पृष्ठ के नीचे इकट्ठा होता रहता है। इस प्रकार जल से भरपूर एक क्षेत्र बन जाता है। जल से परिपूर्ण इस क्षेत्र की ऊपरी सीमा को जल स्तर कहते हैं।जल के स्रोत । Water Sources in Hindi
भूगोलवेत्ताओ के अनुसार जलमंडल में लगभग 146 करोड़ घन किमी पानी है। इसमें से 97.3 % महासागरों और सागरों में है शेष 2.7% भाग हिमनदो और बर्फ टोपो मीठे जल की झीलों नदियों और भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है। महासागर एक दूसरे में इतने स्वाभाविक रूप से विलीन हो जाते हैं कि उनके बीच की सीमा का निर्धारण करना अत्यधिक कठिन है। इसके बावजूद भूगोलवेत्ताओ ने संपूर्ण महासागरीय क्षेत्र को चार महासागरों – प्रशांत महासागर अंध या अटलांटिक महासागर हिंद महासागर तथा आर्कटिक महासागर विभाजित किया है। परिभाषा के अनुसार इन महासागरों में सागर उपसागर खाड़ियां तथा उनसे संलग्न महासागरीय प्रवेश द्वारा सम्मिलित है। आर्कटिक महासागर भी सही रूप से महासागर नहीं है क्योंकि इसमें जलपोत नहीं चल सकते यह उत्तरी ध्रुव के चारों ओर फैला है शीतकाल में या पूर्णतया बर्फ से जमा रहता है और वर्ष के शेष भाग में अपने ही हिम से ढका रहता है। किन्तु इसका पृथक अस्तित्व और 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक का इसका विस्तार इसे महासागर मानने के लिए बाध्य करता है।महासागरों में सबसे बड़ा और सबसे पुराना प्रशांत महासागर है। पृथ्वी के क्षेत्रफल के 35.25% भाग पर इसका विस्तार है। इसका क्षेत्रफल 15 करोड़ 55 लाख किलोमीटर से अधिक है और इसकी सर्वाधिक गहराई 11033 मीटर है। अटलांटिक महासागर दूसरा सबसे बड़ा महासागर पृथ्वी के क्षेत्रफल के 20.9% भाग को गिरे हुए है। इसका क्षेत्रफल 7 करोड़ 67 लाख किलोमीटर से अधिक है और इसकी सर्वाधिक गहराई 9219 मीटर है। हिंद महासागर तीसरा सबसे बड़ा महासागर भारत में कन्याकुमारी से दक्षिणी ध्रुव अण्टार्कटिका तक फैला हुआ है। यह पृथ्वी के कुल धरातल क्षेत्र के 14.65%भाग में है। इसका क्षेत्रफल 6 करोड़ 85 लाख किलोमीटर से अधिक है और इसके सर्वाधिक गहराई 7455 मीटर है। महासागरों की औसत गहराई 3000 मीटर से अधिक है।
महासागरों की संख्या चार और सागरों की संख्या 7 है विख्यात 7 सागरों की रचना पहले तीन महासागरों को भूमध्य रेखा के साथ साथ उत्तर और दक्षिण में विभाजित करने से और उनमें आर्कटिक को जोड़ने से हुई है। इस प्रकार उत्तरी प्रशांत दक्षिणी प्रशांत उत्तरी अटलांटिक दक्षिणी अटलांटिक उत्तरी हिंद दक्षिणी हिंद आवर और आर्कटिक सागर है। सागरों के नामकरण के आधार पर वर्तमान में दक्षिणी चीन सागर कैरेबियन सागर भूमध्य सागर पूर्वी चीन सागर आदि प्रमुख सागर है।
महासागरीय जल की गतियां
महासागरों का जल कभी शांत नहीं रहता इसमें हर समय क्षैतिज ऊर्ध्वाधर रूप से परिसंचरण या गति होती रहती है। सागरों – महासागरों की जल सतह पर जब पवने चलती हैं तब वह अपने साथ जल को भी बाहर ले जाती हैं। इस प्रक्रिया के फल स्वरुप लहरों और धाराओं की उत्पत्ति होती है। यह परिसंचरण मुख्यत: तीन रूपों में देखा जाता है।- 1. तरंगे या लहरें
- 2. धाराएं
- 3. ज्वार भाटा
1. तरंगे । Waves in Hindi
महासागरीय जल की चेटीज तेज गति को महासागरीय तरंग कहते हैं। इसमें जल गति नहीं करता है लेकिन तरंग के आगे बढ़ने का क्रम जारी रहता है। तरंगे ऊर्जा होती है जो महासागरीय क्षेत्र के आर पार गति करती है। तरंगों में जल कण छोटे वर्षा का रूप में गति करते हैं।महासागरीय तरंगों के प्रकार
1. दोलन तरंग – इसका निर्माण अधिक गहरे जल वाले क्षेत्र में होता है तथा इसमें जल की प्रत्येक बूंदे वृत्ताकार रूप में गतिशील होती है।
2. स्थानांतरण तरंग – इसमें जल की गति तरंग की गति की दिशा में होती है। इसमें ऊपरी सतह से लेकर सागर तली तक समस्त जल तरंग की गति की दिशा में गतिशील होता है।
3. संक्रमणीय सील तरंग – गहरे जल की तरंगों एवं जल की तरंगों के मध्य उत्पन्न होने वाली महासागरीय तरंग को संक्रमण सील तरंग कहते हैं।
4. दैत्याकार तरंग – अचानक एवं अधिक ऊंची ऊंची उत्पन्न प्रचंड तरंग को दैत्याकार तरंग कहते हैं इसे सुपर तरंग भी कहते हैं। यह अत्यधिक प्रचंड एवं विध्वंस कारी होती है।
5. रचनात्मक तरंग – दीर्घ तरंग धैर्य एवं निम्न आवर्ती वाले सागरीय तरंगों को रचनात्मक तरंगे कहते हैं। क्योंकि यह सागरीय पुलों का निर्माण एवं संवर्धन करती है।
6. विनाशी तरंग – छोटी तरंगदैर्ध्य ऊंचे शिखर एवं उच्च आकृति वाले सागरीय तरंगों को विनाशी तरंग कहते हैं। क्योंकि यह सागर यह तटवर्ती भागों का अपरदन एवं सागर यह पुलिनो का विनाश करती है।
2. धाराएं । Stream in Hindi
महासागरों की सतह पर बहने वाली जल धाराओं को महासागरीय धाराएं कहते हैं। इनमें महासागर का जल नियमित रूप से निश्चित दिशा की ओर प्रवाहित होता है। महासागरीय धाराएं दो प्रकार के होते हैं। गर्म धाराएं और ठंडी धाराएं गर्म धाराएं उष्ण क्षेत्रों से शीतल क्षेत्रों की ओर बहती है। जैसे – गल्फस्ट्रीम की धारा नार्वे व ब्रिटेन तट की और बहती है तथा वहां के तापमान को बढ़ा देती हैं। ठंडी धाराएं शीतल क्षेत्र से उष्ण क्षेत्रों की ओर बहती है। जैसे लेब्राडोर की ठंडी धारा कनाडा के तट की ओर बहकर वहां के तापमान को कम कर देती हैं। यह धाराएं महासागरों पर चलने वाले पवनो और वहां के तापांतर के कारण उत्पन्न होती हैं। ये धाराएं तटीय जलवायु व्यापार तथा जल जीवो को प्रभावित करती हैं।सागरों में जल के एक निश्चित दिशा में प्रभावित होने की गति को धाराएं कहते हैं। इनका वेग प्राय 2 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा तक होता है। इनका महत्व भारी मात्रा में विशाल जलराशि को हजारों किलोमीटर दूर तक बहाने के लिए है। तापक्रम के अनुसार धाराएं दो प्रकार की होती है।
1. गर्म धारा तथा 2. ठंडी धारा
इनकी गति आकर एवं दिशा में पर्याप्त अंतर होता है इस आधार पर यह धाराएं 3 प्रकार की होती है।
1. प्रवाह – पवन की दिशा में गति से प्रभावित होकर सागरीय सतह यह का जल मंद गति से आगे बढ़ता है। परवाह की सीमा और गति स्थाई नहीं होती है। उत्तरी अटलांटिक तथा दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह के उदाहरण हैं।
2. धारा – निश्चित सीमा के भीतर निश्चित दिशा में तीव्र गति से बहने वाली जलराशि को धारा कहते हैं। क्यूरोसिवो , पेरू, बेंगुएला इत्यादि धारा इसके उदाहरण है।
3. विशाल धारा – नदियों की भांति अधिक जलराशि तीव्र गति तथा निश्चित सीमा में बहने वाली सागरीय धारा को विशाल जलधारा कहते हैं। गल्फ स्ट्रीम इसका उत्तम उदाहरण है।
धाराओं की दिशा को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरीय धाराएं की परवाह दिशा कभी भी एक सी नहीं रहती है। उन पर निम्न प्रश्नों को प्रभाव पड़ता है।
प्रचलित स्थाई हवाएं, पृथ्वी की घूर्णन गति, तत्वों की आकृति, समुद्री तल
1. प्रशांत महासागर की धाराएं
प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर की अपेक्षा अधिक विस्तृत तथा विभिन्न आकार के तत्व के प्रदेशों से युक्त है। अतः इसमें धाराओं के क्रम कुछ बन पाए जाते हैं। इस महासागर के प्रमुख धाराएं निम्नलिखित है।
A. उत्तरी विषुवतरेखीय धारा
B. क्यूरोशिवो धारा
C. क्यूराइल की धारा
D. दक्षिण विषुवतीय धारा
E. पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई धारा
F. पेरू धारा
G. एलनीनो या विपरीत रेखीय धारा
2. अटलांटिक महासागर की धाराएं
प्रचलित व्यापारिक पवन विषुवत रेखा के उत्तर और दक्षिण में महासागर के धरातलीय जल को बहने के लिए प्रेरित करती है। इससे यहां का जल दो धाराओं के रूप में पश्चिम की ओर बहता है। इस महासागर की निम्नलिखित धाराएं है ।
A. उत्तरी विषुवत रेखीय धारा
B. फ्लोरिडा की धारा
C. गल्फ स्ट्रीम धारा
D. नार्वे की धारा
E. लैब्राडोर की धारा
F. पूर्वी ग्रीनलैंड की धारा
G. केनरी की धारा
H. दक्षिण भूमध्य रेखीय धारा
I. ब्राजील धारा
J. बेंगुला धारा
K. फ़ॉकलैंड धारा
L. अटलांटिक परवाह
3. हिंद महासागर की धाराएं
उत्तर में पूर्णता स्थल से गिरा केवल अर्ध महासागर होने के कारण हिंद महासागर में धाराओं के संचरण की विशेषताएं अटलांटिक और प्रशांत महासागर से भिन्न है। हिंद महासागर के उत्तरी भाग की धाराएं सामान्य प्रवाह तंत्र से बिल्कुल अलग है। मानसूनी मौसमी व्यवस्था के अनुसार धाराएं भी एक मौसम से दूसरे मौसम में अपनी दिशायें बदलती रहती है। इस प्रकार में पवन का प्रभाव अधिक स्पष्ट होता है।
A. दक्षिणी विषुवतीय रेखीय धारा
B. उत्तरी पूर्वी मानसून धारा
C. दक्षिणी पश्चिमी मानसून धारा
D अगुलहस धारा
E. दक्षिण हिंद महासागर की धारा
F. मोजांबिक धारा
3. ज्वार-भाटा । Tides in Hindi
सूर्य एवं चंद्रमा की आकर्षण शक्ति उत्पन्न सागरीय जल जब नियमित रूप से ऊपर उठता है तथा नीचे गिरता है तो उसे ज्वार भाटा कहते हैं। पृथ्वी पर चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का प्रभाव ज्यादा पड़ता है। क्योंकि यह पृथ्वी के अधिक निकट है। चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का प्रभाव इसके सामने वाले भाग पर अधिक होता है परंतु इसके पीछे वाले भाग पर इसका प्रभाव कम होता है। जिन स्थानों से जल ऊपर उठता है वहां ज्वार होता है। जबकि जहां का तल नीचे से हो जाता है वहां भाटा होता है।ज्वार भाटा समुद्र की अस्थिर गतियों में से एक गति है इस प्रक्रिया में सागर का जल कभी ऊपर कभी नीचे होता है। इस क्रिया को ज्वार भाटा कहा जाता है। जल के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे गिरने को भाटा कहते हैं। समुद्र जल का ऊपर उठना या नीचे गिरना सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण शक्ति के कारण होता है। महासागर और समुद्रों में ज्वार की उत्पत्ति चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण बल तथा पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल के कारण होती है। एक समय में दो ज्वार केंद्रों की उत्पत्ति होती है चंद्रमा के सामने पृथ्वी की सतह वाले भाग पर चंद्रमा के आकर्षण शक्ति के कारण जबकि विपरीत भाग पर पृथ्वी के अपकेंद्रीय बल के कारण ज्वार की उत्पत्ति होती है।
ज्वार भाटा के प्रकार । Types of Tides in hindi
ज्वार भाटा के निम्न प्रकार है।1. दीर्घ ज्वार – जब सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं तो इस स्थिति को सिजिगी कहते हैं। सूर्य और चंद्रमा का सम्मिलित आकर्षण बल पृथ्वी पर पड़ता है इस कारण उच्च या दीर्घ ज्वार है। ऐसी अवस्था अमावस्या पूर्णिमा को होती है।
2. लघु ज्वार – जब चंद्रमा और सूर्य पृथ्वी से समकोण बनाते हैं तो दोनों अपनी तरफ जल को खींचने का प्रयास करते हैं। फल स्वरुप जल अधिक ऊपर नहीं उठ पाता अतः लघु ज्वार का अनुभव होता है। यह अवस्था अमावस्या और पूर्णिमा के अतिरिक्त तिथियों पर होती है विशेषकर सच में और अष्टमी को होती है।
3. उच्च भूमि तथा निम्न भूमि ज्वार – चंद्रमा पृथ्वी का गोलाकार पथ तथा पृथ्वी सूर्य की अंडाकार परिक्रमा करती है। इस क्रिया में चंद्रमा और पृथ्वी जब एक दूसरे के नजदीक आते हैं तो चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति अधिक होने के कारण ऊंचा ज्वार आता है। जिसे निम्न भूमि ज्वार कहते हैं तथा चंद्रमा और पृथ्वी एक दूसरे से दूर होते हैं तो आकर्षण शक्ति कम होने के कारण निम्न ज्वार आता है। जिसे उच्च भूमि ज्वार कहते हैं।
4. अयनवृति तथा विषुवत रेखीय ज्वार – सूर्य के समान चंद्रमा की स्थिति भी उत्तरायण और दक्षिणायन होती है। चंद्रमा का यह झुकाव सूर्य के वार्षिक झुकाव के बराबर होता है। किंतु चंद्रमा इसे 29.5 दिन के संयुक्त मार्ग में पूरा कर लेता है। जब चंद्रमा का झुकाव उत्तर की ओर होता है तो ज्वारीय केंद्र कर्क रेखा के पास तथा झुकाव दक्षिण की ओर होने पर ज्वारीय केंद्र मकर रेखा के पास होता है। अतः कर्क और मकर रेखा पर उत्पन्न होने वाले ज्वार को अयनवृत्तीय ज्वार कहा जाता है तथा चंद्रमा के भूमध्य रेखा पर प्रत्येक महीने लंबवत पढ़ने से ज्वार की दैनिक असमानता समाप्त हो जाती है। क्योंकि दो उच्च ज्वारों और दो निम्न ज्वारों की ऊंचाई सम्मान होती है। इसे विषुवतीय रेखीय ज्वार कहते हैं इसे ज्वार भाटे महीने में दो बार आते हैं।
5. दैनिक ज्वार – जब एक ही स्थान पर एक ज्वार और एक भाटा आता है तो इसे दैनिक ज्वार भाटा कहते हैं। इन चारों में 24 घंटे 52 मिनट का अंतर होता है इससे सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी की गतियां समयानुसार काफी प्रभावित होती है।
6. अर्द्ध दैनिक ज्वार – ऐसा ज्वार भाटा दिन में दो बार आता है यह प्रत्येक दिन समय अनुसार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है
दोस्तों, आज हमने आपको जलमंडल क्या है? । Hydrosphere in Hindi, जल के स्रोत, तरंगे, धाराएं, ज्वार-भाटा आदि के बारे में बताया, आशा करता हूँ आपको यह अनुच्छेद बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट द्वारा बताएं, मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा| धन्यवाद |
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