हृदय की परिभाषा? । Heart in Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। हमारे इस ब्लॉग में आपको हृदय की परिभाषा? । Heart in Hindi के साथ – साथ ह्रदय के प्रकार तथा ह्रदय की संरचना, हृदय की क्रियाविधि, हृदय धड़कन की उत्पत्ति, हृदयी या कार्डियक चक्र, हृदय अवरोध, हृदयक ध्वनियाँ आदि के बारे में बताएंगे, तो दोस्तों एक एक करके इन सबके बारे में जानते है।

हृदय की परिभाषा? । Heart in Hindi

सभी कशेरुकियों में केवल एक हृदय पाया जाता है जो कि शरीर के वक्ष गुहा में स्थित होता है। यह रुधिर संवहन तंत्र का केंद्रीय PUMPING अंग होता है। यह एक खोखला पेशीय अंग होता है जो कि कार्डियक मसल्स का बना होता है। हृदय जीवन भर बिना थके स्पंदन करता रहता है। ह्रदय एक द्विस्तरीय झिल्लीनुमा थैले में बंद रहता है जिसे पेरिकार्डियम कहते हैं। इस थैले मैं पेरीकार्डियम द्रव्य भरा रहता है। पेरिकार्डियम की बाह भित्ति को पैराइटल पेरिकार्डियम एवं आंतरिक भित्ति को विसरल पेरिकार्डियम कहते हैं। पेरिकार्डियम एवं उसमे भरा द्रव्य बाह आघातों एवं यांत्रिक इंजुरी से ह्रदय सुरक्षा करता है।


मनुष्य का हृदय शंक्वाकार, खोखली रचना के रूप में वक्षीय गुहा के मध्य में दोनों फेफड़ों के बीच स्थित होता है। इसका पिछला भाग थोड़ा वायीं ओर झुका रहता है। इसके चारों तरफ एक दोहरी झिल्ली पायी जाती है, जिसे Pericardial membrane कहते हैं। इसकी भीतरी स्तर जो कि हृदय से सटी रहती है Visceral layer तथा बाहरी स्तर Parietal layer कहलाती है। इसकी दोनों स्तरों के बीच में एक द्रव भरा होता है जिसे पेरीकार्डियल द्रव कहते हैं। यह द्रव हृदय को बाहरी धक्कों, सूखने तथा रगड़ से बचाता है। पूरा हृदय रेखित तथा अनैच्छिक हृदयक पेशियों का बना होता है जिसके कारण यह जीवनपर्यन्त बिना थके गति करता रहता है। पेरीकार्डियल झिल्ली को हटाने के बाद हृदय दिखाई देता है जो चारों तरफ से एक भूरे रंग की दीवार से घिरा रहता है जिसे हृदय भित्ति कहते हैं। इस भित्ति के अन्दर चार कोष्ठों में बँटी हृदय गुहा स्थित होती है।

हृदय भित्ति निम्न 3 स्तरों की बनी होती है।

(1) एपीकार्डियम
– यह हृदय की सबसे बाहरी स्तर होती है, जो संयोजी ऊतकों की बनी होती है तथा हृदय की बाहरी आघातों से रक्षा करती है।

(2) मीसोकार्डियम – यह हृदयक पेशियों की बनी हृदयक भित्ति की मध्य स्तर होती है। ये पेशियों ऐच्छिक तथा अनैच्छिक दोनों पेशियों के लक्षणों को धारण किये होती हैं और बिना थके जीवनपर्यन्त गति करती रहती हैं।

(3) एण्डोकार्डियम – यह हृदयक भिति की सबसे अन्दर स्थित कोमल व पतली स्तर होती है। इसकी कोशिकाएँ ही हृदयक पेशियों का निर्माण करती हैं।

हृदय में दो प्रकोष्ठ होते हैं जो कि एक दूसरे से जुड़े रहते हैं

1. आलिंद –

ह्रदय का यह प्रकोष्ठ शरीर के विभिन्न भागों से विओक्सीजनिकृत रुधिर को एकत्रित करता है आलिंद की संख्या अलग अलग जंतुओं में अलग अलग होती है।

2. निलय –

हृदय का यह प्रकोष्ठ ओक्सीजनीकृत रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाता है इसकी संख्या भी अलग अलग प्राणी में अलग अलग होती है।

ह्रदय के प्रकारTypes Of Heart in Hindi

ह्रदय 2 प्रकार के होते हैं।
  • 1. मायोजेनिक ह्रदय
  • 2. न्यूरोजेनिक ह्रदय

1. मायोजेनिक हृदय

ऐसा हृदय जिसमें हृदय की धड़कन की उत्पत्ति, हृदय में उपस्थित रूपांतरित ह्रदयक पेशियों के एक भाग के द्वारा उत्पन्न होती है। उसे मायोजेनिक ह्रदय कहते हैं एसिटिलकोलिन नामक रसायन इस प्रकार की ह्रदय धड़कनों को बंद कर देता है इस प्रकार का हृदय मोलस्को एवं कशेरुकियो में पाया जाता है।

2. न्यूरोजेनिक ह्रदय

ऐसे ह्रदय में ह्रदय धड़कन की उत्पति ह्रदय में उपस्थित तंत्रिकीय गन्ग्लियोंन से उत्पन्न तंत्रकीय आवेगो के द्वारा होती है इस प्रकार के ह्रदय ऐनेलिड एवं आर्थोपोड्स में पाया जाता है असीतिलकोलिन के प्रभाव में ऐसे ह्रदय की दड़कनो में वृद्धि होती है।


ह्रदय की संरचनाHeart Structure in Hindi

ह्रदय की संरचनाHeart Structure in Hindi

मनुष्य का हृदय लगभग 12 सेमी लम्बा, 9 सेमी चौड़ा और 6 सेमी मोटा होता है। यह चार कोष्ठों का बना होता है और दायें तथा बायें भागों में बँटा रहता है। दोनों भागों के बीच पूरी लम्बाई में Septum पाया जाता है। दायीं तरफ का ऊपरी कोष्ठ दायाँ आलिन्द (Right auricle) तथा निचला कोष्ठ दायाँ निलय (Right ventricle) कहलाता है। ठीक इसी प्रकार बायीं तरफ का ऊपरी कोष्ठ बायाँ आलिन्द तथा निचला कोष्ठ बायाँ निलय (Left ventri-cle) कहलाता है। दोनों ही आलिन्द तथा निलय एक-दूसरे से एकदम अलग रहते हैं। आलिन्द निलयों की अपेक्षा गहरे रंग के होते हैं और इनकी दीवारें भी पतली होती हैं। निलय की दीवारों के मोटी होने के कारण ही यह रुधिर को शक्तिशाली दाब द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को भेजता है।

हृदय के लम्ब काट का अध्ययन करने से इसकी आन्तरिक संरचना स्पष्ट हो जाती है। इसके दोनों आलिन्द अपने-अपने तरफ के निलयों में एक-एक छिद्र के द्वारा खुलते हैं। इन छिद्रों को आलिन्द-निलय छिद्र कहते हैं। प्रत्येक आलिन्द-निलय छिद्र कपाटों द्वारा रक्षित रहता है। ये कपाट रुधिर को आलिन्द से निलय में जाने देते हैं लेकिन निलय से आलिन्द में नहीं आने देते। दाहिने आलिन्द-निलय छिद्र का कपाट तीन तथा बायें आलिन्द-निलय छिद्र का कपाट दो वलनों का बना होता है। इसी कारण इन कपाटों को क्रमशः ट्राइकस्पिड कपाट तथा बाइकस्पिड कपाट कहते हैं। दोनों ही कपाट कॉर्डी टेण्डिनी नामक रज्जुओं द्वारा निलय की दीवार से जुड़े होते हैं। ये रज्जु इन कपाटों को आलिन्दों की ओर नहीं जाने देते। दोनों निलय बड़ी धमनियों में खुलते हैं। दाहिना निलय एक बड़ी धमनी पल्मोनरी महाधमनी (Pulmonary aorta) में खुलता में हैं जो दो भागों में विभाजित होकर दोनों फेफड़ों को जाती है। इन विभाजित शाखाओं को फुफ्फुस धमनी (Pulmonary artery) कहते हैं। बायाँ निलय दैहिक महाधमनी (Systemic aorta) में खुलता है जो शरीर के विविध भागों को ऑक्सीजन युक्त रुधिर ले जाती है। जिस स्थान से ये दोनों महाधमनियाँ निकलती हैं उस स्थान पर तीन-तीन अर्द्धचन्द्राकार कपाट पाये जाते हैं, जो रुधिर को निलयों से इन महाधमनियों को जाने देते हैं लेकिन महाधमनियों से निलयों में नहीं आने देते।

दाहिने आलिन्द में दो शिराए एक अग्र महाशिरा और एक पश्च महाशिरा आकर खुलती है। अग्र महाशिरा शरीर के अग्र भाग तथा सिर और पश्च महाशिरा शरीर के पश्च भाग से ऑक्सीजन विहीन रुधिर को ले आती हैं। इन दोनों के अलावा एक कोरोनरी शिरा जो कि हृदय की दीवार से रुधिर ले आती है, वह भी इस आलिन्द में खुलती है। बायें आलिन्द में चार बड़ी फुफ्फुसीय शिराएँ (Pulmonary veins) खुलती हैं जो ऑक्सीजन युक्त रुधिर को फेफड़ों से ले आती हैं।

यद्यपि हृदय हमेशा रुधिर से भरा रहता है फिर भी इसकी दीवार को रुधिर एक जोड़ी अलग धमनियों तथा शिराओं द्वारा पहुँचाया और लाया जाता है, जिन्हें क्रमश: कोरोनरी धमनी और शिरा कहते हैं। दैहिक महाधमनी जिस स्थान पर हृदय से निकलती है वहाँ पर थोड़ी चौड़ी होती है, इस चौड़े भाग को महाधमनी कोटर (Aortic sinus) कहते हैं। यहीं से दोनों कोरोनरी धमनियाँ निकलती हैं और हृदय की दीवार को रुधिर ले जाती हैं तथा अन्त में कोरोनरी शिरा के रूप में दाहिने आलिन्द को लौटा देती हैं।

हृदय में रुधिर का मार्ग

शरीर के विविध भागों से रुधिर को दाहिने आलिन्द में विविध शिराओं द्वारा लाया जाता है और जब यह संकुचित होता है तो इसका रुधिर आलिन्द-निलय छिद्र (A.V.A.) द्वारा दाहिने निलय में पहुँच जाता है। अब दाहिना निलय संकुचित होता है फलतः A.V.A. बन्द हो जाता है और रुधिर पल्मोनरी धमनी के द्वारा फेफड़ों को ऑक्सीजन युक्त होने के लिए चला जाता है। पल्मोनरी धमनी के छिद्र के अर्द्धचन्द्राकार कपाट निलय के संकुचन से पैदा हुए दबाव के कारण खुल जाते हैं। फेफड़े के अन्दर रुधिर को ऑक्सीजन युक्त बनाया जाता है। इसके बाद यह रुधिर पल्मोनरी शिराओं के द्वारा बायें आलिन्द में लौट आता है। जब बायाँ आलिन्द संकुचित होता है तब इसका रुधिर बायें A.V.A. के बाइकस्पिड कपाट को खोलकर बायें निलय में आ जाता है। अब बायाँ निलय संकुचित होता है। फलत: बायें A.V.A. का कपाट बन्द हो जाता है और रुधिर दैहिक महाधमनी के द्वारा शरीर के विविध भागों को चला जाता है। मनुष्य के रुधिर परिसंचरण मार्ग को निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं।

हृदय की क्रियाविधि । Heart Mechanism in Hindi

हृदय की क्रियाविधि । Heart Mechanism in Hindi

हृदय का कार्य शरीर के विभिन्न भागों को रुधिर पम्प करना है। यह कार्य यह स्वयं के संकुचन तथा शिथिलन के द्वारा पूरा करता है। जब यह संकुचित होता है तो इसके अन्दर का आयतन कम होता है जिसके प्रभाव से इसके अन्दर का रुधिर निकलकर धमनियों के द्वारा शरीर के विविध भागों को चला जाता है लेकिन जब यह शिथिल होता है तो इसके अन्दर का आयतन बढ़ता है जिसे भरने के लिए शरीर के विविध भागों का रुधिर शिराओं द्वारा इसके अन्दर आ जाता है। हृदय का यह संकुचन तथा शिथिलन हृदयक पेशियों के संकुचन तथा शिथिलन के कारण होता है। हृदय के संकुचन तथा शिथिलन को हृदय की धड़कन (Heartbeat) कहते हैं। हृदय की एक धड़कन एक संकुचन या सिस्टोल (Systole) तथा एक शिथिलन (Diastole) की बनी होती है। विश्रामावस्था में हृदय एक मिनट में लगभग 72 बार धड़कता है और एक धड़कन में लगभग 70 मिली रुधिर को धमनियों में धकेलता या पम्प करता है। रुधिर के इस आयतन को स्ट्रोक आयतन (Stroke) volume, S.V.) तथा प्रति मिनट हृदय की धड़कन का हृदय गति (Heart rate, H.R.) कहते हैं। यदि इन दोनों का गुणा कर दिया। जाये तो हृदय द्वारा प्रति मिनट पम्प किये गये रुधिर का आयतन ज्ञात हो जाता है जिसे हृदयक आउटपुट (Cardiac output C.O.) कहते हैं, इसे निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं।

C.O.= H.R ×S.V.

अत: हृदय एक मिनट में लगभग 5 लीटर (72x70ml = 5040 ml) रुधिर पम्प करता है, यही हृदयक आउटपुट या हृदय क्षमता है। यदि हम एक मनुष्य के जीवन को औसत 60 वर्ष मान लें तो इस दौरान हृदय लगभग 2.27 अरब बार स्पन्दन करके लगभग 15.89 करोड़ लीटर रुधिर को पम्प करेगा। व्यायाम करने से मांसपेशियों को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है। फलतः हृदय तेजी से धड़कता है और अधिक रुधिर पम्प करने लगता है। अत: व्यायाम करने से हृदय क्षमता बढ़कर लगभग 20 लीटर प्रति मिनट तक हो जाती है।


हृदय धड़कन की उत्पत्ति । Origin of Heartbeat In Hindi

हृदय की धड़कन के समय दोनों आलिन्द एक साथ संकुचित होते हैं, इसके बाद दोनों निलय एक साथ संकुचित होते हैं। हृदय की धड़कन या हृदय स्पंदन दाहिने आलिन्द के ऊपरी भाग में स्थित ऊतकों के एक समूह से शुरू होती है जिसे शिरा-आलिन्द नोड (Sinuauricular node or Sinuatrial node, S. A node) कहते हैं। यह दाहिने आलिन्द में पश्च महाशिरा के छिद्र के पास स्थित होता है, इसे हृदय गति निर्धारक (Pacemaker) भी कहते हैं । यह हृदय की गति पर नियन्त्रण रखता है।

हृदय की धड़कन का संवहन । Conduction of Heart Beat In Hindi

हृदय की धड़कन का आवेग (Impulse) तरंग के रूप में हृदय में प्रसारित होता है तथा जिस पेशी तन्तु से गुजरता है उसे संकुचित कर देता है। ऐसा ही एक और नोड दोनों आलिन्दों के बीच के पट के आधार पर भी पाया जाता है जिसे आलिन्द निलय नोड (Auriculo-ventricular node, A.V.node) कहते हैं। दोनों ही नोड रचना में समान होते हैं और पेशियों, तन्त्रिका तन्तुओं तथा तन्त्रिका कोशिकाओं के बने होते हैं। आलिन्द निलय नोड (A.V. node) से विशेष प्रकार के तन्तुओं का एक बण्डल विकसित होता है, जिसे हिज बण्डल (Bundle of His ) या पुरकिंजे तन्तु (Purkinje fibres) कहते हैं। अन्तरा-आलिन्द पट से होते हुए यह बण्डल निलय के सिरे पर दो शाखाओं में विभाजित हो जाता है। ये शाखाएँ निलयों की पार्श्व दीवारों में प्रवेश कर जाती हैं। शिरा-आलिन्द नोड लगातार एक-एक आवेग भेजता रहता है। हर एक आवेग संकुचन लहर पैदा करता है। ये तरंगें आलिन्दों में जाकर उसको संकुचित होने के लिए प्रेरित करती हैं। जब ये संकुचन तरंगें आलिन्द – निलय नोड पर पहुँचती हैं तो यह उत्प्रेरित हो जाता है तथा यह आवेग हिज बण्डलों के द्वारा निलय की दीवारों में पहुँचा देता है जिससे निलय भी संकुचन के लिए प्रेरित हो जाता है। जब निलय संकुचित हो जाता है तब आलिन्द शिथिल हो जाता है लेकिन जब आलिन्द संकुचित होता है तब निलय शिथिल हो जाता है, यह क्रम लगातार चलता रहता है। भ्रूणीय परिवर्धन के समय जब जन्तुओं में एक बार धड़कन शुरू हो जाती है तो यह जीवनपर्यन्त चलती रहती है।

कार्डियक चक्र । Cardiac cycle In Hindi

हृदय की धड़कन या क्रियाविधि में तीन क्रियाएँ एक निश्चित क्रम में लगातार होती हैं। इस क्रम या चक्र को हृदयी चक्र (Cardiac cycle) कहते हैं। हृदयी चक्र की ये क्रियाएँ निम्न क्रम में होती हैं।

1. आलिन्द संकुचन (Auricle systole)

आलिन्दों के सिकुड़ने को आलिन्द संकुचन कहते हैं। हृदय की धड़कन या हृदयी चक्र की प्रारम्भिक अवस्था में आलिन्द तथा निलय शिथिलन की अवस्था में रहते हैं, फलतः आलिन्दों में दबाव कम रहता है जिसके कारण शिराओं का रुधिर इसमें भर जाता है। इसके बाद आलिन्द नोड से आवेग शुरू होता है जिसके कारण आलिन्द संकुचित होता है और इसके रुधिर का दाब बढ़ता है, इस दाब के कारण आलिन्द-निलय ।
कपाट खुल जाता है और आलिन्द का रुधिर निलय में पहुँच जाता है। हमेशा दाहिना आलिन्द बायें से पहले संकुचित होता है, क्योंकि संकुचन आवेग की तरंग यहीं से शुरू होती है।

2. निलय संकुचन (Ventricular systole)

निलयों के सिकुड़ने को निलय संकुचन कहते हैं। जब आलिन्द नोड से पैदा हुआ आवेग आलिन्द निलय नोड को स्पर्श करता है तो यह आवेग हिज बण्डलों के द्वारा दोनों निलयों में चला जाता है, जिसके कारण दोनों निलय एक साथ संकुचित होते है और इसके अन्दर का दाब बढ़ जाता है, परिणामस्वरूप आलिन्द-निलय कपाट बन्द हो जाता है लेकिन महाधमनियों का दाव अपेक्षाकृत कम होता है जिसके कारण रुधिर महाधमनियों के अर्द्धचन्द्राकार कपाटों को खोलकर पल्मोनरी व सिस्टेमिक महाधमनियों में चला जाता है।

3. निलय शिथिलन (Ventricular diastole)

निलय के फैलने या प्रारम्भिक अवस्था में आने को निलय शिथिलन कहते हैं। संकुचन के तुरन्त बाद निलय शिथिलन अवस्था में आ जाते हैं फलत: इनके अंदर का दाब धमनियों से कम हो जाता है और अर्द्धचन्द्राकार कपाट बन्द हो जाते हैं। इन कपाटों के बन्द होने के बावजूद निलय शिथिलन अवस्था में रहते हैं, जिसके कारण इनका दाब कम रहता है, जैसे ही इसका दाब आलिन्दों से कम होता है आलिन्द-निलय कपाट खुल जाते हैं और रुधिर आलिन्दों से निलय में आने लगता है और शिरा-आलिन्द नोड से नये स्पन्दन का आवेग दूसरे हृदयी चक्र को शुरू कर देता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक हृदय की धड़कन या कार्डियक चक्र के बीच एक छोटी-सी विश्रामावस्था पायी जाती है जिसे सामान्य पाज (General pause) कहते हैं। पाज के समय रुधिर शिराओं के द्वारा आलिन्द में आता रहता है।

हृदय अवरोध । Heart block In Hindi

जब हिज बण्डल (His bundles) ठीक से कार्य नहीं करते तब हृदय के धड़कन का आवेग जो कि आलिन्द-नोड में पैदा होता है तथा आलिन्दों और आलिन्द-निलय तक जाता है, निलय तक नहीं पहुँच पाता फलत: निलय गति नहीं हो पाती और परिसंचरण रुक जाता है, इस पूरी अवस्था को ही हृदय अवरोध कहते हैं। जब यह क्रिया हिज बण्डल के आधे भाग में ही होती है तब इसे बण्डल शाखा अवरोध (Bundle branch block) कहते हैं, इस दशा में एक निलय कुछ पहले तथा दूसरा बाद में संकुचित होता है।

हृदयक ध्वनियाँ । Heart sound In Hindi

जब रुधिर हृदय में आता है और वहाँ से शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है तो हृदयी चक्र के दौरान निरन्तर धड़कन होती रहती है, इस क्रिया में कुछ हल्की ध्वनियाँ पैदा होती हैं, जिन्हें हृदयक ध्वनियाँ कहते हैं। इन ध्वनियों को स्टेथोस्कोप (Stethoscope) नामक यन्त्र के द्वारा सुना जा सकता है। इन ध्वनियों को सुनने के लिए इस यन्त्र के एक सिरे को सीने के ऊपर तथा दूसरे को कान में लगाया। जाता है। हृदयक ध्वनियाँ वास्तव में हृदय में स्थित विभिन्न कपाटों के बन्द होने तथा खुलने के कारण पैदा होती हैं। मनुष्य के हृदय में मुख्यतः दो ध्वनियाँ सुनाई देती हैं ।

(1) प्रथम हृदयक ध्वनि – यह निलय संकुचन के आरम्भ को प्रदर्शित करती है और द्विवलन कपाट (Bicuspid valve or Mitral valve) तथा त्रिवलन कपाट (Tricuspid valve) के बन्द होने के कारण उत्पन्न होती है। अत: यह एक संकुचन (Systolic) ध्वनि जो स्टेथोस्कोप में लब (Lubb) के रूप में सुनायी देती है, इसे सिस्टोलिक ध्वनि (Systolic sound) भी कहते हैं।

(2) द्वितीय हृदयक ध्वनि – यह ध्वनि निलय शिथिलन के आरम्भ को प्रदर्शित करती है और धमनियों के अर्द्धचन्द्राकार कपाटों (Semilunar valve) के बन्द होने के कारण उत्पन्न होती है और स्टेथोस्कोप में डप (Dup) के रूप में सुनायी देती है।

द्वितीय ध्वनि के बाद पुन: पहली हृदय ध्वनि के सुनायी देने में एक अन्तराल पाया जाता है, लेकिन यह ध्वनि के नियमित लय के रूप में निम्न प्रकार से सुनायी देती हैं- लब-डप – विश्राम- – लब – डप ।

दोस्तों, आज हमने आपको हृदय की परिभाषा? । Heart in Hindi के साथ – साथ ह्रदय के प्रकार तथा ह्रदय की संरचना, हृदय की क्रियाविधि, हृदय धड़कन की उत्पत्ति, हृदयी या कार्डियक चक्र, हृदय अवरोध, हृदयक ध्वनियाँ आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, धन्यवाद्.
 
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