गुलाम वंश का इतिहास । Ghulam Dynasty in Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। हमारे इस ब्लॉग में आपको गुलाम वंश का इतिहास । Ghulam Dynasty in Hindi, कुतुबुद्दीन ऐबक, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकनुद्दीन फिरोजशाह, रजिया सुल्तान, गयासुद्दीन बलबन, कैकुबाद व शम्सुद्दीन आदि के बारे में बताएंगे, तो चलिए इनके बारे में जानते है।

गुलाम वंश का इतिहास । Ghulam Dynasty in Hindi

यह नाम इसलिये दिया गया है क्योंकि प्रथम तीन शासक – ऐबक, इल्तुतमिश तथा बलबन का राजनीतिक जीवन गुलाम के रूप में प्रारम्भ हुआ।

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 – 1210 ई.)

कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। बाल्यावस्था में ही एक व्यापारी ने में उसे निशापुर ले जाकर एक काजी के पास दास के रूप में बेच दिया। काजी ने उसे अपने पुत्रों के साथ धार्मिक व सैनिक प्रशिक्षण दिया। उसे एक व्यापारी के हाथ बेच दिया गया जो उसे गजनी ले आया। यहां मुहम्मद गोरी ने उसे खरीद लिया। उसने अपने साहस, उदारता, पौरुष और स्वामिभक्ति से अपने स्वामी को इतना प्रभावित किया कि उसे सेना के एक भाग का अधिकारी तथा ‘अमीर-ए-आखूर’ (अस्तबलों का अधिकारी) भी नियुक्त किया गया। भारतीय अभियानों में उसने अपने स्वामी की इतनी सेवा की कि 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध के बाद उसे भारतीय विजयों का प्रबंधक बना दिया गया।


चूंकि गोरी का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए लाहौर की जनता ने मुहम्मद गोरी के प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन ऐबक को शासन करने का निमंत्रण दिया। 24 जून, 1206 ई. को उसका औपचारिक रूप से सिंहासनारोहण हुआ। सिंहासन पर बैठते ही उसे मुहम्मद गोरी के अन्य उत्तराधिकारियों – नासिरुद्दीन कुबाचा (मुल्तान एवं उच्छ का हाकिम) तथा ताजुद्दीन यल्दौज (किरमान का गवर्नर) के विद्रोहों का सामना करना पड़ा। इन विद्रोहों का ऐबक ने वैवाहिक संबंधों के आधार पर निपटारा किया। उसने ताजुद्दीन यल्दौज की पुत्री से विवाह किया। नासिरुद्दीन कुबाचा से अपनी बहन तथा इल्तुतमिश से अपनी पुत्री का विवाह किया। इस प्रकार कुबाचा तथा यल्दौज की ओर से विद्रोह का खतरा कम हो गया। पूर्व की ओर ऐबक ने अलीमर्दान खिलजी को बंगाल के इख्तयारुद्दीन के विरुद्ध सहायता दी तथा अलीमर्दान ने ऐबक के प्रतिनिधि के रूप में शासन करना शुरू कर दिया। 1208 ई. में ऐबक ने गौर के शासक गयासुद्दीन महमूद से राजपद या ‘छत्र’ और ‘दर्बेश’ के साथ एक मुक्तिपत्र प्राप्त किया तथा स्वयं को स्वतंत्र सुल्तान घोषित किया। कुतुबुद्दीन ऐबक कला तथा साहित्य का संरक्षक भी था। विद्वान् हसन निजामी तथा फख़-ए-मुदब्बिर को उसके दरबार में संरक्षण प्राप्त था। ऐबक को उसकी उदारता व दानशीलता के कारण ‘लाखबख्श’ कहा गया 1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते हुए घोड़े से गिर कर उसकी मृत्यु हो गयी तथा उसके कार्य अधूरे छूट गए।

आरामशाह (1210-1211 ई.)

ऐबक अपनी अकस्मात् मृत्यु के कारण किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर पाया था। अतः लाहौर के तुर्क अधिकारियों ने आरामशाह को गद्दी पर बिठा दिया। दुर्भाग्यवश, आरामशाह एक कमजोर व अयोग्य शासक सिद्ध हुआ और दिल्ली की जनता व कई प्रांतों के शक्तिशाली अध्यक्षों ने उसकी सार्वभौमिकता को मानने से इंकार कर दिया। देश में गृहयुद्ध का भय उत्पन्न हो गया तथा निराकरण के उद्देश्य से बदायूं के सुबेदार इल्तुतमिश को निमंत्रण भेजा गया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया और दिल्ली के निकट जूड नामक स्थान पर उसने आरामशाह को पराजित किया।

इल्तुतमिश (1210-1236 ई.)

इल्तुतमिश के साथ इल्बारी (शम्शी) वंश का शासन आरम्भ हुआ। यह भी एक दास था तथा अपनी योग्यता के बल पर वह बदायूं का प्रान्ताध्यक्ष बना और मुहम्मद गोरी के आदेश पर उसे दासता से मुक्ति तथा ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि मिली। इल्तुतमिश आरामशाह को पराजित करके शम्सुद्दीन के नाम से सिंहासन पर बैठा। सुल्तान बनते ही उसने कुत्बी तथा मुईज्जी सरदारों के विद्रोहों का दमन किया। उसने अपने चालीस गुलाम सरदारों का एक गुट बनाया, जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी’ कहा गया। ताजुद्दीन याल्दौज ने 1214 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया। इल्तुतमिश ने उसे तृतीय तराइन के युद्ध में पराजित किया। 1217 ई. में नासिरुद्दीन कुबाचा को पराजित किया गया। 1227 ई. में उसे पुनः पूर्णरूप से पराजित किया गया तथा कुबाचा की सिन्धु नदी में डूब कर मृत्यु हो गई। अपने शासन काल में इल्तुतमिश को बड़े संकट का सामना करना पड़ा। उसने बड़ी बुद्धिमत्ता से मंगोलों के आक्रमण से स्वयं को बचा लिया। ख्वारिज्म शाह का पुत्र जलालुद्दीन मांगबर्नी मंगोल नेता चंगेज खां के भय से भारत की ओर भागा और इल्तुतमिश ने बुद्धिमत्ता से उसे संरक्षण देने से मना कर दिया।

कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद अली मरदान ने ‘अलाउद्दीन’ की उपाधि धारण कर स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। उसके बाद उसका पुत्र हिसाम-उद्-दीन इवाज उत्तराधिकारी बना। 1225 ई. में इल्तुतमिश ने उसके विरुद्ध अभियान भेजा, जिससे उसने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली, मगर शीघ्र ही विद्रोह कर दिया। 1226 ई. में इल्तुतमिश के पुत्र नासिरुद्दीन महमूद ने उसे पराजित करके लखनौती पर अधिकार कर लिया। मगर दो वर्ष बाद नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु होने पर बल्का खिलजी ने बंगाल पर अधिकार कर लिया। 1230 ई. में इल्तुतमिश ने उसे पराजित किया व बल्का खिलजी मारा गया। इस प्रकार बंगाल एक बार फिर सल्तनत के अधीन हो गया। इल्तुतमिश ने 1226 ई. में रणथंभौर पर तथा 1227 ई. में परमारों की राजधानी मंदसौर पर अधि कार कर लिया। 1231 ई. में उसने ग्वालियर, 1233 ई. में चंदेलों के विरुद्ध तथा 1234-1235 ई. में उज्जैन एवं भिलसा के विरुद्ध अभियानों में सफलता प्राप्त की। ग्वालियर की विजय के बाद इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया का नाम सिक्कों पर अंकित करवाया। 18 फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत ने दिल्ली आकर उसे मानाभिषेक पत्र (मंसूर) प्रदान किया। खलीफा ने उसे ‘सुल्तान-ए-आजम’ की उपाधि प्रदान की। ‘खिलअत’ प्राप्त होने के पश्चात् इल्तुतमिश ने ‘नासिर-अमीर-अल-मोमिन’ की उपाधि धारण की। उसका अंतिम अभियान ‘बामियान’ के विरुद्ध था। मगर मार्ग में ही वह बीमार हो गया तथा 29 अप्रैल, 1236 ई. को उसका देहांत हो गया।

रूहानी, मलिक ताजुद्दीन रेजाब तथा ‘तबकात-ए-नासिरी’ के लेखक मिन्हाज-उस-सिराज आदि विद्वानों को इल्तुतमिश ने अपने दरबार में संरक्षण दिया। अवफी ने इल्तुतमिश के शासन काल में ही ‘जिवामी-उल-हिकायत’ की रचना की।

रुकनुद्दीन फिरोजशाह (1236 ई.)

इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, परंतु उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके सबसे बड़े पुत्र रुकनुद्दीन फिरोजशाह को गद्दी पर बिठाया गया। उसकी माता शाह तुर्कान मूलतः एक तुर्की दासी थी। रुकनुद्दीन फिरोजशाह एक अयोग्य व विलासप्रिय शासक सिद्ध हुआ। शासन कार्यों में उसकी रुचि नहीं थी, अतः शासन कार्य का भार उसने अपनी मां शाह तुर्कान को सौंपा हुआ था। उसके अत्याचारों से चारों ओर विद्रोह व अशांति की स्थिति उत्पन्न हो गई। हांसी, बदायूं व लाहौर के प्रान्ताध्यक्षों ने रुकनुद्दीन की सत्ता को मानने से इंकार कर दिया। सुल्तान व उसकी मां ने रजिया की हत्या करने का भी षड्यंत्र रचा। मुस्लिम सरदारों ने शाह तुर्कान की हत्या कर दी और रुकनुद्दीन फिरोज को भी बंदी बना कर उसकी हत्या कर दी गई। इस प्रकार 6 महीने व 7 दिन बाद ही रुकनुद्दीन के शासन का अंत हो गया।


रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)

रजिया दिल्ली के अमीरों तथा जनता के सहयोग से सिंहासन पर बैठी थी। अत: अन्य तुर्क सरदार जैसे निजामुल मुल्क जुनैदी, मलिक अलाउद्दीन जानी, मलिक सैफुद्दीन कूची, मलिक इजाउद्दीन कबीर खां अयाज एवं मलिक इजाउद्दीन सलारी आदि रजिया के प्रबल विरोधी बन गए। सुल्तान की शक्ति एवं सम्मान में वृद्धि करने हेतु रजिया सुल्तान ने अपने व्यवहार में परिवर्तन किया। उसने पर्दा-प्रथा को त्याग कर पुरुषों जैसी वेशभूषा (‘कुबा’ या कोट व ‘कुलाह’ या टोपी) धारण करना आरम्भ कर दिया तथा घुड़सवारी, शिकार तथा सैन्य संचालन जैसे वीरतापूर्ण कार्य करने आरम्भ कर दिए। उसने अपने विरोधियों का अंत किया तथा शासन कार्यों में रुचि ली। उसने स्वयं अपने उच्चाधिकारियों की नियुक्ति की । इख्तियारुद्दीन ऐल्तगीन को ‘अमीर-ए-हाजिब’ तथा जमालुद्दीन याकूत (अबीसीनिया की निग्रो जाति का) को ‘अमीर-ए-आखूर’ (घुड़सवारों का प्रधान) तथा मलिक हसन गोरी को प्रधान सेनापति नियुक्त किया।

रजिया के शासनकाल में चहलगानी (चालीस) सरदारों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरम्भ कर दिए। 1239 ई. में लाहौर-मुल्तान के गवर्नर अयाज ने विद्रोह किया, जिसे दबा दिया गया। मीर हाजिब ऐल्तगीन के नेतृत्व में अन्य तुर्क सरदारों ने रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र रचा तथा भटिंडा के गवर्नर अल्तूनिया से मिल कर विद्रोह कर दिया। 1240 ई. में रजिया ने अल्तूनिया के विरुद्ध कूच किया। पूर्व योजनानुसार ऐल्तगीन ने जमालुद्दीन याकूत की हत्या कर दी। रजिया को भी कैद कर लिया गया। रजिया ने अल्तूनिया से मिल जाना अच्छा समझा तथा उसके साथ विवाह कर लिया। इससे तुर्क सरदार और भी क्रोधित हुए और संभवतः अल्तूनिया का तुरंत ही वध कर दिया गया। जंगल में सोते हुए रजिया को कुछ डाकुओं ने मार डालने

मुईजुद्दीन बहराम शाह (1240-1242 ई.)

रजिया के पश्चात् तुर्क सरदारों ने उसके भाई व इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र मुईजुद्दीन बहरामशाह को सुल्तान बनाया। सुल्तान की शक्तियों को कम करने के लिए एक नए पद ‘नायब-ए-मुमलिकात’ का सृजन किया गया। इस पद पर सर्वप्रथम मलिक इख्तियारुद्दीन ऐल्तगीन को नियुक्त किया गया। मुहाजिबुद्दीन वजीर बना रहा और उसकी स्थिति द्वितीय श्रेणी की हो गई। कालान्तर में इख्तियारुद्दीन ऐल्तगीन ने सुल्तान की बहन के साथ विवाह कर लिया तथा स्वयं को सुल्तान से अधिक शक्तिशाली समझने लगा। वह सुल्तान की समस्त शक्तियों का भी प्रयोग करने लगा था। 1241 ई. में तातार के नेतृत्व में मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण किया। मुल्तान के कबीर खां आयाज को वे पराजित नहीं कर पाए। अतः उन्होंने लाहौर के मलिक कारकश को पराजित करके यहां लूटपाट व हत्याकांड किया। बहरामशाह द्वारा वजीर निजाम-उल-मुल्क के नेतृत्व में मंगोलों के विरुद्ध भेजी गई सेना का रुख दिल्ली की ओर कर दिया गया। बहरामशाह को बंदी बना लिया गया तथा मई 1242 ई. को उसकी हत्या करके बहरामशाह के पौत्र अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान बनाया गया।

अलाउद्दीन मसूद शाह (1242-1246 ई.)

अलाउद्दीन मसूद शाह बहराम शाह के भाई रुकनुद्दीन फिरोजशाह का पुत्र व इल्तुतमिश का पौत्र था। उसके समय में तुर्क सरदार सर्वोच्च बने रहे तथा मसूद शाह के पास केवल सुल्तान की उपाधि मात्र ही रह गई। चालीस सरदारों में से बलबन को अमीर-ए-हाजिब नियुक्त किया गया। धीरे-धीरे सारी शक्ति बलबन ने अपने हाथों में एकत्र कर ली। 1245 ई. में मंगोल एक बार फिर भारत में प्रकट हुए। बलबन ने मंगोल नेता मंगु के विरुद्ध सल्तनत की सेना का संचालन कर लाहौर, उच्छ व मुल्तान पर अधिकार कर लिया। उसने ‘चालीस’ के सदस्यों का विश्वास भी प्राप्त कर लिया तथा नासिरुद्दीन महमूद व उसकी मां से मिलकर अलाउद्दीन मसूदशाह के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा। 10 जून, 1246 ई. को चार वर्ष एक मास और एक दिन के शासन के पश्चात् अलाउद्दीन मसूद को कैद कर लिया गया तथा नासिरुद्दीन महमूद को सिंहासन पर बिठाया गया।

नासिरुद्दीन महमूद (1245-1265 ई.)

1236 ई. से 1246 ई. तक के काल में नासिरुद्दीन महमूद राज्य में अमीरों या तुर्क सरदारों की शक्ति का प्रभाव देख चुका था। अतः उसने राज्य की समस्त शक्ति बलबन को सौंप दी। नासिरूद्दीन महमूद के शासन काल में मिनहाजुद्दीन सिराज मुख्य काजी के पद पर था जिसने अपनी पुस्तक तबकात-ए-नासिरी लिखी। अगस्त 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से कर दिया। 7 अक्टूबर, 1249 ई. को सुल्तान ने बलबन को ‘उलूग खां’ की उपाधि प्रदान की व बाद में उसे ‘अमीर-ए-हाजिब’ बनाया। कालान्तर में 1253 ई. में बलबन को पदच्युत करके हांसी भेज दिया गया तथा मलिक मुहम्मद जुनैदी को ‘वजीर’, किशलू खां (बलबन का भाई) को ‘नायब अमीर-ए-हाजिब’ और इमादुद्दीन रैहान को ‘वकीलदार’ या ‘अमीर-ए-हाजिब’ का पद दिया गया। बलबन ने तुर्क सरदारों का समर्थन प्राप्त किया तथा 1255 ई. में पुन: ‘नायब-ए-मुमलिकात’ का पद प्राप्त कर लिया। संभवतः इसी समय बलबन ने सुल्तान से ‘छत्र’ (सुल्तान के पद का प्रतीक) प्रयोग की अनुमति प्राप्त ने कर ली। नासिरुद्दीन महमूद के काल में बलबन ने ग्वालियर, रणथंभौर, मालवा तथा चंदेरी के राजपूतों का दमन किया, दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में लुटेरे मेवातियों का दमन किया तथा प्रतिद्वन्द्वी मुस्लिम सरदारों (रहान आदि) की शक्ति को कुचला। उसने 1249 ई. में मंगोल नेता हलाकू से समझौता करके पंजाब में शांति स्थापित की। 12 फरवरी, 1265 ई. में सुल्तान की अचानक मृत्यु हो गई। चूँकि नासिरुद्दीन महमूद का कोई पुत्र नहीं था, अतः बलबन उसका उत्तराधिकारी बना।


गयासुद्दीन बलबन (1265-1287 ई.) –

नासिरुद्दीन के साथ ही इल्तुतमिश के ‘शम्शी वंश’ का अंत हुआ व ‘बलबनी वंश’ का सल्तनत पर अधिकार हो गया। बलबन सल्तनत काल का सबसे योग्य और प्रभावशाली शासक हुआ। बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन बलबन था। उसे ख्वाजा जमालुद्दीन बसरी नामक व्यक्ति खरीद कर 1232-1233 ई. में दिल्ली लाया था। इल्तुतमिश ने ग्वालियर को जीतने के उपरांत बहाउद्दीन को खरीद लिया था। अपनी योग्यता के आधार पर ही वह इल्तुतमिश और रजिया के समय में ‘अमीर-ए-आखूर’ तथा मसूदशाह के समय में अमीर-ए-हाजिब’ के रूप में राज्य की संपूर्ण शक्ति का केन्द्र बना। 1265 ई. में वह गयासुद्दीन बलबन के नाम से सुल्तान बना। बलबन ने इल्तुतमिश द्वारा स्थापित ‘चालीस’ सरदारों के दल को समाप्त किया तथा बंगाल के विद्रोही सरदार तुगरिल खां का दमन किया। तुगरिल खां को पकड़ने में मलिक मुकद्दीर ने बहुत साहसिक व कठिन कार्य किया, अतः बलबन ने उसे ‘तुगरिलकुश’ (तुगरिल की हत्या करने वाला) की उपाधि प्रदान की। पश्चिमोत्तर में मंगोलों से निपटने के लिए बलबन ने इमादुलमुल्क को ‘दीवान-ए-अर्ज’ नियुक्त किया तथा सीमांत प्रदेशों में कई किलों का निर्माण करवाया। उसने वृद्ध व अयोग्य सैनिकों को पेंशन देकर मुक्त करने की नीति अपनाई और अपने सैनिकों को नकद वेतन दिया। तुर्की प्रभाव को कम करने के लिए उसने सिजदा (घुटनों के बल बैठ कर सिर झुकाना), पाबोस (सुल्तान के पांव चूमना) तथा नवरोज उत्सव की फारसी परम्पराओं का प्रचलन अनिवार्य कर दिया। विद्रोहियों के प्रति उसने ‘लौह एवं रक्त’ की नीति का अनुसरण किया। बलबन ने एक अत्यंत कुशल जासूस व्यवस्था का गठन किया।

राजत्व का सिद्धांत: बलबन राजत्व के दैवी सिद्धांत को मानता था। वह राजा को पृथ्वी पर ‘नियामते खुदाई’ (ईश्वर का प्रतिबिम्ब) मानता था। उसने ‘जिल्ली इल्लाह’ (ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की। उसने ईश्वर, शासक तथा जनता के बीच त्रिपक्षीय संबंधों को राजपद का आधार बनाना चाहा। उसने कुरान के नियमों के आधार पर शासन चलाया तथा खलीफा के महत्त्व को स्वीकार करते हुए अपने द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर खलीफा के नाम को अंकित कराया तथा उसके नाम से खुतबे भी पढ़े।

गुलाम वंश । Ghulam Dynasty in Hindi से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य
  1. इल्तुतमिश ने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए तथा चांदी का टंका एवं तांबे की सिक्का चलाया था। इल्तुतमिश ने सलतनत को एक पद, एक प्रेरणाशक्ति, एक शासन व्यवस्था तथा एक शासक वर्ग प्रदान किया।
  2. रजिया ने लाल वस्त्र पहनकर दिल्ली में आम जनता से न्याय की याचना की तथा यहाँ की जनता ने उसे गद्दी पर बैठाने में योगदान दिया।
  3. नासिरुद्दीन के शासन काल में भारतीय मुसलमानों का एक अलग दल बन गया, जो बलबन का विरोधी था। इसका नेता इमादुद्दीन रिहान था।
  4. महमूद गजनवी पहला शासक था जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की।
  5. खिज्र खाँ को छोड़कर दिल्ली सल्तनत के सभी तुर्की शासकों ने सुल्तान की उपाधि धारण की
  6. बलबन के अनुसार, “सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात् है।’
  7. बलबन ने अपने को शाहनामा (फिरदौसीकृत) में वर्णित ‘अफरासियाब’ का वंशज बताया। उसने शासन को ईरानी आदर्श में सुव्यवस्थित किया।
1286 ई. में मंगोलों ने बलबन के पुत्र मुहम्मद की हत्या कर दी। इस सदमे को सुल्तान सहन न कर सका। जब उसने अपना अंत समय निकट पाया तो उसने अपने पुत्र बुगरा खां को निमंत्रण भेजा। मगर अपने पिता के कठोर स्वभाव से डरकर बुगरा खां नहीं आया। फलस्वरूप बलबन ने मुहम्मद के पुत्र खुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और कुछ ही समय बाद 80 वर्ष की अवस्था में 1286 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई। उसके राजदरबार में अनेक कलाकार एवं विद्वान थे। फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो व अमीर हसन तथा उनके अतिरिक्त ज्योतिषी एवं चिकित्सक मौलाना हमीमुद्दीन मुतरिज, प्रसिद्ध मौलाना बदरुद्दीन एवं मौलाना हिसाबुद्दीन आदि बलबन के दरबार में थे।

कैकुबाद व शम्सुद्दीन (1286-1290 ई.)

बलबन ने पौत्र खुसरो को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, किन्तु दिल्ली के कोतवाल फखरुद्दीन ने कूटनीति से खुसरो को मुल्तान की सूबेदारी देकर बुगरा खां के 17 वर्षीय पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बना दिया। उसने मुइजुद्दीन कैकुबाद की उपाधि धारण की। वह विलासी शासक सिद्ध हुआ और शासन प्रबंध की ओर पूर्णतया उदासीन हो गया। फखरुद्दीन के दामाद निजामुद्दीन ने अवसर का लाभ उठाकर सारी शक्ति अपने हाथों में समेट ली। कैकुंबाद ने उससे छुटकारा पाने के लिए उसे जहर देकर मरवा दिया। सुल्तान ने तुर्क सरदार जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को अपना सेनापति बनाया, जिसका तुर्क सरदारों पर बुरा प्रभाव पड़ा। तुर्क सरदार विद्रोह की सोच ही रहे थे कि सुल्तान को लकवा मार गया एवं सरदारों ने उसके तीन वर्षीय पुत्र शम्सुद्दीन को सुल्तान घोषित कर दिया। कालान्तर में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने उचित अवसर पाकर शम्सुद्दीन का वध कर दिया तथा दिल्ली के तख्त पर स्वयं अधिकार करके ‘खिलजी वंश’ की स्थापना की।

गुलाम वंश । Ghulam Dynasty in Hindi से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य
  1. इसकी स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. में की थी, यह गोरी का गुलाम था
  2. इसने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी
  3. कुतुबमीनार की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही डाली थी
  4. कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण कराया था
  5. कुतुबुद्दीन ऐबक को लाख बख्स (लाखो का दान देने वाला) भी कहा जाता है
  6. इसकी मृत्यु चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर हुयी थी और इसे लाहौर में दफनाया गया था

FAQ SECTION

Q.1. – सिंध पर प्रथम मुस्लिम आक्रमण किसने किया था?​

Ans. – अरबो ने 712 ई. में

Q.2. – महमूद गजनी किसका पुत्र था?​

Ans. – सुबुक्तगीन का

Q.3. – महमूद गजनी ने भारत पर प्रथम आक्रमण कब किया था?​

Ans. – 1000 ई. में

Q.4. – सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक कौन था?​

Ans. – महमूद गजनी

Q.5. – कुतुबमीनार की नींव किसने डाली थी?​

Ans. – कुतुबुद्दीन ऐबक ने

Q.6. – ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण किसने कराया था?​

Ans. – कुतुबुद्दीन ऐबक ने

Q.7. – लाख बख्स किसे कहा जाता है?​

Ans. – कुतुबुद्दीन ऐबक को

Q.8. – सैय्यद वंश का संस्थापक कौन था?​

Ans. – खिज्र खां

Q.9. – लोदी वंश का संस्थापक कौन था?​

Ans. – बहलोल लोदी

Q.10. – इक्ता प्रथा को समाप्त किसने किया था?​

Ans. – अलाउद्दीन खिलजी ने

दोस्तों, आज हमने आपको गुलाम वंश का इतिहास । Ghulam Dynasty in Hindi कुतुबुद्दीन ऐबक, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकनुद्दीन फिरोजशाह, रजिया सुल्तान, गयासुद्दीन बलबन, कैकुबाद व शम्सुद्दीन आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये ताकि मुझे और अच्छे आर्टिकल लिखने का अवसर प्राप्त हो, धन्यवाद्
 
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