मौर्य साम्राज्य का इतिहास । Maurya Dynasty in Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है, हमारे इस ब्लॉग में आपको मौर्य साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास । Maurya Dynasty in Hindi के साथ साथ चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, अशोक आदि के बारे में बताएंगे तो चलिए दोस्तों इन सभी के बारे में जानते है।

मौर्य शासक

चन्द्रगुप्त मौर्य (323-295 ई.पू.)

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) की सहायता से मगध के शासक धनानन्द का वध करके ‘मगध’ पर अधिकार कर लिया था। चन्द्रगुप्त कौन था एवं किस वंश का था, इस विषय में विद्वानों के पर्याप्त मतभेद है। ब्राह्मण ग्रंथ उसे शूद्र बताते हैं। मुद्राराक्षस में उसके लिए ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ शब्द आये हैं। डॉ. आर. के. मुखर्जी के अनुसार वह क्षत्रिय कुल का था, इस विचार की पुष्टि के लिए आर. के. मुखर्जी ने जस्टिन के शब्दों का उल्लेख किया है कि “That he was born in humble life.” अत: कुलहीन से तात्पर्य ‘असंपन्न’ है, शूद्र से नहीं।


अर्थशास्त्र से चन्द्रगुप्त मौर्य के क्षत्रिय होने के संकेत मिलते हैं। विदेशी स्रोतों के आधार पर भी चन्द्रगुप्त को शूद्र नहीं कहा जा सकता है। बौद्ध साहित्य ‘महावंश’, ‘दिव्यावदान’ आदि में स्पष्ट रूप में उसे क्षत्रिय वंश का स्वीकार किया गया है। जैनाचार्य हेमचन्द्र के ग्रंथ ‘परिशिष्टपर्वन’ के समर्थन में ‘हरिभद्र टीका’ तथा ‘पुण्याश्रव कथाकोष’ में चन्द्रगुप्त को मयूर पोषकों के सरदार का ‘दोहित्र’ बताया गया है। फोशे, सर जॉन मार्शल तथा गुनवेडल इस मत से सहमत हैं कि मोर मौर्यों का राज्य चिह्न था और संभवतः मयूर के आधार पर ही इस वंश का नाम मौर्य पड़ा। डॉ. रोमिला थापर ने उसे वैश्य वर्ण का माना है।

सर्वप्रथम उसने मगध पर सीधा आक्रमण किया, परंतु असफल रहा। इस असफलता से प्रेरणा लेकर पहले उसने पंजाब पर और फिर मगध पर अधिकार किया। मगध की केन्द्रीय सत्ता हाथ में लेने के बाद उसने 305 ई.पू. में सैल्यूकस को पराजित किया। सैल्यूकस को उससे संधि करनी पड़ी।

संधि की शर्तें निम्न थीं।
  1. सैल्युकस ने चंद्रगुप्त को आरकोसिया (कंधार), पेरोपनिसडाई (हेरात) के प्रांत, एरियना (काबुल) एवं जेड्रोसिया के क्षेत्रपियों के कुछ भाग प्रदान किये।
  2. बदले में चंद्रगुप्त ने 500 हाथी सैल्युकस को दिये।
  3. संभवत: चंद्रगुप्त ने सैल्युकस की पुत्री से विवाह कर लिया।
  4. सैल्युकस का राजदूत मेगास्थनीज चंद्रगुप्त के दरबार में आया, जिसने ‘इण्डिका’ नामक पुस्तक लिखी।
मौर्य साम्राज्य । Maurya Dynasty in Hindi
  1. मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था।इसका जन्म 345 ई. पू में हुआ था।
  2. जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सेंड्रोकोट्स कहा है, जिसकी पहचान विलियम जोन्स ने चन्द्रगुप्त मौर्य से की हैं।
  3. चन्द्रगुप्त मगध की राजगद्दी पर 322 ई. पूर्व में बैठा।
  4. यह जैन धर्म का अनुयायी था।
  5. चन्द्रगुप्त ने 305 ई. पूर्व में सेल्यूकस निकेटर को हराया था।
  6. मेगस्थनीज सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में रहता था।इसके द्वारा लिखी गयी पुस्तक इंडिका है।
  7. चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ई. पूर्व में श्रवणबेलगोला में उपवास द्वारा हुयी।
  8. चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिन्दुसार हुआ जो 298 ई. पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा था
मौर्यकाल । Morya Samrajya in Hindi
  1. सबसे प्राचीनतम राजवंश मौर्य वंश था। मौर्य वंश की स्थापना 322 ई. में की गयी।
  2. चंदगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री कौटिल्य [विष्णुगुप्त,चाणक्य] था। कौटिल्य की तुलना मेकियावेली के प्रिंस से की जाती है।
  3. बिन्दुसार ने विद्रोहियो को कुचलने के लिए अशोक को तकशिला भेजा।
  4. अशोक को देवानं प्रियदर्शी की उपाधि दी गयी।
  5. कलिंग का युद्ध 261 ई. पू. में हुआ।
  6. मौर्य सामाज्य में पण मुद्रा प्रचलित थी।
  7. इस काल में तक्छशिला प्रसिद्ध शिक्षा का केंद्र था।
  8. सेल्यूकस द्वारा भेजा गया राजदूत मेगस्थनीज था, जिसने उसकी पुस्तक इंडिका में भारतीय समाज को पाँच भागो में बाँटा था।
  9. भाब्रु स्तम्भ में अशोक ने स्वयं मगध का सम्राट कहा।
  10. कलिंग युद्ध का वर्णन 13 वे शिलालेख में है।
  11. इसके शिलालेख को पढ़ने वाला प्रथम अंग्रेज जेम्स प्रिंसेप था।
  12. अशोक के व्यक्तिगत नाम का उल्लेख मास्की अभिलेख में मिलता है।
  13. इसने उसके पुत्र व पुत्री को बौद्ध धर्म प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा था।
  14. चाणक्य तकशिला विश्वविद्यालय में शिक्षक थे।
  15. अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ थे इसकी हत्या पुष्यामित्र शुंग ने की थी।
  16. भारत का आइंस्टीन नागार्जुन को कहा जाता है।
  17. महाविभाषा शास्त्र ग्रंथ को बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है।

बिन्दुसार (298 ई. पू. – 273 ई. पू.)

चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उसका पुत्र ‘बिन्दुसार’ गद्दी पर बैठा। एक जैन गाथा के अनुसार बिन्दुसार की मां ‘दुर्धरा’ थी, विभिन्न स्रोतों में बिन्दुसार को विभिन्न उपाधियां दी गयी हैं। यूनानी लेखकों ने उसे ‘अमित्रोकेडीज’ या ‘अमित्रघात ‘ की उपाधि दी। पौराणिक अनुश्रुति में उसके लिये ‘नन्दसार’ और ‘भद्रसार’ शब्द मिलता है। ‘परिशिष्टपर्वन’ में उसे ‘बिन्दुसार’ तथा एक चीनी ग्रंथ में उसे ‘बिन्दुपाल’ का नाम दिया गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उसकी 16 रानियां थीं, परंतु उनमें ‘सुभद्रांगी’ प्रमुख थी।

उसके शासनकाल में ‘तक्षशिला’ में दो बार विद्रोह हुआ। पहली बार ‘अशोक’ ने विद्रोह को दबाया। दूसरा विद्रोह बिन्दुसार की मृत्यु के कारण दबाया नहीं जा सका। ‘बिन्दुसार’ ने अपने शासन काल में कोई प्रदेश विजित किया हो, इस बात का प्रमाण नहीं मिलता। उसने यूनान, मिस्र, सीरिया आदि देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये। यूनानी राजदूत ‘डाइमेकस’ उसके दरबार में आया तथा मिस्त्र के शासक ने भी एक राजदूत ‘डायोनिसस’ भारत भेजा। एथेनियस नामक यूनानी लेखक कहता है कि बिंदुसार ने सीरियाई राजा एन्टियोकस प्रथम से तीन चीजें मंगाई थी-मीठी मदिरा, सूखी अंजीर तथा एक दार्शनिक (सोफिस्ट), लेकिन सीरियाई नरेश ने तीसरी वस्तु नहीं भिजवाई थी। दिव्यावदान के अनुसार बिंदुसार की मंत्रिपरिषद् 500 मंत्री थे।

बिन्दुसार
  1. अमित्रघात के नाम से बिन्दुसार जाना जाता है। अमित्र घात का अर्थ – शत्रु विनाशक।
  2. बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।
  3. जैन ग्रंथो के अनुसार बिन्दुसार को सिंहसेन कहा गया है।

अशोक (273 ई. पू. – 232 ई. पू.)

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिन्दुसार के 101 पुत्रों में से ‘सुमन’ (सुसीम) सबसे बड़ा, ‘अशोक’ दूसरा और ‘तिष्य’ सबसे छोटा था। 18 वर्ष की आयु में अशोक को ”अवन्तिराष्ट्र’ का प्रमुख बना कर ‘उज्जैन’ भेजा गया। वहीं पर अशोक ने ‘महादेवी’ नाम की शाक्यकुलीन विदिशा की राजकुमारी से विवाह किया। महेन्द्र और संघमित्रा महादेवी की ही संतान थीं। उसके इलाहाबाद स्तम्भलेख से ज्ञात होता है कि उसकी दूसरी पत्नी का नाम ‘कारुवाकी’ था और उसके पुत्र का नाम ‘तिवर’ था। उसके अभिलेख में एकमात्र इसी पत्नी का नाम अभिलिखित है। सिंहली स्रोत कहते हैं कि अशोक ने 99 भाइयों की हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया। परंतु, अशोक के पाँचवें अभिलेख में उसके जीवित भाइयों के परिवार का उल्लेख है। उसके संस्मरणों से ज्ञात होता है कि वह अपने पूर्वजों जैसा ही जीवन (मांसाहारी, शिकार खेलना, नाच-गाने में रुचि, मदिरा-पान आदि) व्यतीत करता था।

अशोक
  1. बिन्दुसार का उत्तराधिकारी अशोक हुआ, जो 269 ई. पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा।
  2. राजगद्दी पर बैठने के समय अशोक अवन्ति का राज्यपाल था।
  3. मास्की एवं गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है।
  4. पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया।
  5. अशोक ने बौद्ध धर्म प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
  6. इसने 84000 स्पूपो का निर्माण किया था।
  7. भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया।
  8. अशोक के अभिलेख पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप को हुयी।
  9. इसके स्तम्भ लेखो की संख्या 7 है।
  10. कौशाम्बी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है।
  11. इसका 7 वा अभिलेख सबसे लम्बा है।
  12. अशोक का सबसे छोटा अभिलेख रउम्मीदेई है।
अशोक की रानियाँ
  1. असंघमित्रा – मुख्य रानी
  2. तिष्यरक्षिता – बौद्ध वृक्ष को क्षति पहुँचाई थी।
  3. कारूवाकी – इलाहाबाद अभिलेख में उल्लेख (रानी अभिलेख तिवर की माता)
  4. महादेवी – महेन्द्र व संघमित्रा की माता
  5. पद्मावती (कुणाल की माता) – दिव्यावदान में उल्लेख

कलिंग युद्ध (261 ई. पू.)

महापद्मनंद ने कलिंग जीतकर मगध साम्राज्य में मिलाया था, जबकि बिंदुसार के शासनकाल में कलिंग ने स्वतंत्रता घोषित कर दी। दक्षिणी उड़ीसा में स्थित कलिंग के राजा का नाम ज्ञात नहीं है। अशोक ने अपने राज्य के आठवें वर्ष में ‘कलिंग’ पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध का वर्णन और परिणाम शिलालेख 13 के अंतर्गत उसने स्वयं लिखवाये। “राज्याभिषेक के 8 वर्ष बाद सम्राट अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। जिसमें 1,50,000 व्यक्ति कैद किये गये, तथा 1,00,000 लड़ते हुए मारे गये। इससे कई गुना अधिक अन्य कारणों से मर गये। युद्ध के तुरंत बाद महामना सम्राट ने दया धर्म की शरण ली, बौद्ध धर्म से अनुराग किया और इसका सारे राज्य में प्रचार किया।”

तिब्बती इतिहासकार ‘तारानाथ’ के अनुसार अशोक ने कलिंग को जीतकर वहाँ दो अधीनस्थ प्रशासनिक केंद्र स्थापित किये।
  1. उत्तरी केंद्र – राजधानी तोसली थी।
  2. दक्षिणी केंद्र – राजधानी जौगढ़ थी।
धर्म प्रचारक एवं उनके गन्तव्य स्थान
  1. मज्झतिक – कश्मीर और गांधार
  2. महादेव – महिष्मंडल
  3. महारक्षित – महिष्मंडल
  4. महारक्षित – यवन राज्य
  5. धर्मरक्षित – अपरांतक
  6. मज्झिम – हिमालय प्रवेश
  7. महाधर्मरक्षित – महाराष्ट्र
  8. रक्षित – वनवासी
  9. सोन और उत्तरा – सुवर्णभूमि
  10. महेन्द्र तथा संघमित्रा – लंका

अशोक का धर्म

विद्वानों के बीच अशोक के धर्म के विषय में विभिन्न मत हैं। ‘भाबू’ अभिलेख से प्रमाणित होता है कि उसका व्यक्तिगत धर्म बौद्ध धर्म था। जिसमें अशोक स्पष्ट रूप से बुद्ध धर्म तथा संघ का अभिवादन करता है। दीपवंश और महावंश के अनुसार अशोक के शासन के चौथे वर्ष ‘निग्रोध’ नामक भिक्षु ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था। उसके बाद मोग्गालिपुततिस्स के प्रभाव में आकर वह पूर्ण रूप से बौद्ध हो गया। दिव्यावदान कहता है कि अशोक को ‘उपगुप्त’ ने दीक्षित किया था।

बौद्ध धर्म का प्रचार

अशोक प्रथम सम्राट था जिसने बौद्ध धर्म को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने के लिए धर्म महामात्रों की नियुक्ति की। उसने धम्म यात्राएं कीं तथा धर्म सिद्धांतों को स्वयं अपना कर व्यक्तिगत आदर्श प्रस्तुत किया। राज्याभिषेक के 20वें वर्ष वह बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी गया तथा उसने ग्राम कर मुक्त कर दिया एवं साथ ही बलि कर का सिर्फ 1/8 भाग लेना तय किया। उसने निग्लीवा में कनकमुनि के स्तूप को संवद्धित एवं द्विगुणित करवाया। कहा जाता है कि उसने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। उसने धर्म के सिद्धांतों को चट्टानों, शिलाओं, स्तम्भों और गुफाओं पर खुदवाया। उसने बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म बनाया। उसने कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, सारनाथ आदि स्थानों पर बौद्ध विहार तथा मठों की स्थापना की। उसी के काल में तीसरी बौद्ध महासभा का आयोजन में हुआ। उसने विदेशों में भी धर्म प्रचारक भेजे। उसका पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए ‘लंका’ गये। उसके एक शिलालेख में इस प्रकार लिखा है -“चोल, पाण्ड्य, सत्यपुत्र, केरलपुत्र, ताम्रपर्णी के सीमान्त राज्य और यूनान का राजा एण्टियोकस तथा उसके पड़ोसी, अशोक के धर्म के अनुयायी हैं।” ‘महावंश’ से पता चलता कि लंका के राजा तिस्स और उसकी संपूर्ण प्रजा ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था। अतः यह भी स्वीकार किया जाता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को ‘राजधर्म’ ही नहीं, अपितु ‘विश्व धर्म’ बना दिया।

अशोक का धम्म

अशोक का धम्म वास्तव में एक आचार संहिता थी, जिसमें सभी धर्मों का निचोड़ है। अशोक के धम्म की परिभाषा ‘राहुलोवादसुत्त’ से ली गई है। अपने दूसरे स्तंभ-लेख में अशोक स्वयं प्रश्न करता है- -धम्म क्या है? इसका उत्तर वह स्वयं दूसरे तथा सातवें स्तंभ लेख में देता है जहाँ उसने धम्म के गुण गिनाये हैं। अपने 11वें शिलालेख में अशोक ने धम्मदान की तुलना सामान्य दान से की तथा धम्मदान को श्रेष्ठ एवं महाफल वाला बताया है।

अशोक ने जिस धर्म अर्थात् दया के धर्म को अपनाया उसके मूल सिद्धांत निम्न हैं।
  1. संयम अर्थात् इंद्रियों पर अंकुश
  2. भावशुद्धि अर्थात विचारों की पवित्रता
  3. कृतज्ञता
  4. दृढ़भक्ति
  5. दया
  6. दान
  7. शुचि अर्थात् स्वच्छता
  8. सत्य
  9. सुश्रूषा अर्थात् सेवा
  10. संप्रतिपत्ति अर्थात् सहायता
  11. अपिचित अर्थात् श्रद्धा
अपने कार्यों और उपलब्धियों के लिए अशोक की तुलना धर्म को लेकर रोमन सम्राट कांस्टैंटाइन से, दार्शनिकता और धर्म की दृष्टि से मारकस आरीलियस से, राज्य विस्तार और राज्य प्रणाली को दृष्टि में रख कर शार्लिमैन से की गयी है। उसकी तुलना विभिन्न क्षेत्रों में रोमन सम्राट एन्टोनियस, अकबर, सीजर, नेपोलियन, सैंटपाल आदि से की गयी है।


अशोक के अभिलेख

अभिलेख – यद्यपि अशोक के अभिलेख राजनीतिक उद्देश्य से नहीं लिखे गये थे तथापि इनसे अशोक के साम्राज्य का विस्तार, अशोक के धर्म, विदेशी संबंध, राज्य प्रबंध, अशोक के चरित्र, कला व शिक्षा के प्रसार तथा तत्कालीन सामाजिक अवस्था का भी पता चलता है।

शिलालेख – ये संख्या में 14 हैं जो आठ अलग-अलग स्थानों से मिले हैं। 1837 ई. में सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को इन्हें पढ़ने में सफलता मिली।

अशोक के उत्तराधिकारी

अशोक के उत्तराधिकारियों के संबंध में प्रामाणिक रूप से कुछ कह सकना कठिन है। यह तो बताया जाता है कि अशोक के कई पुत्र थे, किन्तु यह रहस्य अभी तक खुल नहीं सका कि उनमें से कौन अशोक के पश्चात् गद्दी पर बैठा? यह माना गया है कि रानी कारुवाकी का पुत्र ‘तीवर’ गद्दी पर नहीं बैठा। किन्तु उसके अन्य तीन पुत्रों (महेन्द्र, कुणाल और जालौक) का नाम भी साहित्य में आता है। अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ की उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर शुग वंश की स्थापना की। और धम्म विजय की नीति का दुरुपयोग प्रमुख रूप से इस विशाल साम्राज्य के पतन के कारण बने।

महत्त्वपूर्ण तथ्य –
  1. अशोक ने भाबू शिलालेख में स्वयं को ‘पियदस्सि राजा मागधे’ कहा है।
  2. अशोक ने अपनी पुत्री चारुमती के लिए नेपाल में देवपत्तन नामक नगर बसाया।
  3. 236 ई.पू. में अशोक ने खोतान का दौरा किया।
  4. अशोक का अनुसरण कर श्रीलंका के राजा तिस्स ने भी ‘देवानापिय’ की उपाधि धारण की।
  5. मौर्य काल में सामूहिक समारोह को ‘प्रवहणं’ कहा जाता था।
  6. प्रादेशिक, रज्जुक, युक्तक को प्रत्येक वर्ष धर्म प्रचार के लिए भेजा जाता था,जिसे ‘अनुसंधान’ कहते थे।
  7. महास्थान तथा सहगौरा अभिलेख में दुर्भिक्ष के अवसर पर राज्य कोष्ठागार से अनाज वितरण का विवरण मिलता है।
  8. चन्द्रगुप्त के राज्यपाल पुष्यगुप्त ने जूनागढ़ (गिरनार) की सुदर्शन झील का निर्माण कराया।
  9. दीपवंश एवं महावंश के अनुसार निग्रोथ के प्रवचन से प्रभावित होकर अशोक ने राज्याभिषेक के चौथे वर्ष में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।

मौर्यकालीन प्रशासन

मौर्य साम्राज्य का प्रशासन केन्द्रीकृत था, किन्तु राजा अपने अधिकारों के प्रति अधिक निरकुंश नहीं था। सारे अधिकार और शक्तियां राजा के पास होती थी। राजा साम्राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति करता था। साम्राज्य मुख्यमंत्री तथा पुरोहित की नियुक्ति से पूर्व उनके चरित्र को खूब जांचा-परखा जाता था, जिसे ‘उपधा-परीक्षण’ कहा जाता था। राजा की निजी सुरक्षा हेतु सशस्त्र अंगरक्षिकाएं होती थी।

कौटिल्य ने राज्य के सप्तांग सिद्धांत में राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दण्ड एवं मित्र की व्याख्या की।

चन्द्रगुप्त के समय मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत 4 प्रान्त थे, जिनमें
  1. उत्तरापथ (कम्बोज, गांधार, कश्मीर, पंजाब और अफगानिस्तान के क्षेत्र)
  2. अवन्तिराष्ट्र (काठियावाड़, गुजरात, मालवा और राजपूताना के क्षेत्र)
  3. प्राच्य या प्रासी (उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल के क्षेत्र) तथा
  4. दक्षिणापथ (विन्ध्य के द. का समस्त क्षेत्र) शामिल थे।

केन्द्रीय शासन

सम्राट शासन का सर्वोच्च अधिकारी था। वह कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का प्रमुख था। मौर्य काल में सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् होती थी, जिनमें 12, 16 या 20 सदस्य हुआ करते थे। इन सदस्यों को 12,000 पण वेतन के रूप में दिए जाते थे। कौटिल्य के अनुसार बड़ी मंत्रिपरिषद् रखना राजन के अपने हित में है और इससे उसकी ‘शक्ति’ बढ़ती है। सामान्यत: निर्णय बहुमत से लिये जाते थे, लेकिन राष्ट्र हित हेतु राजा अल्पमत निर्णय को भी स्वीकार कर सकता था।

मंत्रिपरिषद् – कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में मंत्रियों के लिए ‘तीर्थ’ शब्द आया है तथा इनकी संख्या 18 बताई गई है।

FAQ SECTION

1. मगध के सबसे प्राचीन वंश संस्थापक कौन था?​

बृहद्रथ

2. हर्यक वंश का संस्थापक था?​

बिम्बिसार

3. वृहद्रथ का पुत्र था?​

जरासंध

4. बिंबिसार ने मगध पर शासन किया?​

करीब 52 वर्षो तक

5. शिशुनाग वंश का अंतिम राजा था?​

नंदिवर्धन

6. नंद वंश का संस्थापक था?​

महापद्मनंद

7. नंद वंश का अंतिम शासक था?​

घनानन्द

8. सिकन्दर का जन्म हुआ?​

356 ई. पूर्व

9. सिकंदर का सेनापति था?​

सेल्यूकस निकेटर

10. मौर्य वंश का संस्थापक कौन हैं?​

चंद्रगुप्त मौर्य

11. मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे?​

अशोक की धार्मिक नीति।
सेना और नौकरशाही पर भारी व्यय।
प्रांतों में विरोधी शासन।
उत्तर-पश्चिम सीमा की उपेक्षा।

12. मौर्य सम्राट का प्रथम शासक कौन था?​

चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश का प्रथम राजा और संस्थापक माना जाता है।

13. चंद्रगुप्त मौर्य के कितने पुत्र थे?​

चन्द्रगुप्त के 2 पुत्र थे चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा थी, जिनसे उन्हें बिंदुसार नाम का बेटा हुआ, चन्द्रगुप्त की दूसरी पत्नी हेलेना थी, जिनसे उन्हें जस्टिन नाम का पुत्र हुआ।

दोस्तों, आज हमने आपको मौर्य साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास । Maurya Dynasty in Hindi के साथ साथ चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, अशोक आदि के बारे में बताया, आशा करता हूँ आपको यह Article पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, ताकि मुझे और अच्छे आर्टिकल लिखने का अवसर प्राप्त हो, धन्यवाद् ।
 
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