अधिवृक्क ग्रंथि किसे कहते है?। Adrenal Gland in Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है, हमारे इस ब्लॉग में आज हम आपको अधिवृक्क ग्रंथि किसे कहते है?। Adrenal Gland in Hindi, अधिवृक्क ग्रंथि की स्थिति, अधिवृक्क ग्रंथि की संरचना, अधिवृक्क ग्रन्थि के विकार आदि के बारे में बताएंगे, तो चलिए दोस्तों इन सबके बारे में जानते है।

अधिवृक्क ग्रंथि किसे कहते है? । Adrenal Gland in Hindi

अधिवृक्क ग्रंथि । Adrenal Gland in Hindi

उत्पत्ति
– इसकी उत्पत्ति भ्रूण के मीजोडर्म से होती है।

अधिवृक्क ग्रंथि की स्थिति । Adrenal gland Position in Hindi

दोनों वृक्कों के शीर्ष पर टोपी के समान एक-एक अधिवृक्क ग्रन्थि पायी जाती है, जो गाढ़े-भूरे रंग की होती है। इसका बाहरी भाग भ्रूण के मीजोडर्म तथा आन्तरिक भाग न्यूरल एक्टोडर्म से बनता है।


अधिवृक्क ग्रंथि की संरचना । Adrenal gland Structure in Hindi

मनुष्य में प्रत्येक ग्रन्थि 4 से 6 ग्राम होती है। सम्पूर्ण ग्रन्थि एक तन्तुमय संयोजी ऊतक सम्पुट (Capsule) के आवरण से घिरी रहती है।

सम्पुट के अन्दर का भाग 2 स्तरों में बँटा रहता है।

(A) वल्कुट भाग (Cortex)

यह मीजोडर्म से बनने वाला बाहरी भाग है जो इस ग्रन्थि का 90% भाग बनाता है। इसे तीन भागों में बाँटते हैं – पहला बाहरी भाग जोनाग्लोमेरुलोसा, दूसरा जोनाफैसीकुलेटा, तीसरा जोना रेटीकुलेरिस कहलाता है। इस भाग की कोशिकाएँ स्रावी प्रकृति की होती हैं और 40 से 50 हॉर्मोनों का स्रावण करती हैं, जिन्हें कॉर्टिकोस्टिरॉइड्स कहते हैं। रासायनिक दृष्टि से सभी स्टीरॉयड्स होते हैं। इसके हॉर्मोनों में से बहुत कम ही सक्रिय होते हैं जिन्हें 4 समूह में बाँटते हैं –

(i) लिंग हॉर्मोन्स – कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ नर तथा मादा दोनों में ही दोनों प्रकार के हॉर्मोनों को पैदा करती हैं लेकिन इनके जनदों में बने हॉर्मोन के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं। ये लिंग हॉर्मोन्स द्वितीयक लैंगिक लक्षणों एवं Sexual behaviour आदि को नियन्त्रित करते हैं। ये हॉर्मोन पेशियों तथा कंकालों की वृद्धि पर भी नियन्त्रण रखते हैं। इसके द्वारा स्रावित नर हॉर्मोन को एण्ड्रोजेन तथा मादा हॉर्मोन को एस्ट्रोजेन व प्रोजेस्टेरॉन कहते हैं।

जब छोटे बच्चों में इस हॉर्मोन का स्राव बढ़ जाता है तो ये बच्चे कम उम्र में ही जनन की दृष्टि से परिपक्व हो जाते हैं। यदि नर में मादा हॉर्मोन ज्यादा बनने लगते हैं तो उनमें मादा के कुछ लक्षण दिखने लगते हैं। इसके विपरीत यदि मादा में नर हॉर्मोन ज्यादा बनने लगते हैं तो उसमें नर के लक्षण जैसे दाढ़ी-मूँछ आना आदि दिखने लगते हैं। इस हॉर्मोन की अधिकता से पेरू नामक देश की एक लगभग पाँच वर्ष की लड़की ने बच्चे को जन्म दिया। इस हॉर्मोन की कमी से व्यक्ति जनन की दृष्टि से देर से परिपक्व होता है।

(ii) मिनरैलोकॉर्टीकॉएड – ये हॉर्मोन्स रुधिर में खनिज लवणों की मात्रा को नियन्त्रित करते हैं। Aldosterone एक महत्त्वपूर्ण मिनरैलो कार्टीकॉएड हॉर्मोन है जो वृक्क नलिकाओं द्वारा Na+ और Cl− आयन के अवशोषण का नियमन करता है।

(iii) कॉर्टीसोन – यह शरीर में प्रोटीन की उपापचय को प्रभावित करता है।

(iv) ग्लूकोकॉर्टीकॉएड – ये शरीर में ग्लूकोज, प्रोटीन और वसा की उपापचय को नियन्त्रित करते. हैं। यकृत में ग्लूकोज का ग्लाइकोजेन बनने की क्रिया का नियन्त्रण भी ये ही हॉर्मोन करते हैं। ये शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स के वितरण तथा जल व लवणों के सन्तुलन का भी नियन्त्रण करते हैं।

पीयूष ग्रन्थि का एड्रिनोकॉर्टिकोट्राफिक हॉर्मोन (ACTH) कॉर्टेक्स के हॉर्मोन स्रावण पर नियन्त्रण रखता है। यदि शरीर से एड्रीनल ग्रन्थि का कॉर्टेक्स निकाल दिया जाये तो उपापचयी क्रियाएँ अव्यवस्थित हो जाती हैं और उस व्यक्ति को एडीसन रोग हो जाता है। कॉर्टेक्स के हॉर्मोन की अधिकता से असामयिक लैंगिक परिपक्वता आती है। यहाँ तक कि विपरीत लिंग हॉर्मोन देकर लिंग परिवर्तन भी किया जा सकता है।

(B) मज्जा भाग (Medulla)

यह अधिवृक्क ग्रन्थि का आन्तरिक भाग है जो इस ग्रन्थि का शेष 10% भाग बनाता है। इसका नियन्त्रण स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र द्वारा किया जाता है, और भ्रूणीय अवस्था में यह न्यूरल भाग से ही विकसित होता है। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं। बड़ी कोशिकाएँ गुच्छों में तथा छोटी कोशिकाएँ पंक्तियों में व्यवस्थित होती हैं। इस भाग की कोशिकाएँ टायरोसीन अमीनो अम्ल से दो प्रकार के हॉर्मोन बनाती है।

(i) एड्रीनेलीन या इपीनेफ्रिन – यह हॉर्मोन अरेखित पेशियों को उत्तेजित करता है, जिससे शरीर के बाहर तथा अन्दर की ओर की रुधिर केशिकाओं की दीवार संकुचित हो जाती है फलस्वरूप रुधिर दाब बढ़ जाता है, हृदय तेजी से धड़कने लगता है, शरीर के रोम खड़े हो जाते हैं, पुतली फैल जाती है, पसीना आने लगता है, आँसू गिरने लगते हैं, रुधिर थक्का तेजी से बनता है तथा श्वसन की दर बढ़ जाती है। इन सब कारणों को एक साथ डर जाना कहते हैं। वास्तव में यह तब होता है जब कोई संकट आ जाता है। उस समय एड्रीनलीन का स्राव तेजी से होने लगता है, जिससे उपरोक्त लक्षण दिखायी देने लगते हैं।

जब कभी संकट आता है या हम डर जाते हैं उस समय अचानक एड्रीनेलीन का स्राव अधिक होने लगता है, जिससे उपरोक्त लक्षण दिखायी देते हैं। साथ ही यकृत में ग्लाइकोजन का ग्लूकोज में परिवर्तन तेजी से होता है और मुनष्य में संकट से लड़ने की क्षमता या भयभीत होने पर भागने की क्षमता आ जाती है। इसी कारण इस हॉर्मोन को संकटकालीन हॉर्मोन भी कहते हैं।

यह चिकित्सा विज्ञान में भी महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। कभी कभी हृदय गति अचानक रुक जाने पर इसे हृदय में सीधे पहुँचाकर उसमें फिर से गति लायी जाती है। अस्थमा में भी इसके प्रयोग से आराम मिलता है। मुख, नाक, गला में मामूली चीर-फाड़ करते समय तथा दाँत निकालते समय चिकित्सक रक्त के बहाव को रोकने के लिए एड्रीनेलीन की एक फुहार इन अंगों पर डाल देते हैं।

(ii) नान-एड्रीनेलीन – यह एड्रीनेलीन के समान ही कार्य करता है, लेकिन इसके प्रभाव से रुधिर केशिकाएँ संकुचित होने की बजाय फैल जाती हैं, जिससे हृदय गति तेज नहीं होती और न रुधिर दाब बढ़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि एड्रीनेलीन तथा नान एड्रीनेलीन एक प्रकार से स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र की सहायता करते हैं।


अधिवृक्क ग्रन्थि के विकार । Adrenal gland Disorders in Hindi

(a) अल्पस्त्रावण

इसके अल्प त्रावण से निम्न रोग होते हैं

(i) एडीसन रोग – इस रोग का अध्ययन थामस एडीसन ने किया था। यह ग्लूकोकॉर्टीकॉएड हॉर्मोन के अल्प स्त्राव से होता है। इस रोग में रोगी की पेशियाँ शिथिल हो जाती है।सहवास की इच्छा समाप्त हो जाती है, त्वचा पर कांस्य रंग के चकते पड़ जाते हैं। शरीर में निर्जलीकरण के कारण रुधिर दाब घट जाता है और पाचन सम्बन्धी विकार पैदा हो जाते हैं।

(ii) हाइपोग्लाइसीमिया – यह भी ग्लूकोकॉर्टीकॉएड की कमी के कारण होता है। इस रोग में मस्तिष्क, यकृत तथा हृदय की पेशियों की क्रियाएँ घट जाती हैं, शरीर का ताप भी गिर जाता है।

(iii) कॉन्स रोग – यह मिनरैलो कॉर्टीकॉयड की कमी से होता है। इसमें तन्त्रिकाओं की गड़बड़ी होकर पेशियों में अकड़न आ जाती है और मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

(b) अतिस्त्रावण

इससे निम्न रोग होते हैं।

(i) कुशिंग रोग – इस रोग में रोगी के वक्षीय भाग में असामान्य रूप में वसा का जमाव हो जाता है।

(ii) एड्रीनल विरिलिज्म – यह रोग स्त्रियों में एण्ड्रोजन के अधिक बनने के कारण होता हैं। इस रोग में स्त्रियों में पुरुषों जैसे लक्षण बनने लगते हैं, जैसे-चेहरे पर दाढ़ी-मूँछों का आना, आवाज का भारी होना तथा बाँझ होना। इसके कारण समय से पूर्व परिपक्वन भी होता है।

दोस्तों, आज हमने आपको अधिवृक्क ग्रंथि किसे कहते है?। Adrenal Gland in Hindi, अधिवृक्क ग्रंथि की स्थिति, अधिवृक्क ग्रंथि की संरचना, अधिवृक्क ग्रन्थि के विकार आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, ताकि मुझे और अच्छे आर्टिकल लिखने का अवसर प्राप्त हो, धन्यवाद्.
 
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