हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। हमारे इस ब्लॉग में आपको लसीका परिसंचरण तंत्र क्या है? । Lymph Circulatory System in Hindi के साथ – साथ प्लीहा, प्लीहा के कार्य, लसीका, लसीका के कार्य, रुधिर तथा लसीका में तुलना, लसीका एवं रुधिर में अन्तर, आदि के बारे में बताएंगे, तो दोस्तों एक एक करके इन सबके बारे में जानते है।
रुधिर केशिकाओं से छनित इसी रुधिर को लसीका कहते हैं। यह लसीका कुछ वाहिकाओं तथा अंगों की सहायता से पुनः रुधिर परिसंचरण तन्त्र में चली जाती है, इन अंगों को जो लसीका को पुनः रुधिर परिसंचरण तन्त्र में पहुँचा देते हैं एक साथ लसीका परिसंचरण तन्त्र कहते हैं।
यह तन्त्र निम्न संरचनाओं का बना होता है।
उपास्थि, मस्तिष्क व स्पाइनल कॉर्ड को छोड़कर शरीर के शेष सभी भागों में लसीका केशिकाएँ जाल के रूप में बिखरी रहती हैं। लसीका केशिकाओं के अंतिम सिरे बन्द होते हैं। आँत की विलाई में इनकी अन्तिम शाखाओं को आक्षीर वाहिनियाँ कहते हैं। आँत से अवशोषित वसाओं के कारण इनका लसीका दूधिया रंग का होता है और इसे काइल कहते हैं।
इनकी संरचना शिराओं के समान ही होती है लेकिन इनकी दीवारें शिराओं की अपेक्षा पतली होती हैं। इनमें हृदय की ओर खुलने वाले कपाट जगह-जगह पर पाये जाते हैं। इन कपाटों की संख्या शिराओं की तुलना में अधिक होती है। शरीर की सभी लसीका वाहिनियाँ मिलकर दो बड़ी तथा लम्बी लसीका वाहिनियाँ बना देती हैं, जिन्हें बायीं वक्षीय लसीका वाहिनी तथा दाहिनी वक्षीय लसीका वाहिनी कहते हैं। इन दोनों में दाहिनी बायों को अपेक्षा कुछ मोटी होती है। दाहिनी वक्षीय लसीका वाहिनी में सिर, ग्रीवा, वक्ष के दाहिने भाग तथा दाहिने हाथ की लसीका वाहिनियाँ खुलती हैं। यह वाहिनी दाहिनी अन्तःजुगुलर शिरा एवं सबक्लैवियन शिरा के मिलन स्थान पर शिरा तन्त्र में खुलती है। बायीं वक्षीय में लसीका वाहिनी अपेक्षाकृत बड़ी होती है, इसमें सिर, ग्रीवा, वक्ष के बायें भागों और बायें हाथ तथा दोनों पैरों, आहारनाल, वक्षीय एवं उदरगुहाओं के अन्य भागों की लसीका वाहिनियाँ खुलती हैं । इस वाहिनी का पिछला सिरा डायफ्राम के पीछे उदर भाग में स्थित एक थैलीनुमा आकृति सिस्टर्ना काइली से जुड़ा होता है जबकि इसका अगला सिरा बायीं सबक्लेवियन और अन्त:जुगुलर के मिलन स्थान पर शिरा तन्त्र में खुलता है।
इन गाँठों में लसीका वाहिनी अनेक पतली-पतली शाखाओं में विभाजित होकर एक जाल बनाती है। इस जाल तन्त्र में रुधिर को छानकर साफ किया जाता है।
गर्दन, काँख (Armpits) और उपस्थ या पेडू (Groin) में लसीका गाँठें बहुत अधिक संख्या में पायी जाती हैं। जब कभी हमारे हाथ, पैर इत्यादि में चोट लग जाती है या संक्रमण हो जाता है तब संक्रमण करने वाले सूक्ष्म जीवों को मारने के लिये इन स्थानों की लसीका गाँठों में बहुत से W.B.Cs. व लसीका एकत्रित हो जाते हैं जिसके कारण इन स्थानों पर गोलाकार गाँठ के समान गुटके बन जाते हैं।
मनुष्य तथा दूसरे स्तनियों में निम्नलिखित लसीका अंग पाये जाते हैं।
जो प्लीहा की गुहा में कहीं-कहीं पट के रूप में बढ़ा रहता है जिसे ट्रैबीकुली (Trabeculae) कहते हैं। प्लीहा की गुहा में रुधिर वाहिनियों तथा केशिकाओं का जाल बिछा रहता है। प्लीहा को गुहा में कुछ स्थानों पर धमनियों के चारों तरफ सफेद केशिकाएँ। व्यवस्थित होकर कुछ श्वेत रचनाएँ बनाती हैं, जिन्हें श्वेत पल्प (White pulp ) कहते हैं। प्लीहा का शेष ऊतक लाल दिखायी देता है, जिसे लाल पल्प (Red pulp) कहते हैं। प्लीहा निम्न कार्यों का सम्पादन करती है।
शरीर में उपस्थित सभी ऊतक यहाँ तक कि कोशिकाएँ भी लसीका द्वारा घिरी रहती हैं इसी कारण केशिकाओं के अभाव में भी प्रत्येक कोशिका को ऑक्सीजन तथा पौष्टिक पदार्थ मिलते रहते हैं, क्योंकि कोशिकाओं के रुधिर में उपस्थित पदार्थ इसकी दीवार से विसरित होकर पहले लसीका में और लसीका से विसरित होकर कोशिका में चले जाते हैं, ठीक इसी प्रकार कोशिकाओं के विविध पदार्थ विसरित होकर लसीका से होते हुए केशिकाओं में पहुँच जाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लसीका कोशिकाओं तथा रुधिर के मध्य दलाल का कार्य करती है। उपर्युक्त वर्णन के आधार पर लसीका को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं।
“विभिन्न ऊतकों तथा कोशिकाओं के बीच स्थित अन्तराकोशिकीय अवकाशों में पाये जाने वाले रंगहीन द्रव्य को लसीका कहते हैं। यह रुधिर प्लाज्मा का ही अंश है जिसमें ऑक्सीजन, पौष्टिक पदार्थ तथा कई वर्ज्य पदार्थ विद्यमान रहते हैं।”
दोस्तों, आज हमने आपको लसीका परिसंचरण तंत्र क्या है? । Lymph Circulatory System in Hindi के साथ – साथ प्लीहा, प्लीहा के कार्य, लसीका, लसीका के कार्य, रुधिर तथा लसीका में तुलना, लसीका एवं रुधिर में अन्तर, आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, धन्यवाद्.
लसीका परिसंचरण तंत्र क्या है?। Lymph Circulatory System in Hindi
रुधिर वाहिकाओं में रुधिर हृदय स्पन्दन के कारण एक दाब से बहता है। चूँकि केशिकाओं की दीवार बहुत पतली होती है इस कारण रक्त दाब के प्रभाव से रुधिर की कुछ प्लाज्मा तथा श्वेत रुधिर कणिकाएँ केशिकाओं की दीवार से छनकर बाहर आ जाती हैं और ऊतकों के बीच के अन्तराकोशिकीय अवकाशों में भर जाती हैं। अतः शरीर की कोशिकाएँ एक प्रकार के द्रव में रहती हैं।रुधिर केशिकाओं से छनित इसी रुधिर को लसीका कहते हैं। यह लसीका कुछ वाहिकाओं तथा अंगों की सहायता से पुनः रुधिर परिसंचरण तन्त्र में चली जाती है, इन अंगों को जो लसीका को पुनः रुधिर परिसंचरण तन्त्र में पहुँचा देते हैं एक साथ लसीका परिसंचरण तन्त्र कहते हैं।
यह तन्त्र निम्न संरचनाओं का बना होता है।
(1) लसीका केशिकाएँ । Lymph Capillaries In Hindi
ऊतकों की कोशिकाओं के चारों तरफ पायी जाने वाली लसीका (या ऊतक द्रव) कुछ महीन रुधिर केशिकाओं के समान नलियों द्वारा एकत्रित किये जाते हैं, इन नलियों को लसीका केशिकाएँ कहते हैं।उपास्थि, मस्तिष्क व स्पाइनल कॉर्ड को छोड़कर शरीर के शेष सभी भागों में लसीका केशिकाएँ जाल के रूप में बिखरी रहती हैं। लसीका केशिकाओं के अंतिम सिरे बन्द होते हैं। आँत की विलाई में इनकी अन्तिम शाखाओं को आक्षीर वाहिनियाँ कहते हैं। आँत से अवशोषित वसाओं के कारण इनका लसीका दूधिया रंग का होता है और इसे काइल कहते हैं।
(2) लसीका वाहिनियाँ । Lymph Vessels in Hindi
बहुत-सी लसीका केशिकाएँ आपस में संयुक्त होकर कुछ मोटी वाहिनियाँ में बनाती हैं, इन वाहिनियों को लसीका वाहिनियाँ कहते हैं ।इनकी संरचना शिराओं के समान ही होती है लेकिन इनकी दीवारें शिराओं की अपेक्षा पतली होती हैं। इनमें हृदय की ओर खुलने वाले कपाट जगह-जगह पर पाये जाते हैं। इन कपाटों की संख्या शिराओं की तुलना में अधिक होती है। शरीर की सभी लसीका वाहिनियाँ मिलकर दो बड़ी तथा लम्बी लसीका वाहिनियाँ बना देती हैं, जिन्हें बायीं वक्षीय लसीका वाहिनी तथा दाहिनी वक्षीय लसीका वाहिनी कहते हैं। इन दोनों में दाहिनी बायों को अपेक्षा कुछ मोटी होती है। दाहिनी वक्षीय लसीका वाहिनी में सिर, ग्रीवा, वक्ष के दाहिने भाग तथा दाहिने हाथ की लसीका वाहिनियाँ खुलती हैं। यह वाहिनी दाहिनी अन्तःजुगुलर शिरा एवं सबक्लैवियन शिरा के मिलन स्थान पर शिरा तन्त्र में खुलती है। बायीं वक्षीय में लसीका वाहिनी अपेक्षाकृत बड़ी होती है, इसमें सिर, ग्रीवा, वक्ष के बायें भागों और बायें हाथ तथा दोनों पैरों, आहारनाल, वक्षीय एवं उदरगुहाओं के अन्य भागों की लसीका वाहिनियाँ खुलती हैं । इस वाहिनी का पिछला सिरा डायफ्राम के पीछे उदर भाग में स्थित एक थैलीनुमा आकृति सिस्टर्ना काइली से जुड़ा होता है जबकि इसका अगला सिरा बायीं सबक्लेवियन और अन्त:जुगुलर के मिलन स्थान पर शिरा तन्त्र में खुलता है।
(3) लसीका गाँठें । Lymph Nodes In Hindi
लसीका वाहिनियाँ कुछ स्थानों पर चौड़ी होकर थैली जैसी रचनाएँ बना देती हैं, इन रचनाओं को लसीका गाँठें कहते हैं। वास्तव में यह लसीका वाहिकाओं के ही फूले भाग हैं। इन गाँठों में W.B.Cs. तथा कुछ प्रति रक्षियों (Antibodies) का निर्माण होता है जो रुधिर में बाहर से आये रोगाणुओं और रोग कारकों को नष्ट करते हैं।इन गाँठों में लसीका वाहिनी अनेक पतली-पतली शाखाओं में विभाजित होकर एक जाल बनाती है। इस जाल तन्त्र में रुधिर को छानकर साफ किया जाता है।
गर्दन, काँख (Armpits) और उपस्थ या पेडू (Groin) में लसीका गाँठें बहुत अधिक संख्या में पायी जाती हैं। जब कभी हमारे हाथ, पैर इत्यादि में चोट लग जाती है या संक्रमण हो जाता है तब संक्रमण करने वाले सूक्ष्म जीवों को मारने के लिये इन स्थानों की लसीका गाँठों में बहुत से W.B.Cs. व लसीका एकत्रित हो जाते हैं जिसके कारण इन स्थानों पर गोलाकार गाँठ के समान गुटके बन जाते हैं।
(4) लसीका अंग । Lymphoid Organs In Hindi
लसीका वाहिनियों से सम्बन्धित कुछ छोटे अंग पाये जाते हैं, जिन्हें लसीका अंग कहते हैं।मनुष्य तथा दूसरे स्तनियों में निम्नलिखित लसीका अंग पाये जाते हैं।
(i) लसीका पुटक । Lymph Follicles In Hindi
आँत की श्लेष्मा झिल्ली पर कुछ छोटी-छोटी अण्डाकार पुटिकाएँ पायो जाती हैं जिन्हें लसीका पुटक कहते हैं। ये पुटिकाएँ समूहों में व्यवस्थित होती हैं। इन समूहों को पेयर के पिण्ड (Peyer’s patches) भी कहते हैं। ये भी लसीका गाँठों के समान ही कार्य करती हैं।(ii) प्लीहा । Spleen In Hindi
यह गहरे लाल रंग की लम्बी, चपटी एवं ग्रन्थिमय रचना है जो आमाशय के फण्डिक भाग और डायफ्राम के बीच पेरीटोनियम के दो वलनों, जिन्हें ओमेण्टम कहते हैं, के द्वारा सधी रहती है। यह लसीका गाँठों के समान लसीका प्रवाह में न रहकर रुधिर प्रवाह में होती है। संरचनात्मक रूप में इसके चारों तरफ संयोजी ऊतकों का एक आवरण होता है।जो प्लीहा की गुहा में कहीं-कहीं पट के रूप में बढ़ा रहता है जिसे ट्रैबीकुली (Trabeculae) कहते हैं। प्लीहा की गुहा में रुधिर वाहिनियों तथा केशिकाओं का जाल बिछा रहता है। प्लीहा को गुहा में कुछ स्थानों पर धमनियों के चारों तरफ सफेद केशिकाएँ। व्यवस्थित होकर कुछ श्वेत रचनाएँ बनाती हैं, जिन्हें श्वेत पल्प (White pulp ) कहते हैं। प्लीहा का शेष ऊतक लाल दिखायी देता है, जिसे लाल पल्प (Red pulp) कहते हैं। प्लीहा निम्न कार्यों का सम्पादन करती है।
प्लीहा के कार्य । Function Of Spleen in Hindi
- यह लिम्फोसाइट्स को बनाती है।
- रक्त की टूटी-फूटी कोशाओं को नष्ट करके रुधिर की सफाई करती है ।
- यह एण्टीबॉडी बनाती है।
- भ्रूणावस्था में लाल रुधिर कणिका को बनाती है।
- रुधिर का संचय करती है।
(iii) थाइमस ग्रन्थि । Thymus gland In Hindi
यह अनियमित आकार की ग्रन्थि होती है जो वक्ष गुहा में दोनों फेफड़ों के बीच में स्थित होती है। धीरे-धीरे यह समाप्त होती जाती है तथा वयस्क में अवशेष मात्र ही रह जाती है। इसमें लिम्फोसाइट्स का निर्माण होता है।(iv) टॉन्सिल्स । Tonsils In Hindi
यह ग्रसनी की श्लेष्मा झिल्ली में स्थित होती है तथा लसीका ऊतकों की बनी होती है। यह लिम्फोसाइट्स का निर्माण करती है।लसीका का परिसंचरण । Lymphatic Circulation in Hindi
जैसा कि आप जानते हैं कि लसीका एक प्रकार का रुधिर वाहिकाओं से विसरण के द्वारा बाहर आया छनित रुधिर है। अन्त में इसे लसीका परिसंचरण द्वारा रुधिर परिसंचरण तन्त्र में पहुँचा भी दिया जाता है। इसका बहाव हमेशा एक ही दिशा में, अंगों से हृदय की तरफ होता रहता है। लसीका का बहाव बहुत धीमी गति से कम दबाव के साथ होता है, इसी कारण इसके उल्टे बहाव को रोकन के लिए लसीका वाहिनियों में हृदय की तरफ खुलने वाले कपा पाये जाते हैं। निम्नलिखित क्रियाओं के प्रभाव के कारण लसीका परिसंचरण तन्त्र में लसीका, अंगों से हृदय की ओर बहता रहता और अन्त में वायों तथा दाहिनी वक्षीय लसीका वाहिनियों के द्वारा सबक्लैवियन शिरा में पहुँचा दिया जाता है ।- लसीका वाहिनियों की भित्ति की अरेखित पेशियों संकुचन की क्रमाकुंचन गति।
- देहभित्ति एवं अन्तरांगों की पेशियों के संकुचन फलस्वरूप पैदा हुए दबाव के प्रभाव के परिणामस्वरूप।
- लसीका वाहिनियों के कपाटों के एक तरफ खुलनेकारण।
- श्वसन के समय डायफ्राम तथा वक्ष की गतियों के कारण।
- लसीका वाहिनियों में एक सिरे से दूसरे सिरे तक दाबके अन्तर के कारण।
(5) लसीका । Lymph In Hindi
हृदय के दबाव के कारण वाहिकाओं में रुधिर बहता रहता है। रुधिर वाहिकाएँ विभिन्न ऊतकों में जाकर अनेक पतली रुधिर केशिकाओं में बँट जाती हैं। इन केशिकाओं की दीवार अत्यन्त पतली होती है। हृदय के दबाव के कारण तथा केशिकाओं की दीवार के पतली होने के कारण रुधिर का प्लाज्मा रिस-रिस कर केशिकाओं से बाहर चला आता है तथा कोशिकाओं के मध्य पाये जाने वाले अन्तराकोशिकीय अवकाशों में भर जाता है। इस रिसे हुए प्लाज्मा को लसीका या लिम्फ कहते हैं। रुधिर की ही तरह लसीका में भी कणिकाएँ पायी जाती हैं जिन्हें लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) कहते हैं । वास्तव में ये W.B.Cs. या श्वेत रुधिर कणिकाएँ होती हैं जो अपने पादाभों की सहायता से रुधिर केशिकाओं की दीवार से वाहर चली आती हैं। लसीका में R.B.Cs. या लाल रुधिर कणिकाएँ नहीं पायी जातीं, क्योंकि निश्चित आकार होने के कारण ये केशिकाओं की दीवार से रिस कर बाहर नहीं आ पातीं।शरीर में उपस्थित सभी ऊतक यहाँ तक कि कोशिकाएँ भी लसीका द्वारा घिरी रहती हैं इसी कारण केशिकाओं के अभाव में भी प्रत्येक कोशिका को ऑक्सीजन तथा पौष्टिक पदार्थ मिलते रहते हैं, क्योंकि कोशिकाओं के रुधिर में उपस्थित पदार्थ इसकी दीवार से विसरित होकर पहले लसीका में और लसीका से विसरित होकर कोशिका में चले जाते हैं, ठीक इसी प्रकार कोशिकाओं के विविध पदार्थ विसरित होकर लसीका से होते हुए केशिकाओं में पहुँच जाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लसीका कोशिकाओं तथा रुधिर के मध्य दलाल का कार्य करती है। उपर्युक्त वर्णन के आधार पर लसीका को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं।
“विभिन्न ऊतकों तथा कोशिकाओं के बीच स्थित अन्तराकोशिकीय अवकाशों में पाये जाने वाले रंगहीन द्रव्य को लसीका कहते हैं। यह रुधिर प्लाज्मा का ही अंश है जिसमें ऑक्सीजन, पौष्टिक पदार्थ तथा कई वर्ज्य पदार्थ विद्यमान रहते हैं।”
लसीका के कार्य । Lymph Function in Hindi
- लसीका में उपस्थित लिम्फोसाइट्स (W.B.Cs.) हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण कर रोगों की रोकथाम में सहायक होती हैं ।
- लसीका ऊतकों से शिराओं में विभिन्न वस्तुओं का परिसंचरण करती है।
- लसीका घाव भरने में सहायता करती है।
- यह भोज्य पदार्थों तथा ऑक्सीजन को वाहिकाओं से कोशिकाओं तक पहुँचाती है।
- छोटी आँत की लसीका वाहिनियाँ वसा का अवशोषण करती हैं।
- लसीका के द्वारा लिम्फोसाइट्स का निर्माण भी होता है।
- लिम्फ नोड – मनुष्य में छन्ने का कार्य करते हैं। जीवाणु, धूल के कण, कैन्सर कोशिकाएँ आदि लिम्फ नोड में रुक जाते हैं और अन्य पदार्थ रुधिर के प्रवाह में पहुँच जाते हैं।
रुधिर तथा लसीका में तुलना
समानताएँ –- दोनों में W.B.Cs. पायी जाती हैं।
- दोनों ही में शर्करा, यूरिया, अमीनो अम्ल, लवण इत्यादि समान मात्राओं में रहते हैं।
- दोनों में थक्का बनाने की क्षमता होती है।
- लसीका भी रुधिर के ही समान 02, व पोषक पदार्थों को ऊतक तथा कोशिकाओं तक पहुँचाता है और इनसे उत्सर्जी पदार्थों व CO2 को इकट्ठा करता है।
- दोनों ही में प्रतिरक्षी पदार्थ, एण्टीजन तथा शेष पदार्थ लगभग समान मात्रा में रहते हैं।
लसीका एवं रुधिर में अन्तर । Difference Between Blood and Lymph in Hindi
लसीका | रुधिर |
---|---|
यह रंगहीन तरल ऊतक है। | यह गहरे लाल रंग का तरल ऊतक है। |
लसीका में R. B.Cs. नहीं पायी जाती हैं। | रुधिर में R. B.Cs. पायी जाती हैं । |
लसीका में प्रोटीन्स कम मात्रा में पाये जाते हैं। | इसमें प्रोटीन्स अधिक मात्रा में पाये जाते हैं । |
लसीका में CO2, तथा वर्ज्य पदार्थ अधिक पाये जाते हैं। | रुधिर में CO2 तथा वर्ज्य पदार्थ सामान्य मात्रा में होते हैं। |
लसीका में O2 कम मात्रा में होती है। | इसमें O2 अधिक मात्रा में पायी जाती है। |
लसीका में W.B.Cs. अधिक मात्रा में पायी जाती हैं। | रुधिर में W.B.Cs. कम मात्रा में पायी जाती हैं। |
दोस्तों, आज हमने आपको लसीका परिसंचरण तंत्र क्या है? । Lymph Circulatory System in Hindi के साथ – साथ प्लीहा, प्लीहा के कार्य, लसीका, लसीका के कार्य, रुधिर तथा लसीका में तुलना, लसीका एवं रुधिर में अन्तर, आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, धन्यवाद्.
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