परिसंचरण तंत्र को समझाइए ? । Circulatory system In Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। हमारे इस ब्लॉग में आपको परिसंचरण तंत्र । Circulatory system In Hindi के साथ – साथ परिसंचरण तन्त्र के कार्य तथा परिसंचरण के प्रकार आदि के इतिहास बारे में बताएंगे, तो दोस्तों एक एक करके इन सबके बारे में जानते है।परिसंचरण तंत्र । Circulatory system In Hindi

परिसंचरण तंत्र को समझाइए ? । Circulatory system In Hindi

परिसंचरण तंत्र । Circulatory system In Hindi

छोटे-छोटे एककोशिकीय तथा सरल बहुकोशिकीय जन्तुओं में भोजन, ऑक्सीजन और दूसरे उपयोगी पदार्थों का आदान प्रदान विसरण के द्वारा होता है, इनमें उत्सर्जी पदार्थों को विसरण के द्वारा ही एकत्रित करके शरीर के बाहर कर दिया जाता है। लेकिन विकसित जन्तुओं जैसे – मेढक, मनुष्य, पक्षी, भेड़, बकरी इत्यादि में पचे हुए भोजन, ऑक्सीजन तथा दूसरे उपयोगी पदार्थों जैसे – विटामिन, हॉर्मोन, एन्जाइम्स इत्यादि को शरीर के प्रत्येक भाग में ले जाने के लिए और उत्सर्जी पदार्थों को विभिन्न भागों से एकत्र करके उत्सर्जी अंगों तक लाने के लिए एक विकसित संवहनी तन्त्र पाया जाता है जिसे परिवहन या परिसंचरण तन्त्र कहते हैं, जबकि शरीर के अन्दर विभिन्न पदार्थों का यह संवहन, परिवहन या परिसंचरण कहलाता है।


परिसंचरण तन्त्र मुख्यत: 3 प्रकार के होते हैं।
  • जल परिसंचरण तन्त्र
  • रुधिर परिसंचरण तन्त्र
  • लसीका परिसंचरण तन्त्र

परिसंचरण तन्त्र के कार्य । Circulatory System Function In Hindi

  • पोषक पदार्थों का परिवहन – आहारनाल द्वारा अवशोषित पदार्थ परिसंचरण तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों तथा कोशिकाओं को पहुँचाये जाते हैं।
  • उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन – यह तन्त्र शरीर के विभिन्न भागों में बने उत्सर्जी पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक ले जाता है।
  • श्वसन गैसों का परिवहन – परिसंचरण तन्त्र में बहने वाला द्रव O2 को श्वसन सतहों से ऊतकों और CO2 को ऊतकों से श्वसन सतहों तक ले जाता है।
  • उपापचयी माध्यमिक पदार्थों का परिवहन – परिसंचरणी द्रव विभिन्न उपापचयो – क्रियाओं में लगने तथा बनने वाले पदार्थों को दूसरे आवश्यक ऊतकों तक ले जाता है ।
  • ताप का नियमन – परिसंचरणी द्रव परिसंचरण तन्त्र में लगातार बहता रहता है, जिसके कारण यह पूरे शरीर के तापमान को एक समान बनाये रखता है।
  • pH नियन्त्रण – यह विभिन्न रासायनिक पदार्थों का संवहन करके पूरे शरीर के pH को एक समान बनाये रखता है।
  • रासायनिक दूतों या हॉर्मोनों का परिवहन – यह विभिन्न क्रियाओं को नियन्त्रित करने वाले रासायनिक पदार्थों को उनके निर्माण स्थल से कार्य स्थल तक पहुँचाता है।
  • रुधिर बहाव को रोकना – जब कभी शरीर का कोई हिस्सा कट जाता है और रुधिर बहता है, तो यह रुधिर का थक्का बनाकर रक्त स्त्राव को रोकता है।
  • स्फीति दशा – परिसंचरण तन्त्र परिसंचरणी द्रव के माध्यम से विभिन्न अंगों में स्फीति पैदा करता है, जिससे ये अंग कठोर हो जाते हैं। जैसे – चूँचुकों (Nipples) शिश्न (Penis) का उठना, इनमें रक्त के स्फीति के कारण होता है।
  • शरीर में समअवस्था – का स्थापन रक्त परिसंचरण तन्त्र शरीर में विभिन्न पदार्थों का संवहन करके शरीर के अन्दर एक आन्तरिक स्थायित्व स्थापित करता है।

परिसंचरण के प्रकार । Types of Circulatory in Hindi

विभिन्न जीवों में पाया जाने वाला परिसंचरण दो प्रकार का होता है।

(1) अन्तःकोशिकीय परिसंचरण – अन्त: कोशिकीय परिसंचरण वह परिसंचरण है, जो कोशिका के अन्दर होता है, इसमें या तो कोशिका द्रव भ्रमण करता है और इसी के साथ विविध पदार्थों का परिसंचरण होता है या विविध पदार्थ जीवद्रव्य के अंदर परासरण द्वारा वितरित होते हैं। जैसे – पैरामीशियम, अमीबा तथा दूसरे एककोशीय जन्तुओं में।

ये सभी जीव सामान्यत: जल के सीधे सम्पर्क में रहते हैं। इनमें जल में चुली O2 तथा लवण आदि परासरण द्वारा शरीर के अन्दर चले जाते हैं। इसी प्रकार उत्सर्जी पदार्थ भी परासरण के ही द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में धारा गति होती रहती है। जिसके कारण इन पदार्थों का अन्त:कोशिकीय परिसंचरण होता है।

(2) बाह्यकोशिकीय परिसंचरण – बाह्यकोशिकीय परिसंचरण वह परिसंचरण है, जिसमें परिसंचरण की क्रिया कोशिका के बाहर होती है।

इसे पुनः 2 प्रकारों में बाँटा गया है

(i) अतिरिक्त जीवीय परिसंचरण
– अतिरिक्त जीवीय परिसंचरण वह परिसंचरण है, जिसमें शरीर द्वारा उत्पादित द्रव परिसंचरण न करके बाहरी द्रव शरीर के अन्दर परिसंचरण करता है, जिसमें घुलकर विविध पदार्थों का वितरण होता है। जैसे – स्काइफा, ल्यूकोसोलेनिया तथा सीलेण्ट्रेट्स (हाइड्रा, ऑरेलिया) |

परिसंचरण करने वाले द्रव के आधार पर इसे जल परिसंचरण तथा इस तन्त्र को जल परिसंचरण तन्त्र भी कहते हैं।

(ii) अन्तराजीवीय परिसंचरण – अन्तराजीवीय परिसंचरण वह परिसंचरण है, जिसमें शरीर द्वारा उत्पादित द्रव (रुधिर या लसीका) शरीर के अन्दर भ्रमण करता है।

यह परिसंचरण 4 प्रकार का होता है।

(a) मृदूतकीय परिसंचरण
– प्लेटीहेल्पिन्थीज में देहगुहा नहीं पायी जाती और देहगुहा तथा आहारनाल के बीच मृदूतक भरा रहता है। इनमें परिसंचारी द्रव मृदूतक में परासरित हो जाते हैं और जब शरीर संकुचित हो जाता है, तो परिसंचारी द्रव शरीर के विभिन्न भागों में फैल जाते हैं। जैसे – फीताकृमि ।

(b) देहगुहिक परिसंचरण – ऐस्केहेल्मिन्थीज में इस प्रकार का परिसंचरण पाया जाता है। इन जन्तुओं के आन्तरिक अंग दैहिक द्रव्य में निलम्बित रहते हैं। आहारनाल द्वारा पचा हुआ भोजन इस द्रव में परासरित हो जाता है और शरीर संकुचन के कारण शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है। जैसे – एस्केरिस।

(c) रुधिर संवहनी परिसंचरण – उच्च अकशेरुकियों अर्थात् एनेलिडा से इकाइनोडर्मेटा तक एवं कशेरुकियों अर्थात् प्रोटोकॉडेंटा से स्तनी वर्ग तक मुख्य परिसंचारी द्रव रुधिर होता है, जो हृदय, धमनियों तथा शिराओं में परिसंचरित होता है, इसे रुधिर संवहनी तन्त्र कहते हैं।

यह दो प्रकार का हो सकता है-

(1) खुला परिसंचरण एवं (2) बन्द परिसंचरण ।

(d) लसीका संवहनी परिसंचरण
– विकसित जन्तुओं की ऊतक कोशिकाओं के बीच का द्रव लसीका कहलाता है, यह द्रव कुछ लसीका वाहिनियों से होते हुए रुधिर परिसंचरण में पहुँचा दिया जाता है। अतः रुधिर संवहनी परिसंचरण तथा लसीका संवहनी परिसंचरण एक ही परिसंचरण के दो हिस्से हैं जो बन्द परिसंचरण वाले जन्तुओं में पाये जाते हैं।


परिसंचरण तन्त्र । Circulatory system In Hindi

परिसंचरण तन्त्र 2 प्रकार के होते हैं।

(1) खुला परिसंचरण तन्त्र । Open Circulatory System In Hindi

कुछ विकसित अकशेरुकी जन्तुओं जैसे – आर्थ्रोपोड्स एवं मोलस्क में रुधिर नलियों तक ही सीमित न रहकर पूरी देहगुहा में स्वतंत्र रूप से बहता है। इस कारण ऐसे जन्तुओं की कोशिकाएँ तथा ऊतक रुधिर के सीधे सम्पर्क में रहती हैं। इस प्रकार का परिसंचरण तन्त्र खुला परिसंचरण तन्त्र कहलाता है

खुला परिसंचरण तन्त्र वह तन्त्र है, जिसमें रुधिर (परिवहन द्रव) देहगुहा में स्वतंत्र रूप से बहता है। ऐसा परिसंचरण तन्त्र उच्च कशेरुकियों, आर्थ्रोपोड्स (उदा. – कॉकरोच, केकड़ा, मकड़ी आदि) एवं मोलस्कों (उदा. – पाइला, यूनियो) आदि में पाया जाता है।

ऐसे जन्तुओं की देहगुहा रुधिर से भरी रहती है, जिसमें यह स्वतन्त्र रूप से बहता है, इस कारण इसे हीमोसील कहते हैं। ऐसे जन्तुओं का रुधिर हीमोलिम्फ कहलाता है क्योंकि यह लसीका और रुधिर दोनों के कार्यों को करता है। इनका श्वसन वर्णक इसी द्रव में घुला रहता है। इन जन्तुओं के रुधिर को हृदय कुछ धमनियों में भेज देता है जो देहगुहा की विभाजित गुहाओं में खुलती हैं, देहगुहा की इन विभाजित गुहाओं को गर्तिका और कोटर कहते हैं। खुले परिसंचरण तन्त्र को समझने के लिए तिलचट्टे के परिसंचरण तन्त्र का अध्ययन किया जा सकता है। खुले परिसंचरण तंत्र में हृदय की प्रभावी पम्पिंग क्रिया बावजूद के रुधिर के खुले क्षेत्र में बहने के कारण पर्याप्त उच्च रक्त चाप नहीं बन पाता। इसलिए इस तन्त्र में रुधिर धीरे-धीरे कम दबाव से गुहाओं और कोटरों में चहता है।

(2) बन्द परिसंचरण तन्त्र । Closed Circulatory System In Hindi

बन्द परिसंचरण तन्त्र वह परिसंचरण तन्त्र है, जिसमें रुधिर हमेशा बन्द मार्गों से बहता है। सभी कॉर्डेट्स तथा कुछ विकसित। नान – काडेंट्स (जैसे – एनेलिडा) में इसी प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है। इस प्रकार के परिसंचरण तन्त्र का वर्णन सर्व प्रथम विलियम हार्वे के द्वारा किया गया। यह परिसंचरण तन्त्र हृदय, रुधिर वाहिकाओं तथा रुधिर का बना होता है। हृदय रुधिर को बड़ी धमनियों में पम्प करता है। इन धमनियों से रुधिर पतली धमनियों और इनसे धमनी केशिकाओं में आ जाता है। इन धमनी केशिकाओं से रुधिर शिरा केशिकाओं में जाता है जो मिलकर पतली शिराएँ और पतली शिराएँ मिलकर मोटी शिराएँ बना देती हैं। ये मोटी शिराएँ रुधिर को हृदय में पहुँचा देती हैं, जहाँ से इसका वितरण पुनः धमनियों के द्वारा विभिन्न अंगों व फेफड़ों को होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस परिसंचरण तन्त्र में रुधिर ऊतकों तथा केशिकाओं के सीधे सम्पर्क में नहीं आता, इसी कारण इसके पदार्थ रुधिर केशिकाओं से विसरण द्वारा बाहर निकलते हैं और विसरण के द्वारा ही ऊतकों तथा केशिकाओं को जाते हैं। ठीक इसी प्रकार ऊतकों तथा केशिकाओं में बनने वाले उत्सर्जी पदार्थ भी विसरण के ही द्वारा रुधिर केशिकाओं में पहुंच जाते है, मनुष्य, मेंढक, भेड़ बकरी तथा केचुआ में बन्द परिसंचरण पाया जाता है।

खुला तथा बंद परिसंचरण तंत्र में अन्तर (Difference between closed and open system)


खुला परिसंचरण तन्त्रबन्द परिसंचरण तन्त्र
यह अकशेरुकीय जन्तुओं में पाया जाता है।यह कुछ अकशेरुकीय एवं सभी कशेरुकीय जन्तुओं में पाया जाता है।
इसमें रुधिर कम दाब के साथ बहता है।इसमें रुधिर अधिक दाब के साथ बहता है।
इसमें अंगों में वहने वाले रुधिर की मात्रा नियंत्रित नहीं होती है।इसमें अंगों में बहने वाले रुधिर की मात्रा नियंत्रित होती है
इसमें रुधिर जीवित कोशिकाओं के चारों ओर उपस्थित खुले स्थानों में प्रवाहित होता है।इसमें रुधिर हमेशा रुधिर वाहिनियों में ही प्रवाहित होता है।
इसमें पदार्थों का आदान-प्रदान सीधे रुधिर एवं शारीरिक कोशिकाओं के मध्य होता है ।इसमें पदार्थों का आदान-प्रदान ऊतक द्रव के माध्यम से होता है ।
इसमें कोशिकाओं (Capillaries) का निर्माण नहीं होता है।इसमें रुधिर वाहिकाएँ अंगों के अन्दर केशिकाओं का निर्माण करती हैं।
यदि O2 वाहक वर्णक उपस्थित होता है तो वह प्लाज्मा में पाया जाता है।इसमें O2 वाहक वर्णक इरीथ्रोसाइट्स में पाया जाता है
इसमें रुधिर हीमोसील में भरा रहता है।इसमें हीमोसील का अभाव होता है ।

तिलचट्टे का परिसंचरण तन्त्र (CIRCULATORY SYSTEM OF COCKROACH)

तिलचट्टे में रुधिर परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार का होता है। इसका परिसंचरण तन्त्र हृदय, एक महाधमनी एवं हीमोसील से मिलकर बना होता है।

तिलचट्टे के परिसंचरण तन्त्र में पृष्ठ सतह पर बाहा कवच के नीचे एक बड़ा नलिकाकार सँकरा हृदय पाया जाता है, जिसका पिछला सिरा बन्द तथा अगला खुला होता है। यह कीपाकार 13 कोष्ठों का बना होता है। प्रत्येक कोष्ठ अपने अगले कोष्ठ से एक कपाटीय छिद्र द्वारा जुड़ा रहता है। प्रत्येक कोष्ठ के पिछले सिरे में एक जोड़ी पार्श्व छिद्र, ऑस्टिया पाये जाते हैं। ये छिद्र रुधिर को पेरीकार्डियल कोष्ठ से हृदय की ओर आने देते हैं, लेकिन इसके विपरीत बहाव को रोकते हैं।

हृदय का अगला भाग सँकरा तथा नलिकाकार होता है जिसे अग्र महाधमनी (Anterior aorta) कहते हैं। अग्र महाधमनी आगे बढ़कर शीर्ष कोटर में खुलती है।

हृदय के नीचे एक पेशीय पट पाया जाता है जिसे पृष्ठ पट (Dorsal diaphragm) कहते हैं। यह रुधिर गुहा को दो भागों में बाँट देता है। ऊपर का भाग हृदयावरणी या पेरीकार्डियल कोटर (Pericardial sinus) तथा नीचे का चौड़ा भाग परिअन्तरांग कोटर (Perivisceral sinus) कहलाता है। इस पट में अनेक छोटे छोटे छिद्र पाये जाते हैं जिनसे होकर लसीका, रुधिर लसीका कोटरों में आ जा सकता है। पेरीकार्डियल कोटर में हृदय के दोनों ओर खण्ड में एक जोड़ी पंखे जैसी त्रिभुजाकार एलेरी पेशियाँ (Alary muscles) पायी जाती हैं। इनके संकुचित होने से पेरीविसरल कोटर का रुधिर पेरीकार्डियल कोटर में आ जाता है।

पृष्ठ पट के ही समान एक प्रतिपृष्ठ पट (Ventral dia phragm) भी पाया जाता है जो प्रतिपृष्ठ तन्त्रिका रज्ज के ऊपर स्थित होता है। प्रतिपृष्ठ पट रुधिर गुहा के थोड़े से भाग को अधर तल पर अलग कर देता है। इस प्रकार रुधिर गुहा में तीसरा कोटर बन जाता है जिसे परितन्त्रिकीय या पेरीन्यूरल (Perineural) कोटर कहते हैं। एलेरी पेशियों के संकुचन से इनमें भी रुधिर भर जाता है तथा शिथिलन से पेरीविसरल कोटर में आ जाता है।परिसंचरण तंत्र । Circulatory system In Hindi

जब एलेरी पेशियाँ संकुचित होती हैं तो पेरीकार्डियल कोटर का आयतन बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप रुधिर पेरीविसरल कोटर से पेरीकार्डियल कोटर में भर जाता है तथा यहाँ से ऑस्टिया के द्वारा हृदय में पहुँच जाता है। पट्ट छिद्रों के एकतरफा होने के कारण पेरीकार्डियल कोटर से रक्त पुन: पेरीविसरल कोटर में नहीं आता। हृदय में स्पन्दन पीछे से आगे की ओर होता है, जिससे इसमें रुधिर का बहाव पीछे से आगे होता है। हृदय के छिद्रों में एकतरफा कपाट पाया जाता है जिससे हृदय का रुधिर में पुन: पेरीकार्डियल कोटर में नहीं जा पाता अर्थात् हृदय में रुधिर जा तो सकता है लेकिन लौट नहीं सकता। हृदय स्पन्दन के कारण रुधिर अग्र महाधमनी से होता हुआ सिर की गुहा में पहुँच जाता है। यहाँ से यह एन्टेना आदि की गुहा में भी जाता है। सिर की गुहा से रुधिर का बहाव पीछे की ओर होता है जिससे यह पेरीविसरल गुहा में चला जाता है।

एलेरी पेशियों के संकुचन से ही रुधिर पेरीन्यूरल कोटर में जाता है तथा इनके शिथिलन से रुधिर पुन: पेरीविसरल गुहा में चला जाता है। उपर्युक्त क्रिया के बार बार होने से तिलचट्टे में परिसंचरण होता रहता है।

दोस्तों, आज हमने आपको परिसंचरण तंत्र । Circulatory system In Hindi के साथ – साथ परिसंचरण तन्त्र के कार्य तथा परिसंचरण के प्रकार आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, धन्यवाद्.
 
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