हेलो दोस्तों, हमारे ब्लॉक में आपका स्वागत है, आज हम शब्द विचार किसे कहते हैं? । Shabd Vichar In Hindi, शब्दों के भेद आदि के बारे में जानेंगे। तो चलिए शुरू करते है।
वर्ण या वणों के ऐसे समूह, जिसका कोई अर्थ होता है, को शब्द कहते हैं।
(क) सार्थक शब्द
(ख) निरर्थक शब्द
सार्थक शब्दों को चार भागों में बांटा गया है
किसी निश्चित अर्थ के लिए प्रयुक्त किए गए ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द खंड नहीं किए जा सकते। ये शब्द किसी सामान्य एवं प्रचलित शब्द का बोध कराते हैं। इन शब्दों के सार्थक टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। यदि इनके टुकड़े किए जाएँ तो इन टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं निकलेगा जैसे– ‘राखी’ शब्द के टुकड़े करने पर ‘रा’ और ‘खी’ का अलग-अलग कोई अर्थ नहीं निकलता; अतः ये रूढ़ शब्द है।
(ख) यौगिक शब्द –
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने हो, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं।
जैसे – जाल + साज = जालसाज, हिम + आलय = हिमालय आदि।
(ग) योगरूद शब्द –
योगरूढ़ शब्द दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों से बने होते हैं, परंतु अर्थ की दृष्टि से ये अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर किसी परंपरा से विशेषण अर्थ को प्रकट करते हैं।
जैसे- नीलकंठ- इसका सामान्य अर्थ है ‘नीले कंठ वाला’ और विशेष अर्थ है ‘शिव’ ।
हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत से हुआ है, अत: संस्कृत के अनेक शब्द उसी रूप में हिंदी भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं, इन्हें तत्सम शब्द कहते हैं।
जैसे – अग्नि, वानर, सूर्य आदि।
(ख) तद्भव शब्द –
वे शब्द, जो मूल रूप से तो संस्कृत के अंग हैं परंतु थोड़े से रूप परिवर्तन के साथ हिंदी भाषा में प्रयुक्त होते हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं।
जैसे – आग, बंदर, सूरज, हाथ, साँप, भीख, हाथी आदि।
तत्सम तद्भव शब्द – सूची
(ग) देशज शब्द –
देशज शब्द परंपरा से जनजीवन की साधारण बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होते हैं। ये किसी अन्य भाषा से नहीं लिए गए हैं वरन् ये क्षेत्रीय प्रभाव के कारण हिंदी में आ गए हैं।
जैसे – झुग्गी, घोंसला, पगड़ी, लोटा, जूता आदि।
(घ) विदेशी शब्द –
हिन्दी में अनेक शब्द ऐसे आ गए हैं जो विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं। अब वे शब्द अपने मूल रूप में हिंदी में प्रयुक्त होते हैं।
जैसे- पेंसिल, आलू, लीची, स्टेशन, जनवरी, मई, अगस्त आदि।
जिन शब्दों में वाक्य में प्रयोग करते समय व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर परिवर्तन होता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। विकारी शब्दों के रूप लिंग, वचन तथा कारक के आधार पर बदल जाते हैं।
विकारी शब्दों के निम्नलिखित चार भेद हैं। –
अविकारी शब्दों में प्रयोग के कारण कोई परिवर्तन नहीं आता है, इनका रूप सदा एक सा रहता है। इसलिए इनको अव्यय भी कहा जाता है; जैसे—यहाँ, वहाँ, प्रतिदिन, परंतु, लेकिन आदि ।
अविकारी शब्दों में लिग, वचन और कारक के कारण भी कोई परिवर्तन नहीं आता है।
अविकारी शब्दों के चार भेद होते हैं। –
शब्द विचार किसे कहते हैं? । Shabd Vichar In Hindi
हमे अपने विचारों को प्रकट करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है, अतः अपने विचारों को प्रकट करने के लिए हम शब्दों का प्रयोग करते हैं। हम शब्दों को बोलकर अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते है अर्थात् विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। शब्द छोटा हो या बड़ा, एक वर्ण का हो या अधिक, उसका अपना अर्थ होता है।वर्ण या वणों के ऐसे समूह, जिसका कोई अर्थ होता है, को शब्द कहते हैं।
शब्दों के भेद । Shabdon ke bhed
हिंदी के शब्दों को चार आधारों पर अलग-अलग वर्गों में बांटा गया है –- अर्थ के आधार पर
- रचना के आधार पर
- उत्पत्ति के आधार पर
- प्रयोग के आधार पर
1. अर्थ के आधार पर शब्द – भेद
अर्थ के आधार पर शब्दों को दो वर्गों में बाँटा गया है…(क) सार्थक शब्द
(ख) निरर्थक शब्द
(क) सार्थक शब्द
जब वाक्यों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनका कुछ अर्थ होता है, तब उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं जैसे- रोटी, पुस्तक, कलम, अलमारी आदि।सार्थक शब्दों को चार भागों में बांटा गया है
- एकार्थी शब्द
- अनेकार्थी शब्द
- पयार्यवाची शब्द
- विलोम या विपरीतार्थक शब्द
(ख) निरर्थक शब्द
ऐसे शब्द जिनका कोई अर्थ नहीं होता है, निरर्थक शब्द कहे जाते; जैसे- खाना-बाना रोटी-वोटी, कुर्सी वुर्सी आदि। इन शब्द युग्मों में ‘वाना’, ‘वोटी’ तथा ‘वुर्सी’ का कोई अर्थ नहीं है, अतः ये निरर्थक शब्द हैं। कभी-कभी निरर्थक शब्दों का प्रयोग भाषा में प्रवाह लाने के लिए किया जाता है।2. रचना के आधार पर शब्द – भेद
रचना के आधार पर शब्दों को तीन भागों में बांटा गया है।- (क) रूढ़
- (ख) यौगिक
- (ग) योगरूढ़
किसी निश्चित अर्थ के लिए प्रयुक्त किए गए ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द खंड नहीं किए जा सकते। ये शब्द किसी सामान्य एवं प्रचलित शब्द का बोध कराते हैं। इन शब्दों के सार्थक टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। यदि इनके टुकड़े किए जाएँ तो इन टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं निकलेगा जैसे– ‘राखी’ शब्द के टुकड़े करने पर ‘रा’ और ‘खी’ का अलग-अलग कोई अर्थ नहीं निकलता; अतः ये रूढ़ शब्द है।
(ख) यौगिक शब्द –
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने हो, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं।
जैसे – जाल + साज = जालसाज, हिम + आलय = हिमालय आदि।
(ग) योगरूद शब्द –
योगरूढ़ शब्द दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों से बने होते हैं, परंतु अर्थ की दृष्टि से ये अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर किसी परंपरा से विशेषण अर्थ को प्रकट करते हैं।
जैसे- नीलकंठ- इसका सामान्य अर्थ है ‘नीले कंठ वाला’ और विशेष अर्थ है ‘शिव’ ।
3. उत्पत्ति के आधार पर – भेद
हिंदी भाषा में शब्दों की उत्पत्ति चार प्रकार से हुई है। इस आधार को चार भागों में बांटा गया है। –- (क) तत्सम
- (ख) तद्भव
- (ग) देशज
- (घ) विदेशी
हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत से हुआ है, अत: संस्कृत के अनेक शब्द उसी रूप में हिंदी भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं, इन्हें तत्सम शब्द कहते हैं।
जैसे – अग्नि, वानर, सूर्य आदि।
(ख) तद्भव शब्द –
वे शब्द, जो मूल रूप से तो संस्कृत के अंग हैं परंतु थोड़े से रूप परिवर्तन के साथ हिंदी भाषा में प्रयुक्त होते हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं।
जैसे – आग, बंदर, सूरज, हाथ, साँप, भीख, हाथी आदि।
तत्सम तद्भव शब्द – सूची
तत्सम | तद्भव |
---|---|
अग्नि | आग |
अश्रु | आँसू |
पत्र | पत्ता |
(ग) देशज शब्द –
देशज शब्द परंपरा से जनजीवन की साधारण बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होते हैं। ये किसी अन्य भाषा से नहीं लिए गए हैं वरन् ये क्षेत्रीय प्रभाव के कारण हिंदी में आ गए हैं।
जैसे – झुग्गी, घोंसला, पगड़ी, लोटा, जूता आदि।
(घ) विदेशी शब्द –
हिन्दी में अनेक शब्द ऐसे आ गए हैं जो विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं। अब वे शब्द अपने मूल रूप में हिंदी में प्रयुक्त होते हैं।
जैसे- पेंसिल, आलू, लीची, स्टेशन, जनवरी, मई, अगस्त आदि।
4. प्रयोग के आधार पर शब्द-भेद
प्रयोग के आधार पर शब्द प्रकार के होते हैं ।- (क) विकारी शब्द
- (ख) अविकारी शब्द
जिन शब्दों में वाक्य में प्रयोग करते समय व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर परिवर्तन होता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। विकारी शब्दों के रूप लिंग, वचन तथा कारक के आधार पर बदल जाते हैं।
विकारी शब्दों के निम्नलिखित चार भेद हैं। –
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
अविकारी शब्दों में प्रयोग के कारण कोई परिवर्तन नहीं आता है, इनका रूप सदा एक सा रहता है। इसलिए इनको अव्यय भी कहा जाता है; जैसे—यहाँ, वहाँ, प्रतिदिन, परंतु, लेकिन आदि ।
अविकारी शब्दों में लिग, वचन और कारक के कारण भी कोई परिवर्तन नहीं आता है।
अविकारी शब्दों के चार भेद होते हैं। –
- क्रिया विशेषण
- संबंधबोधक
- समुच्चयबोधक
- विस्मयादिबोधक
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