वायुमंडल किसे कहते हैं? (विस्तारपूर्वक समझिये ) । Atmosphere In Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे ब्लॉक में आपका स्वागत है, आज हम वायुमंडल किसे कहते हैं? । Atmosphere In Hindi, वायुमण्डल की संरचना और वायुमण्डल का संघटन के बारे में जानेंगे, तो चलिए शुरू करते है

वायुमंडल । Atmosphere In Hindi

वायुमंडल किसे कहते हैं? । Atmosphere In Hindi

विभिन्न गैसों का विशाल आवरण, जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है, वायुमण्डल कहलाता है। पर्यावरण के भौतिक अंगों में वायुमण्डल सबसे अधिक गतिशील है। इसमें क्षण-प्रतिक्षण परिवर्तन होते रहते हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य-ऊर्जा हर स्थान पर हर समय एक जैसी प्राप्त नहीं होती। ऊर्जा की इस भिन्नता के कारण वायुमण्डल में गतिशीलता बनी रहती है। तापमान और अन्य भौतिक दशाएँ जैसे-वायुदाब, वर्षा आदि रात और दिन में तो बदलती ही हैं. अपितु उनमें कुछ घण्टों की छोटी अवधि में भी परिवर्तन हो जाता है। कभी गर्मियों में तीसरे पहर अचानक तूफान आ जाने से भारी वर्षा हो जाती है और तापमान में कमी आ जाती है; कभी मन्द और कभी तेज चलती पवनों तथा आकाश में तैरते बादलों को तो हम देखते ही रहते हैं। तूफान वृक्षों को जड़ से उखाड़ देते हैं और भवनों को नष्ट कर देते हैं। इन सब कार्यों और गतिविधियों का आधार ऊर्जा है। वायुमण्डल में होने वाले सभी प्रकार के परिसंचरणों के लिए आवश्यक ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है।


वायुमण्डल की संरचना । Atmosphere Structure in Hindi

विभिन्न गैसों का विशाल आवरण, जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है, वायुमण्डल कहलाता है। यह अनेक गैसों का सम्मिश्रण है। इसमें नाइट्रोजन (नत्रजन), ऑक्सीजन (ओषजन या प्राण वायु), कार्बन डाइऑक्साइड, ऑर्गन, हाइड्रोजन, हीलियम, नियॉन, क्रिप्टॉन, जेनॉन, ओजोन आदि गैसें पायी जाती हैं, किन्तु धरातल के समीप की वायु में (10) किमी की ऊँचाई तक) ऑक्सीजन (21%) और नाइटोजन (78%) गैसें ही मुख्य हैं। वायुमण्डल का 99 प्रतिशत भाग इन्हीं दो गैसों से निर्मित है। शेष 1 प्रतिशत भाग में अन्य सभी गैसें सम्मिलित हैं। वायु में गैसों के साथ अशुद्धियों के रूप में गन्धक-शोरे का तेजाब तथा अन्य कई पदार्थ सूक्ष्म मात्रा में मिलते हैं। इन गैसों के अतिरिक्त वायु की निचली परतों में थोड़ी मात्रा में धूल के कण व जल-वाष्प भी पाये जाते हैं। अधिक ऊँचाई पर तो वायु हल्की या विरल होकर गुच्छों के रूप में बिखरी हुई मिलती है।

10 किमी के उपरान्त भारी गैसों की मात्रा विभिन्न ऊँचाई पर कम और हल्की गैसों की मात्रा बढ़ती जाती है। अतः सामान्यतः भारी गैसें वायुमण्डल के निचले स्तरों में और हल्की गैसें ऊपरी स्तरों में मिलती हैं। उदाहरणार्थ, कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस वायुमण्डल में 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक और हाइड्रोजन 125 किलोमीटर की ऊँचाई तक मिलती है। इसके बाद 125 किलोमीटर से भी अधिक ऊँचाई पर, हीलियम, नियॉन, क्रिप्टॉन एवं ज़ेनॉन जैसी हल्की गैसें पायी जाती हैं।

वायुमण्डल का विस्तार एवं संघटन

द्वितीय विश्व युद्ध तक आम धारणा रही कि वायुमण्डल की अधिकतम ऊँचाई 30 किमी. है। आधुनिक अन्तरिक्ष युग में वायुमण्डल का विस्तार लगभग 10,000 किमी. माना गया है। वायुमण्डल का गठन अनेक प्रकार की गैसों, जलवाष्प तथा ठोस कर्णी से हुआ है।

1. जलवाष्प

यह वायुमण्डल का सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्त्व है। धरातल के निकट इसकी मात्रा 1% से 4% तक होती है। वायु को जलवाष्प की प्राप्ति झीलों, नदियों, सागरों तथा वनस्पतियों के भीतर वाष्पीकरण की क्रिया से होती है। जलवाष्प की मात्रा पर तापमान का बहुत प्रभाव पड़ता है। विषुवत रेखा पर अधिक वर्षा एवं उच्च तापमान मेघों के कारण अधिक जलवाष्प पाया जाता है। मरुस्थलों में वर्षा एवं जल के अभाव के कारण जलवाष्प शून्यप्राय होता है। अधिक तापमान होने पर वाष्पीकरण की क्रिया अधिक होती है।

2. धूल कण

वायुमण्डल के निचले भाग में अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ पायी जाती हैं। इनमें धूल कण मुख्य हैं। इनकी उत्पत्ति मरुस्थलों की रेत उड़ने, ज्वालामुखी उद्गार तथा उल्काओं के गिरने से होती है। औद्योगिक क्षेत्रों के वायुमण्डल में धुएँ के कण अधिक पाए जाते हैं। समुद्रों व झीलों के ऊपर रासायनिक लवण पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक सूक्ष्म जीवाणु भी वायुमण्डल में मौजूद रहते हैं। ये सभी अशुद्धियाँ अधिकतर वायुमण्डल के निचले भाग में रहती हैं। सूर्यातप का अवशोषण, परावर्तन, तथा प्रकीर्णन करने में इन कणों का विशेष योग होता है। ये कण आर्द्रताग्राही नाभिक भी होते हैं। इनके चारों ओर जलवाष्प कण जमा होते हैं तथा कुहरा, मेघ आदि बनते हैं। समुद्रों के ऊपर आर्द्रताग्राही नाभिकों की अधिकता रहती है। इन कणों से वायुमण्डल की पारदर्शिता भी प्रभावित होती है। धूल कणों के ही कारण सूर्योदय, सूर्यास्त, मेघ तथा इन्द्रधनुष के विभिन्न रंग बिखरते हैं।

3. गैसें

वायुमण्डल अनेक गैसों का यान्त्रिक सम्मिश्रण है। इसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, आर्गन, हाइड्रोजन, हीलियम, निऑन, क्रिप्टन, जेनॉन तथा ओजोन गैसें पाई जाती हैं। वायुमण्डल का लगभग 99 प्रतिशत भाग केवल नाइट्रोजन (लगभग) 78.8%) व ऑक्सीजन (20.95%) गैसों से निर्मित है। शेष 1% भाग में सभी गैसें सम्मिलित हैं। गैसों के साथ-साथ वायुमण्डल में जलवाष्प तथा धूल कणों का भी मिश्रण होता है। भूतल से 5 किमी. (ऊँचाई) तक वायुमण्डल में समस्त वायु का 90 प्रतिशत भाग रहता हैं।

वायुमण्डल का संघटन। Atmosphere Composition in Hindi

वायुमण्डल में विद्यमान गैसों और उनकी मात्रा का विवरण निम्नलिखित है –

वायुमण्डल की सबसे विचित्र बात यह है कि वायु की अनुभूति हमें तभी होती है, जब उसमें क्षैतिज प्रवाह (Horizontal flow) उत्पन्न होता है। गतिशील वायु को पवन कहा जाता है। यदि स्थल एवं जल की भाँति वायु सघन नहीं होती है तथापि इसमें भार होता है। वायु का धरातल पर जो दबाव पड़ता है, उसे वायुदाब (Air pressure) कहा जाता है। यह जलवायु का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। भूतल से ऊँचाई बढ़ने के साथ सम वायु का घनत्व भी कम होता जाता है। स्वभावतः धरातल के निकट की वायु भारी तथा दूर हटने पर वायु की परतें हल्की होती जाती हैं। तापमान की विशेषताओं के आधार पर वायुमण्डल को पाँच प्रमुख परतों में विभाजित किया गया है।
  • 1. क्षोभमण्डल (Troposphere)
  • 2. समतापमण्डल (Stratosphere)
  • 3. मध्यमण्डल (Mesosphere)
  • 4. आयनमण्डल (Ionosphere)
  • 5. बहिर्मण्डल (Exosphere)

1. क्षोभ मण्डल । Troposphere in Hindi

वायुमण्डल के सबसे निचले भाग को, जिसकी ऊँचाई धरातल से औसतन 12 किमी. होती है, उसे परिवर्तन मण्डल या क्षोभमण्डल कहते है क्योंकि धरातल से ऊपर जाने पर प्रति एक हजार मीटर पर 6.5°C की दर से तापमान कम हो जाता है। परिवर्तन मण्डल में ऋतुवत् परिवर्तन हुआ करता है। जाड़े की अपेक्षा गर्मी में इसकी सीमा ऊँची हो जाती है। इसकी ऊँचाई पर अक्षांशों का भी प्रभाव होता है। विषुवत रेखा (16 किमी.) से ध्रुवों (8 किमी.) की ओर जाने पर ऊँचाई घटती जाती है। धरातलीय जीवों का सम्बन्ध इसी मण्डल से रहता है। इसी के अन्तर्गत भारी गैसों, जलवाष्प तथा धूल कणों का अधिकतम भाग रहता है। इस भाग के गर्म और शीतल होने का कार्य विकिरण, संचालन तथा संवहन द्वारा होता है। संवहनीय तरंगों तथा विक्षुब्ध संवहन के कारण इस मण्डल को क्रमश: संवहनीय मण्डल तथा विक्षोभमण्डल कहा जाता है। मौसम की प्राय: सभी घटनाएँ-कुहरा, बादल, ओला, तुषार, आँधी-तूफान, मेघ गर्जन, विद्युत प्रकाश आदि इसी भाग में घटित होती हैं। परिवर्तन मण्डल तथा समताप मण्डल के बीच डेढ़ किमी. मोटी परत को क्षोभसीमा (Tropopause) कहते हैं। इस भाग में सभी प्रकार के मौसमी परिवर्तन स्थगित हो जाते हैं। वास्तव में यह मण्डल परिवर्तन तथा समताप मण्डलों का विभाजक होता है। विषुवत रेखा पर ट्रोपोपॉज की ऊँचाई अधिकतम (16 से 18 किमी.) तथा ध्रुवों पर न्यूनतम (8 से 10 किमी.) होती है। ट्रोपोपॉज की निचली सीमा पर जैट पवनें चलती हैं।


2. समताप मण्डल । Stratosphere in Hindi

क्षोभसीमा के ऊपर लगभग 50 किमी. की ऊँचाई तक एक ऐसा क्षेत्र विस्तृत है जहाँ तापमान स्थिर रहता हैं। इस मण्डल में संवहनिक धाराएँ, मेघ तथा आर्द्रता लगभग शून्य रहती हैं। ओजोन गैस की अधिकता के कारण पराबैंगनी विकिरण का अवशोषण अधिक होता है। इसमें निहित ओजोन गैस (O2) के साथ UV किरणें ( O3) का आणुविक विघटन करती है जिससे इसकी शक्ति समाप्त हो जाती है। (O UV 0 +0) धरातल से पहुँचने वाली ऑक्सीजन (O) परमाणु ऑक्सीजन (O) को पुनः मिलाती है जिससे O बनती है। यह प्रक्रिया निरन्तर ओजोन मण्डल में चलती है जिससे UV किरणों से पृथ्वी के जैव जगत की रक्षा होती है। ओजोन गैस के कारण समताप मण्डल के इस भाग को ओजोन मण्डल कहते है। वायुमण्डल का अधिकांश ओजोन (22 किमी की ऊँचाई पर सबसे अधिक सघन) समताप मण्डल में ही पाया जाता है। समताप मण्डल में तापक्रम ट्रोपोपॉज के पास 60°C से बढ़ता हुआ स्ट्रेटोपॉज तक 0°C हो जाता है।

3. मध्य मण्डल । Mesosphere in Hindi

50 किमी. से 80 किमी. की ऊँचाई वाले वायुमण्डलीय भाग को मध्य मण्डल कहा जाता है जिसमें तापमान में ऊँचाई के साथ-साथ ह्रास होता जाता है। वास्तव में स्ट्रैटोपॉज (50 किमी.) पर तापमान की वृद्धि समाप्त हो जाती है तथा मध्य मण्डल में 80 किमी. की ऊँचाई पर तापमान 80° सें ग्रे. (-120°फा.) हो जाता है। इस न्यूनतम तापमान की सीमा को मेसोपॉज कहते हैं, जिसके ऊपर जाने पर तापमान में पुनः वृद्धि होती जाती है।

4. ताप मण्डल । Thermosphere in Hindi

मध्यमण्डल के ऊपर वाला वायुमण्डलीय भाग तापमण्डल कहलाता है। इसमें ऊँचाई के साथ तीव्र गति से तापमान बढ़ता जाता है। अनुमानत: इसकी ऊपरी सीमा पर तापमान – 1700° सें ग्रे. हो जाता है। इस उच्च तापमान की पृथ्वी तल पर थर्मामीटर द्वारा अंकित तापमान से तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इस ऊँचाई पर गैस इतनी विरल हो जाती है कि सामान्य थर्मामीटर इस क्षेत्र के तापमान का अंकन नहीं कर पाता है। यही कारण है कि इतने उच्च तापमान के होते हुए भी यदि इस भाग में हाथ फैलाया जाए तो गर्मी नहीं महसूस हो पाती है क्योंकि विरल गैस बहुत ही कम उष्मा को रख पाती है।

5. आयन मण्डल । Ionosphere in Hindi

वायुमण्डल का यह भाग 80 से 640 किमी. तक विस्तृत है। इस भाग में स्वतन्त्र आयन की संख्या प्रभूत मात्रा में पायी जाती है । फलस्वरूप इस क्षेत्र में विस्मयकारी विद्युतकीय एवं चुम्बकीय घटनाएँ घटित होती हैं। रेडियो तरंगों की सहायता से इसका ज्ञान प्राप्त किया जा रहा है। आयनमण्डल कई तहों में बँटा हुआ है। इस मण्डल की सबसे नीचे की तह ‘डी परत’ कहलाती है। वस्तुतः यह ऊपरी समताप मण्डल में पाई जाती है। ये केवल लम्बी रेडियो तरंगों को परिवर्तित करती है। आयन मण्डल की अन्य दो महत्त्वपूर्ण तहें E, और E₁ IE, हैं। ये 80 किमी. से लेकर 140 किमी. की ऊँचाई तक मिलती हैं। रेडियो की मीडियम तरंगें इन्हीं तहों से परिवर्तित होती हैं। इसी परत में उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश देखे जाते है।

6. बाह्य मण्डल या चुम्बकीय मण्डल । Exosphere in Hindi

विरल गैसों से निर्मित इस परत में ऑक्सीजन के न्यूट्रल अणु, आयनीकृत ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के अणु भारी मात्रा में पाए जाते हैं। इस परत में गैस के सामान्य नियम लागू नहीं होते। गुरुत्वाकर्षण के क्षीण होने के कारण हाइड्रोजन तथा हीलियम के सूक्ष्म कण शून्य में विसरित हो जाते हैं। 10,000 किमी. से ऊपर केवल इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन पाए जाते हैं जो क्रमश: ऋणात्मक तथा धनात्मक विद्युत आवेश से पूर्ण होते हैं। इस प्रदेश को चुम्बकीय/मण्डल कहते हैं।

तो दोस्तों आज हमने आपको वायुमंडल किसे कहते हैं? । Atmosphere In Hindi और वायुमण्डल की संरचना, वायुमण्डल का संघटन इन सबके बारे में बताया है आशा करते है की आपको हमारा ये आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों आप अपनी राय कमेंट के माध्य्म से दे सकते है, धन्यवाद
 
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