सिक्ख गुरुओं का इतिहास । Sikh Guru History in Hindi

हेलो दोस्तों, हमारे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। हमारे इस ब्लॉग में आपको सिक्ख गुरुओं का इतिहास । Sikh Guru History in Hindi के साथ – साथ गुरु नानक, गुरु अंगद, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदेव, गुरु हरगोविन्द, गुरु हरराय आदि के इतिहास बारे में बताएंगे, तो दोस्तों एक एक करके इन सबके बारे में जानते है।

सिक्ख गुरु । Sikh Guru History in Hindi

गुरु नानक (1469 – 1538 ई.)

सिक्ख गुरु । Sikh Guru History in Hindi

गुरु नानक सिक्ख मत के प्रवर्त्तक कहलाते थे। गुरु नानक का जन्म 1469 ई. में पश्चिमी पंजाब के तलवण्डी नामक गांव में हुआ था और इनकी माता का नाम तृप्ता और पिताजी का नाम कालू मेहता था। 7 वर्ष की आयु में गुरु नानक ने अपने गाँव की पाठशाला में दाखिला लिया। यह प्रारम्भ से ही ईश्वर के ध्यान में मग्न रहने के कारण हिन्दू या मुसलमान शिक्षक उन्हें कुछ अधिक नहीं पढ़ा नहीं पाए और व्यापार करने और धन प्राप्त करने की बजाए वह निर्धनों में धन का वितरण कर देते थे और उनके पिताजी ने अपने पुत्र की परलोक संबंधी प्रवृत्ति को चेंज करने लिए सुलक्खनी नाम की कन्या से उनका विवाह कर दिया। गुरु नानक दो पुत्र भी हुए लेकिन विवाह से भी उनके मन पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और वह 1499 ई. में उन्होंने सांसारिक मोह माया को छोड़कर संन्यास लेने की ठानी। धर्मप्रचार के लिए इन्होंने निम्न संगतों की स्थापना की और उन्हें बई नदी के किनारे ज्ञान की प्राप्त हुयी।


गुरु नानक के उपदेशः लगभग 30 वर्ष तक नानक ज्ञान प्राप्त करते हुए देश भर का भ्रमण करते रहे और नानक का मुख्य उपदेश यह था कि वह एक सच्चे प्रभु में विश्वास करे। नानक के अनुसार ‘प्रभु’ एक है। गुरु नानक प्रभु के ‘एकत्व’ पर जोर देते थे और उनके अनुसार प्रभु के समान कोई नहीं हो सकता। नानक जी ने प्रभु को ‘प्रेमिका’ कहा । उनके मत में ईश्वर सबके हृदय में विराजमान है और वे ‘सतनाम’ की पूजा पर जोर दिया करते थे।

गुरु अंगद (1538-1552 ई.)

गुरु अंगद (1538-1552 ई.)

नानक जी ने गुरु अंगद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, गुरु अंगद ने ‘गुरुमुखी’ लिपि का जन साधारण के मध्य प्रचार किया और कहा जाता है कि हुमायूं गुरु अंगद से ही आशीर्वाद लेने आया था। उन्होंने लंगर व्यवस्था को प्रमुख रूप से स्थायी बनाया। उन्होंने उदासियों को सिख मत से निकाल दिया था।

गुरु अमरदास (1552-1574 ई.)

गुरु अमरदास (1552-1574 ई.)

गुरु अंगद का उत्तराधिकारी गुरु अमरदास हुआ। गुरु अमरदास ने गोइन्दवाल में एक बावड़ी खुदवाई थी। यह बावड़ी बाद में सिखों का मुख्य तीर्थ बन गया था और उन्होंने लंगर में सुधार किए और इसे लोकप्रिय भी बनाया। उन्होंने अपने धार्मिक साम्राज्य को 22 मंत्रियों अथवा भागों में बांटा था और उन्होंने सती प्रथा को वर्जित किया और अपने अनुयायियों को शराब पीने से मना भी किया।

गुरु रामदास (1575-1581 ई.)

गुरु रामदास (1575-1581 ई.)

गुरु अमरदास जी के दामाद रामदास जी उनके उत्तराधिकारी बने। उसकी अकबर से बड़ी ही घनिष्ठ मित्रता थी और अकबर ने उन्हें आधुनिक अमृतसर के स्थान पर बहुत सस्ते और कम दाम पर 500 बीघा भूमि भी प्रदान की, इस स्थान पर गुरु रामदास ने एक नया नगर ‘चकगुरु’ या रामदासपुर नाम से एक नगर बसाया और यह नगर कालान्तर के अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ था और उन्होंने दो तालाबों-अमृतसर और संतोषसर की खुदाई प्रारम्भ करवाई। गुरु रामदास के काल में सिक्ख पंथ ने काफी उन्नति की और इनके काल से ही गुरु का पद भी पैतृक हो गया था।


गुरु अर्जुनदेव (1581-1606 ई.)

गुरु अर्जुनदेव (1581-1606 ई.)

गुरु अर्जुनदेव लगभग 25 वर्ष तक सिक्ख पंथ के गुरु रहे और इन्होने अमृतसर तालाब की खुदाई का कार्य पूरा किया तथा सूफी संत मियां मीर द्वारा अमृतसर में हरमिंदर साहब की नींव भी डलवाई और गुरु अर्जुनदेव ने ही तरणतारण और करतारपुर नाम के 2 नगर भी बसाए । गुरु अर्जुनदेव का मुख्य कार्य सिखों की धार्मिक पुस्तक ‘आदि ग्रंथ’ को पूरा करवाना था और इस पुस्तक में सिखों के 5 गुरुओं और 18 भक्तों तथा कबीर, फरीद, नामदेव और रैदास इत्यादि के उपदेशों का संग्रह भी था, ‘ग्रंथ साहब’ सिक्ख पंथ को महत्वपूर्ण पुस्तक थी

गुरु अर्जुनदेव ने ही मसनद प्रथा का प्रारंभ किया और इस प्रथा के अनुसार सिक्को को अपनी आय का 10 वा भाग गुरु को देना पड़ता था और अकबर और गुरु अर्जुनदेव के संबंध भी अचे थे परंतु जहांगीर के शासन काल में इनमें कटुरता आ गई और इस कारण ही 1606 ई. में गुरु की हत्या करवा दी गई थी।

गुरु हरगोविन्द (1606-1645 ई.)

गुरु हरगोविन्द (1606-1645 ई.)

गुरु अर्जुन देव का पुत्र हरगोविन्द उनका उत्तराधिकारी बना और प्रारम्भ से ही वह मुगलों का बहुत ही कट्टर शत्रु था। इसने अपने अनुयायियों को शस्त्र रखने और मुगलों के अत्याचारों के विरुद्ध युद्ध करने को कहा था और स्वयं ‘सच्चा बादशाह’ की उपाधि धारण कर सिक्खो को एक सैनिक सम्प्रदाय बना दिया था और इन्होने राजोचित चिह्न छत्र, शस्त्र और बाज धारण किए तथा सैनिक पोशाक पहननी आरंभ कर दी। यह दो तलवारें रखा करते थे और जिनमें से एक उनकी धार्मिक सत्ता और दूसरी उनकी राजसत्ता की प्रतीक थी,इन्होने लौहगढ़ की मोर्चा बंदी की और ‘अकाल तख्त’ या ‘प्रभु का सिंहासन की स्थापना भी की।

गुरु हरराय (1645-1661 ई.)

गुरु हरराय (1645-1661 ई.)

गुरु हरगोविन्द जी का उत्तराधिकारी उनका पौत्र हर राय बना और गुरु हरराय ने शांतिपूर्ण प्रचार की नीति अपनाई थी।

गुरु हरकिशन

गुरु तेगबहादुर

गुरु गोविन्द सिंह

बंदा बहादुर

सिक्ख गुरुओं का इतिहास । Sikh Guru History in Hindi से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य –

1. गुरु अमरदास जी ने अपने शिष्यों को पारिवारिक संत बनने का उपदेश भी दिए थे। गुरु अमरदास सिख धर्म अपनाने से पूर्व में वैष्णव थे।
2. गुरु अमरदास जी ने अपने धार्मिक सम्प्रदाय को 22 भज्जियों में बांटा था।
3. गुरू अर्जुन देव जी ने पहली बार आध्यात्मिक टैक्स लगाया था और इन्होंने करतारपुर तथा तरनतारण नामक 2 नगर भी बसाये थे।
4. गुरू हरगोविन्द जी ने सिक्खो का सैनिकीकरण भी किया था और इन्होंने ही अकाल तख्त की स्थापना भी की थी।
5. गुरू तेगबहादुर जी के सम्मान में असम के एक शासक ने ‘गुरू का टीला’ बनवाया था और इनकी याद में दिल्ली में शीशगंज गुरू द्वारा का निर्माण करवाया गया था।

सिक्ख गुरुओं का इतिहास । Sikh Guru History in Hindi से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य –

1. – गुरू गोविंद सिंह जी ने ही खालसा की स्थापना की और उन्होंने पाहुल नामक त्योहार मनाना प्रारंभ भी किया, जिसमें घूरे के सहारे पानी को उछाला जाता था तथा शपथ भी ली जाती थी।
2. – गुरू गोबिंद सिंह जी हिन्दी, फारसी तथा संस्कृत भाषा के विद्वान थे, और इन्होंने जप जी साहब, चंडी चरितर, उत्कल विलास, कृष्ण अवतार, चण्डी दीवार, परत्यान चरितर, अकल उस्ताद तथा विचितर नाटक आदि की रचना भी की थी और इनमें विचित्र नाटक इनकी आत्मकथा है।

दोस्तों, आज हमने आपको सिक्ख गुरुओं का इतिहास । Sikh Guru History in Hindi के साथ – साथ गुरु नानक, गुरु अंगद, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदेव, गुरु हरगोविन्द, गुरु हरराय आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके अवश्य बताये, धन्यवाद्.
 
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