Sale (विक्रय) of Immovable Property – सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम (Transfer of Property Act) 1882 की धारा 54 से 57

Sale (विक्रय) of Immovable Property – सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम (Transfer of Property Act) 1882 की धारा 54 से 57


प्रावधान​

सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम (Transfer of Property Act) 1882 की धारा 54 से 57 तक में विक्रय (Sale) के बारे में बताया गया है। परिभाषा:- धारा 54 विक्रय (Sale) को परिभाषित करती है, जिसके अनुसार किसी अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण जिसके बदले में एक ऐसी कीमत जो दी जा चुकी हो या दी जानी है या जिसके दिये जाने का वचन किया गया हो या जिसका कोई भाग दे दिया गया हो या और किसी भाग के देने का वचन किया गया हो विक्रय कहलायेगा।


विक्रय कैसे होगा?​

धारा ५४ के भाग २ में विक्रय के ढंग तथा भाग ३ में विक्रय एवं विक्रय संविदा का भेद स्पष्ट किया गया है। धारा ५४ में निहित सिद्धान्त के दो हिस्से हैं। एक हिस्सा सारवान विधि (Substantive Law) से सम्बन्धित है तथा दूसरा हिस्सा प्रक्रिया विधि (Procedural Law) से सम्बन्धित है। अधिनियम की धारा 54 में विक्रय कैसे किया जाता है इसका तरीका बताया गया है जिसके अंतर्गत जहाँ एक ऐसा अंतरण 100 रूपये या अधिक के मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति की दशा में या किसी उत्तर-भोग या अन्य अमूर्त वस्तु की दशा में विक्रय केवल रजिस्ट्रीकृत लिखित द्वारा किया जाता है। अचल संपत्ति की विक्रय संविदा वह संविदा है जिसके अंतर्गत उस अचल संपत्ति का विक्रय पक्षकारो के बीच हुए शर्तो पर होगा।

ध्यान दें​

विक्रय में अन्तरण विक्रेता की इच्छा से होता है, अतएव अनिवार्य विक्रय जैसे राजस्व विक्रेता या नीलामी आदि धारा ५४ के अन्तर्गत नहीं आयेगी। फरार बनाम फरार लिमिटेड १८८९ के मामले में किसी व्यक्ति ने अपनी कोई सम्पत्ति किसी ऐसे निगम को बेच दी, जिसका वह भी एक भागीदार था। यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या यह विक्रय वैध था? सोलोमन बनाम सोलोमन लिमिटेड १८९७ का हवाला देते हुए विक्रय को वैध ठहराया गया, क्योंकि फरार बनाम फरार लिमिटेड के अस्तित्व बिल्कुल स्वतन्त्र एवं पृथक-पृथक थे।

विक्रय के आवश्यक तत्व​

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय के आवश्यक तत्व। संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय के आवश्यक तत्वों का उल्लेख किया गया है जो की निम्न है:-
  1. पक्षकार (क्रेता व विक्रेता)
  2. विषय वस्तु
  3. प्रतिफल
  4. स्वामित्व का अंतरण

1. पक्षकार​

विक्रय का पहला आवश्यक तत्व उसके पक्षकार होते है क्योकि प्रत्येक विक्रय तभी पूर्ण होगा जब उसमे दो पक्षकार होंगे जिसमे एक पक्ष क्रेता व दूसरा पक्ष विक्रेता। क्रेता: क्रेता वह व्यक्ति होता है, जो किसी वस्तु या संपत्ति की उसकी निश्चित कीमत देकर कर खरीदता है। वस्तु या संपत्ति की कीमत देने के बाद वह उस वस्तु व संपत्ति का स्वामी बन जाता है और उस वस्तु व संपत्ति के सभी अधिकार उसे प्राप्त हो जाते है। विक्रेता: विक्रेता वह व्यक्ति होता है जो किसी वस्तु या संपत्ति को जो उसके अधिकार व स्वामित्व में होती है उसको बेचता है और उसके बदले में प्रतिफल के रूप में धन प्राप्त करता है। विक्रेता जिस वस्तु या संपत्ति का अंतरण या बिक्री करेगा या करता है उस वस्तु व संपत्ति में उसका विधक अधिकार होना चाहिए और विक्रय संविदा करने में सक्षम होना चाहिए।

2. विक्रय की विषय वस्तु​

विक्रय का दूसरा आवश्यक तत्व विक्रय की विषय वस्तु जिसका विक्रय या अंतरण किया जा सके। ऐसी अचल संपत्ति जो पहचाने जाने योग्य हो जिसको देखकर यह मालूम किया जा सके कि किस अचल संपत्ति का विक्रय होना है। किसी अचल संपत्ति की पहचान करने के कई तरीके है उनमे से एक संपत्ति की चौहद्दी से उस अचल संपत्ति को पहचानना आसान होगा। यहाँ चौहद्दी से आशय उस संपत्ति की दिशाओं से है जैसे: उत्तर, दक्षिण, पूरब , पश्चिम दिशा इन चारो दिशा में संपत्ति के आस पास क्या है।


3. प्रतिफल​

विक्रय का तीसरा आवश्यक तत्व प्रतिफल (कीमत) है। अचल संपत्ति के विक्रय होने से पहले मूल्य का निर्धारण होना अति आवश्यक है। कीमत का संकीर्ण अर्थ केवल प्रचलित मुद्रा से है। कीमत की अनुपस्थिति में कोई भी संव्यवहार विक्रय नहीं हो सकता। कीमत का तत्व विक्रय को एक तरफ तो दान जैसे अन्तरणों से अलग करता है, ठीक उसी तरह दूसरी तरफ विनिमय या अदला बदली जैसे विशेष अन्तरणों से भी विक्रय को भिन्न रखता है।

4. स्वामित्व का अंतरण​

विक्रय का चौथा आवश्यक तत्व अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण जिसके अंतर्गत विक्रेता द्वारा क्रेता के पक्ष में अचल संपत्ति का अंतरण कर दिया जाये। अधिनियम की धारा 54 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि विक्रय कैसे किया जाता है जिसमे संपत्ति के अंतरण का जिक्र किया गया है जिसके तहत संपत्ति का अंतरण दो तरह से किया जा सकता है।
  1. पंजीकृत लिखित विक्रय विलेख
  2. संपत्ति के अंतरण द्वारा।

1. पंजीकृत लिखित विक्रय विलेख​

ऐसा अंतरण जहाँ 100 रूपये या उससे अधिक के मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति की दशा में या किसी उत्तर-भोग या अन्य अमूर्त वस्तु की दशा में विक्रय केवल पंजीकृत लिखत द्वारा ही किया जायेगा। अचल संपत्ति के विक्रय पूर्ण करने के लिए उसका पंजीकरण होना अति आवश्यक है। मूर्त संपत्ति से आशय उस संपत्ति से जिसका भौतिक रूप से अंतरण संभव हो जैसे :-मोटर साइकिल, कार, जीप, स्कूटर, साइकिल आदि।

2. संपत्ति के अंतरण द्वारा​

जहाँ विक्रय की गयी मूर्त अचल संपत्ति का मूल्य 100 रूपये से कम उस दशा में ऐसा अंतरण या तो पंजीकृत लिखित द्वारा किया जायेगा या संपत्ति के परिदान द्वारा किया जायेगा। मूर्त अचल सम्पति का परिदान तब हो जाता है जब विक्रेता द्वारा क्रेता या क्रेता द्वारा बताये गए व्यक्ति को उस संपत्ति पर कब्ज़ा करा देता है।

ध्यान दें: स्वामित्व का अन्तरण एवं कीमत की अदायगी या अदायगी का करार। उपरोक्त दोनों में एक की भी अनुपस्थिति होने पर किया गया संव्यवहार विक्रय नहीं होगा। विक्रय में किसी हित का अन्तरण न होकर स्वामित्व का अन्तरण होता है।विक्रय के मामलों में स्वामित्व का अन्तरण बैनामे की रजिस्ट्री होते ही क्रेता को हो जाता है। दाखिल खारिज व अन्य कार्यवाहियाँ स्वामित्व के बाकी अन्तर की तिथि का निर्धारण नहीं करती।

क्रेता और विक्रेता के अधिकार और दायित्व (Rights and liabilities of buyer and seller) धारा 55​

धारा ५५ का आधार प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) है जिसके अनुसार ज्योंहि दो पक्षों के बीच क्रेता एवं विक्रेता के सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक को दूसरे के हितों की रक्षा करना चाहिये। धारा ५५ में कुल ६ पैराग्राफ हैं, जिनमें विक्रेता एवं क्रेता के दायित्व एवं अधिकारों को बताया गया है। पहले तीन पैराग्राफ विक्रेता के दायित्व से सम्बन्धित है। धारा का चौथा पैराग्राफ विक्रेता के अधिकार से सम्बन्धित है। धारा का पाँचवा पैराग्राफ क्रेता के दायित्व एवं छठा पैराग्राफ क्रेता के अधिकारों से सम्बन्धित है। अधिनियम की धारा ५५ केवल विक्रय के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह विक्रय के लिए किये गये करारों में भी लागू होता है।

विक्रेता के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह बेची जाने वाली सम्पत्ति के दोषों को क्रेता को स्पष्ट रूप से बता दे। यह विक्रेता का दायित्व है। सम्पत्ति में दो प्रकार के दोष हो सकते हैं- (i) प्रत्यक्ष दोष (ii) अप्रत्यक्ष दोष।

धारा ५५ का उद्देश्य विक्रेता के कपटपूर्ण आचरण से क्रेता को बचाना है। लेकिन यदि क्रेता को सारवान दोष मालूम हैं तो विक्रेता पर ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं है कि जानी हुई बात को क्रेता को फिर से बतावे।

यदि क्रेता को सम्पत्ति से सम्बन्धित दोष का पता लगा लेना आसान है, तो अधिनियम की धारा ५५ लागू नहीं होगी।

विक्रेता के दायित्व​

(A) विक्रय के पूर्व विक्रेता के दायित्व​

  1. सारवान दोषों को बताना,
  2. विवाद से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर देना,
  3. स्वत्व विलेखों को पेश करना,
  4. सम्पत्ति की देखभाल,
  5. अन्तरण विलेख पर हस्ताक्षर करना,
  6. वर्तमान विल्लंगमों का उन्मोचन।

(B) विक्रय के बाद विक्रेता के दायित्व​

  1. कब्जा देना,
  2. स्वत्व का विवक्षित करार,
  3. स्वत्व विलेखों को कीमत पाने पर देना।

विक्रेता के अधिकार​

  1. विक्रय के पूर्व लगान व किराया लेते रहना,
  2. विक्रय के बाद न पायी गयी कीमत पर चार्ज प्राप्त करना।

क्रेता के दायित्व​

  1. कीमत अदा करना,
  2. सम्पत्ति पर नुकसानों को सहना,
  3. बिकने वाली सम्पत्ति में उन तथ्यों को बताना जो उसकी
  4. कीमत बढ़ा सकते हों।

क्रेता के अधिकार​

  1. अभिवृद्धियों को पाने का हक,
  2. अदा की गयी क्रय राशि पर चार्ज।

पश्चात क्रेता द्वारा क्रम बन्धन (Marshalling by subsequent purchaser) धारा ५६​

धारा ५६ के अनुसार किसी प्रतिकूल संविदा की अनुपस्थिति में यदि दो अचल सम्पत्तियाँ बन्धक के रूप में रखी गयी हैं और उनमें से एक का विक्रय कर दिया जाता है तथा विलेख में इसका उल्लेख कर दिया जाता है, तथा दोनों पक्षकार इस पर राजी होते है। यदि बन्धक ग्रहीता को बन्धक सम्पत्ति से अधिक कीमत का भुगतान कर बढ़ जावे जो कि क्रेता के पास शेष रही है तो उससे अधिक का भुगतान करना क्रेता का दायित्व होगा।

विक्रय द्वारा विल्लंगमों का उन्मोचन (Provision by Court for incumbrances, and sale freed therefrom) धारा ५७​

धारा ५७ के अनुसार विक्रय के मामले में न्यायालय को शक्ति है कि, विल्लंगम सम्पत्ति विवेकानुसार एक

सम्पत्ति का दूसरी सम्पत्ति की प्रत्याभूति के रूप में अन्तरण कर सकता है। डिक्री में यह लागू नहीं होता है। यदि बन्धक ग्रहीता बन्धक राशि लेने से इनकार कर देता है तो वह राशि न्यायालय में जमा करायी जा सकती है।

 
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