चोरी (Theft) – IPC Sections 378-382 – Indian Penal Code 1860

चोरी (Theft) – IPC Sections 378-382 – Indian Penal Code 1860


भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 378 में चोरी को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार “जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से, उस व्यक्ति की सम्मति के बिना, कोई चल (जंगम) सम्पत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए वह सम्पत्ति लेने के लिए हटाता है, वह चोरी करता है, यह कहा जाता है”।

चोरी के तीन आवश्यक तत्व हैं जैसे कि संपत्ति चल (Movable) होनी चाहिए। संपत्ति का उसके स्थान से हटाना आवश्यक है। तीसरा तत्व है कि संपत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति का कब्ज़ा हो। धारा 378 में चोरी और उसके तत्व में कहीं भी मारपीट, धमकी, डर जैसा कोई तत्व नहीं है।


स्पष्टीकरण 1​

जब तक कोई वस्तु भूबद्ध रहती है, जंगम सम्पत्ति न होने से चोरी का विषय नहीं होती, किन्तु ज्यों ही वह भूमि से पृथक् हो जाती है, वह चोरी का विषय होने योग्य हो जाती है।

स्पष्टीकरण 2​

हटाना, जो उसी कार्य द्वारा किया गया है जिससे पृथक्करण किया गया है, चोरी हो सकेगा।

स्पष्टीकरण 3​

कोई व्यक्ति किसी चीज का हटाना कारित करता है, यह तब कहा जाता है जब वह उस बाधा को हटाता है, जो उस चीज को हटाने से रोके हुए हो या जब वह उस चीज को किसी दूसरी चीज से पृथक् करता है तथा जब वह वास्तव में उसे हटाता है।

स्पष्टीकरण 4​

वह व्यक्ति जो किसी साधन द्वारा किसी जीवजन्तु का हटाना कारित करता है, उस जीवजन्तु को हटाता है यह कहा जाता है, और यह कहा जाता है कि वह ऐसी हर एक चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गयी गति के परिणामस्वरूप उस जीवजन्तु द्वारा हटाई जाती है।

स्पष्टीकरण 5​

परिभाषा में वर्णित सम्मति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है, और वह या तो कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा, या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो उस प्रयोजन के लिये अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार रखता है, दी जा सकती है।

चोरी के निम्न आवश्यक तत्व स्पष्ट होते हैं​

  1. सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण तरीके से लेने का आशय,
  2. सम्पत्ति चल हो,
  3. सम्पत्ति किसी व्यक्ति के आधिपत्य में हो,
  4. सम्पत्ति बिना सम्मति के ली गई हो,
  5. उस वस्तु का हटाया जाना या ले जाया जाना।
बेईमानी संहिता की धारा २४ में परिभाषित है। इस धारा के अनुसार जब कोई व्यक्ति बेईमानी से कार्य करता है यह तब कहा जाता है जब वह उस कार्य को इस आशय से करता है कि किसी व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करे या अन्य किसी व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे।


बेईमानी पूर्वक लेने का आशय​

आशय ही चोरी के अपराध का मूल तत्व है। सम्पत्ति लेने का आशय बेईमानीपूर्ण होना चाहिये और इसका उस समय इसी रूप में विद्यमान रहना आवश्यक है जिस समय सम्पत्ति हटायी जा रही हो। चूंकि चोरी का अपराध गठित करने के लिये सम्पत्ति को उसके स्थान से कुछ दूर हटाया जाना आवश्यक है अतः सम्पत्ति को बेईमानी से लेने का आशय सम्पत्ति हटाते समय ही विद्यमान होना। चाहिये। बेईमानीपूर्ण आशय को उस समय अस्तित्व में समझा जायेगा जब सम्पत्ति लेने वाला व्यक्ति एक व्यक्ति को सदोष लाभ या दूसरे व्यक्ति को सदोष हानि कारित करना चाहता है। यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति लेने वाले व्यक्ति को ही सदोष लाभ पहुँचे, इतना ही पर्याप्त होगा, यदि वह सम्पत्ति के स्वामी को सदोष हानि कारित करता है। अत: यह तर्क प्रस्तुत करना कि अभियुक्त का आशय अपने आप को लाभ पहुँचाना नहीं था, उसे किसी प्रकार का बचाव नहीं प्रदान कर सकेगा। एक प्रकरण में अभियुक्त परिवादकर्ता की इच्छा के विरुद्ध उसकी तीन गायें हाँक ले गया तथा परिवादकर्ता के ऋणदाताओं में उन्हें वितरित कर दिया। अभियुक्त को चोरी के अपराध का दोषी ठहराया गया, किन्तु दि अभियुक्त परिवादकर्ता के हाथ से उसकी छड़ी उस पर प्रहार करने के लिये लेता है तो वह चोरी के पराध का दोषी नहीं होगा। । अ सद्भावपूर्वक ब की सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति समझते हुये उसे ब के कब्जे से लेता है। इस प्रकरण में अ उस सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से नहीं लेता है। अतएव वह चोरी के अपराध के लिये दोषी नहीं। होगा। अ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 के अन्तर्गत तथ्य की भूल के आधार पर अपना बचाव कर सकता है। अ ने ब की सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से नहीं लिया वरन् त्रुटिपूर्ण विश्वास के साथ यह समझते हुये लिया है कि वह उसी की सम्पत्ति है।

यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति स्थायी रूप से ली गई हो​

इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति स्थायी रूप से ली गई हो या अपनाने के आशय से ली गई हो। चोरी सम्पत्ति के स्वामी को सम्पत्ति से स्थायी रूप से वंचित न करने के आशय से भी कारित की जा सकती है। उदाहरणार्थ अ एक लड़के ब से जैसे ही वह स्कूल से बाहर आता है कुछ पुस्तकें छीन लेता है और उससे कहता है कि पुस्तकें तभी वापस होंगी जब वह उसके घर आयेगा। अ इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी है। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे से उसकी कोई चल सम्पत्ति कुछ देर के लिये इस आशय से ले लेता है। कि बाद में उन्हें लौटा दिया जायेगा, वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी है।

प्यारेलाल के वाद में अभियुक्त एक सरकारी कार्यालय में कर्मचारी था। उसने अपने कार्यालय से एक फाइल हटाकर एक बाहरी व्यक्ति को इस शर्त पर उपलब्ध कराया कि 2 दिन के पश्चात् वह फाइल कार्यालय को वापस लौटा दी जायेगी। उसे इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया गया। अ अपने घर में अपनी घड़ी भूल गया जो ब को मिली। ब उस घड़ी को तुरन्त अ को लौटाने के बजाय उसे अपने घर ले गया और उसे तब तक अपने पास रखा जब तक कि वह अ से पैसा इनाम के रूप में नहीं प्राप्त कर सका। ब इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।

किसी वास्तविक विवाद को सुदृढ़ करने हेतु सम्पत्ति लेना​

यदि किसी सम्पत्ति को ऐसे विवाद के सन्दर्भ में हटाया जा रहा हो जिससे कि वादी का वाद सुदृढ़ हो जाये तो सम्पत्ति का हटाया जाना इस धारा के अन्तर्गत चोरी नहीं होगा, भले ही की गई माँग उपयुक्त आधारों पर आधारित न हो।8 स्वामित्व के सम्बन्ध में आरम्भ किया गया विवाद निश्चयतः यथार्थ होना चाहिये, किन्तु यह बचाव उन प्रकरणों में नहीं उपलब्ध होगा जिनका उद्देश्य किसी न किसी रूप में सम्पत्ति को अपने कब्जे में रखना है।

भूल​

जहाँ कोई व्यक्ति किसी विधि की भूल अथवा तथ्य की भूल के अन्तर्गत ऐसा विश्वास करता है कि सम्पत्ति को लेने का उसे अधिकार है तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी नहीं है, क्योंकि उसका आशय बेईमानी से सम्पत्ति को लेना नहीं है भले ही उसके इस कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को सदोष हानि पहुँच रही हो।

अपनी ही सम्पत्ति की चोरी​

कोई व्यक्ति अपनी ही वस्तु की चोरी के लिये दण्डित किया जा सकता है। यदि वह उस वस्तु को दूसरे व्यक्ति के कब्जे से बेईमानीपूर्वक ले लेता है। यदि कोई व्यक्ति अपने पशुओं को उस व्यक्ति के कब्जे से बिना न्यायालय की स्वीकृति लिये हुये ले लेता है जिस व्यक्ति को वे पशु कुर्की के पश्चात् सौंप दिये गये थे तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा। इसी प्रकार यदि कोई अभियुक्त अपने ही एक बण्डल को पुलिस कान्स्टेबल के कब्जे में से ले लेता है जिसको तत्समय कान्स्टेबल अपने कब्जे में रखने के लिये प्राधिकृत था तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी के लिये दोषसिद्ध किया जायेगा, क्योंकि बण्डल में कान्स्टेबल को तत्समय विशिष्ट सम्मति प्राप्त थी।

यदि कोई ऋणदाता अपने ऋणी के कब्जे से उसकी चल सम्पत्ति उसकी सम्मति के बिना ले लेता है ताकि ऋणी को ऋण की अदायगी के लिये मजबूर किया जा सके तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा।एक प्रकरण में एक मरम्मत करने वाले व्यक्ति को एक विद्युत केतली मरम्मत के लिये दी गई किन्तु न तो उसने मरम्मत का कार्य निर्धारित समय के अन्दर पूरा किया और न ही निर्धारित समय बीतने के पश्चात् एक युक्तियुक्त समय के अन्दर। इस पर केतली के स्वामी ने केतली को बलपूर्वक उसकी दुकान से अपने कब्जे में ले लिया किन्तु उसने मरम्मत के सन्दर्भ में कोई भी भुगतान करने से इन्कार कर दिया। इस प्रकरण में यह अधिनिर्णीत हुआ कि केतली का मालिक चोरी का दोषी नहीं है क्योंकि उसका आशय न तो अपने आप को सदोष लाभ पहुँचाना था और न ही मरम्मतकर्ता को सदोष हानि पहुँचाना था। उसका आशय केवल अपनी केतली को एक युक्तियुक्त समय बीत जाने के पश्चात् प्राप्त करना था।

क, एक सिक्का संग्राहक ने, साथी सिक्का संग्राहक की जेब से बेईमानीपूर्वक मुट्ठी भर सिक्के निकाले परन्तु जब उसने उनका परीक्षण किया तो पाया कि वे उसके अपने ही सिक्के थे जिनकी कि उसके पास से पहले चोरी हुई थी। इस मामले में क चोरी के अपराध का दोषी है क्योंकि उसने दूसरे की जेब से उन सिक्कों को बेईमानीपूर्ण आशय से लिया था। यह तथ्य कि चोरी किये गये सिक्के उसके अपने ही थे जिनकी चोरी कुछ समय पहले की गई थी उसे सिक्के जेब से निकालते समय उसकी जानकारी में नहीं था। जिस समय सिक्के साथी संग्राहक की जेब से निकाले गये थे वे दूसरे के कब्जे में थे और उसकी सम्मति के बिना बेईमानीपण आशय से निकाले गये थे। अत: क चोरी के अपराध का दोषी है।


बिना सहमति के लेना​

चोरी का अपराध गठित करने के लिये यह आवश्यक है कि सम्पत्ति उस व्यक्ति की सहमति के बिना ली गई हो जिसके कब्जे में थी। स्पष्टीकरण 5 इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं कि सहमति अभिव्यक्त या प्रलक्षित हो सकती है और ऐसी सहमति या तो उस व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है जो सम्पत्ति को धारण किये हुये है या ऐसे व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा। मिथ्या प्रदर्शन द्वारा ली गई सम्मति जिससे तथ्य के विषय में भ्रम हो जाता है, वैध सम्मति नहीं होगी।

यदि किसी जंगल में आवश्यक शुल्क का भुगतान किये बिना कोई व्यक्ति लकड़ी हटाता है, तो भले ही वनरक्षक ने इस प्रकार लकड़ी हटाये जाने के लिये अपनी सम्मति दे दिया हो, इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा, क्योंकि वनरक्षक सरकारी कर्मचारी था और उसके द्वारा लकड़ियों का आधिपत्य सरकार का आधिपत्य था, अत: वनरक्षक की सम्मति अप्राधिकृत और कपटपूर्ण थी।

सम्पत्ति का हटाया जाना​

जैसे ही किसी बेईमानीपूर्ण आशय से सम्पत्ति को हटाया जाता है यह अपराध पूर्ण हो जाता है। सम्पत्ति का उसके स्थान से इंचमात्र हटाया जाना ही चोरी का अपराध गठित कर देता है भले ही हटाने के पश्चात् सम्पत्ति को बहुत दूर न ले जाया गया हो। इतना ही नहीं इस धारा के अन्तर्गत यह भी अपेक्षित नहीं है कि सम्पत्ति को उसके स्वामी की पहुँच के बाहर या उसके रखे जाने वाले स्थान से दूर ले जाया गया हो। स्पष्टीकरण 3 तथा 4 यह दर्शाते हैं कि कुछ मामलों में किस प्रकार हटाया जाना प्रभावकारी बनाया जा सकता है।

चोरी के लिये दण्ड – धारा – 379​

जो भी व्यक्ति चोरी करने का अपराध करता है उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। यह एक गैर-जमानती (non bailable), संज्ञेय अपराध (cognizable offence) है और किसी भी न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है। यह अपराध पीड़ित व्यक्ति / संपत्ति के मालिक द्वारा समझौता करने योग्य है।

निवास-गृह आदि में चोरी – धारा 380​

जो भी कोई ऐसे किसी इमारत, तम्बू या जलयान, जो मानव निवास या संपत्ति की अभिरक्षा के लिए उपयोग में आता हो, में चोरी करता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

टिप्पणी​

यह धारा किसी भवन, तम्बू या जलयान, जिसका उपयोग मानव निवास या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिये किया जा रहा हो, में की गयी चोरी से सम्बन्धित है। इस धारा का उद्देश्य किसी भवन, टेन्ट या जलयान में जमा सम्पत्ति को अधिक सुरक्षा प्रदान करना है। किसी बरामदे, मकान की छत, किसी परिसर या ट्रेन के ब्रेकवान में की गयी चोरी, भवन में की गयी चोरी नहीं मानी जायेगी। किन्तु आँगन से की गयी चोरी या किसी प्रवेश हाल जिसमें दो-दो दरवाजे तो हों पर किवाड़ किसी में भी न लगा हो और जिसका उपयोग सम्पत्ति रखने के लिये किया जाता हो, में से की गयी चोरी, इस धारा के अन्तर्गत चोरी होगी।

लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी – धारा 381​

जो भी कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक के रूप में नियुक्त होते हुए, अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी संपत्ति की चोरी करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति (चोरी की गयी संपत्ति का स्वामी) द्वारा समझौता करने योग्य है।

चोरी करने के लिये मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी – धारा 382​

जो कोई चोरी करने के लिए, या चोरी करने के पश्चात् निकल भागने के लिए, या चोरी द्वारा ली गई संपत्ति को रखने के लिए, किसी व्यक्ति की मॄत्यु, या उसे क्षति या उसका अवरोध कारित करने की, या मॄत्यु, क्षति या अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके चोरी करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कठिन कारावास की सजा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह एक ग़ैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
 
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