वारण्ट-मामलों का विचारण | Trial of Warrant Cases by Magistrates | CrPC 1973 | Chapters19 | Section 238-250

वारण्ट-मामलों का विचारण | Trial of Warrant Cases by Magistrates | CrPC 1973 | Chapters19 | Section 238-250


दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय १९ में मजिस्ट्रेटों के द्वारा विचारण सम्बन्धी प्रावधानों को तीन भागों विभाजित किया गया है, जिनमें खण्ड `क’ के अधीन पुलिस रिपोर्ट संस्थित मामलों (धारा २३८ से २४३ एवं खण्ड ख के अन्तर्गत पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित मामलों का विचारण प्रक्रिया विहित है। खण्ड ग के अन्तर्गत विचारण की समाप्ति सम्बन्धी उपबंध वर्णित है जिसमें दोषमुक्ति या दोषसिद्धि (धारा २४८), परिवादी की अनुपस्थिति (धारा २४९) व प्रतिकर (धारा २५०) के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। इस अध्याय के अन्तर्गत दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, २००८ की धारा १९ के द्वारा संहिता के धारा २४२ (१) में एक परन्तुक जोड़कर यह उपबंध किया गया है कि

“मजिस्ट्रेट अन्वेषण के दौरान पुलिस के द्वारा अभिलिखित किए गए साक्षियों के अभिकथन अभियुक्त को अग्रिम रूप से प्रदान करेगा,” उस समय जब अभियोजन का साक्ष्य लिए जाने के लिए तारीख नियत किया जा रहा हो।


धारा 207 का अनुपालन​

दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा २३८ के अनुसार जब पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किसी वारण्ट-मामले में अभियुक्त विचारण के प्रारम्भ में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अपना यह समाधान कर लेगा कि उसने धारा २०७ के उपबन्धों का अनुपालन कर लिया है। अर्थात् अभियुक्त को पुलिस रिपोर्ट अथवा अन्य दस्तावेजों की प्रतिलिपियाँ दे दी गयी हैं।

उन्मोचन – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 239​

यदि धारा १७३ के अधीन पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजी गई दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर और अभियुक्त की ऐसी परीक्षा, यदि कोई हो, जैसी मजिस्ट्रेट आवश्यक समझे, कर लेने पर और अभियोजन और अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् मजिस्ट्रेट अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को निराधार समझता है तो वह उसे उन्मोचित कर देगा ऐसा करने के अपने कारण लेखबद्ध करेगा।

आरोप विरचित करना – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 240​

  1. मजिस्ट्रेट की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन विचारणीय ऐसा अपराध किया है जिसका विचारण करने के लिए वह मजिस्ट्रेट सक्षम है और उसके द्वारा पर्याप्त रूप से दण्डित किया जा सकता है, तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।
  2. आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है, दोषी होने का अभिवाक करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है।

दोषी होने के अभिवाक पर दोषसिद्धि – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 241​

यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट उस अभिवाक को लेखबद्ध करेगा और उसे स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध कर सकेगा।

अभियोजन के लिए साक्ष्य – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 242​

  1. यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इनकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है तो वह मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा। परंतु मजिस्ट्रेट अभियुक्त को पुलिस द्वारा अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए साक्षियों के कथन अग्रिम रूप से प्रदाय करेगा।
  2. मजिस्ट्रेट अभियोजन के आवेदन पर उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।
  3. ऐसी नियत तारीख पर मजिस्ट्रेट ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाता है। परन्तु मजिस्ट्रेट किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा तब तक के लिए, जब तक किसी अन्य साक्षी या साक्षियों की परीक्षा नहीं कर ली जाती है, आस्थगित करने की अनुज्ञा दे सकेगा या किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुन: बुला सकेगा।

प्रतिरक्षा का साक्ष्य – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 243​

  1. तब अभियुक्त से अपेक्षा की जाएगी कि वह अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करे और अपना साक्ष्य पेश करें; और यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में फाइल करेगा।
  2. यदि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट से आवेदन करता है कि वह परीक्षा या प्रतिपरीक्षा के, या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के प्रयोजन से हाजिर होने के लिए किसी साक्षी को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी करे तो, मजिस्ट्रेट ऐसी आदेशिका जारी करेगा जब तक उसका यह विचार न हो कि ऐसा आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर दिया जाना चाहिए कि वह तंग करने के या विलंब करने के या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजन से किया गया है, और ऐसा कारण उसके द्वारा लेखबद्ध किया जाएगा: परन्तु जब अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पूर्व अभियुक्त ने किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए इस धारा के अधीन तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के प्रयोजनों के लिए आवश्यक है।
  3. मजिस्ट्रेट उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने के पूर्व यह अपेक्षा कर सकता है कि विचारण के प्रयोजन के लिए हाजिर होने में उस साक्षी द्वारा किए जाने वाले उचित व्यय न्यायालय में जमा कर दिए जाएं।

अभियोजन का साक्ष्य – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 244​

  1. जब पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किसी वारण्ट-मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अभियोजन को सुनने के लिए और ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाए।
  2. मजिस्ट्रेट, अभियोजन के आवेदन पर, उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।

उन्मोचन – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 245​

  1. यदि धारा 244 में निर्दिष्ट सब साक्ष्य लेने पर मजिस्ट्रेट का, उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार है कि अभियुक्त के विरुद्ध ऐसा कोई मामला सिद्ध नहीं हुआ है जो अखंडित रहने पर उसकी दोषसिद्धि के लिए समुचित आधार हो तो मजिस्ट्रेट उसको उन्मोचित कर देगा।
  2. इस धारा की कोई बात मजिस्ट्रेट को मामले के किसी पूर्वतन प्रक्रम में अभियुक्त को उस दशा में उन्मोचित करने से निवारित करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार करता है कि आरोप निराधार है।

आरोप – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 246​

  1. यदि ऐसा साक्ष्य ले लिए जाने पर या मामले के किसी पूर्वतन प्रक्रम में मजिस्ट्रेट की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन विचारणीय ऐसा अपराध किया है जिसका विचारण करने के लिए वह मजिस्ट्रेट सक्षम है और जो उसकी राय में उसके द्वारा पर्याप्त रूप से दंडित किया जा सकता है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।
  2. तब वह आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवाक् करता है अथवा प्रतिरक्षा करना चाहता है।
  3. यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और उसके आधार पर उसे, स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध कर सकेगा।
  4. यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इन्कार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या यदि अभियुक्त को उपधारा (3) के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जाता है तो उससे अपेक्षा की जाएगी कि वह मामले की अगली सुनवाई के प्रारंभ में, या, यदि मजिस्ट्रेट उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, ऐसा ठीक समझता है तो, तत्काल बताए कि क्या वह अभियोजन के उन साक्षियों में से, जिनका साक्ष्य लिया जा चुका है, किसी की प्रतिपरीक्षा करना चाहता है और, यदि करना चाहता है तो किस की।
  5. यदि वह कहता है कि वह ऐसा चाहता है तो उसके द्वारा नामित साक्षियों को पुन: बुलाया जाएगा और प्रतिपरीक्षा के और पुन:परीक्षा (यदि कोई हो) के पश्चात् वे उन्मोचित कर दिए जाएंगे।
  6. फिर अभियोजन के किन्हीं शेष साक्षियों का साक्ष्य लिया जाएगा और प्रतिपरीक्षा के और पुन:परीक्षा (यदि कोई हो) के पश्चात् वे भी उन्मोचित कर दिए जाएंगे।

प्रतिरक्षा का साक्ष्य – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 247​

  1. तब अभियुक्त से अपेक्षा की जाएगी कि वह अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करे और अपना साक्ष्य पेश करे और। मामले को धारा 243 के उपबंध लागू होंगे।

दोषमुक्ति या दोषसिद्धि – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 248​

  1. यदि इस अध्याय के अधीन किसी मामले में, जिसमें आरोप विरचित किया गया है, मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।
  2. जहां इस अध्याय के अधीन किसी मामले में मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी है किन्तु वह धारा 325 या धारा 360 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है वहां वह दंड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनने के पश्चात् विधि के अनुसार उसके बारे में दंडादेश दे सकता है।
  3. जहां इस अध्याय के अधीन किसी मामले में धारा 211 की उपधारा (7) के उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और अभियुक्त यह स्वीकार नहीं करता है कि आरोप में किए गए अभिकथन के अनुसार उसे पहले दोषसिद्ध किया गया था वहां मजिस्ट्रेट उक्त अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के पश्चात् अभिकथित पूर्व दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य ले सकेगा और उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा: परन्तु जब तक अभियुक्त उपधारा (2) के अधीन दोषसिद्ध नहीं कर दिया जाता है तब तक न तो ऐसा आरोप मजिस्ट्रेट द्वारा पढ़कर सुनाया जाएगा, न अभियुक्त से उस पर अभिवचन करने को कहा जाएगा, और न पूर्व दोषसिद्धि का निर्देश अभियोजन द्वारा, या उसके द्वारा दिए गए किसी साक्ष्य में किया जाएगा।

परिवादी की अनुपस्थिति – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 249​

जब कार्यवाही परिवाद पर संस्थित की जाती है और मामले की सुनवाई के लिए नियत किसी दिन परिवादी अनुपस्थित है और अपराध का विधिपूर्वक शमन किया जा सकता है या वह संज्ञेय अपराध नहीं है तब मजिस्ट्रेट, इसमें इसके पूर्व किसी बात के होते हुए भी, आरोप के विरचित किए जाने के पूर्व किसी भी समय अभियुक्त को, स्वविवेकानुसार, उन्मोचित कर सकेगा।

उचित कारण के बिना अभियोग के लिए प्रतिकर – दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 250​

  1. यदि परिवाद पर या पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गई इत्तिला पर संस्थित किसी मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष एक या अधिक व्यक्तियों पर मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी अपराध का अभियोग है और वह मजिस्ट्रेट अभियुक्तों को या उनमें से किसी को उन्मोचित या दोषमुक्त कर देता है और उसकी यह राय है अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था तो वह मजिस्ट्रेट उन्मोचन या दोषमुक्ति के अपने आदेश द्वारा, यदि वह व्यक्ति जिसके परिवाद या इत्तिला पर अभियोग लगाया गया था उपास्थित है तो उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह तत्काल कारण र्दिशत करे कि वह उस अभियुक्त को, प्रतिकर क्यों न दे यदि ऐसा व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो हाजिर होने और उपर्युक्त रूप से कारण र्दिशत करने के लिए उसके नाम समन जारी किए जाने का निदेश दे सकेगा।
  2. यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था तो जितनी रकम का जुर्माना करने के लिए वह सशक्त है, उससे अनधिक इतनी रकम का, जितनी वह अवधारित करे, प्रतिकर ऐसे परिवादी या सूचना देने वाले द्वारा अभियुक्त को दिए जाने का आदेश, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे दे सकता है।
  3. वह व्यक्ति, जो ऐसा प्रतिकर देने के लिए आदिष्ट किया गया है, संदाय में व्यतिक्रम होने पर तीस दिन से अनधिक की अवधि के सादे कारावास से दंडित किया जा सकता है।
  4. प्रतिकर देने के लिए जिस व्यक्ति को आदेश दिया जाता है, ऐसे आदेश के कारण उसे अपने द्वारा किए गए किसी परिवाद या दी गई किसी इत्तिला के बारे में किसी सिविल या दांडिक दायित्व से छूट नहीं दी जाएगी। परन्तु अभियुक्त व्यक्ति को इस धारा के अधीन दी गई कोई धनराशि उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में उस व्यक्ति के लिए प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय हिसाब में ली जाएगी
  5. कोई परिवादी या इत्तिला देने वाला, जो द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा एक सौ रुपए से अधिक प्रतिकर देने के लिए आदिष्ट किया गया है, आदेश की अपील ऐसे कर सकेगा मानो वह परिवादी या इत्तिला देने वाला ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए विचारण में दोषसिद्ध किया गया है।
  6. जब किसी अभियुक्त व्याqक्त को प्रतिकर दिए जाने का आदेश किया जाता है तब उसे ऐसा प्रतिकर, अपील पेश करने के लिए अनुज्ञात अवधि के बीत जाने के पूर्व या यदि अपील पेश कर दी गई है तो अपील के विनिश्चित कर दिए जाने के पूर्व न दिया जाएगा जहां ऐसा आदेश ऐसे मामले में हुआ है, जो ऐसे अपीलनीय नहीं है, वहां ऐसा प्रतिकर आदेश की तारीख से एक मास की समाप्ति के पूर्व नहीं दिया जाएगा।
  7. धारा २५० में र्विणत प्रतिकर सम्बन्धी उपबंध समन मामलों तथा वारण्ट मामलों दोनों पर लागू होता है।

 
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