भारतीय संविधान का इतिहास – History of Indian Constitution in Hindi

भारतीय संविधान का इतिहास – History of Indian Constitution in Hindi


भारतीय संविधान भूमिका​

भारतीय संविधान का इतिहास (History of Indian Constitution) जानने से पहले मैं संविधान क्या है और आखिर इसकी उपयोगिता क्या है, इसका जिक्र करना चाहूँगा। भारतीय संविधान प्रशासनिक प्रावधानों का एक दस्तावेज है (Constitution is a document of administrative provisions)। इस दस्तावेज में लिखा हर एक शब्द हमारी सरकार की मूल सरंचना को निर्धारित करता है। प्रत्येक सरकार संविधान के अनुसार काम करती है। सरकार के अधिकार, गतिविधि, उसकी कार्यशैली, उसकी बनावट, सरकार को क्या करना है, क्या नहीं करना है।सब संविधान में परिभाषित है। संक्षेप में भारतीय संविधान एक नियमों से भरी किताब है। ये नियम सरकार के मुख्य अंग- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की बनावट और कार्यप्रणाली को निर्धारित करते हैं।


भारत का सांवैधानिक विकास वास्तव में अंग्रेजी राज्य की स्थापना से प्रारंभ होता है। बंगाल में अंग्रेजी राज्य की स्थापना को ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों ने किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी का उद्देश्य भारत और अन्य पूर्वी देशों के व्यापार से लाभ उठाना था, पर भारत की राजनीतिक दुर्दशा का लाभ उठाकर कम्पनी के कर्मचारियों ने राजकीय मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत की एकता छिन्न-भिन्न हो गई और इसका लाभ कम्पनी ने पूर्ण रूप से उठाया। अंग्रेजों ने भारत में 1947 ई. तक राज किया और उनके शासन काल में समय-समय पर भारतीय शासन-व्यवस्था में अनेक परिवर्तन किये गए। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और उसके बाद भारतीय गणतंत्र के संविधान (Constitution) का निर्माण हुआ जो 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।

अध्ययन की सुविधा के लिए भारतीय संविधान के विकास को 6 चरणों में विभाजित किया जाता है:
  1. प्रथम चरण (1773-1857 ई. तक)
  2. द्वितीय चरण (1858-1909 ई. तक)
  3. तृतीय चरण (1910-1939 ई. तक)
  4. चतुर्थ चरण (1940-1947 ई. तक)
  5. पंचम् चरण (1947-1950 ई. तक)
  6. षष्ठम् चरण (1950 ई. से आज तक)

रेगुलेटिंग एक्ट (1773) – Regulating Act 1773​

अंग्रेज रेगुलेटिंग एक्ट 1773 में लाए। भारत के संविधान की नींव रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा ही रखी गयी। इसके अंतर्गत बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के लिए एक परिषद् की स्थापना की गयी। परिषद् में चार सदस्य और एक गवर्नर जनरल था। सबसे पहला गवर्नर जनरल बना – वारेन हेस्टिंग्स. उसके पास अब बंगाल के फोर्ट विलियम के सैनिक और असैनिक प्रशासन के अधिकार थे। इसी एक्ट के जरिये कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 1774 में हुई। सर अजीला इम्पे प्रथम मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए।

संशोधित अधिनियम (1781) Amended Act of 1781​

कालान्तर में रेगुलेटिंग एक्ट में कुछ सुधार या संशोधन की आवश्यकता पड़ी। रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार यह निर्धारित किया गया था कि कम्पनी के अधिकारी के शासकीय कार्यों के मामले नए-नए बने सर्वोच्च न्यायालय में जाते थे। पर संशोधन अधिनियम 1781 के द्वारा अधिकारियों के शासकीय कार्यों के मामलों को सर्वोच्च न्यायालय के परिधि से बाहर कर दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र को स्पष्ट किया गया।

पिट का इंडिया एक्ट (1784) Pitt’s India Act 1784​

पिट नामक इंसान 1784 में इंग्लैंड का नया प्रधानमंत्री बना। ब्रिटिश सरकार ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) को स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहती थी। उसकी पूरी कोशिश रहती थी की कम्पनी की हर गतिविधि का उन्हें पता रहे और उसकी लगाम सरकार के पास रहे। इसीलिए पिट के इस एक्ट के द्वारा कम्पनी के मामलों पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को बढ़ाया गया। एक चांसलर, राज्य सचिव, चार अन्य सदस्य प्रतिनिधि के रूप मं ब्रिटिश सरकार के द्वारा जबरदस्ती ठूंसे गए। गुप्त समिति बनायी गयी और मद्रास तथा बम्बई प्रेसिडेन्सियों को भी गवर्नर जनरल तथा उसकी परिषद् के अधीन कर दिया गया।

1786 का अधिनियम Act of 1786​

पिट ने लॉर्ड कार्नवालिस को गवर्नल जनरल के रूप में लांच किया। कार्नवालिस ने जिद की कि वह तभी ये पद संभालेगा जब उसे गवर्नल जनरल के साथ-साथ मुख्य सेनापति भी बनाया जाए और 1786 के अधिनियम के तहत यह भी प्रावधान जोड़ा जाए कि मैं (यानी कार्नवालिस Cornwallis) विशेष परिस्थितियों में अपनी कौंसिल को रद्द कर सकूं।


चार्टर एक्ट (1793) Charter Act of 1793​

इस एक्ट के तहत उसके व्यापारिक अधिकार को भारत में 20 वर्ष और बढ़ा दिया गया। अपने कौंसिलों के निर्णय को रद्द करने का अधिकार (जो 1786 के अधिनियम में सिर्फ गवर्नर जनरल कार्नवालिस के पास था) गवर्नल जनरल के साथ-साथ अन्य गवर्नरों को भी दिया गया।

चार्टर एक्ट (1813) Charter Act of 1813​

इस एक्ट के द्वारा कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। चीन के साथ चाय के व्यापार का एकाधिकार अब भी कम्पनी के पास था। ईसाई धर्म प्रचारकों को भारतीय क्षेत्र में बसने की अनुमति दी गयी। कम्पनी का भारतीय प्रदेशों और राजस्व पर 20 वर्षों तक का नियन्त्रण स्वीकार किया गया।

चार्टर एक्ट (1833) Charter Act of 1833​

फिर से 20 वर्ष के लिए कम्पनी का भारतीय प्रदेशों और राजस्व पर नियंत्रण स्वीकार किया गया। कम्पनी के चीन के साथ चाय व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। एक बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि बंगाल के गवर्नर जनरल को पूरे भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया। अभी तक गवर्नर जनरल के कार्यकारिणी में तीन सदस्य होते थे। अब चौथा सदस्य भी आ टपका। वह था लॉर्ड मकौले। उसे विधि सदस्य बनाया गया। दास प्रथा को ख़त्म करने का प्रावधान इसी चार्टर एक्ट में किया गया।

चार्टर एक्ट (1853) Charter Act of 1853​

फिर 20 साल बाद चार्टर एक्ट आया। इसी एक्ट में सिविल सेवाओं की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगता व्यवस्था का शुभारम्भ किया, और पहली बार सिविल सेवा को भारतीयों के लिए खोल दिया गया और इसके लिए 1854 में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।

भारत सरकार अधिनियम (1858) Government of India Act 1858​

1857 के सैनिक विद्रोह के बाद महारानी ने कम्पनी के एकच्छत्र राज को ख़त्म कर दिया और भारत को सम्पूर्ण तौर पर ब्रिटिश सरकार के अधीन कर दिया। इस एक्ट का एक और नाम भी है – एक्ट ऑफ़ बेटर गवर्नमेंट इन इंडिया Act of Better Government in India 1857 के जन-विद्रोह के कारण ब्रिटिश सरकार को लगने लगा कि भारत ऐसा भरा-पूरा देश कंपनी की लापरवाही से कहीं हाथ से निकल न जाए। इसीलिए उसने भारत की कमान पूरी तरह अपने हाथ में ले ली और इस एक्ट के जरिये कम्पनी के प्रशासन को ख़त्म कर दिया गया। पहले संचालक मंडल और नियंत्रक मंडल होता था, अब उसके बदले भारत सचिव की नियुक्ति हुई। उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय इंडिया काउंसिल (India Council) बनायी गयी। अब गवर्नर जनरल (Governor General) को वायसराय (Viceroy) कहा जाने लगा।

भारत परिषद् अधिनियम (1861) India Council Act of 1861​

इस अधिनयम के जरिये वायसराय को अध्यादेश जारी करने के विशेषाधिकार दिए गए। यह भी कहा गया कि ब्रिटिश सम्राट भारत सचिव का सहयोग या राय लेकर किसी भी एक्ट को रद्द कर सकता है।

भारत परिषद् अधिनियम (1892) India Council Act of 1892​

इस अधिनियम के जरिये पहली बार निर्वाचन प्रणाली को लाया गया। अब राज्यों के विधान मंडल के सदस्य केन्द्रीय विधान मंडल के 5 सदस्यों का निर्वाचन कर सकते थे। राज्यों के विधान मंडल के सदस्य अब केन्द्रीय बजट पर बहस भी कर सकते थे। हांलाकि अब भी उनके पास बजट पर मत देने का अधिकार नहीं था।


भारत परिषद् अधिनियम (1909) India Council Act of 1909​

इस अधिनियम को मार्ले-मिन्टो सुधार (Morley-Minto Reform 1909) भी कहते हैं। भारत सचिव मार्ले और वायसराय मिन्टो के के नाम से ही यह अधिनियम जाना गया। इस अधिनियम के माध्यम से केन्द्रीय विधान मंडल के सदस्यों की संख्या 16 से 60 तक बढ़ाई गयी। पहली बार केन्द्रीय विधान परिषद् में निर्वाचित सदस्यों के निर्वाचन के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का concept आया। विधान परिषद् के सदस्यों को बहुत सारे हक मिले — अब वे बजट पर नया प्रस्ताव रख सकते थे, पूरक प्रश्न पूछ सकते थे। एस.पी. सिन्हा पहले भारतीय सदस्य थे जिनको कार्यकारिणी परिषद् में जगह मिली।

भारत सरकार अधिनियम (1919) Govt. of India Act 1919​

इस अधिनियम को मौन्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार Montagu–Chelmsford Reforms के नाम से भी जाना जाता है। इसी अधिनियम के माध्यम से केंद्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था (bicameral system) का निर्माण हुआ जो आज लोकसभा और राज्यसभा के रूप में है। उस समय लोकसभा को केन्द्रीय विधानसभा और राज्यसभा को राज्य परिषद् करके संबोधित किया जाता था। केन्द्रीय विधान सभा में 140 सदस्य थे जिसमें 57 निर्वाचित सदस्य थे। राज्य परिषद् में 60 सदस्य थे जिसमें 33 निर्वाचित थे। प्रांतीय बजट (provincial budget) को केन्द्रीय बजट (central budget) से अलग इसी अधिनियम के माध्यम से किया गया।

भारत सरकार अधिनियम (1935) Govt. of India Act 1935​

तीन गोलमेज सम्मेलनों के बाद आए इस अधिनियम में 321 अनुच्छेद (321 articles) थे। यह अधिनियम सबसे अधिक विस्तृत था। इसके द्वारा भारत परिषद् (India Council) को समाप्त कर दिया गया। प्रांतीय विधानमंडलों की संख्या में वृद्धि की गयी। बर्मा के प्रशासन भारत के प्रशासन से अलग किया गया।

संविधान सभा (1946) Constitutional Assembly​

संविधान (Constitution) बनाने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों के सदनों के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने जाने वाले थे और यह चुनाव 9 जुलाई, 1946 को हुआ। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई। जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। बाद में यही संविधान (constitution) सभा दो हिस्सों में बंट गयी जब पाकिस्तान अलग राष्ट्र बन गया। भारतीय संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 Indian Independence Act 1947​

ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 को स्वीकृत हो गया। इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं। इस अधिनियम तय हुआ की दो अधिराज्यों की स्थापना: 15 अगस्त, 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा। भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी। संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नई कर लेतीं, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगीं। भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगें।

1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तब तक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा। देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधो का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई। इस तरह हमारे भारतीय संविधान का इतिहास प्रस्तुत होता है। हमें उम्मीद है कि अब आपको हमारे भारतीय संविधान से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी।
 
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