श्रीराम शर्मा जी हिंदी साहित्य के महान शिकार साहित्य के लेखक थे| इनकी भाषा सरल सुबोध एवं आकर्षणमय रहती थी| इनके साहित्य की मुख्य विशेषता यह थी कि इनका लेख रोमांचक था से भरा रहता था| जिससे पाठक रोमांच से भर उठता था|
‘सेवाग्राम की डायरी’ और ‘सन् बयालीस के संस्मरण’ आत्मकथात्मक शैली में लिखी हुई इनकी एक प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण इनकी कृतियों में इनके जीवन की झलकियाँ अनायास दिखाई पड़ जाती है। शिकार – साहित्य से सम्बन्धित लेखों में घटना – विस्तार के साथ-साथ इन्होंने पशुओं के मनोविज्ञान का सम्यक् परिचय देते हुए इन्होंने उन्हें पर्याप्त रोइसके नाने में सफलता प्राप्त की है। हिंदी साहित्य को इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक जैसे उच्च कोटि के लेख भी दिया हैं, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं।
इसकी प्रायः सभी कहानियाँ एवं लेख रोमांचक एवं रोचक से भरे पड़े हैं। उन्होंने अपने लेख में इस प्रकार से सजीव वर्णन करते हैं कि पाठक का मन उत्सुकता से भर जाता है और उसे बिना पढ़े रहा नहीं जाता है| बाल प्रकृति और बाल सुलभ चेष्टाओं का चित्रण ‘स्मृति’ नामक इस शिकार कथा में विशेष रूप से देखने को मिल ही जाता है। भाषा की रवानी से ये पाठक का ध्यान बरबस आकर्षित कर लेते हैं|
श्रीराम शर्मा जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में संस्मरण, जीवनी लेखन, कथा लेखन और शिकार-साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। जो वाकई ही प्रशंसनीय है|
शिकार- साहित्य के क्षेत्र में इनके योगदान को हिन्दी साहित्य जगत द्वारा कभी भी भुला पाना कठिन होगा।
इन्होंने अपनी रचनाओं में परिस्थितियों का इतना सजीव वर्णन करते हैं कि पढ़ने वाला पाठक का मन बिना पढ़े रहा ही नहीं जाता और उसे पूरापढ़ता ही है| यही इनके रचनाओं की प्रमुख विशेषताएं हैं| बाल प्रकृति और बाल सुलभ चेष्टाओं का चित्रण इसमें विशेष रूप से देखने को मिलता है। यह लेख वर्णनात्मक शैली में लिखते है, जिसमें भाषा की सरलता आद्यंत विद्यमान है।
इनकी रचनाओं का विवरण कुछ इस प्रकार है – भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व, गायत्री महाविद्या, यज्ञ का ज्ञान विज्ञान, समग्र स्वास्थ्य, शिक्षा ही नहीं विद्या भी, भाव संवेदनाओं की गंगोत्री, ईश्वर कौन है कहां है कैसा है?, युग की मांग प्रतिभा (2 भाग), महाकाल की प्रतिमाओं का आमंत्रण, 21वीं सदी बनाम उज्जवल भविष्य (2 भाग) आदि|
2) श्रीराम शर्मा का जन्म कब हुआ था?
इनका जन्म 23 मार्च, 1892 ई. को हुआ था|
3) श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का संपादन किया था?
इन्होंने ‘विशाल भारत’ जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं का संपादन किया था|
4) श्रीराम शर्मा का जन्म कब और कहां हुआ था?
इनका जन्म 23 मार्च, 1892 ई. को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के पास) नामक गाँव में हुआ था। अब यह ग्राम फिरोजाबाद जिले में स्थित है।
5) श्रीराम शर्मा के माता पिता का नाम?
इनके पिता का नाम रूपकिशोर तथा माता का नाम धनकुमारी देवी था|
श्रीराम शर्मा का जीवन परिचय
श्रीराम शर्मा जी हिंदी साहित्य के शिकार- साहित्य के महान लेखक थे| जिनका जन्म 23 मार्च, 1892 ई. को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के पास) नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रूपकिशोर तथा माता का नाम धनकुमारी देवी था| अब यह ग्राम फिरोजाबाद जिले में स्थित है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा का प्रबंध मक्खनपुर में ही हुई। इसके पश्चात इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये अपने बाल अवस्था से ही अत्यन्त साहसी एवं आत्मविश्वासी से भरे थे। राष्ट्रीयता की भावना भी इनके रग-रग में भरी हुई थी। प्रारम्भ में इन्होंने शिक्षण कार्य भी किया था| इसके साथ-साथ उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया था जिसके कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा था। आत्मविश्वास इनका इतना मजबूत था कि बड़ी-से-बड़ी कठिनाई आने पर भी भयभीत नहीं होते थे। इनकी विशेष रूप से रूचि लेखन और पत्रकारिता की ओर था। ये लम्बे समय तक मशहूर ‘विशाल भारत’ पत्रिका के सम्पादक का कार्य सफलतापूर्वक किया। इनके जीवन के अंतिम पड़ाव बड़ी कठिनाई से बीते। लम्बी बीमारी के बाद हिंदी साहित्य का यह महान लेखक सन् 1967 ई. में इनका स्वर्गवास हो गया। इसके बात हिंदी साहित्य को आज भी अपना श्रीराम शर्मा नहीं मिला हिंदी साहित्य को आज भी इनकी कमी महसूस होती है|श्रीराम शर्मा का साहित्यिक परिचय
श्रीराम शर्मा ने अपना साहित्यिक जीवन पत्रिकाओं के संपादक से आरम्भ किया था| इन्होंने मशहूर पत्रिका ‘विशाल भारत‘ के सम्पादन के अतिरिक्त इन्होंने गणेशशंकर विद्यार्थी के दैनिक पत्र ‘प्रताप’ में भी सहसम्पादक के रूप में कार्य सफलतापूर्वक संपन्न किया। राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित तथा जनमानस को झकझोर देने वाले लेख लिखकर, इन्होंने हिंदी साहित्य में अपार ख्याति प्राप्त किया। ये हिंदी के एक महान शिकार-साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे । हिन्दी साहित्य में शिकार- साहित्य का प्रारम्भ इन्हीं को माना जाता है। सम्पादन एवं शिकार- साहित्य के अतिरिक्त इन्होंने रेखाचित्र और संस्मरण आदि विधाओं के क्षेत्र में भी अपनी प्रखर प्रतिभा का झंडा गाढ़ा है। इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं|‘सेवाग्राम की डायरी’ और ‘सन् बयालीस के संस्मरण’ आत्मकथात्मक शैली में लिखी हुई इनकी एक प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण इनकी कृतियों में इनके जीवन की झलकियाँ अनायास दिखाई पड़ जाती है। शिकार – साहित्य से सम्बन्धित लेखों में घटना – विस्तार के साथ-साथ इन्होंने पशुओं के मनोविज्ञान का सम्यक् परिचय देते हुए इन्होंने उन्हें पर्याप्त रोइसके नाने में सफलता प्राप्त की है। हिंदी साहित्य को इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक जैसे उच्च कोटि के लेख भी दिया हैं, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं।
भाषा शैली
श्रीराम शर्मा जी की भाषा सरल, सहज, सुबोध, आकर्षण, बोधगम्य के साथ-साथ प्रवाहयुक्त है। भाषा की दृष्टि से इन्हें प्रेमचन्द का निकटवर्ती लेखक माना जाता है। अपनी भाषा को सरल बनाने के लिए इन्होंने उर्दू, संस्कृत जैसे भाषा को लेकर अंग्रेजी एवं लोक-प्रचलित शब्दों का भी उपयुक्तता के साथ प्रयोग किया है। भाषा को व्यावहारिक और रोचक बनाने के लिए इन्होंने मुहावरों और प्रचलित कहावतों का भी प्रयोग किया है। इनकी शैलीगत विशिष्टता सर्वथा निजी है। इनकी शैली के विभिन्न रूप हैं, जो इस प्रकार हैं–(1) वर्णनात्मक (2) आत्मकथात्मक, (3) चित्रात्मक (4) विवेचनात्मक आदि देखने को मिलते हैं|इसकी प्रायः सभी कहानियाँ एवं लेख रोमांचक एवं रोचक से भरे पड़े हैं। उन्होंने अपने लेख में इस प्रकार से सजीव वर्णन करते हैं कि पाठक का मन उत्सुकता से भर जाता है और उसे बिना पढ़े रहा नहीं जाता है| बाल प्रकृति और बाल सुलभ चेष्टाओं का चित्रण ‘स्मृति’ नामक इस शिकार कथा में विशेष रूप से देखने को मिल ही जाता है। भाषा की रवानी से ये पाठक का ध्यान बरबस आकर्षित कर लेते हैं|
श्रीराम शर्मा जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में संस्मरण, जीवनी लेखन, कथा लेखन और शिकार-साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। जो वाकई ही प्रशंसनीय है|
शिकार- साहित्य के क्षेत्र में इनके योगदान को हिन्दी साहित्य जगत द्वारा कभी भी भुला पाना कठिन होगा।
इन्होंने अपनी रचनाओं में परिस्थितियों का इतना सजीव वर्णन करते हैं कि पढ़ने वाला पाठक का मन बिना पढ़े रहा ही नहीं जाता और उसे पूरापढ़ता ही है| यही इनके रचनाओं की प्रमुख विशेषताएं हैं| बाल प्रकृति और बाल सुलभ चेष्टाओं का चित्रण इसमें विशेष रूप से देखने को मिलता है। यह लेख वर्णनात्मक शैली में लिखते है, जिसमें भाषा की सरलता आद्यंत विद्यमान है।
प्रकाशित पुस्तकें
- अध्यात्म एवं संस्कृति
- विचार क्रांति
- व्यक्ति निर्माण
- गायत्री और यज्ञ
- युग निर्माण
- बाल निर्माण
- समाज निर्माण
- परिवार निर्माण
- वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
- वेद पुराण एवं दर्शन
श्रीराम शर्मा की रचनाएं
- भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व
- गायत्री महाविद्या
- यज्ञ का ज्ञान विज्ञान
- समग्र स्वास्थ्य
- शिक्षा ही नहीं विद्या भी
- भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
- ईश्वर कौन है कहां है कैसा है?
- युग की मांग प्रतिभा (2 भाग)
- महाकाल की प्रतिमाओं का आमंत्रण
- 21वीं सदी बनाम उज्जवल भविष्य (2 भाग)
संक्षिप्त परिचय
- जन्म स्थान – किरथरा (मैनपुरी अब फिरोजाबाद जिले में) उत्तर प्रदेश
- जन्म- 23 मार्च, 1892 ई.
- भाषा- सहज, सरल
- शैली- चित्रात्मक, आत्मकथात्मक, वर्णनात्मक, विवेचनात्मक
- सम्पादन- विशाल भारत
- कृतियाँ-गंगा मैया, नेताजी, सन् बयालीस के संस्मरण जंगल के जीव, बोलती प्रतिमा, शिकार आदि
- मृत्यु – सन् 1967 ई.
FAQ
1) श्रीराम शर्मा की रचनाएँ?इनकी रचनाओं का विवरण कुछ इस प्रकार है – भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व, गायत्री महाविद्या, यज्ञ का ज्ञान विज्ञान, समग्र स्वास्थ्य, शिक्षा ही नहीं विद्या भी, भाव संवेदनाओं की गंगोत्री, ईश्वर कौन है कहां है कैसा है?, युग की मांग प्रतिभा (2 भाग), महाकाल की प्रतिमाओं का आमंत्रण, 21वीं सदी बनाम उज्जवल भविष्य (2 भाग) आदि|
2) श्रीराम शर्मा का जन्म कब हुआ था?
इनका जन्म 23 मार्च, 1892 ई. को हुआ था|
3) श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का संपादन किया था?
इन्होंने ‘विशाल भारत’ जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं का संपादन किया था|
4) श्रीराम शर्मा का जन्म कब और कहां हुआ था?
इनका जन्म 23 मार्च, 1892 ई. को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के पास) नामक गाँव में हुआ था। अब यह ग्राम फिरोजाबाद जिले में स्थित है।
5) श्रीराम शर्मा के माता पिता का नाम?
इनके पिता का नाम रूपकिशोर तथा माता का नाम धनकुमारी देवी था|
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