राहुल सांकृत्यायन – जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं एवं योगदान

राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य के महान यात्रा साहित्य के लेखक थे| यात्रा साहित्य में इनका नाम सर्वप्रथम आता है| इन्हीं महान लेखकों में गिना जाता था| इन्होंने कई देशों की यात्रा की है| और उस पर लेख लिखे हैं जिसके कारण इन्हें यात्रा साहित्य के लेखक कहे जाते हैं|

राहुल सांकृत्यायन – जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं एवं योगदान


राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय​

राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल, सन् 1893 ई0 को रविवार के दिन अपने नाना पं० रामशरण पाठक के यहाँ पन्दहा ग्राम, जिला आजमगढ़ में हुआ था| इनके पिता का नाम गोवर्धन पांडे तथा माता का नाम कुलवंती देवी था| इनके पिता पं० गोवर्धन पाण्डे एक कट्टर धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे| वे पन्दहा से दस मील दूर कनैला ग्राम में रहते थे| इनके बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था| ‘सांकृत्य’ इनका गोत्र था| इसी के आधार पर सांकृत्यायन कहलाये| बौद्ध धर्म में आस्था होने पर अपना नाम बदल कर महात्मा बुद्ध पुत्र नाम पर ‘राहुल’ रख लिया| इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय और फिर निजामाबाद में हुई, जहाँ से इन्होंने सन् 1907 ई० में उर्दू में मिडिल पास किया|


इसके उपरान्त इन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की| यहीं इनमें पालि साहित्य प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ| इनके पिता की इच्छा थी कि आगे भी पढ़ें, पर इनका मन कहीं और था| इन्हें घर का बन्धन अच्छा न लगा| घूमना चाहते थे| इनकी इस प्रवृत्ति के कई कारण थे| इनके नाना पं० रामशरण पाठक सेना में सिपाही थे और उस जीवन में दक्षिण भारत की खूब यात्रा की थी| इस विगत जीवन की कहानियाँ वे बालक केदार को सुनाया करते थे, जिसने इनके मन में यात्रा प्रेम को अंकुरित कर दिया| इसके बाद इन्होंने कक्षा 3 की उर्दू पाठ्य पुस्तक (मौलवी इस्माइल की उर्दू की चौथी किताब) पढ़ी थी, जिसमें एक शेर इस प्रकार था-

सैर कर दुनिया की गाफ़िल जिन्दगानी फिर कहाँ ?
जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ ?

इस शेर के सन्देश ने बालक केदार के मन पर गहरा प्रभाव डाला| इसके द्वारा इनके घुमक्कड़ी जीवन का सूत्रपात हुआ और आगे चलकर इन्होंने बाकायदा घुमक्कड़ों के निर्देशन के लिए ‘घुमक्कड़-शास्त्र’ ही लिख डाला| इनका यात्रा-विवरण अत्यन्त रोचक, रोमांचक, शिक्षाप्रद, उत्साहवर्धक और ज्ञान-प्रेरक हैं| इन्होंने पाँच-पाँच बार तिब्बत, लंका और सोवियत भूमि की यात्रा की थी| छह मास यूरोप में रहे थे| एशिया को इन्होंने जैसे छान ही डाला था| कोरिया, मंचूरिया, ईरान, अगानिस्तान, जापान, नेपाल, केदारनाथ-बदरीनाथ, कुमायूँ-गढ़वाल, केरल-कर्नाटक, कश्मीर-लद्दाख आदि के पर्यटन को इनकी दिग्विजय कहने में कोई अत्युक्ति न होगी| कुल मिलाकर राहुल जी की पाठशाला और विश्वविद्यालय यही घुमक्कड़ी जीवन था| 14 अप्रैल, सन् 1963 ई० को भारत के इस पर्यटनप्रिय साहित्यकार का निधन हो गया| हिंदी साहित्य को आज भी इनकी कमी महसूस होती हैं| इनका हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान था|

राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक परिचय​

हिन्दी के महान् उपासक राहुल सांकृत्यायन जी ने हिन्दी भाषा और साहित्य की बहुमुखी सेवा की है| इनका अध्ययन जितना विशाल था, साहित्य-सृजन भी उतना ही विराट् था| ये छत्तीस एशियाई और यूरोपीय भाषाओं के ज्ञाता थे और लगभग 150 ग्रंथों का प्रणयन करके इन्होंने राष्ट्रभाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया| अपनी ‘जीवन-यात्रा’ में राहुल जी ने स्वीकार किया है कि उनका साहित्यिक जीवन सन् 1927 ई० से प्रारम्भ होता है| वास्तविक बात यह है कि इन्होंने किशोरावस्था पार करने के बाद ही लिखना शुरू कर दिया था| इन्होंने धर्म, भाषा, यात्रा, दर्शन, इतिहास, पुराण, राजनीति आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है| हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में इन्होंने ‘अपभ्रंश काव्य साहित्य’, ‘दक्खिनी हिन्दी साहित्य’ आदि श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की थीं| इनकी रचनाओं में एक ओर प्राचीनता के प्रति मोह और इतिहास के प्रति गौरव का भाव विद्यमान है, तो दूसरी ओर इनकी अनेक रचनाएँ स्थानीय रंग लेकर मनमोहक चित्र उपस्थित करती हैं|

इनको सबसे अधिक सफलता यात्रा-साहित्य लिखने में मिली है| जीवन-यात्रा लिखने के प्रयोजन को ये इन शब्दों में प्रकट करते हैं, “अपनी लेखनी द्वारा मैंने उस जगत् की भिन्न-भिन्न गतियों और विचित्रताओं को अंकित करने की कोशिश की है, जिसका अनुमान हमारी तीसरी पीढ़ी बहुत मुश्किल से करेगी|” सचमुच जीवन-यात्रा में स्वयं राहुल जी के बारे में कम मगर दूसरों के बारे में, परिवेश के बारे में अधिक जानकारी मिलती है|

राहुल सांकृत्यायन की प्रमुख रचनाएँ​

इनकी मुख्य रचनाएँ हैं-लंका, तिब्बत यात्रा, जापान, ईरान और रूस में पच्चीस मास| इनके कुछ अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ इस प्रकार हैं- 1. बोल्गा से गंगा (कहानी संग्रह), 2. सिंह सेनापति और 3. जय यौधेय (उपन्यास), 4. मेरी जीवन यात्रा (आत्मकथा) 5. दर्शन दिग्दर्शन (दर्शन), 6. विश्व की रूपरेखा (विज्ञान), मध्य एशिया का इतिहास (इतिहास) तथा 8. शासन शब्द कोश, 9. राष्ट्रभाषा कोश और 10. तिब्बती हिन्दी कोश (कोश)


भाषा शैली​

इनकी भाषा-शैली में कोई बनावट या साहित्य-रचना का प्रयास नहीं है| सामान्यतः संस्कृतनिष्ठ परन्तु सरल और परिष्कृत भाषा को ही इन्होंने अपनाया है| न तो संस्कृत के क्लिष्ट या समासयुक्त शब्दों को इन्होंने प्रश्रय दिया है और न ही लम्बे-लम्बे वाक्यों को संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् होते हुए भी ये जनसाधारण की भाषा लिखने के पक्षपाती थे| इनकी शैली का रूप विषय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है| इनकी शैली के वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, व्यंग्यात्मक, उद्बोधन एवं उद्धरण आदि रूप देखने को मिलते हैं|

संक्षिप्त परिचय​

  • जन्म – 9 अप्रैल, सन् 1893 ई०
  • मृत्यु – 14 अप्रैल, सन् 1963 ई०
  • जन्म स्थान – पन्दहा (आजमगढ़), उ० प्र०
  • वास्तविक नाम – केदारनाथ पाण्डे
  • माता – कुलवन्ती
  • पिता – गोवर्धन पाण्डे

FAQ​

1) राहुल सांकृत्यायन की भाषा-शैली

इनकी भाषा-शैली में कोई बनावट या साहित्य-रचना का प्रयास नहीं है| सामान्यतः संस्कृतनिष्ठ परन्तु सरल और परिष्कृत भाषा को ही इन्होंने अपनाया है| न तो संस्कृत के क्लिष्ट या समासयुक्त शब्दों को इन्होंने प्रश्रय दिया है और न ही लम्बे-लम्बे वाक्यों को संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् होते हुए भी ये जनसाधारण की भाषा लिखने के पक्षपाती थे|

2) राहुल सांकृत्यायन का जन्म कहां हुआ?

इनका जन्म 9 अप्रैल, सन् 1893 ई0 को रविवार के दिन अपने नाना पं० रामशरण पाठक के यहाँ पन्दहा ग्राम, जिला आजमगढ़ में हुआ था|

3) लेखक ने तिब्बत की यात्रा कब की थी

उन्होंने अपनी पहली तिब्बत यात्रा 1929 से 1930 के बीच नेपाल के रास्ते से की थी|

4) राहुल सांकृत्यायन के माता-पिता का क्या नाम था?

इनके पिता का नाम गोवर्धन पांडे तथा माता का नाम कुलवंती देवी था|
 
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