क्या है धारा-304 बी?
भारतीय दंड संहिता में 1986 में एक नई धारा 304-बी को शामिल किया गया है। संहिता की यह नई धारा खासतौर पर दहेज हत्या या दहेज की वजह से होनी वाली मौतों के लिए बनाई गई है। यदि शादी के सात साल के भीतर किसी विवाहित महिला की जलने से, चोट लगने से या दूसरी असामान्य वजहों से मृत्यु हो जाती है और ये पाया जाता है कि दहेज की मांग की जा रही थी तथा अपनी मौत से ठीक पहले वह औरत पति या ससुराल वालों की तरफ से क्रूरता और उत्पीड़न का शिकार थी, तो आरोपियों पर धारा 304बी के मुकदमा दर्ज किया जाता है।1. असामान्य वजहों से मृत्यु
असामान्य वजहों से मृत्यु का अभिप्राय स्वाभाविक मृत्यु से इतर मृत्यु की घटना से है,जिसमे जलने, शारीरिक चोट, गला दबाने, जहर खाने, फांसी से आदि से होने वाली मौत शामिल है । धारा 304-B को प्रत्यक्ष प्रमाण की जरुरत नहीं है। (देविंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि किसी लड़की के द्वारा आरोप की उसके ससुराल वालों ने दहेज़ के लिए उसका जीना मुश्किल कर दिया था, के कारण की गयी आत्महत्या, उसकी मौत को अप्राकृतिक मौत की श्रेणी में रखती है।2. विवाह के सात वर्षो के भीतर मृत्यु
304-B के तहत मुकदमा दर्ज कराने के लिए विवाह के सात साल की नियत अवधि का होना आवश्यक है। अगर महिला की मौत शादी के सात साल बाद होती है तो ऐसे मामले को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दर्ज किया जाएगा । यदि महिला शादी के सात साल बाद ख़ुदकुशी कर लेती है तो धारा 306 (ख़ुदकुशी के लिए उकसाना) के साथ साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-A (विवाहित महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का पूर्वानुमान) के तहत दर्ज किया जा सकता है। डी. एस. सिसोदिया बनाम के. सी. समदरिया के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि 7 साल की अवधि विवाह की तिथि से गिनी जाती है न की लड़की की विदाई वाले दिन से।मृत्यु का कारण
माननीय उच्चतम न्यायालय ने कश्मीर कौर बनाम पंजाब राज्य के मामले में अभिनिर्धारित किया कि दहेज मृत्यु के निर्माण के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक हैं।- दहेज की मांग को लेकर मृत्यु से ठीक पहले मृतका को परेशान किया जाना।
- मृतका की मृत्यु** असामान्य वजहों से होना।
- ऐसी मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर होना।
- मृतका को कष्ट उसके साथ क्रूरता का व्यवहार अथवा परेशान स्वयं उसके पति या पति के घरवालो द्वारा किया जाना।
- यह सब कुछ दहेज की मांग को लेकर किया जाना।
- मृत्यु से ठीक पहले यातना दिया जाना अथवा परेशान किया जाना।
यह मानते हुए कि इन कारकों को स्थापित नहीं किया गया था, संदीप कुमार और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा तीन व्यक्तियों (मृतक पत्नी के पति, ससुर और सास) को धारा 304 बी के तहत दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया।
हरजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य के वाद में अभियुक्त की पत्नी की मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर जहर खिलाने के कारण हो गयी थी। इस बात का कोई साक्ष्य नहीं था जिससे यह दर्शित हो कि मृतका के साथ पति अथवा उसके घरवालों द्वारा धारा 498A के अधीन आने वाले दहेज अथवा दहेज सम्बन्धी किसी मांग के सम्बन्ध में क्रूरता या प्रपीड़न का व्यवहार किया गया। अतएव अपीलाण्ट को धारा 304Bअथवा धारा 306 के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है। आगे यह भी इंगित किया गया कि धारा 304B अथवा साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B के अन्तर्गत उपधारणा अपीलाण्ट के विरुद्ध नहीं की जा सकती है।
राम बदन शर्मा बनाम बिहार राज्य के वाद में मृतका की मृत्यु दहेज की मांग जो विवाह के समय से ही लगातार मृत्यु के समय तक की जा रही थी, मांग पूर्ण न किये जाने के कारण जहर दिया गया था। पति और सास ससुर द्वारा उसका उत्पीड़न तथा अपमानित किया जा रहा था। मृतका को उसके रिश्तेदारों को मिलने भी नहीं दिया जाता था। दुर्घटना के दिन मृतक को प्रसाद में जहर मिलाकर दिया गया।
अभियुक्तों ने रहस्यमय और गोपनीय तरीके से मृतका के माता-पिता जो उनके गांव से कुछ मील की दूरी पर रहते थे, को बिना सूचना दिये इसका दाह संस्कार कर दिया। अभियुक्त उसे उपचार हेतु अस्पताल भी नहीं ले गये और न तो मृतका का किसी प्रकार का चिकित्सीय उपचार ही कराया गया। चूंकि विवाह के सात वर्ष के अन्दर ही मृत्यु कारित हुई अतएव अभियुक्तगणों की भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304-ख के अधीन दहेज मृत्यु हेतु दोषसिद्धि उचित मानी गई। उसके साथ-साथ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 201 का भी दोषी माना गया।
दहेज का अर्थ
भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के अंतर्गत दहेज की परिभाषा नहीं दी गई है परंतु भारतीय दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 में जो दहेज की परिभाषा दी गई है वही दहेज इस धारा के अंतर्गत मानी जाएगी। यह बात स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश बनाम राजगोपाल आसावा ए आई आर 2004 सुप्रीम कोर्ट 1933 के मामले में कही गई है।धारा 304 बी के अंतर्गत सजा का प्रावधान
धारा 304 बी के अंतर्गत न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास और आजीवन कारावास तक का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ जुर्माने की व्यवस्था रखी गई है। यह संज्ञेय अपराध है और गैर जमानती अपराध है, जिसे सत्र न्यायालय द्वारा विचारण किया जाता है।
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