भारत हमेशा से ही ज्ञान का प्रकाश पूरे विश्व मे फैलाते आ रहा है आज से हजारों साल पहले से ही दुनिया का सबसे पहला विश्विद्यालय नालन्दा विश्वविद्यालय था उसके अलावा तक्षशिला एवं विक्रम शिला विश्वविद्यालय भी था ,जिसका अब सिर्फ खंडहर मात्र ही बचा है।
परन्तु हम आज यहाँ केवल नालन्दा विश्वविद्यालय की बात करेंगे।
पहले भी नालन्दा विश्वविद्यालय को नष्ट करने की कोशिश की गई थी
इसके पहले भी 7वी सताब्दी के आसपास गोदास ने इसको तोडा था और बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने इसका पुनः निर्माण कराया था।
क्यों खिलजी ने नष्ट किया।
11वी सदी में तुर्की सेना ने नालंदा के इलाको पर कब्ज़ा कर लिया था , परन्तु कुछ दिनों बाद वो बीमार पड़ गया और दूर दूर से हकीम बुलाये गए परतु स्वास्थ में कोई सुधार नहीं हो रहा था, उसकी बीमारी बढती ही जा रही थी , तो उसके मुलाजिमों ने नालंदा विश्वविद्यालय में एक बार दिखने की सलाह दी , लेकिन खिलजी इस्लामिक कट्टरवादी था इसलिए वो वह इलाज नहीं करना चाहता था उसे लगता था इतने दूर दूर से आये हकीम उसका इलाज नहीं कर पाए तो ये भिक्षु क्या कर पाएंगे , फिर भी जब उसकी बीमारी ठीक नहीं हुयी तो अंततः नालंदा विश्विद्यालय के प्राचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलाया गया तब उनके समक्ष खिलजी ने शर्त रख दी की मुझे तुम्हे ठीक करना है परन्तु तुम्हारी दी कोई भी दवा मै सेवन नहीं करूँगा , प्राचार्य राहुल श्रीभद्र वहाँ से चले गए और दूसरे दिन फिर खिलजी के यहाँ आये और खिलजी को कुरान की किताब दी तथा कहा की इसे दिन में दो बार पढ़ना है जबतक की आप ठीक न हो जाय , बख्तियार खिलजी वैसा ही किया और 1 सप्ताह के अंदर ठीक हो गया , बख्तियार खिलजी को समझ नहीं आया की ये कैसे हो सकता है , कहा जाता है की आचार्य राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान की किताबो के पन्नो के किनारे पर दवा के लेप लगा दिया था , जिसे खिलजी ने थूक लगाकर पढ़ा और दवा अन्दर गयी और वो ठीक हो गया।
खिलजी और क्रोधित हुआ की कैसे ये बौद्ध भिक्षु इस्लाम से आगे है उस वक्त बौद्ध धर्म का प्रचार भी बहुत जारो पर था , इसलिए खिलजी इस्लाम के प्रचार को बढ़ाने और बौद्ध धर्म को नष्ट करने के लिए बौद्ध धर्म का एक मात्र केंद्र को नष्ट करने के लिए नालंदा विश्विद्यालय को जला दिया ,जिसमे करोड़ो पाण्डुलिपि और किताबे जला दी गयी और उसके साथ ही वहाँ के विद्यार्थी तथा आचर्यों को भी जिन्दा जला दिया गया।
6 महीने तक पुस्तकालय की क़िताबों से धुँवा निकलता रहा , इस बात से ही नालन्दा विश्वविद्यालय की भब्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है , आज भी आप कभी नालंदा जाय तो नालन्दा विश्वविद्यालय के खंडहर को जरूर देखें आप उसकी भब्यता का अंदाजा लगा सकते है।
नालन्दा विश्वविद्यालय पुर्णतः मिट्टी से ढंक गया था।
नालंदा विश्वविद्यालय जलाने के बहुत बाद ये मिट्टी से पूणतया ढंक गया था जिसके ऊपर बाद में खेती होने लगी , परंतु जब नालंदा विश्वविद्यालय के बारे पहली बार चीन के इतिहासकार व्हेनसांग और इत्सिंग ने बताया था , ये दोनों एक चीनी यात्री थे जो 7वी सताब्दी में भारत आये थे और उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया था, तब यहाँ 1 किलोमीटर के दायरे में ख़ुदाई हुई तो ये खंडहर दिखाई दिया जिसपे जले के निशान आज भी देखा जा सकता है ये विश्वविद्यालय 10 से 12 किलोमीटर के दायरे में फैला था परंतु 1 किलोमीटर में ही खुदाई हुई है बाकी एरिया में आज भी खेती होती है ।यहाँ के कुवें अब भी सुरक्षित है और उपासना गृह भी साफ दिखाई देता है।
परन्तु हम आज यहाँ केवल नालन्दा विश्वविद्यालय की बात करेंगे।
कब और किसने बनवाया नालन्दा विश्वविद्यालय
ये पूर्णतः ज्ञात नहीं है कि नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण किसने कराया था , परन्तु नालंदा विश्वविद्यालय को जब बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था, तब उसके बहुत बाद उन खंडहरों का जब पुनः रीसर्च किया गया तो उसमे कई ऐसी मुद्राये मिली जिससे ये अंदाजा लगाया गया की नालंदा विश्वविद्यालय 5वी शताब्दी के आसपास गुप्त वंश के शाशक कुमार गुप्त द्वारा बनवाया गया होगा।नालंदा विश्वविद्यालय की खुबिया
- तक्षशिला के बाद नालंदा दूसरा सबसे पुराना विश्वविद्यालय माना जाता था , और नालंदा विश्वविद्यालय 800 सालो तक शिक्षा का केंद्र बना हुआ था
- नालंदा विश्वविद्यालय में लगभग 2000 शिक्षक (आचार्य ) और 10000 विद्यार्थी थे , जिनका सलेक्शन मेरिट बेसिस पर होता था , और सभी को निशुल्क शिक्षा दी जाती थी ये विद्यालय उस वक्त का पहला अवासीय विद्यालय था , इस विद्यालय का खर्च कुछ तो वहाँ के शाशक और कुछ विद्यालय खुद उठती थी , क्योंकि उनमे में डॉक्टर्स कारीगर सभी थे यहाँ सभी तरह का ज्ञान दिया जाता था।
- नालंदा विश्वविद्यालय के बारे पहली बार चीन के इतिहासकार व्हेनसांग और इत्सिंग ने बताया था , ये दोनों एक चीनी यात्री थे जो ७वी सताब्दी में भारत आये थे और उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया था।
- ऐसा कहा जाता रहा है की नालंदा विश्वविद्यालय में गौतम बुध भी कई बार आकर रहे है, इस विद्यालय में हर्षवर्धन , धर्मपाल आर्यवेद नागार्जुन आदि कई और विद्वानों ने यहाँ शिक्षा ग्रहण किया था।
- इसमें धर्मगूंज नाम की 9 मंजिला पुस्तकालय था जिसे ३ तीन अलग अलग नाम में कैटेगरीज किया गया था उसका नाम रत्नरंजक , रत्नोदधि और रत्नसागर था, यहाँ 90 लाख पाण्डुलिपि और लांखो किताबे थी , कहा जाता है की जब खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया था तो उसके पुस्तकालय की आग 6 महीने तक जलती रही थी अब इससे ही कल्पना की जा सकती है की यहाँ कितनी किताबे रही होंगी।
- उस वक्त यहाँ साहित्य , खगोल शास्त्र , विज्ञानं, युद्धकला,राजनीती शास्त्र , इतिहास , गणित , भाषा विज्ञानं , आयुर्वेद , भूगोल इत्यादि शिक्षा दी जाती थी।
कहाँ कहाँ से लोग आते थे नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने
इस विद्यालय में भारत के अलावा कई देशो से विद्यार्थी आते थे ज्ञान लेने , भारत के अलावा चीन, जापान, तिब्बत ,भूटान ,इंडोनेशिया , ईरान इराक, ग्रीस, मंगोलिया ,मलेशिया आदि देशो से यहाँ लोग ज्ञान अर्जित करने आते थे।रहस्य्मयी किताबे और उनका रहस्य
1923 में English writer Talbot Mundey ने अपने एक book The nine unknown में सम्राट अशोक के 9 रहस्मयी लोगो के बारे बताया था की उनके पास 9 अलग अलग विषयों की किताबे थी जो इतनी रहस्मयी थी कि उससे दुनिया बदल सकती थी इसलिए उसको छुपा रखना अति आवशयक था और इसीलिए सम्राट अशोका ने 9 unknown लोगो को चुना जिनकी पहचान दुनिया से छुपा दी गयी और उनको ये किताबें दी गयी ताकि वे इन किताबों के ज्ञान को बढ़ा सके तथा इसकी रक्षा कर सके , कहा जाता है की वे लोग इसकी रक्षा आज भी कर रहे है ,और वे लोग नालंदा विश्वविद्यालय के ही विद्यार्थी थे और वे किताबे भी वही की थी जिन्हें वहाँ छुपा रखा गया था।आखिर क्यों बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला डाला तथा बौद्ध भिक्षुओ को जिन्दा जला दिया
1193 में तुर्क सेनापति इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और उसकी तुर्की सेना नालंदा विश्विविद्यालय को पूर्णतः जला डाला और साथ में वहाँ के बौद्ध विक्षुओ को भी जिन्दा जला डाला।पहले भी नालन्दा विश्वविद्यालय को नष्ट करने की कोशिश की गई थी
इसके पहले भी 7वी सताब्दी के आसपास गोदास ने इसको तोडा था और बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने इसका पुनः निर्माण कराया था।
क्यों खिलजी ने नष्ट किया।
11वी सदी में तुर्की सेना ने नालंदा के इलाको पर कब्ज़ा कर लिया था , परन्तु कुछ दिनों बाद वो बीमार पड़ गया और दूर दूर से हकीम बुलाये गए परतु स्वास्थ में कोई सुधार नहीं हो रहा था, उसकी बीमारी बढती ही जा रही थी , तो उसके मुलाजिमों ने नालंदा विश्वविद्यालय में एक बार दिखने की सलाह दी , लेकिन खिलजी इस्लामिक कट्टरवादी था इसलिए वो वह इलाज नहीं करना चाहता था उसे लगता था इतने दूर दूर से आये हकीम उसका इलाज नहीं कर पाए तो ये भिक्षु क्या कर पाएंगे , फिर भी जब उसकी बीमारी ठीक नहीं हुयी तो अंततः नालंदा विश्विद्यालय के प्राचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलाया गया तब उनके समक्ष खिलजी ने शर्त रख दी की मुझे तुम्हे ठीक करना है परन्तु तुम्हारी दी कोई भी दवा मै सेवन नहीं करूँगा , प्राचार्य राहुल श्रीभद्र वहाँ से चले गए और दूसरे दिन फिर खिलजी के यहाँ आये और खिलजी को कुरान की किताब दी तथा कहा की इसे दिन में दो बार पढ़ना है जबतक की आप ठीक न हो जाय , बख्तियार खिलजी वैसा ही किया और 1 सप्ताह के अंदर ठीक हो गया , बख्तियार खिलजी को समझ नहीं आया की ये कैसे हो सकता है , कहा जाता है की आचार्य राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान की किताबो के पन्नो के किनारे पर दवा के लेप लगा दिया था , जिसे खिलजी ने थूक लगाकर पढ़ा और दवा अन्दर गयी और वो ठीक हो गया।
खिलजी और क्रोधित हुआ की कैसे ये बौद्ध भिक्षु इस्लाम से आगे है उस वक्त बौद्ध धर्म का प्रचार भी बहुत जारो पर था , इसलिए खिलजी इस्लाम के प्रचार को बढ़ाने और बौद्ध धर्म को नष्ट करने के लिए बौद्ध धर्म का एक मात्र केंद्र को नष्ट करने के लिए नालंदा विश्विद्यालय को जला दिया ,जिसमे करोड़ो पाण्डुलिपि और किताबे जला दी गयी और उसके साथ ही वहाँ के विद्यार्थी तथा आचर्यों को भी जिन्दा जला दिया गया।
6 महीने तक पुस्तकालय की क़िताबों से धुँवा निकलता रहा , इस बात से ही नालन्दा विश्वविद्यालय की भब्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है , आज भी आप कभी नालंदा जाय तो नालन्दा विश्वविद्यालय के खंडहर को जरूर देखें आप उसकी भब्यता का अंदाजा लगा सकते है।
नालन्दा विश्वविद्यालय पुर्णतः मिट्टी से ढंक गया था।
नालंदा विश्वविद्यालय जलाने के बहुत बाद ये मिट्टी से पूणतया ढंक गया था जिसके ऊपर बाद में खेती होने लगी , परंतु जब नालंदा विश्वविद्यालय के बारे पहली बार चीन के इतिहासकार व्हेनसांग और इत्सिंग ने बताया था , ये दोनों एक चीनी यात्री थे जो 7वी सताब्दी में भारत आये थे और उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया था, तब यहाँ 1 किलोमीटर के दायरे में ख़ुदाई हुई तो ये खंडहर दिखाई दिया जिसपे जले के निशान आज भी देखा जा सकता है ये विश्वविद्यालय 10 से 12 किलोमीटर के दायरे में फैला था परंतु 1 किलोमीटर में ही खुदाई हुई है बाकी एरिया में आज भी खेती होती है ।यहाँ के कुवें अब भी सुरक्षित है और उपासना गृह भी साफ दिखाई देता है।
कैसे जाए नालन्दा विश्वविद्यालय के खंडहर को देखने।
नालन्दा बिहार राज्य का एक जिला है जहाँ ट्रैन और बस दोनों की सुविधा है नालन्दा पटना से 87 km के आस पास हैं।इस देश का दुर्भाग्य
जिस बख्तियार खिलजी ने लाखो लोगो को मारा और नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया हो ,उसके बावजूद आज भी उसके नाम से गावं और रेलवे स्टेशन है , आज वो किताबे होती तो हमारा देश पुनः ज्ञान का प्रकाश फैला रहा होता , वैसे लोगो के नाम का रेलवे स्टेशन होना ही देश के लिये दुर्भाग्य की बात है।
मॉडरेटर द्वारा पिछला संपादन: