हिन्दूस्तान की वीरांगना शेरनी रानी रुदाबाई की अदम्य साहस की कहानी ।
सन 1498 इसवी (संवत 1555) दो बार युद्ध में परास्त होने के बाद सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार फिरसे साहूकार से मिली जानकारी के बल पर दुगने सैन्यबल के साथ आक्रमण किया, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगने सैन्यबल देख कर भी रणभूमि नहीं त्यागी और असीम पराक्रम और शौर्य के साथ लड़ाई की, जब राणाजी सुल्तान बेघारा के सेना को खदेड कर सुल्तान बेघारा की और बढ़ रहे थे तब उनके भरोसेमंद साथी साहूकार ने पीछे से वार कर दिया, जिससे राणाजी की रणभूमि में मृत्यु हो गयी।
रानी रुदाबाई ने इस युद्ध के बाद जल समाधी ले ली ताकि उन्हें कोई और आक्रमणकारी अपवित्र ना कर पाए।
धन्य है हे भारत भूमि जिसने ऐसी अदम्य साहस वाली वीरांगनाओं को जन्म दिया शत शत नमन।
पाटण की रानी रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर दिल निकाल लिया और सिर काटकर पाटण में और दिल अहमदाबाद के बीचों बीच लटका दिया।
14वी शताब्दी इसवी सन 1460-1498 पाटण राज्य गुजरात से कर्णावती ( वर्तमान अहमदाबाद ) के राजा थे राणा वीर सिंह वाघेला, यह वाघेला राजपूत राजा की एक बहुत सुन्दर रानी थी जिनका नाम था रुदाबाई पाटण राज्य बहुत ही वैभवशाली राज्य था । इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली.राणा वीर सिंह बाघेला ने 2600 की फौज के साथ सुल्तान बेघारा की 40000 कि फ़ौज को धुल चटा दी
सुल्तान बेघारा ने सन् 1497 पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की 40000 से अधिक संख्या की फ़ौज 2 घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई । राणा वीर सिंह की फ़ौज 2600 से 2800 की तादात में थी क्योंकि कर्णावती और पाटण बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे इनमे ज्यादा फ़ौज की आवश्यकता उतनी नहीं होती थी राणाजी की रणनीति ने 40000 की जिहादी लूटेरो की फ़ौज को धुल चटायी थी, परन्तु द्वितिय युद्ध में राणा जी के साथ रहनेवाले निकटवर्ती मित्र घन्नू साहूकार ने राणा वीर सिंह को धोखा दिया एवं सुल्तान बेघारा के साथ मिलकर राणा वीरसिंह वाघेला को मारकर उनकी स्त्री एवं धन लूटने की योजना बनाई!छल से सुल्तान बेघारा ने राणा वीर सिंह को मारा
सुल्तान बेघारा ने साहूकार को बताया अगर युद्ध में जीत गए तो जो मांगोगे दूंगा तब साहूकार की दृष्टि राणा वाघेला की सम्पत्ति पर थी और सुल्तान बेघारा की नज़र रानी रुदाबाई को अपने हरम में रखने की एवं पाटण राज्य की राजगद्दी पर आसीन होकर राज करने की थी । साहूकार जा मिला सुल्तान बेघारा से और सारी गुप्त जानकारी उसे प्रदान कर दी । जिस जानकारी से राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी रुदाबाई एवं पाटण की गद्दी को हड़पा जा सकता था।सन 1498 इसवी (संवत 1555) दो बार युद्ध में परास्त होने के बाद सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार फिरसे साहूकार से मिली जानकारी के बल पर दुगने सैन्यबल के साथ आक्रमण किया, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगने सैन्यबल देख कर भी रणभूमि नहीं त्यागी और असीम पराक्रम और शौर्य के साथ लड़ाई की, जब राणाजी सुल्तान बेघारा के सेना को खदेड कर सुल्तान बेघारा की और बढ़ रहे थे तब उनके भरोसेमंद साथी साहूकार ने पीछे से वार कर दिया, जिससे राणाजी की रणभूमि में मृत्यु हो गयी।
रानी रुदाबाई ने राणा जी की मृत्यु का बदला इस तरह लिया कि कोई दूसरा ऐसी कपट भावना न पाल सके
साहूकार ने जब सुल्तान बेघारा को उसके बचन अनुसार राणाजी के धन को लूटकर उनको देने का वचन याद दिलाया तब सुल्तान बेघारा ने कहा “एक गद्दार पर कोई ऐतबार नहीं करता हैं गद्दार कभी भी किसी से भी गद्दारी कर सकता हैं” । सुल्तान बेघारा ने साहूकार को हाथी के पैरो के तले फेंककर कुचल डालने का आदेश दिया और साहूकार की पत्नी एवं साहूकार की कन्या को अपने सिपाही के हरम में भेज दिया।सुल्तान बेघारा को रुदाबाई ने दी दर्दनाक मौत
सुल्तान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर 10000 से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा। रानी रूदा बाई के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा। रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे 2400 धनुर्धारी वीरांगनाये थी, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी । रानी रुदाबाई जी केवल सौंदर्य की धनि नहीं थी बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनि थी उन्होंने सुल्तान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने को कहा सुल्तान बेघारा वासना मे अंधा होकर वैसा ही किया जैसा राणीजी ने कहा, और राणी ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया।रानी रुदाबाई ने सुल्तान बेघारा का सर काटकर चौरस्ते पर टांग दिया
सुल्तान बेघारा को मारकर रानी रुदाबाई ने सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था और उसके सर को धड से अलग करके पाटण राज्य के बिच टंगवा दिया साथ ही यह चेतावनी भी दी की कोई भी अताताई भारतवर्ष पर या हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा।रानी रुदाबाई ने इस युद्ध के बाद जल समाधी ले ली ताकि उन्हें कोई और आक्रमणकारी अपवित्र ना कर पाए।
धन्य है हे भारत भूमि जिसने ऐसी अदम्य साहस वाली वीरांगनाओं को जन्म दिया शत शत नमन।
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