ऐसे कितने ही महायुद्ध राजपूतों ने लड़े परंतू आज राजपूतों के इतिहास को छुपाया या बदला जा रहा हैं।
पृथ्वी राज चौहान ने विदेशी आक्रांता मोहम्मद गौरी को 17 बार पराजीत किया था , परंतु जयचंद के गद्दारी के कारण 180 वें युद्ध मे पृथ्वीराज हार गये, और निर्दयी मोहम्मद गौरी ने उन्हे अपने देश गजनी ले जाकर खूब यतानाएँ दी, परंतु फिर भी पृथ्वी राज चौहान मरने से पहले शब्दभेदी बान चलाकर मोहम्मद गौरी को मार दिया था, कुछ इतिहासकारों का कहना हैं की मोइनुद्दीन चिस्ती ने ही मोहम्मद गौरी को भारत लाया था क्योंकि पृथ्वी राज चौहान के रहते मोइनुद्दीन चिस्ती अज़मेर मे इश्लाम का प्रचार प्रसार नहीं कर पा रहा था , पृथ्वी राज चौहान की मृत्यू के बाद उनकी पत्नी संगीता को मोइनुद्दीन और उसके सैनिक पकड़ लिये थे, और उनका वस्त्र हरण कर रहे थे तभी पृथ्वी राज चौहान की भतीजीयों ने सैनिको को मार कर संगीता को बचाया कहा जाता हैं की उसी दौरान मोइनुद्दीन चिस्ती को भी उनकी भतीजीयों ने मार दिया था, बाद मे संगीता ने अपने ही किले मे जौहर कर लिया था।
और आज उसी ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिस्ती अजमेर शरीफ की मज़ार पर कुछ मूर्ख हिंदु माथा टेकते हैं जिसने 70 लाख से भी ज्यादा हिंदुओ को जबरन मुसलमान बना दिया था।
इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई जाती है जिसमे हम कमजोर रहे, अथवा बदले हुवे इतिहास को ही पढ़ाया जाता रहा हैं।
वरना बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर मुगल की औरतो के गर्भ गिर जाया करते थे, रावत रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाडा का त्यागपढाया नही गया जिसने अपना सिर काटकर दे दिया था।
पाली के आउवा के ठाकुर खुशहाल सिंह को नही पढाया जाता, जिन्होंने एक अंग्रेज के अफसर का सिर काटकर किले पर लटका दिया था,जिसकी याद मे आज भी वहां पर मेला लगता है। दिलीप सिंह जूदेव का नही पढ़ाया जाता जिन्होंने एक लाख आदिवासियों को फिर से हिन्दू बनाया था।
धन्यवाद।
1840 का काबुल का युद्ध
सन् 1840 में काबुल में एक युद्ध हुआ था जिसके बारे मे बहुत कम लोग जानते हैं , इस युद्ध में मुठ्ठी भर राजपुतों ने अफगानों को घंटे भर के अंदर ही परास्त कर दिया था, इस युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी 1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये थे और हमारे फिल्मकार इस युद्ध को नहीं बतायेंगे,ये फिल्मकार सिर्फ मुगलों के चरितार्थ करने मे लगे रहते हैं।पृथ्वी राज चौहान और विदेशी आक्रांता मोहम्मद गौरी के बीच का युद्ध।
पृथ्वी राज चौहान ने विदेशी आक्रांता मोहम्मद गौरी को 17 बार पराजीत किया था , परंतु जयचंद के गद्दारी के कारण 180 वें युद्ध मे पृथ्वीराज हार गये, और निर्दयी मोहम्मद गौरी ने उन्हे अपने देश गजनी ले जाकर खूब यतानाएँ दी, परंतु फिर भी पृथ्वी राज चौहान मरने से पहले शब्दभेदी बान चलाकर मोहम्मद गौरी को मार दिया था, कुछ इतिहासकारों का कहना हैं की मोइनुद्दीन चिस्ती ने ही मोहम्मद गौरी को भारत लाया था क्योंकि पृथ्वी राज चौहान के रहते मोइनुद्दीन चिस्ती अज़मेर मे इश्लाम का प्रचार प्रसार नहीं कर पा रहा था , पृथ्वी राज चौहान की मृत्यू के बाद उनकी पत्नी संगीता को मोइनुद्दीन और उसके सैनिक पकड़ लिये थे, और उनका वस्त्र हरण कर रहे थे तभी पृथ्वी राज चौहान की भतीजीयों ने सैनिको को मार कर संगीता को बचाया कहा जाता हैं की उसी दौरान मोइनुद्दीन चिस्ती को भी उनकी भतीजीयों ने मार दिया था, बाद मे संगीता ने अपने ही किले मे जौहर कर लिया था।
और आज उसी ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिस्ती अजमेर शरीफ की मज़ार पर कुछ मूर्ख हिंदु माथा टेकते हैं जिसने 70 लाख से भी ज्यादा हिंदुओ को जबरन मुसलमान बना दिया था।
चितोड का तीसरा युद्ध
वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000 मुगलो के मध्य हुयी थी वहा अगर राजपूत 15000 राजपूत होते तो अकबर भी जिंदा बचकर नहीं जाता।इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे वही 10000 के करीब घायल थे।सुमेर गिरी का युद्ध
मारवाड़ के 6 हजार योद्धाओं ने शेरशाह की 80 हजार से ज्यादा मुगल सेना को पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। मारवाड़ के रण बांकुरों के शौर्य की साक्षी रही सुमेल गिरी रणभूमि इतिहास के पन्नों में अपने गौरव के लिए जानी जाती है। पहाड़ी दर्रों के बीच हुए हल्दी घाटी युद्ध से भी 32 साल पूर्व मारवाड़ के पहाड़ी मैदान में लड़ी गई इस लड़ाई के जांबाज राव जैता, राव कूंपा, राव खींवकरण, राव पंचायण, राव अखैराज सोनगरा, राव अखैराज देवड़ा, राव सूजा, मान चारण, लुंबा भाट अलदाद कायमखानी सहित 36 कौम के लगभग 6 हजार (कुछ किताबों में 12 हजार) सैनिकों ने शेरशाह की 80 हजार सैनिकों की भारी भरकम सेना का डटकर मुकाबला किया था। शासक मालदेव के प्रति विश्वास और जन भावना से उपजे जोश के बूते इन जांबाजों ने सीमित संसाधनों के बावजूद भी अपना रण कौशल दिखाया था। इससे शेरशाह के सैनिकों में भगदड़ मच गई थी। छोटी सेना के बड़े पराक्रम को भांप कर शेरशाह के सैनिकों ने उनको गिरी-सुमेल छोड़ने की सलाह दी थी और बौखलाए शेरशाह को तब यह कहना पड़ा था कि एक मुट्ठी बाजरे के लिए वह दिल्ली की सल्तनत खो देता। इस रण में मारवाड़ के पराक्रमी जांबाज शहीद हो गए लेकिन इनका युद्ध कौशल, युद्ध स्थल इतिहास का अध्याय बन गया।हल्दी घाटी की युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के बीच का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 को मेवाड़ के राजपूत शासक महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया था। ये युद्ध बहुत लंबा चला था , मुट्ठी भर राजपूतों ने हज़ारों की सेना हौसला तोड़ दिया आखिरकार इस भयानक युद्ध को देखते हुवे अकबर को पीछे हटना पड़ा। परंतु भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने युद्ध से जुड़े कुछ शिलालेख हटा लिए हैं। अब एएसआई इस युद्ध पर नया इतिहास लिख रहा है, जिसके पूरा होने पर नए शिलालेख लगाएगा, जिसपर पूरा इतिहास लिखा होगा ,वमपंतियों ने हल्दी घाटी के इस युद्ध मे अकबर को विजेता बनाने की पुरजोर कोशिश किये थे।इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई जाती है जिसमे हम कमजोर रहे, अथवा बदले हुवे इतिहास को ही पढ़ाया जाता रहा हैं।
वरना बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर मुगल की औरतो के गर्भ गिर जाया करते थे, रावत रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाडा का त्यागपढाया नही गया जिसने अपना सिर काटकर दे दिया था।
पाली के आउवा के ठाकुर खुशहाल सिंह को नही पढाया जाता, जिन्होंने एक अंग्रेज के अफसर का सिर काटकर किले पर लटका दिया था,जिसकी याद मे आज भी वहां पर मेला लगता है। दिलीप सिंह जूदेव का नही पढ़ाया जाता जिन्होंने एक लाख आदिवासियों को फिर से हिन्दू बनाया था।
ऐसे ही कुछ महान राजपूतों के नाम
- महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर
- महाराणा प्रतापसिंह
- महाराजा रामशाह सिंह तोमर
- वीर राजे शिवाजी
- राजा विक्रमाद्तिया
- वीर पृथ्वीराजसिंह चौहान
- हमीर देव चौहान
- भंजिदल जडेजा
- राव चंद्रसेन
- वीरमदेव मेड़ता
- बाप्पा रावल
- नागभट प्रतिहार(पढियार)
- मिहिरभोज प्रतिहार(पढियार)
- राणा सांगा
- राणा कुम्भा
- रानी दुर्गावती
- रानी पद्मनी
- रानी कर्मावती
- भक्तिमति मीरा मेड़तनी
- वीर जयमल मेड़तिया
- कुँवर शालिवाहन सिंह तोमर
- वीर छत्रशाल बुंदेला
- दुर्गादास राठौर
- कुँवर बलभद्र सिंह तोमर
- मालदेव राठौर
- महाराणा राजसिंह
- विरमदेव सोनिगरा
- राजा भोज
- राजा हर्षवर्धन बैस
- बन्दा सिंह बहादुर
धन्यवाद।
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