विश्व की पहली साम्राज्ञी नाग्निका सातकर्णी - Nagnika Satakarni, the first ruler of the world in hindi

ब्राह्मण महारानी नाग्निका सातकर्णी विश्व की पहली साम्राज्ञी, ब्राह्मण कुलवधू, सातवाहन ब्राह्मण वंश की महारानी नाग्निका सातकर्णी।

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भारत ही नहीं अपितु पुरे विश्व की पहली सम्रागी शासिका बनी थी श्री सातकर्णि की अर्धांगिनी नागनिका परन्तु हमारे इतिहास को छुपा दिया गया और मिटाने की पुरजोर कोशिश भी की गई, भारत मे जब इस्लाम का आगमन हुआ तब से इतिहासकार भी इस्लाम के ग़ुलाम बन गये और इस्लाम का महिमामंडन शुरू हो गया फिर अंग्रेजों का आगमन हुआ और अग्रेजो का तो मकसद ही यही था की भारत की संस्कृति शिक्षा और इतिहास को मिटा दिया जाय तभी इस देश को लंबे समय तक ग़ुलाम बनाया जा सकता है।महारानी नाग्निका सातकर्णी और गौतमी पुत्र सातकर्णि जैसे राजाओं का इतिहास को ही छुपा दिया गया ताकि इस्लाम का महिमामंडन किया जा सके।


राजा सातकर्णि कि विधवा थी महारानी नाग्निका सातकर्णी​

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पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल के बाद लगभग 518 वर्षों तक सातवाहन (शालिवाहन) राजवंश का समृद्ध इतिहास मिलता है इसी वंश की तीसरी पीढ़ी की राज-शासिका थी-‘महारानी नागनिका’

विश्व के इतिहास में सम्रागी नागनिका पहली महिला-शासक मानी जाती है नागनिका सम्राट सिमुक सातवाहन की पुत्रवधू तथा श्री सातकर्णी की पत्नी थी।

युवावस्था में ही श्री सातकर्णी का निधन हो जाने से वह राज्य-कार्यभार सँभालती है सातवाहन काल में राज्य शासन केंद्र था वृहद् महाराष्ट्र,जिसमें कर्णाटक-कोंकण तक सम्मिलित थे जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान (पैठण) थी।

हिंदू विचार धारा और संम्राज्य की रक्षा के लिये लडी थी नाग्निका सातकर्णि​

सातवाहन (शालिवाहन) काल में सीरिया, बेबीलोनिया के असुरी शक्तिओ का प्रभाव था यह इतने क्रुर थे जहाँ भी जाते थे लूटपाट मचाते थे , सनातन संस्कृति को नष्ट करना इनका मूल उद्देश्य होता था।

जब श्री सातकर्णि शालिवाहन सम्राट का युद्ध में निधन हुआ तो असुरी शक्ति के प्रभाव से शालिवाहन साम्राज्य को नुक्सान भी हुआ था वस्तुतः राष्ट्रनिर्माण हो जाने पर राष्ट्रविकास की संकल्पना को पूर्ण करते समय प्रथम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य सीमा रक्षण का होता है जिसमे चूंक होना विनाश का बुलावा होता है।

आज भी इन बातों पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है राज्य सबल, सुन्दर, विकसित और सम्पन्न तभी हो सकेगा जब राष्ट्र निर्भय होगा।

हम शान्तिप्रिय हैं और हम अहिंसा के पुजारी हैं इसका कोई, मनमाना अर्थ न निकाल ले इसलिए हमें अपने राष्ट्र को सामर्थ्यशाली साधन सम्पन्न बनाना चाहिए।

किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कोई शत्रु कभी हम पर आक्रमण नहीं करेगा दुष्ट और हिंसक प्रवृत्तियाँ कभी समाप्त नहीं होती हैं यथावसर ऐसी प्रवृत्तियाँ विश्व-विनाशकारी सिद्ध होती हैं इसलिए राष्ट्रसेना सुरक्षित, सुसज्जित और प्रशिक्षित होनी चाहिए..

इसी वैचारिकता को आत्म सात करते हुए महारानी नागनिका ने कहा -भविष्य में हम अपने राष्ट्र में अन्तरिम और बाह्य कैसे भी विद्रोह अथवा आक्रमण को क्षमा नहीं करेंगे महामन्त्री सुशर्मा ! आप इस समाचार को त्वरित प्रसारित करने की व्यवस्था कीजिए ! महारानी नागनिका ने गर्जना की।


महारानी नागनिका के आगे157 विदेशी असुरों ने घुटने टेक दिये थे​

वीरांगना सम्रागी नागनिका सातकर्णि ने शालिवाहन साम्राज्य और वैदिक हिन्दू संस्कृति के सूर्य को कभी अस्त नहीं होने दिया साम्रगी नागनिका के समय 781-764 (ई.पूर्व) 6 युद्ध हुये अस्सीरिया मेसोपोटामिया (Mesopotami , Assyria) के असुरों के खिलाफ शाल्मनेसेर चतुर्थ 773 (ई.पूर्व)और आशूर निरारि पंचम 755 (ई.पूर्व) यह असुर प्रजाति के थे यह जिस राज्य में कदम रखते थे वहाँ के नारियों को यह अपना निशाना बनाते थे , दर्दनाक शारीरिक यातनाओं से गुजरना पड़ता था ना केवल धन लूटते थे अपितु संस्कृति का विनाश कर देते थे..

यह कोई सौ पचास हज़ार की तादात में सेना लेकर नहीं आते थे यह मेसोपोटमिया के असुर दल लाखों की संख्या में सेना लेकर आते थे, सम्रागी नागनिका के राज्य शासन की राजधानी महाराष्ट्रा थी, इन्होंने कई लड़ाईयां लड़ी शाल्मनेसेर चतुर्थ के साथ प्रथम लड़ाई लड़ी गई थी जहाँ इतिहासकार "रोबर्ट वालमन" ने अपनी पुस्तक "वर्ल्ड फर्स्ट वारियर" में लिखा हैं "सम्रागी नागनिका ने अरब तक राज्य विस्तार की थी उनके तलवार के आगे 157 विदेशी असुरों ने घुटने टेक दिये थे।

शुभांगी भदभ जैसे इतिहासकारों ने महारानी नाग्निका को अपने इतिहासकारों अपने उपन्यास मे जगह दी​

आगे शुभांगी भदभ नाम की इतिहासकार "सम्रागी नागनिका नमक उपन्यास" में लिखती हैं "असुर- निरारि पंचम की 1,36,000 संख्या वाली दानव शक्ति को नाग्निका ने भारत की पुण्यभूमि से बहुत बुरी तरह खदेड़ दिया था, साम्रगी नागनिका के मृत्यु के पश्चात भी इन दानवों की हिम्मत नहीं हो पायी दोबारा आर्यावर्त पे आक्रमण करने की सम्रागी नागनिका बेबीलोनिया, मेसोपोटमिया और अरबी हमलावरों को भारत से ना केवल खदेडती थी अपितु उनका पूर्णरूप से विनाश कर देती थी ,ताकि ये बर्बर आक्रमणकारि दोबारा सनातन राष्ट्र भारत पर आक्रमण करने का सोच भी ना सके यह प्रसिद्ध लड़ाइयाँ कर्णाटक-कोंकण पैठण में लड़ी गयी थी"

सम्रागी नागनिका ना केवल एक कुशल महारानी साथ ही साथ सनातन हिन्दू संस्कृति के संरक्षण के लिए अवतरित हुई एक विलक्षण,रण कौशलिनी, युद्ध के 49 कला से निपुण शासिका थी, शत्रुओं के बल और दर्प (घमण्ड) का अन्त तो करती थी साथ ही साथ अगर ज़रूरत होती थी तो शत्रु का पूर्णरूप से मा दुर्गा की तरह नाश कर देती थी।

सम्रागी नागनिका सातकर्णि अतिकुशल राजनीतिज्ञ भी थी उन्होंने राजनीती के बल पर घोर विरोधी राज्य को भी बिना युद्ध लड़े एक छत्र शासन में ले आई थी।

विश्व की पहली सम्रागी नागनिका सातकर्णि पहली शासिका थी जिन्होंने युद्ध में नेतृत्व करते हुए खुद भी युद्ध लड़ी थी असुर दलों के विरुद्ध और अरब तक राज्य विस्तार की थी। ब्यापार के लिए सिक्को प्रचलन किया।

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ज़रा सोचिये मित्रो यह बात कोई आधुनिक ज़माने की बात नहीं हैं यह बात 782(ई.पूर्व) की बात हैं यह तब की बात हैं जब यूरोप में कोई शासिका बनना तो दूर घर से चौखट लांग कर जाने तक के लिए पूछना पड़ता था,

तब हमारे भारत की नारी सम्रागी बन कर भारत का सनातनी भगवा ध्वज अरब में लहराई थी।

नाग्निका विश्व की पहली महारानी हैं जिनके नाम का सिक्का निकला था।
 
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