आज जब सेना मे स्त्रियों की भागीदारी भी बढ़ रही है तब आपको बताना चाहूंगा की भारत मे हमेशा ही स्त्रियों भागीदारी युद्ध मे रही है और भारत हमेशा से वीरों और विरंगनाओं का देश रहा हैं, चाहे वो नाग्निका सातकर्णि हो या झांसी की रानी या पुतली बाई हो, इन विरंगनाओं ने देश के लिए सब कुछ नुच्छा्वर् कर दिया था।
ऐसी ही एक कहानी उन वीर स्त्रियों की हैं जिन्होंने 1962 के चीनी और भारत के युद्ध मे भाग लिया था, शायद कुछ ही लोग होंगे जो इस कहानी को जानते होंगे की साड़ी पहनी स्त्रियों ने भारत-चीन युद्ध मे भाग लिया था और तबतक युद्ध लड़ी जबतक की युद्ध विराम नहीं की घोषणा नहीं हुई।
जब भारतीय सेना ने चीन से एक अपना राज्य गँवा दिया था तब साड़ियाँ पहने - भारतीय होमगार्ड की लड़कियों ने राइफल्स उठाई और शक्तिशाली पीएलए का सामना करने का फ़ैसला किया!!
साड़ियों में ये लड़कियाँ हाथ में बंदूक़ लेकर भारत चीन का गौरवशाली इतिहास लिखने चल पड़ीं।
यह कहानी आधे से ज़्यादा भारतीयों को पता ही नहीं है।
तेज़पुर में भारतीय होमगार्ड की इन लड़कियों ने बंदूक़ें उठाई, चीन की सेना का सामना करने का निर्णय लिया और युद्ध विराम तक लड़ीं!!
इन महिलाओं ने दिखाया कि अगर देश में युद्ध की स्थिति हो तो महिलाएँ भी पुरुषों से कम नहीं हैं!!
किंतु हमारे देश के वामपंथी इतिहासकारों ने इस पराक्रम को हमारे पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं दिया!!
सैल्यूट है भारत की नारी शक्ति को
ऐसी ही एक कहानी उन वीर स्त्रियों की हैं जिन्होंने 1962 के चीनी और भारत के युद्ध मे भाग लिया था, शायद कुछ ही लोग होंगे जो इस कहानी को जानते होंगे की साड़ी पहनी स्त्रियों ने भारत-चीन युद्ध मे भाग लिया था और तबतक युद्ध लड़ी जबतक की युद्ध विराम नहीं की घोषणा नहीं हुई।
भारत-चीन 1962 युद्ध की एक झलक जिसमे साड़ी पहनी स्त्रियों ने भाग लिया था
जब भारतीय सेना ने चीन से एक अपना राज्य गँवा दिया था तब साड़ियाँ पहने - भारतीय होमगार्ड की लड़कियों ने राइफल्स उठाई और शक्तिशाली पीएलए का सामना करने का फ़ैसला किया!!
साड़ियों में ये लड़कियाँ हाथ में बंदूक़ लेकर भारत चीन का गौरवशाली इतिहास लिखने चल पड़ीं।
यह कहानी आधे से ज़्यादा भारतीयों को पता ही नहीं है।
तेज़पुर में भारतीय होमगार्ड की इन लड़कियों ने बंदूक़ें उठाई, चीन की सेना का सामना करने का निर्णय लिया और युद्ध विराम तक लड़ीं!!
इन महिलाओं ने दिखाया कि अगर देश में युद्ध की स्थिति हो तो महिलाएँ भी पुरुषों से कम नहीं हैं!!
किंतु हमारे देश के वामपंथी इतिहासकारों ने इस पराक्रम को हमारे पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं दिया!!
सैल्यूट है भारत की नारी शक्ति को
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