16 नवंबर उदा देवी पासी बलिदान दिवस।
वो वीरांगना जिसने अकेले ही 36 अंग्रेजों को मौत घाट उतार दिया।
16 नवंबर को 1857 के गदर में लखनऊ के सिकंदरबाग की लड़ाई में लगभग 2000 भारतीय सिपाहियो की लाशे जगह जगह बिखरी हुई थी तब एक महिला जो सैनिक के भेस में पीपल के पेड़ पर बंदूक लेकर चढ़ गई और गेट से अंदर आने वाले अंग्रेजो को बारी बारी से अपने बंदूक की निशाने पर लेती रही एक एक करके 36 अंग्रेजो को गोलियों से भून डाला, वो महिला थी उदा देवी पासी।
भले ही इतिहास और इतिहासकारों ने उनका नाम भुला दिया हो, परन्तु लखनऊ के आसपास के इलाक़े में इनकी बहादुरी की कहानी बड़े नाज़ों से कहने वालों की कमी नहीं हैं।
उदा देवी अपने पति के जीवन काल में ही सैनिक के रूप में शिक्षित हो चुकी थीं,ऊदा देवी पहले वहां पर सेविका थीं और सैन्य सुरक्षा दस्ते की सदस्य भी थीं। सेना में गार्ड प्राय: दलित जाति की महिलाएं हुआ करती थीं. ये महिलाएं बहुत ऐसी छोटी-छोटी जातियों से हुआ करती थीं जिनका काम सेवा था लेकिन सेवा के साथ उनमें से कुछ को चुन कर रानी या रानियां या राजा उनको प्रशिक्षित करते थे।
वीरता की यह कहानी लोककथाओं और वहाँ के रहवासियों के स्मृति मे आज भी जिन्दा हैं, परन्तु उनकी कहानी को इतिहास मे जगह नहीं दिया गया।
1857 की गदर में सिकंदराबाग में एक साथ 32 अंग्रेजो को मौत के घाट उतारने वाली जंग की महानायिका वीरांगना उदा देवी पासी जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन्।
वो वीरांगना जिसने अकेले ही 36 अंग्रेजों को मौत घाट उतार दिया।
16 नवंबर को 1857 के गदर में लखनऊ के सिकंदरबाग की लड़ाई में लगभग 2000 भारतीय सिपाहियो की लाशे जगह जगह बिखरी हुई थी तब एक महिला जो सैनिक के भेस में पीपल के पेड़ पर बंदूक लेकर चढ़ गई और गेट से अंदर आने वाले अंग्रेजो को बारी बारी से अपने बंदूक की निशाने पर लेती रही एक एक करके 36 अंग्रेजो को गोलियों से भून डाला, वो महिला थी उदा देवी पासी।
भले ही इतिहास और इतिहासकारों ने उनका नाम भुला दिया हो, परन्तु लखनऊ के आसपास के इलाक़े में इनकी बहादुरी की कहानी बड़े नाज़ों से कहने वालों की कमी नहीं हैं।
उदा देवी एक पासी महिला जो सेविका से सैनिक बनी
दलित समुदाय से आने वाली ऊदा देवी, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हज़रत महल की सुरक्षा में तैनात थीं जबकि उनके पति मक्का पासी नवाब की सेना में थे।उदा देवी अपने पति के जीवन काल में ही सैनिक के रूप में शिक्षित हो चुकी थीं,ऊदा देवी पहले वहां पर सेविका थीं और सैन्य सुरक्षा दस्ते की सदस्य भी थीं। सेना में गार्ड प्राय: दलित जाति की महिलाएं हुआ करती थीं. ये महिलाएं बहुत ऐसी छोटी-छोटी जातियों से हुआ करती थीं जिनका काम सेवा था लेकिन सेवा के साथ उनमें से कुछ को चुन कर रानी या रानियां या राजा उनको प्रशिक्षित करते थे।
उदा देवी के पति के मौत ने उनके अंदर अंग्रेजों से लड़ने का जज्बा भर दिया
1857 के विद्रोह मे में बहुत से लोग मारे गए जिसमें उनके पति की भी मृत्यु हो गई और वही से उनके दिमाग मे अंग्रेजों से लड़ने का जज्बा मिला और और फिर उनकी सोच बदली और वे बेगम हजरत अली की सुरक्षा सेना मे सम्मिलित हुई, पति की मौत बदला उन्हे अँग्रेजी सरकार से लेना ही था अब उनके जीवन सिर्फ एक ही मकसद था अंग्रेजों से लड़ना और बेगम एवम् महल की सुरक्षा करना,ऊदा देवी पासी समुदाय से आती थीं, विचारकों का एक तबका ये भी मानता है कि ऊदा देवी ने वीरता की मिसाल पेश कर सभी को दंग कर दिया लखनऊ के सिकंदरबाग़ इलाक़े में घना चौड़ा पीपल का पेड़ हुआ करता था।पीपल के पेड़ पर चढ़ कर उदा देवी ने 36 अंग्रेजों को मारा
उनके समुदाय के लोग बताते है की 16 नवंबर 1857 को एक बड़ा विद्रोह हुआ , वीरांगना ऊदा देवी ने 36 अंग्रेज़ों को पीपल के पेड़ पर चढ़ कर मारा,वे बताते हैं की जहां ये घटना घटी वहां कैप्टन वायलस और डाउसन पहुंचे और अंग्रेजों की लाश देखकर दंग रह गए,उसी समय डाउसन ने पीपल के पेड़ की ओर देखकर कुछ होने का वहां आशंका जताया , परन्तु ये पता नहीं चल पा रहा था की गोलियां कहां से चल रही है, परन्तु उन्हे ये पता चल गया था गोलिया पीपल के पेड़ से चल रही है और कोई सैनिक पेड़ पर बैठ कर ऊपर से गोलियां चला रहा है,वो सैनिक लाल ड्रेस में था, फिर नीचे से अंग्रेजों ने गोलिये की बौछार की और फिर उदा देवी गोली लगाने से उपर से गिरीं, वे ख़ून से लथपथ थीं और जब उनका ड्रेस हटाया गया तो अंग्रेज़ सैनिकों ने देखा कि ये पुरुष नहीं महिला थीं और फिर उस महिला की पहचान ऊदा देवी के रूप मे की गई,ऊदा देवी ने अंतिम सांस तक 36 अंग्रेज़ सिपाहियों को मार दिया था।अंग्रेजों ने भी उदा देवी की वीरता को देखकर अपनी हैट उतार कर श्रद्धांजलि दी थी
कैप्टन वायलस और डाउसन को जब ये पता चला की पेड़ से गिरने वाला कोई सिपाही नहीं सिर्फ एक स्त्री थी तब सबभौचक्के रह गए ये क्या ये तो एक महिला सिपाही है वहां खड़ा कैप्टन वीरांगना उदा देवी की बहादुरी देखकर अपनी हेट उतार कर सलामी दी और उसकी आंखे भर आईं उसने कहा यदि मुझे पता होता है कि यह एक महिला सिपाही है भले हीं मुझे मरना पड़ जाता पर मै गोली नही चलाता।वीरता की यह कहानी लोककथाओं और वहाँ के रहवासियों के स्मृति मे आज भी जिन्दा हैं, परन्तु उनकी कहानी को इतिहास मे जगह नहीं दिया गया।
1857 की गदर में सिकंदराबाग में एक साथ 32 अंग्रेजो को मौत के घाट उतारने वाली जंग की महानायिका वीरांगना उदा देवी पासी जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन्।
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