तेरी आवारगी को हम तेरी सादगी समझ बैठे
फुर्सत में बिताये तेरे कुछ लम्हो को हम पूरी ज़िन्दगी समझ बैठे
तेरी तो आदत थी शायद हर किसी पे मर मिटने की
पर हमी खुद को उनसब में खास समझ बैठे
कियोकी तेरी आवारगी को हम तेरी सादगी समझ बैठे
—
मानते है खुद कभी इजहार नहीं किया तुमने
पर तेरे इंकार न करने को भी हम इकरार समझ बैठे
तेरी आवारगी को हम तेरी सादगी समझ बैठे
—तूने तो सुन कर भी अनसुने कर दिए मेरे अलफ़ाज़
और हम थे की तेरे अनसुने जज्बात भी समझ बैठे
तेरी आवारगी को हम तेरी सादगी समझ बैठे
—लो बना ही डाला मैंने खुद को एक सख्त पत्थर की तरह
कियोकी तुम जो मुझे रेत् का अम्बार थे समझ बैठे
तेरी आवारगी को हम तेरी सादगी समझ बैठे
फुर्सत में बिताये तेरे कुछ लम्हो को हम पूरी ज़िन्दगी समझ बैठे…