इस कविता के बारे में :
इस प्रेम काव्य ‘मेरा मेहबूब मेरे कतल की सनक लिए फिरता है‘ को G-talks के लेबल के तहत अमृतेश झा ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
शायरी…
में उनसे बाते तो नहीं करता पर उनकी बाते लजाब करता हु पेशे से शायर हु यारो अल्फाजो से दिल का इलाज़ करता हु*****
चेहरे पर मासूमियत और आँखों में चमक लिए फिरते हैं, मरहम लगाने वाले यहाँ मरहम में नमक लिए फिरते है,और जिनके साथ हम ज़िन्दगी की ख्वाईश रखते है, वो मेरा मेहबूब मेरे कतल की सनक लिए फिरते है
पोएट्री…
लाज़मी था मेरा यू बिखर जानाकभी शिद्दतों से तुमने सवार था मुझे
तुम्हारा बेवफा होना मुझे मंजूर नहीं
तुम्हारा बेगैरत होना गवारा था मुझे
***
सारे ज़माने से रंजिशे करली हमने
ऐतबार फ़क़त तुम्हारा था मुझे
और लाज़मी था मेरी निंदो का टूट जाना
मेरे ख्वाबो तुमने पुकारा था मुझे
***
आज बेइंतेहा नफरत है तुम्हे
कभी तुमने दिल में भी उतरा था मुझे
लोग कहते है मेरे ज़ख्म भरते कियु नहीं
उनका दिया ज़ख्म भी प्यारा था मुझे
***
और शराब की ज़रूरत किसे है
उनकी आँखों का ही सहारा था मुझे
उनकी बेवफाई का कोई कसूर नहीं यारो
मेरी मोहब्बत ने मारा था मुझे