Tere Intezaar Mein | Ravie Solanky | The Social House Poetry

Tere Intezaar Mein | Ravie Solanky | The Social House Poetry


इस कविता के बारे में :

इस काव्य ‘तेरे इंतज़ार में’ को Social House के लेबल के तहत रवी सोलंकी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।

*****

एक इंतज़ार की आदत सी होने लगी है

हमे तन्हाई से मोहब्बत होने लगी है


***

चुप रहे ये लब अब यही मुनासिब है

खामोशियाँ अपना जादू करने लगी है


***

ना शिकवा न गिला न शिकायत है किसी से

हमे अपने ही इश्क़ से गलतफैमियाँ होने लगी है


***

बनाने लगे थे जिस रेत से महल अपना

अब वही रेत हाथ से बिखरने लगी है


***

न काबिल हु में अब बैत-ए-इश्क़ सजाने में

ये ग़ैर मश्रूत इश्क़ की सज़ा लगने लगी है

ये ग़ैर मश्रूत इश्क़ की सज़ा लगने लगी है

 

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