दोस्तो आज हम यह जानेंगे व पड़ेंगे कि संधि किसे कहते है? संधि के कितने प्रकार होते है। संधि के प्रकार कौन-कौन से हैं। और इसके साथ यह भी जानेंगे कि (स्वर संधि, दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि और यण संधि,) क्या होते हैं। इसके साथ ही व्यंजन और विर्सग संधि पर भी चर्चा करेंगे।
उदहारण के लिए
उदाहरण के लिए जैसे –
स्वर संधि –
जैसे-
(अ + अ = आ)
(अ+आ = आ)
उदाहरण के लिए-
(अ + इ = ए)
उदाहरण के लिए –
(अ + ए = ऐ)
उदाहरण के लिए-
(इ + अ = य)
उदाहरण के लिए –
(ए + अ = आय)
उदाहरण के लिए –
उदाहरण के लिए
(क् का ग् होना)
जैसे
(क् का ङ् हो जाना)
उदाहरण के लिए
संधि किसे कहते है?
दो समान वर्णो के मेल से जो विकार (बदलाव ) उत्पन होता है। उसे संधि कहते है। संधि में पहले शब्द का अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण से एक नया शब्द का निर्माण होता हैउदहारण के लिए
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- जगत + नाथ = जगन्नाथ
- विद्या +आलय = विद्यालय
उदाहरण के लिए जैसे –
- नवागत = नव + आगत
- स्वार्थी = स्व + अर्थी
- महोदय = महा + उदय
संधि के कितने प्रकार होते हैं
संधि के तीन प्रकार या भेद होते हैं। स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। यदि संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण स्वर हो तो ‘स्वर संधि’। यदि संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण व्यंजन हो तो ‘व्यंजन संधि’। और इसके अतिरिक्त यदि संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण विसर्ग हो तो उसे ‘विसर्ग’ संधि कहते हैं। इन सभी का एक उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।स्वर संधि –
- देव + आलय = देवालय
- सत् + जन = सज्जन
- तप: + भूमि = तपोभूमि
स्वर संधि किसे कहते हैं?
यदि किसी वर्ण में स्वर के बाद स्वर आता है और उन दो स्वरों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं-- देव + आगमन = देवआगमन
- रजनी + ईश = रजनीश
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
दीर्घ संधि किसे कहते हैं?
दीर्घ का मतलब होता है बड़ा या लंबे अंतराल वाला। यदि किसी संधि के वर्ण में अ,इ,उ स्वर आए तो दोनों को मिलाकर दीर्घ आ’ई’ऊ हो जाता है। यह दीर्घ संधि की नियमावली है।जैसे-
(अ + अ = आ)
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- मत + अनुसार = मतानुसार
- स्व + अर्थी = स्वार्थी
(अ+आ = आ)
- देव + आलय = देवालय
- सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
- शिव + आलय = शिवालय
- विद्या + आलय = विद्यालय
- महा + आनंद = महानंद
- महा + आत्मा = महात्मा
- अति + इव = अतीव
- कवि + इंद्र = कवींद्र
- मुनि + इंद्र = मुनींद्र
- परी + ईक्षा = परीक्षा
- गिरी + ईश = गिरीश
- हरि + ईश = हरीश
- मही + इंद्र = महिंद्र
- लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा
- रजनी + ईश = रजनीश
- योगी + ईश्वर = योगीश्वर
- नारी + ईश्वर = नारीश्वर
- भानु + उदय = भानूदय
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- लघु + उत्तर = लघूत्तर
- लघु + उर्मि = लघूर्मि
- साधु + ऊर्जा = साधूर्जा
- वधू + उत्सव = वधूत्सव
- भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
- भू + ऊर्जा = भूर्जा
- भू + ऊष्मा = भूष्मा
गुण संधि किसे कहते हैं?
यदि किसी शब्द मे ‘अ’ और ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ऋ स्वर आए तो दोनों के मिलने से क्रमशः ‘ए’ ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाता है। यह गुण संधि की नियमावली है।उदाहरण के लिए-
(अ + इ = ए)
- नर + इंद्र = नरेंद्र
- सूर + इंद्र = सुरेंद्र
- पुष्प + इंद्र = पुष्पेंद्र
- नर + ईस = नरेश
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- निक + ईश = निकलेश
- महा + इंद्र = महेंद्र
- उमा + इंद्र = उमेंद्र
- रमा + इंद्र = रमेंद्र
- महा + ईश = महेश
- राका + ईश = राकेश
- मानव + उचित = मानवोचित
- पर + उपकार = परोपकार
- सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा
- नव + ऊढा = नवोढ़
- महा + उदय = महोदय
- महा + उत्सव = महोत्सव
- दया + उर्मि = दयोर्मि
- महा + ऊष्मा = महोष्मा
- देव + ऋषि = देवर्षि
- राज + ऋषि = राजर्षि
- महा + ऋषि = महर्षि
वृद्धि संधि किसे कहते हैं?
वृद्धि संधि में नियम के अनुसार ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आए तो बड़ा ‘ऐ’ हो जाएगा। और यदि ‘अ’ और ‘आ’ के पश्चात ‘ओ’ या ‘औ’ आए तो ‘औ’ हो जाता है।उदाहरण के लिए –
(अ + ए = ऐ)
- एक + एक = एकैक
- लोक + एष्णा = लोकैषणा
- सदा + एव = सदैव
- तथा + एव = तथैव
- महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- वन + औषधि = वनौषधि
- परम + औदार्य
- महा + औषध = महौषध
यण संधि किसे कहते हैं?
यदि किसी शब्द के अंतिम वर्ण में ‘इ’,‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ऋ के बाद अलग स्वर आए तो ‘इ’ और ‘ई’ का ‘य’ हो जाता है। और ‘उ’ और ‘ऊ’ का ‘व’ हो जाता है। तथा इसके अतिरिक्त ऋ का ‘र्’ हो जाता है।उदाहरण के लिए-
(इ + अ = य)
- अति + अधिक = अत्यधिक
- यदि + अपि = यद्यपि
- इति + आदि = इत्यादि
- उपरी + उक्त = उपर्युक्त
- सु + अच्छ = स्वच्छ
- सु + आगत = स्वागत
- अनु + इति = अन्विति
- पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
- मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
अयादि संधि किसे कहते है?
यदि ‘ए’ , ‘ऐ’ , ‘ओ’ , ‘औ’ स्वरो का मेल दूसरे स्वरों से हो तो ‘ए’ का ‘अय’ ‘ऐ’ का ‘आय’ और ‘ओ’ का ‘अव’ , ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है। यही अयादि संधि की व्याकरण नियमावली है।उदाहरण के लिए –
(ए + अ = आय)
- ने + अन = नयन
- शे + अन = शयन
- नै + अक = नायक
- गै + अक = गायक
- पो + अन = पवन
- भो + अन = भवन
- पौ + अन = पावन
- भौ + अन = भावना
व्यंजन संधि
व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन आने से जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं दूसरे शब्दों में, संधि से पहले शब्द के अंतिम वर्ण यदि व्यंजन हो और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण स्वर या व्यंजन हो तो इससे जो बदलाव होते हैं उसे व्यंजन संधि कहते हैं।उदाहरण के लिए –
- वाक् + ईश = वागीश
- सत् + जन = सज्जन
- प्रत्येक वर्ग में पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में बदल जाना।
- प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण का पांचवे वर्ण में बदल जाना।
- न संबंधी नियम।
प्रत्येक वर्ग में पहले वर्ण का तीसरे में वर्ण बदल जाना –
आप सभी जानते हैं की व्यंजन को 5 वर्गों में बांटा जाता है। क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग। यदि ‘क’ होगा तो उसका ‘च’ हो जाएगा। यदि ‘च’ होगा तो उसका ‘ज’ हो जाएगा। इसी तरह से प्रक्रिया आगे भी चलेगी।उदाहरण के लिए
(क् का ग् होना)
- दिक् + गज = दिग्गज
- दिक् + अंत = दिगंत
- अच् + अंत = अजंत
- षट् + आनन = षडानन
- भगवत् + भजन = भगवद्भजन
- अप् + धि = अब्धि
प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण का पांचवे वर्ण मे बदल जाना
यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्,च्,ट्,त्,प्) का मेल अनुनासिक वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पांचवा वर्ण हो जाता है।जैसे
(क् का ङ् हो जाना)
- वाक् + मय = वाङ्मय
- षट् + मुख = षण्मुख
- उत् + मत्त = उन्मत्त
- चित् + मय = चिन्मय
त संबंधी नियम
‘त्’ के बाद यदि ‘च’ ,’छ’ हो तो ‘त्’ का ‘च्’ हो जाता है।- उत् + चारण = उच्चारण
- जगत् + छाया = जगच्छाया
- सत् + जन = सज्जन
- जगत् + जननी = जगज्जननी
- उत् + ज्वल = उज्जवल
- उत् + लास = उल्लास
- उत् + लेख = उल्लेख
न संबंधी नियम
यदि ‘ऋ’ , ‘र’ ,’ष’, के बाद ‘न’ हो तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है।परि + नाम = परिणामप्र + नाम = प्रणामराम + अयन = रामायणविसर्ग संधि किसे कहते हैं?
विसर्ग के बाद स्वर या यंजन आने से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।उदाहरण के लिए
- नि: + आहार = निराहार
- मन: + योग = मनोयोग
- तप: + भूमि = तपोभूमि
विसर्ग संधि के कुछ प्रमुख नियम निम्नलिखित इस प्रकार है
- विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है।
- विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है।
- विसर्ग का ‘श’ हो जाता है।
- विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है।
- विसर्ग का ‘स’ हो जाता है।
विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता हैं
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ और बाद में ‘अ’ यह प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवा वर्ण इसके अतिरिक्त ‘य’,’र’,’ल’,’व’हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है जैसे –- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
- तप: + बल = तपोबल
- वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
- पय: + द = पयोद
- मन: + योग = मनोयोग
विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है
यदि विसर्ग पहले ‘अ’ , ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो और बाद में ‘आ’ , ‘उ’ ,’ऊ’, या प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा पांचवा वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है जैसे–- नि: + आशा = निराशा
- नि: + धन = निर्धन
- दु: + ऊह = दुरुह
- बहि: + मुख = वहिर्मुख
- दु: + उपयोग = दुरुपयोग
विसर्ग का ‘श’ हो जाता है
यदि विसर्ग के पहले को स्वर हो और बाद में ‘च’ ,’छ’ ,’श’,हो तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है उदाहरण के लिए –- नि: + चिंत = निश्चित
- नि: + छल = निश्छल
विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है
विसर्ग से पहले यदि ‘इ’ ,’उ’ , के बाद ‘क’, ‘ख’, ‘ट’, ‘ठ’,’प’ में कोई वर्ण हो तो ‘विसर्ग’ का ‘ष’ हो जाता है उदाहरण के लिए –- नि: + कपट = निष्कपट
- नि: + फल = निष्फल
- नि: + प्राण = निष्प्राण