गगनयान की तैयारी: भारतीय वायुसेना का ‘चिनूक’ बना इसरो का साथी!

गगनयान की तैयारी: भारतीय वायुसेना का ‘चिनूक’ बना इसरो का साथी!

भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के लिए एक अहम परीक्षण की तैयारियां चल रही हैं, और इसमें भारतीय वायुसेना की ताकत भी जुड़ गई है!

जी हां, इसरो अपने क्रू मॉड्यूल को परखने के लिए एक खास ‘चिनूक’ हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करेगा।

आखिर चिनूक में है क्या खास?

अमेरिका में बना चिनूक हेलीकॉप्टर बहुत ही ताकतवर होता है। ये भारी-भरकम चीजों को आसानी से उठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकता है।

गगनयान टेस्ट में, इसी चिनूक से इसरो का स्पेशल कैप्सूल करीब 3-4 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाया जाएगा।

ये कैप्सूल, जिसमे असली मिशन में हमारे अंतरिक्ष यात्री बैठेंगे, चिनूक से गिराया जाएगा ताकि इसके पैराशूट सिस्टम की जांच हो सके।

क्यों है पैराशूट टेस्ट इतना ज़रूरी?

देखिए, अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष से सुरक्षित वापस लाने के लिए सबसे अहम चीज़ है पैराशूट। ज़रा सोचिए, जब कैप्सूल पृथ्वी के वातावरण में दोबारा घुसेगा, तो वो बहुत तेज़ रफ़्तार से नीचे आएगा।

पैराशूट ही उसकी रफ़्तार को धीरे-धीरे कम करेंगे और बंगाल की खाड़ी में सुरक्षित लैंडिंग करवाएंगे।

इसरो तो पैराशूट के एक नहीं, कई चरणों में टेस्ट कर रहा है!

कैसे होगा ये टेस्ट?

चिनूक कैप्सूल को तय ऊंचाई पर ले जाएगा और फिर वहीं से उसे गिरा देगा। कैप्सूल तेज़ गति पकड़ेगा, फिर एक-एक कर उसके अलग-अलग पैराशूट खुलेंगे।

इससे वैज्ञानिक ये देखेंगे कि लैंडिंग के समय स्पीड कितनी रहती है, पैराशूट सही से काम कर रहे हैं कि नहीं, और कैप्सूल का डिज़ाइन किसी भी दबाव को झेल पाता है या नहीं।

भारतीय वायुसेना और इसरो का ये साथ गगनयान मिशन के लिए बड़ा कदम है! ये टेस्ट भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान की सफलता के लिए बेहद अहम है।