खुशहाल जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका: The Best Way To Live A Happy Life In Hindi

जीवन में हर व्यक्ति जब भी कोई काम करता है या करना चाहता है तो उसके काम के पीछे उस व्यक्ति का उद्देश्य सुख पाना ही होता है।

चाहे काम किसी भी प्रकार का हो पर अगर आप गौर से देखेंगे तो हर काम के पीछे उस व्यक्ति का उद्देश्य (objective) सुखी होना ही होता है।

इसका मतलब कि व्यक्ति का उद्देश्य (objective) तो स्पष्ट (Clear) है , बस सही रास्ते की जरूरत है।

अगर हर व्यक्ति का उद्देश्य क्लियर है, (सुखी होना, सुख पाना), तो फिर आज के समय में ज्यादातर लोग दुखी क्यों है? हर व्यक्ति वह कार्य कर रहा है जिसमें उसे सुख मिलता है या सुख मिलेगा फिर ऐसी क्या वजह है कि चारों तरफ दुनिया में दुखी ही दुख है।

हो सकता है सुख पाने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए हम जिस माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं वही गलत हो, जिसके कारण हम अपने उद्देश्य तक ना पहुंचकर रास्ते में ही कहीं भटक जा रहे हैं।

आइए इस बात को एक उदाहरण से समझते हैंLet us understand this with an example!

The Best Way To Live A Happy Life!​

राहुल नाम (काल्पनिक नाम) का एक लड़का जिसकी उम्र (age) लगभग 23 वर्ष है उसके जीवन का उद्देश्य एक सरकारी नौकरी पाना है क्योंकि उसे लगता है या उसे ऐसा विश्वास है कि अगर वह सरकारी नौकरी उसे मिल जाती है तो उसके जीवन से सभी दुख हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगे और उसका जीवन खुशियों से भर जाएगा।

अपने इस लक्ष्य को अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य बनाकर राहुल कड़ी मेहनत करता है,और अपने जीवन के करीब 5 वर्ष (five year) इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पित (Dedicate) कर देता है।

इन 5 वर्षों में राहुल ने अपने उस नौकरी के बारे में बहुत सारे सपने (काल्पनिक) भी सजा लिए थे।

वह सोचता था की नौकरी मिल जाएगी तो हमारी गरीबी मिट जाएगी हमारे पास घर हो जाएगा, गाड़ी हो जाएगी, समाज में स्टेटस हो जाएगा और सबसे मुख्य बात कि मैं सदा खुस रहूँगा (permanently happy).

और फाइनली एक दिन ऐसा आ ही गया जब उसे कड़ी मेहनत करने के बाद वह नौकरी मिल गई उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा बड़ा खुश हुआ।

जैसे कोई मणि मिल गया हो, आखिर उसके जीवन का आखरी लक्ष्य था और इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद सुख के सारे दरवाजे जो खुलने वाले थे, खुश तो होना ही था।

उसने अपनी नौकरी ज्वाइन की और कुछ साल तक बड़े मन लगाकर काम भी किया इस दौरान उसने अपने कई छोटे बड़े सपने को भी पूरा किया।

पर जिस लक्ष्य को पाने के लिए उसने 5 वर्ष कड़ी मेहनत की बहुत सारे सपने सजाए अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य तक बना लिया कुछ वर्ष के बाद वह अब अपनी नौकरी से खुश नहीं था। चारों तरफ दुख,गुस्सा, चिड़चिड़ापन और उसका कारण था कि अब उसे ज्यादा बड़ा पद (Position) चाहिए था, मतलब ज्यादा पैसा चाहिए था।

जिसे पाने के लिए उसने फिर अपना कुछ वर्ष लगाया और बड़ा पद पा लिया थोड़ा ज्यादा पैसा भी आ गया पर कुछ वर्ष के बाद वह फिर दुखी रहने लगा ,क्योंकि अब वह उससे भी संतुष्ट (satisfied) नहीं था।

आज वह वहां पहुंच गया था जहां बहुत सारे लोग पहुंचने के सपने देखते थे, पर वहां पहुंच कर भी वह खालीपन महसूस कर रहा था बल्कि वह जो पीछे मुड़कर देखता था तो जब नौकरी के लिए प्रयासरत था उस समय उसका व्यवहार भी अच्छा था दिमाग भी थोड़ा ठंडा रहता था क्रोध भी कम करता था।

आज के समय चिड़चिड़ापन छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना जीवन में किसी से भी संतुष्ट नहीं था और इनसिक्योरिटी की भावना से भरा हुआ था।

दुख तो निरंतर साथ चलता गया समय के साथ बढ़ता चला गया जैसे समय के साथ इच्छाएं बढ़ती चली गई जैसे समय के साथ इच्छाएं, क्रोध, भय बढ़ता चला गया उसी प्रकार दुख भी बढ़ता चला गया।

चुकीं राहुल थोड़ा समझदार भी निकला उसने अपने इस भागमभाग वाले schedule में से थोड़ा टाइम निकाल कर अपने इस जीवन को थोड़ा सा ब्रेक दिया और आत्म निरीक्षण (Self inspection) करने लगा।

सोचने लगा कि गलती कहां पर हो रही है मैंने अपने जीवन में जो-जो लक्ष्य बनाएं सब प्राप्त कर लिए फिर भी मैं खुश नहीं हूं इसका मतलब जरूर इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए मैंने जिन माध्यमों का इस्तेमाल किया जैसे नाम , पैसा,पद इत्यादि कहीं ना कहीं यह वह माध्यम नहीं है जो मुझे permanently मानसिक शांति (mental peace) और सुख प्रदान कर सकें क्षणिक सुख (Momentary happiness) जरूर उनसे मिल सकता है।

अब राहुल बहुत निराशा से भर गया और सोचने लगा की उसने अपना बहुत सारा समय और जीवन बर्बाद कर दिया। जिस ऊंचाई पर पहुंचना उसके जीवन का लक्ष्य था ,जहां पर उसे लगता था सुख ही सुख है वहां पहुंच कर भी वह खाली था और पहले से ज्यादा दुखी था।

राहुल ने अपने अगल-बगल लोगों को देखना शुरू किया उसने पाया बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य को पा लिया और वह भी दुखी है, और बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो उस लक्ष्य को पाना चाहते हैं और वह इस कारण दुखी है।

अब राहुल के मन में दया की भावना जगती है, और वह उन लोगों को बताना शुरू करता है जो उस ऊंचाई पर पहुंचना चाहते हैं जहां कभी राहुल पहुंचना चाहता था उन लोगों को बताना शुरू करता है कि यह लक्ष्य जीवन याचिका के लिए जीवन के भरण-पोषण के लिए सही है पर इस लक्ष्य से सुख पाने की जरा भी लालसा से ना करें अन्यथा बहुत बड़े दुख के खाई में गिर जाओगे।

पर उसकी यह बात जीवन की अंधी और भटकी हुई रेस में भागने वाले नौजवान युवक कहां समझने वाले थे किसी ने उसकी वह बात नहीं मानी सबको उस ऊंचाई पर पहुंचना था जहां पर वास्तविकता में कुछ था ही नहीं।

राहुल की इस कहानी से एक बात तो हम लोगों को समझ में आ गई और हम सब कहीं न कहीं इस बात को अनुभव भी करते हैं की अमीर हो या गरीब छोटा हो या बड़ा गोरा हो या काला इस देश का हो या उस देश का हो हर व्यक्ति क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार, वासनाये और अनियंत्रित इच्छाओ से घिरा हुआ है।

जिसके कारण दुख उनका पीछा मरते दम तक नहीं छोड़ता है।

और उससे भी बड़ा दुख की बात यह है की हममें से ज्यादातर मनुष्य को समय रहते इन बातों का ज्ञान नहीं हो पाता। अगर कुछ लोगों को इन बातों का ज्ञान हो भी जाता है तो वह दुख का कारण तो जानता है पर इसका निवारण नहीं जानता।

जो व्यक्ति दूसरी कैटेगरी में आता है मतलब जो व्यक्ति दुख का कारण तो जानता है पर उसको कैसे अपने से दूर कर सके , कैसे अपने शरीर में लिपटे हुए इस सांप को अपने से अलग कर दें उसकी विधि नहीं जानता वह व्यक्ति पहले वाले कैटेगरी के लोगों से जो लोग यह जानते ही नहीं कि वह दुखी है क्यों और पूरा जीवन दुख ही दुख में बिता देते हैं इन लोगों से दूसरे कैटेगरी के लोग थोड़ा Better Life जी पाते हैं।

वह व्यक्ति यह तो जानता है कि मेरे अंदर अनियत्रित क्रोध, अनियत्रित वासनाये अनियत्रित इच्छाएं , इर्ष्या ,अहंकार ,यह पांचो चीजें है तो मैं जीवन में कहीं भी रहूं किसी भी उम्र का हो जाऊं पर मैं भीतर ही भीतर जलता रहूंगा।

अपने भीतर अशांत रहूंगा मेरा मन हमेशा व्याकुल ही रहेगा।

Let’s know the best way to live a happy life!​

अब बात करते हैं इसके निवारण का भगवान गौतम बुद्ध ने संसार में जब चारों तरफ लोगों को दुखी देखा हर व्यक्ति चाहे वह जिस भी वर्ग का हो वर्ण का हो जाति का हो।

स्वयं गौतम बुद्ध भगवान भी बुद्ध बनने के पहले एक राजा थे उनके पास सब कुछ था फिर भी वह दुखी थे। इसलिए उन्होंने निश्चय किया था कि मैं इस दुख का परमानेंट निवारण (Permanent redress) खोज के, इस समाज का इस पूरे विश्व का इस धरती का और स्वयं अपना कल्याण करूँगा।

उनका लक्ष्य बहुत बड़ा था पर बहुत ही कल्याणकारी था।

उन्होंने जीवन में बहुत बड़े-बड़े त्यागी जो एक आम आदमी के लिए असंभव है बहुत कड़ी तपस्या की जो एक आम ऋषि मुनि के लिए असंभव था ।

उन्होंने उस सच्चाई को जान लिया जिससे मानव सारे दुखों से मुक्त रह सकता है सर्वथा आनंद में रह सकता है उन्होंने दुख निवारण का मार्ग ढूंढ निकाला। जिस मार्ग को उन्होंने खोजा जिस ध्यान विधि से उन्होंने दुख को सर्वथा के लिए हरा दिया उसे ही विपश्यना ध्यान कहते हैं।

भगवान बुद्ध का कहना है कि मनुष्य अगर सुख भोगता है तो उसे दुख भी भोगना होगा क्योकि दोनों ही एक दूसरे के पूरक है (Complement each other).

अगर मनुष्य भोगना ही छोड़ दें अन्यथा न सुख भोगे न दुख, तब मनुष्य निरंतर एक ऐसी state में या एक ऐसी अवस्था में रहने लगेगा जहा ना उसे सुख का कोई फर्क पड़ेगा ना ही दुख का।

ऐसे व्यक्ति दुःख और सुख दोनों से ही ऊपर उठ जाएगा वह सर्वदा परमानन्द की अवस्था में रहेगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस धरती पर इस जीवन में कुछ भी नित्य नहीं है मतलब कोई भी चीज permanent नहीं है हर चीज अनित्य है हर चीज परिवर्तनशील (Variable) है।

इस बात को हम ऐसे समझ सकते हैं, जैसे मनुष्य का शरीर बचपन में छोटा रहता है जब जवान होता है तोह शरीर भी बड़ा हो जाता है अथार्त बदल जाता है , फिर प्रौढ़ावस्था (Maturity) में परिवर्तिति होता है और फिर जरा अवस्था (old age ) में आता है और फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

यानी वह permanent नहीं था निरंतर बदलता रहा है इसी प्रकार से इस पुरे सृष्टि में (universe) चाहे बहार हो या हमारे भीतर, सब पे एक हे नियम चलता है सब अनित्य है कुछ भी permanent नहीं होता वह बदल जाता है।

दुख और सुख भी है परमानेंट नहीं रहता वह बदल जाता है। पर अगर हम एक ऐसी अवस्था को प्राप्त कर ले जिससे हम अनित्य के चक्रव्यू से ही बाहर आ जाए मतलब जीवन में कुछ भी बदले और हमें उसका कोई फर्क नहीं पड़े हम ऐसी state में रहें जहां सुख और दुख दोनों का हमारे मन पर कोई भी प्रभाव ना पड़े तब हम परम आनंद के साथ जीवन जियेंगे ।

यही वह स्टेट है जिससे मनुष्य आत्मज्ञान (Enlightenment) प्राप्त करता है ज्ञान उत्पन्न होते ही अंधकार रूपी दुख समाप्त हो जाता है और मनुष्य अपनी जड़ प्रकृति यानी परमानन्द की अनुभूति करता रहता है।

भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ऐसी बात को समझाया है कि मनुष्य को हमेशा स्थितप्रज्ञ रहना चाहिए मतलब मनुष्य को हमेशा उस अवस्था में रहना चाहिए जहां वह कुछ भी ना भोग रहा हो तभी उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है और दुख समाप्त हो जाता है।

इसी अवस्था को पाने के लिए भगवान गौतम बुद्ध ने कड़ी तपस्या कर विपश्यना ध्यान विधि को खोज निकाला था। विपस्सना ध्यान आज भी बहुत सारे शहरों में और देशों में अपने मूल रूप में अर्थात जैसा भगवान गौतम बुद्ध के समय में था उसी रूप में विपस्सना ध्यान सिखाया जाता है।

आज के समय में जहां सारे प्राणी दुखी है उन सबका मंगल करने के लिए यह ध्यान विधि आज भी उपलब्ध है बस हमें ध्यान विधि (Meditation Technique) को जान के कर इसे अपने जीवन में उतारना चाहिए।

जैसे-जैसे यह ध्यान प्रणाली हम सीखते जाते हैं हमारे जीवन में, हमारे व्यवहार में, हमारे दृष्टिकोण में ,हमारी समझ में एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिलता है।

इस आर्टिकल को लिखने का मेरा उद्देश्य सिर्फ यही था कि हम सभी परमानेंट सुख की तलाश में अलग-अलग दिशाओं में प्रयास करते है और अपना समय बर्बाद कर देते हैं। मेरा प्रयास यह है कि इस आर्टिकल के माध्यम से बहुत सारे लोग जीवन की गहराई को और दुख के कारणों को समझें और उसके निवारण की तरफ अग्रसर हो।

इसी आशा और इसी उम्मीद से मैंने इस आर्टिकल को लिखा है।
 
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