Best Nidhi Narwal | Status | Quotes | Shayari | Stories

Best Nidhi Narwal | Status | Quotes | Shayari | Stories


छोड़ ज़िन्दगी अब और क्या पैगाम दू तुझे

तेरी ही अदालत में कितने बयान दू तुझे



सब्र कर ज़िन्दगी, आ जाऊंगी में बाज़ एक दिन

सब्र कर ज़िन्दगी, आ जाऊंगी तुझे रास एक दिन



जादू हाथ की सफ़ाई है सुना था

जो नहीं होता वो देता दिखाई है सुना था

वफ़ा का जादू सच बताओ

तुम पर कैसे चलाया उसने



पल निकल नहीं रहे
तुम दिन निकालने की बात कर रहे हो

ज़िंदगी संभलती नहीं
तुम दिल संभालने की बात कर रहे हो

घर तो ख़ाली है मेरा
तुम किस को निकालने की बात कर रहे हो

मन तो सुनता नहीं मेरी
तुम कुत्ता पलने की बात कर रहे हो



किस नज़्म में बयान करू

तुझे किस शेर में पढू में

ग़ज़ल हूँ खुद तू बहर मेरी

तुझे और कहाँ पर लिखू में



कहीं न कहीं तो होगी ही

मेरी माशूका मेरी ज़िंदगी

मिलूंगी उससे में भी कभी

जीते-जी या मरकर सही



फुर्सत से बैठ कर सोच लेना तुम

एक वजह भी मिले अग़र

वापस दिल लगाने की

किसी किताब के पन्नों में

वजह दबोच लेना तुम



कई बार ख़ाली करा खुद को

हर बार सिरे तक वो भर गया मुझमें

ज़िंदगी से मिलाकर मुझको कम्बख्त

फांसी से लटककर वो मर गया मुझमें

एक ख्वाब मेरा



किस हद तक जाना होगा अब हदों को भुलाने के लिए

किस तरह का ज़ख्म दू उस बेवफ़ा को रुलाने के लिए



हर रंग चढ़ा देखा मैंने तेरे रुख़सार पर

सिवाए मेरी मोहब्बत के



अश्कों के सुख जाने के बाद एक खारी सी

जकड़न महसूस होती रुख़सार पर

तुम अश्क नहीं वो जकड़न हो



आसान तो नहीं था

वक़्त से उल्टा चलना

पर तेरी यादों ने एक पल को

ये भी मुमकिन किया



तू तख़ल्लुस हटा कर शेर लिखता है

मै मायनों मे नाम तेरा फिर भी पढ़ लेती हूँ



वो शायरी है उसे शायरी ही रहने दो

ऐसे ज़बरदस्ती ग़ज़ल नहीं बना करती



रख ऐतबार तू सब संभल जाएगा

है आज जो वक़्त सक्त वो कल बदल जाएगा

तू आफ़ताब सा उबल रहा मै रात बन जाऊंगी

तू देखते ही देखते फिर मुझमें ढल जाएगा



कहीं नाम मेरा सुनो
तो मुस्कुरा लेना तुम

कोई मुझे अपना कहे
तो हक़ जता लेना तुम

दिल , धड़कन और चैन
मेरा सब चुरा लेना तुम

नखरे जो ज्यादा करुँ
तो मुझे सता लेना तुम



ये नकाब ये चेहरे जा कहीं रख आ तू जाकर

बात क्या है आखिर मुझे आज बता तू आकर



अरमान ,ख्वाब,हसरत ,

जैसे लफ्ज़ नहीं पसंद मुझे

इनका आधा मकसद

आँखों से बह जाने का होता है



खुले कमरे में कैद हूँ

आफ़त तो बस यही है



मौत ज़िन्दगी की तरफ नहीं आ रही

ज़िन्दगी मौत की तरफ जा रही है



कितना हसीन आग़ाज़ और कितना कम्बख़्त अंज़ाम हुआ

पोशीदा महबूब मेरा मुझसे रुखसत सर-ए-आम हुआ

क़तरा एक ही काफ़ी था उसकी आँखों से मुझे बताने के

इश्क़ था उसे
मत पूछो वो वफ़ा करके कब तलक बदनाम हुआ



कितना खुला आसमान कितना ढका हुआ है बादलों से

फिर कितना खुला आसमान है

दो बादल भिड़कर कभी भी बरस सकते है

बस इतना खुला आसमान है



इतने कम्बख़्त उजाले में हर्फ़ नज़र आते नहीं

मुहे मेरा अँधेरा कमरा ही दे दो

वहां मेरे जख़्म किसी की निग़ाहों तक जाते नहीं



You Cannot pluck artificial flowers

so the real ones you tear apart



सांस भूल चूका था सुखकर एक गुलाब

मैंने उसे फिर से खिला दिया मेरी एक नज़र में



दिल में तू ही तू भरा हुआ था

कमल है

दिल तो टूटकर बिखर गया मग़र तू नहीं बिखरा



जो जहन के अंदर से वार करता है उसका क्या करुँ

इंसान तो फिर भी खंजर दिखा के डराता पहले है



उलझने हज़ार है
तदबीर तो हो कोई

इलज़ाम लगाने को
तक़दीर तो हो कोई

कितनी आफत है
गंभीर तो हो कोई

जकड़ा जाए दिल
जंजीर तो हो कोई



एक झुमका तेरे में मसर्रत से चमक रहा है

तू जुल्फों को ऊँगली से कान के पीछे मत कर

सामने बैठा परवाना झुमके को देखकर जल रहा है



cross busy roads with me

holding my hand and

cross with me an age

like that

listen to me,

you know yourself better much.

look at me

and tell me you can handle yourself better than i would ever



पूरा का पूरा दिल लो तुम्हे अदा कर दिया

तोड़ेंगे नहीं ये वादा करो

लो रखो ये खुशमिज़ाज ख़्वाब मेरे

और देदो मुझे कुछ ग़म अपने

उन्हें आधा करो



एक बार को तो वक़्त मुझे तोड़ना ज़रूर तू

मै ज़िन्दगी के मुँह से अपनी कीमत सुनना चाहती हूँ



एक तुझे देखना और सुनना ही जीनत है मेरी,

मै काजल और झुमके का क्या करू बता



दिन ढल गया अब,

रात कैसे कटेगी

सवेरा फिर आएगा पर,

रात कैसे कटेगी



मुलाकातें अधूरी ही सही

एक गुफ्तगू मजबूरी की सही

चलो नफ़रतें तो दिल से अदा कर रहे हो न

फिर मोहब्बत मै नामंजूरी ही सही



उड़ान उंची नहीं लंबी हो

मै दूर तलक नहीं देर तलक उंडू

हवाओं से न डर हो कोई

मै प्रलय से मिलकर भी न मुंडू

मुझे ऐसे उड़ना है



भाग रही है ज़िन्दगी

छूटकर वक़्त के पहरों से

मंज़िलें है किस तरफ़

ये पूछ रही है बहरों से

माथे पर हथेली लगाए

है लड़ रही दो पहरों से

बह रही है ज़िन्दगी

तेज़ समंदर की लहरों से



राख हूँ बेकार नहीं मै लपटों से जूझ कर आई हूँ

मै अपनी कीमत बुझते अंगारो से पूछ कर आई हूँ



कितना वक़्त था उसके पास ज़िन्दगी जीने का

उसने मौत को ढूंढ़ने में सब ज़ाया कर दिया



मेरी हदों के दायरे मेरी नज़र से भी आगे है

मेरी मंज़िलें इस सफ़र से भी आगे है



तुम क्या कमज़ोरी ढूंढ रहे हो मेरी शिकंज में

मेरे हौंसले इस फ़िकर से भी आगे है



कितना कीचड़ जमा हुआ था

उसके फटे जूतों पैर ,

सफ़र कायम कर रहा था

वो मुसाफ़िर हँस-हँसकर ।



चाहे राहों में टूटना ही लिखा हो

मेरा हर टुकड़ा मंजिल तक पहुंचेगा ज़रूर ।
 

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