Moral Story Hindi For School Assembly: आवश्यकता और इच्छा

Moral Story Hindi For School Assembly का अंश:

एक दिन, अपने महल में राजा सैर कर रहा था उसी वक़्त उसकी नजर एक नौकर पे पड़ी। राजा उस नौकर के पास गया जो काम करते समय खुशी से गाना गा रहा था…। इस Moral Story Hindi For School Assembly को अंत तक जरुर पढ़ें…

Moral Story Hindi For School Assembly: आवश्यकता और इच्छा


बहुत समय पहले की बात है, एक राजा था, जो अपनी शानदार जीवन के बावजूद भी उदास और नाखुस रहता था।

एक दिन, अपने महल में राजा सैर कर रहा था उसी वक़्त उसकी नजर एक नौकर पे पड़ी। राजा उस नौकर के पास गया जो काम करते समय खुशी से गाना गा रहा था।

उसकी खुशी राजा को मोहित कर दिया। राजा सोचाने लगा की वह पुरे राज्य का सर्वोच्च व्यक्ति है फिर भी दुखी और उदास है, जबकि यह केवल एक सेवक है और इतना खुश है।

यह इतना खुश कैसे हो सकता है।

राजा ने नौकर से पूछा, “तुम इतने खुश क्यों हो?”

उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ” महामहिम, मैं एक नौकर के अलावा और कुछ नहीं। मेरे परिवार और मुझे बहुत कुछ नही चाहिए। बस हमारे सिर पर छत हो और हमारे पेट भरने के लिए ताज़ा गर्म भोजन हो, बस यही चीज़ हमारी जरुरतो को पूरी कर देती है और हम इससे ही खुश रहते है।”

राजा उसके जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। अगले दिन राजा यह वाक्या अपने सलाहकार को बताया औंर अपने सबसे भरोसेमंद सलाहकार से सलाह मांगी।

राजा की व्यथा और नौकर की कहानी सुनने के बाद, सलाहकार ने कहा, “महामहिम, मेरा मानना है कि नौकर को 99 क्लब का हिस्सा नहीं बनाया गया है।”

99 क्लब? यह है क्या? “राजा ने पूछा।

सलाहकार ने जवाब दिया,” महामहिम, वास्तव में यह जानने के लिए कि 99 क्लब क्या है, एक बैग में 99 सोने के सिक्के रखें और उस बैग को इस नौकर के दरवाजे पर छोड़ दें। “

राजा ने तुरंत ही ऐसा करने का आदेश दे दिया।

जब नौकर ने अपने दरवाजे पे बैग देखा, वह उस बैग को अपने घर में ले गया और उसने बैग खोला, बैग खोलते ही बहुत खुशी से चिल्लाया, इतने सारे सोने के सिक्के!

उसने उन्हें गिनना शुरू किया। कई बार गिनने के बाद, वह आखिरकार आश्वस्त हुआ कि बैग में 99 सिक्के ही है।

“उसने सोचा,” आखिरकार एक सोने का सिक्का कहाँ हो सकता है? “निश्चित रूप से, कोई भी 99 सिक्का तो नहीं छोड़ेगा!”

वह हर जगह उस आखरी सिक्के को खोजने में लग गया, वह हर उस जगह उस सिक्के को खोजा जहाँ वह सिक्सका मिल सकता था।

थक हार कर अंत में उससे लगा की हो सकता है वह अंतिम सिक्का मायावी हो इसलिए उसे नहीं मिला।

अन्तः उसने फैसला किया कि वह 100 वें सोने के सिक्के को अर्जित करने और अपने सिक्के की संग्रह को 100 करने के लिए पहले से कहीं अधिक मेहनत करेगा।

उस दिन से, नौकर का जीवन बदल गया।

वह उस 100 वें सोने के सिक्के को पाने की उम्मीद में अपने आप को अतिरक्त क्रोधी बना लिया और अपने परिवार को पीड़ित करने लगा।

नौकर ने काम करते हुए गाना बंद कर दिया। नौकर में हुए इस बड़े बदलाव को देख खुद राजा हैरान थे।

जब राजा ने अपने सलाहकार की मदद मांगी, तो सलाहकार ने कहा, “महामहिम, वह नौकर भी अब आधिकारिक तौर पर 99 क्लब में शामिल हो गया है।”

“99 क्लब उन लोगों को दिया गया नाम है, जिनके पास खुश रहने के लिए सब कुछ पर्याप्त हैं, लेकिन संतुष्ट होने के लिए नहीं, क्योंकि वे हमेशा उस अतिरिक्त 1 सिक्के को पाने के लिए तरस रहे होते हैं और खुद को समझाते रहते हैं की,” मुझे वह एक अंतिम सिक्का मिलनी ही चाहिए और उसके बाद मैं जीवन में खुश रहूंगा।”

Moral of the story:​

नैतिक: हम हमारे जीवन में बहुत कम के साथ खुश रह सकते हैं। लेकिन हम अपनी नींद, अपनी खुशी खो देते हैं, हम अपने आस-पास के लोगों को ठेस पहुंचाते हैं, ये सब हमारी बढ़ती जरूरतों और इच्छाओं के लिए एक कीमत है।

हमें अपनी ज़रूरत और इच्छाओं के बीच संतुलन बनाए रखना सीखना चाहिए। जो हमारे पास पहले से है, उसी में एक खुशहाल जीवन का आनंद लेना चाहिए।
 

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