Best 15+ Story Of Animals In Hindi

Best 15+ Story Of Animals In Hindi


These Best 15+ Story Of Animals In Hindi Updated (2020) which will give good learning to children through stories, will teach children morality and the virtue of being adventurous.

Inspirational stories show the path of a person from despair to hope. Ethics and ideas of humans by reading inspiring stories

Best 15+ Story Of Animals In Hindi जो कहानियों के माध्यम से बच्चों को अच्छी शिक्षा देगी, बच्चों को नैतिकता और साहसी होने का गुण सिखाएगी।

1. मक्खीचूस गीदड

1. मक्खीचूस गीदड


जंगल मे एक गीदड रहता था था। वह बडा क कंजूस था,क्योंकि वह एक जंगली जीव था इसलिए हम रुपये-पैसों की कंजूसी की बात नझीं कर रहे। वह कंजूसी अपने शिकार को खाने में किया करता था। जितने शिकार से दूसरा गीदड दो दिन काम चलाता, वह उतने ही शिकार को सात दिन तक खींचता। जैसे उसने एक खरगोश का शिकार किया।

पहले दिन वह एक ही कान खाता। बाकी बचाकर रखता। दूसरे दिन दूसरा कान खाता। ठीक वैसे जैसे कंजूस व्यक्ति पैसा घिस घिसकर खर्च करता हैं। गीदड अपने पेट की कंजूसी करता। इस चक्कर में प्रायः भूखा रह जाता। इसलिए दुर्बल भी बहुत हो गया था।

एक बार उसे एक मरा हुआ बारहसिंघा हिरण मिला। वह उसे खींचकर अपनी मांद में ले गया। उसने पहले हिरण के सींग खाने का फैसला किया ताकि मांस बचा रहे। कई दिन वह बस सींग चबाता रहा। इस बीच हिरण का मांस सड गया और वह केवल गिद्धों के खाने लायक रह गया। इस प्रकार मक्खीचूस गीदड प्रायः हंसी का पात्र बनता। जब वह बाहर निकलता तो दूसरे जीव उसका मरियल-सा शरीर देखते और कहते “वह देखो, मक्खीचूस जा रहा हैं।

पर वह परवाह न करता। कंजूसों में यह आदत होती ही हैं। कंजूसों की अपने घर में भी खिल्ली उडती हैं, पर वह इसे अनसुना कर देते हैं।

उसी वन में एक शिकारी शिकार की तलाश में एक दिन आया। उसने एक सुअर को देखा और निशाना लगाकर तीर छोडा। तीर जंगली सुअर की कमर को बींधता हुआ शरीर में घुसा। क्रोधित सुअर शिकारी की ओर दौडा और उसने खच से अपने नुकीले दंत शिकारी के पेंट में घोंप दिए। शिकारी ओर शिकार दोनों मर गए।

तभी वहां मक्खीचूस गीदड आ निकला। वह् खुशी से उछल पडा। शिकारी व सुअर के मांस को कम से कम दो महीने चलाना हैं। उसने हिसाब लगाया।

“रोज थोडा-थोडा खाऊंगा।’ वह बोला।

तभी उसकी नजर पास ही पडे धनुष पर पडी। उसने धनुष को सूंघा। धनुष की डोर कोनों पर चमडी की पट्टी से लकडी से बंधी थी। उसने सोचा “आज तो इस चमडी की पट्टी को खाकर ही काम चलाऊंगा। मांस खर्च नहीं करूंगा। पूरा बचा लूंगा।’

ऐसा सोचकर वह धनुष का कोना मुंह में डाल पट्टी काटने लगा। ज्यों ही पट्टी कटी, डोर छूटी और धनुष की लकडी पट से सीधी हो गई। धनुष का कोना चटाक से गीदड के तालू में लगा और उसे चीरता हुआ। उसकी नाक तोडकर बाहर निकला। मख्खीचूस गीदड वहीं मर गया।

Moral Of The Story:

अधिक कंजूसी का परिणाम अच्छा नहीं होता।

2. शरारती बंदर

2. शरारती बंदर


एक समय शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण कैया जा रहा था। मंदिर में लकडी का काम बहुत थ इसलिए लकडी चीरने वाले बहुत से मजदूर काम पर लगे हुए थे। यहां-वहां लकडी के लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था। सारे मजदूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पडता था,

इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहां कोई नहीं होता था।
एक दिन खाने का समय हुआ तो सारे मजदूर काम छोडकर चल दिए। एक लठ्टा आधा चिरा रह गया था। आधे चिरे लठ्टे में मजदूर लकडी का कीला फंसाकर चले गए। ऐसा करने से दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती हैं।

तभी वहां बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें एक शरारती बंदर भी था, जो बिना मतलब चीजों से छेडछाड करता रहता था। पंगे लेना उसकी आदत थी। बंदरों के सरदार ने सबको वहां पडी चीजों से छेडछाड न करने का आदेश दिया। सारे बंदर पेडों की ओर चल दिए, पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह गया और लगा अडंगेबाजी करने।

उसकी नजर अधचिरे लठ्टे पर पडी। बस, वह उसी पर पिल पडा और बीच मेंअडाए गए कीले को देखने लगा। फिर उसने पास पडी आरी को देखा। उसे उठाकर लकडी पर रगडने लगा। उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी पटक दी। उन बंदरो की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ ‘निखट्टू’ था। वह दोबारा लठ्टे के बीच फंसे कीले को देखने लगा।

उसके दिमाग में कौतुहल होने लगा कि इस कीले को लठ्टे के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कीले को पकडकर उसे बाहर निकालने के लिए जोर आजमाईश करने लगा। लठ्टे के बीच फंसाया गया कीला तो दो पाटों के बीच बहुत मजबूती से जकडा गया होता हैं, क्योंकि लठ्टे के दो पाट बहुत मजबूत स्प्रिंग वाले क्लिप की तरह उसे दबाए रहते हैं।

बंदर खूब जोर लगाकर उसे हिलाने की कोशिश करने लगा। कीला जोज्र लगाने पर हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश हो गया।

वह और जोर से खौं-खौं करता कीला सरकाने लगा। इस धींगामुश्ती के बीच बंदर की पूंछ दो पाटों के बीच आ गई थी, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।

उसने उत्साहित होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर खिंचा, लठ्टे के दो चिरे भाग फटाक से क्लिप की तरह जुड गए और बीच में फंस गई बंदर की पूंछ। बंदर चिल्ला उठा।

तभी मजदूर वहां लौटे। उन्हें देखते ही बंदर नी भागने के लिए जोर लगाया तो उसकी पूंछ टूट गई। वह चीखता हुआ टूटी पूंछ लेकर भागा।

Moral Of The Story:

बिना सोचे-समझे कोई काम न करो।

3. मूर्ख मित्र

किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रुप में रहता था । वह राजा का बहुत विश्वास-पात्र और भक्त था । अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक जा सकता था ।

एक दिन जब राजा सो रहा था और बन्दर पङखा झल रहा था तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठ जाती थी । पंखे से बार-बार हटाने पर भी वह मानती नहीं थी, उड़कर फिर वहीं बैठी जाती थी ।

बन्दर को क्रोध आ गया । उसने पंखा छोड़ कर हाथ में तलवार ले ली; और इस बार जब मक्खी राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया । मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की छाती तलवार की चोट से दो टुकडे़ हो गई । राजा मर गया ।

Moral Of The Story:

इसीलिए मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान्‌ शत्रु को अच्छा ज्यादा अच्छा होता है।”

4. दो बिल्लियाँ और बन्दर

4. दो बिल्लियाँ और बन्दर


एक नगर में दो बिल्लियाँ रहती थी. एक दिन उन्हें रोटी का एक टुकड़ा मिला. वे दोनों आपस में लड़ने लगी. वे उस रोटी के टुकड़े को दो समान भागों में बाँटना चाहती थी लेकिन उन्हें कोई ढंग नहीं मिल पाया.

उसी समय एक बन्दर उधर से निकल रहा था. वह बहुत ही चालाक था. उसने बिल्लियों से लड़ने का कारण पूछा. बिल्लियों ने उसे सारी बात सुनाई. वह तराजू ले आया और बोला, ” लाओ, मैं तुम्हारी रोटी को बराबर बाँट देता हूँ.

उसने रोटी के दो टुकड़े लेकर एक – एक पलड़े में रख दिए. वह बन्दर तराजू में जब रोटी को तोलता तो जिस पलड़े में रोटी अधिक होती, बन्दर उसे थोड़ी – सी तोड़ कर खा लेता.
इस प्रकार थोड़ी – सी रोटी रह गई. बिल्लियों ने अपनी रोटी वापस मांगी. लेकिन बन्दर ने शेष बची रोटी भी मुँह में डाल ली. फिर बिल्लियाँ उसका मुँह देखती रह गई.

5. घंटीधारी ऊंट

5. घंटीधारी ऊंट


एक बार की बात हैं कि एक गांव में एक जुलाहा रहता था। वह बहुत गरीब था। उसकी शादी बचपन में ही हो गई ती। बीवी आने के बाद घर का खर्चा बढना था। यही चिन्ता उसे खाए जाती। फिर गांव में अकाल भी पडा। लोग कंगाल हो गए। जुलाहे की आय एकदम खत्म हो गई। उसके पास शहर जाने के सिवा और कोई चारा न रहा।

शहर में उसने कुछ महीने छोटे-मोटे काम किए। थोडा-सा पैसा अंटी में आ गया और गांव से खबर आने पर कि अकाल समाप्त हो गया हैं, वह गांव की ओर चल पडा। रास्ते में उसे एक जगह सडक किनारे एक ऊंटनी नजर आई। ऊटंनी बीमार नजर आ रही थी और वह गर्भवती थी। उसे ऊंटनी पर दया आ गई। वह उसे अपने साथ अपने घर ले आया।

घर में ऊंटनी को ठीक चारा व घास मिलने लगी तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई और समय आने पर उसने एक स्वस्थ ऊंट अच्चे को जन्म दिया। ऊंट बच्चा उसके लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुआ। कुछ दिनों बाद ही एक कलाकार गांव के जीवन पर चित्र बनाने उसी गांव में आया। पेंटिंग के ब्रुश बनाने के लिए वह जुलाहे के घर आकर ऊंट के बच्चे की दुम के बाल ले जाता। लगभग दो सप्ताह गांव में रहने के बाद चित्र बनाकर कलाकार चला गया।

इधर ऊंटनी खूब दूध देने लगी तो जुलाहा उसे बेचने लगा। एक दिन वहा कलाकार गांव लौटा और जुलाहे को काफी सारे पैसे दे गया, क्योंकि कलाकार ने उन चित्रों से बहुत पुरस्कार जीते थे और उसके चित्र अच्छी कीमतों में बिके थे। जुलाहा उस ऊंट बच्चे को अपना भाग्य का सितारा मानने लगा। कलाकार से मिली राशी के कुछ पैसों से उसने ऊंट के गले के लिए सुंदर-सी घंटी खरीदी और पहना दी। इस प्रकार जुलाहे के दिन फिर गए। वह अपनी दुल्हन को भी एक दिन गौना करके ले आया।

ऊंटों के जीवन में आने से जुलाहे के जीवन में जो सुख आया, उससे जुलाहे के दिल में इच्छा हुई कि जुलाहे का धंधा छोड क्यों न वह ऊंटों का व्यापारी ही बन जाए। उसकी पत्नी भी उससे पूरी तरह सहमत हुई। अब तक वह भी गर्भवती हो गई थी और अपने सुख के लिए ऊंटनी व ऊंट बच्चे की आभारी थी।

जुलाहे ने कुछ ऊंट खरीद लिए। उसका ऊंटों का व्यापार चल निकला।अब उस जुलाहे के पास ऊंटों की एक बडी टोली हर समय रहती। उन्हें चरने के लिए दिन को छोड दिया जाता। ऊंट बच्चा जो अब जवान हो चुका था उनके साथ घंटी बजाता जाटा।

एक दिन घंटीधारी की तरह ही के एक युवा ऊंट ने उससे कहा “भैया! तुम हमसे दूर-दूर क्यों रहते हो?”

घंटीधारी गर्व से बोला “वाह तुम एक साधारण ऊंट हो। मैं घंटीधारी मालिक का दुलारा हूं। मैं अपने से ओछे ऊंटों में शामिल होकर अपना मान नहीं खोना चाहता।”

उसी क्षेत्र में वन में एक शेर रहता था। शेर एक ऊंचे पत्थर पर चढकर ऊंटों को देखता रहता था। उसे एक ऊंट और ऊंटों से अलग-थलग रहता नजर आया। जब शेर किसी जानवर के झुंड पर आक्रमण करता हैं तो किसी अलग-थलग पडे को ही चुनता हैं। घंटीधारी की आवाज के कारण यह काम भी सरल हो गया था। बिना आंखों देखे वह घंटी की आवाज पर घात लगा सकता था।

दूसरे दिन जब ऊंटों का दल चरकर लौट रहा था तब घंटीधारी बाकी ऊंटों से बीस कदम पीछे चल रहा था। शेर तो घात लगाए बैठा ही था। घंटी की आवाज को निशाना बनाकर वह दौडा और उसे मारकर जंगल में खींच ले गया। ऐसे घंटीधारी के अहंकार ने उसके जीवन की घंटी बजा दी।

Moral Of The Story:

जो ख़ुद को ही सबसे अच्छा समझता हैं उसका गुस्सा ही उसे ले डूबता हैं।

6. एक और एक ग्यारह​

एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नेहीं समझता था।

बनगिरी में ही एक पेड पर एक चिडिया व चिडे का छोटा-सा सुखी संसार था। चिडिया अंडो पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा।

चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोठवी आई। वह चिडिया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली “इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।”

चिडिया ने निराशा दिखाई “हमें छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?”

कठफोडवी ने समझाया “एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।”

“कैसे?” चिडिया ने पूछा।

“मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।” चिडिया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया “यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।”

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला “आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।”

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला “दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।”

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।

तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह् आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

चिडिया कॄतज्ञ स्वर में मेढक से बोली “बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।”

मेढक ने कहा “आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।”

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।

मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेढक टर्राने लगे।

मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता ता कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पडा।

टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।

जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

Moral Of The Story:

1. एकता में बल हैं।
2. अहंकारी का देर या सबेर अंत होता ही हैं।

7. अक्लमंद हंस

7. अक्लमंद हंस


एक बहुत बडा विशाल पेड था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उनमें एक बहुत स्याना हंस था,बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया।

ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा “देखो,इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।”
एक युवा हंस हंसते हुए बोला “ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?”

स्याने हंस ने समझाया “आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही हैं। धीरे-धीरे यह पेड के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड पर चढने के लिए सीढी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढी के सहारे चढकर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।”

दूसरे हंस को यकीन न आया “एक छोटी सी बेल कैसे सीढी बनेगी?”

तीसरा हंस बोला “ताऊ, तु तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लम्बा कर रहा है।”

एक हंस बडबडाया “यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा हैं।”

इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी?

समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटह्टे ऊपर शाखों तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होना शुरु हुआ और सचमुच ही पेड के तने पर सीढी बन गई। जिस पर आसानी से चढा जा सकता था। सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था

क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी। एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिआ उधर आ निकला। पेड पर बनी सीढी को देखते ही उसने पेड पर चढकर जाल बिछाया और चला गया। सांझ को सारे हंस लौट आए पेड पर उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए।

जब वे जाल में फंस गए और फडफडाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा। सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे। ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था।

एक हंस ने हिम्मत करके कहा “ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो।’

दूसरा हंस बोला “इस संकट से निकालने की तरकीब तू ही हमें बता सकता हैं। आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे।” सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया “मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकाल कर जमीन पर रखता जाएगा।

वहां भी मरे समान पडे रहना। जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड जाना।”

सुबह बहेलिया आया। हंसो ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था। सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड गए। बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।

Moral Of The Story:

बुद्धिमानों की सलाह गंभीरता से लेनी चाहिए।

8. चापलूस मंडली

8. चापलूस मंडली


जंगल में एक शेर रहता था। उसके चार सेवक थे चील, भेडिया, लोमडी और चीता। चील दूर-दूर तक उडकर समाचार लाती। चीता राजा का अंगरक्षक था। सदा उसके पीछे चलता। लोमडी शेर की सैक्रेटरी थी। भेडिया गॄहमंत्री था। उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था।

इस काम में चारों माहिर थे। इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें
चापलूस मंडली कहकर पुकारते थे। शेर शिकार करता। जितना खा सकता वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड जाया करता था। उससे मजे में चारों का पेट भर जाता। एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी “भाईयो! सडक के किनारे एक ऊंट बैठा हैं।”

भेडिया चौंका “ऊंट! किसी काफिले से बिछुड गया होगा।”
चीते ने जीभ चटकाई “हम शेर को उसका शिकार करने को राजी कर लें तो कई दिन दावत उडा सकते हैं।”
लोमडी ने घोषणा की “यह मेरा काम रहा।”

लोमडी शेर राजा के पास गई और अपनी जुबान में मिठास घोलकर बोली “महाराज, दूत ने खबर दी हैं कि एक ऊंट सडक किनारे बैठा हैं। मैंने सुना हैं कि मनुष्य के पाले जानवर का मांस का स्वाद ही कुछ और होता हैं। बिल्कुल राजा-महाराजाओं के काबिल। आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?”

शेर लोमडी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा। वहां एक कमजोर-सा ऊंट सडक किनारे निढाल बैठा था। उसकी आंखें पीली पड चुकी थीं। उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा “क्यों भाई तुम्हारी यह हालात कैसे हुई?”

ऊंट कराहता हुआ बोला “जंगल के राजा! आपको नहीं पता इंसान कितना निर्दयी होता हैं। मैं एक ऊंटो के काफिले में एक व्यापार माल ढो रहा था। रास्ते में मैं बीमार पड गया। माल ढोने लायक नहीं उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड दिया। आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए।”

ऊंट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ। अचानक उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की जोरदार इच्छा हुई। शेर ने कहा “ऊंट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा। मैं तुम्हें अभय देता हूं। तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे।”

चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए। भेडिया फुसफुसाया “ठीक हैं। हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरकीब निकाल लेंगे। फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई हैं।”

इस प्रकार ऊंट उनके साथ जंगल में आया। कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आरम करने से वह स्वस्थ हो गया। शेर राजा के प्रति वह ऊंट बहुत कॄतज्ञ हुआ। शेर को भी ऊंट का निस्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा। ऊंट के तगडा होने पर शेर की शाही सवारी ऊंट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी लगी वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता।

एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला। शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया। शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे चोंटें बहुत लगीं।

शेर लाचार होकर बैठ गया। शिकार कौन करता? कई दिन न शेर ने ने कुछ खाया और न सेवकों ने। कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं? लोमडी बोली “हद हो गई। हमारे पास एक मोटा ताजा ऊंट हैं और हम भूखे मर रहे हैं।”

चीते ने ठंडी सांस भरी “क्या करें? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा हैं। देखो तो ऊंट की पीठ का कूबड कितना बडा हो गया हैं। चर्बी ही चर्बी भरी हैं इसमें।”

भेडिए के मुंह से लार टपकने लगी “ऊंट को मरवाने का यही मौका हैं दिमाग लडाकर कोई तरकीब सोचो।”

लोमडी ने धूर्त स्वर में सूचना दी “तरकीब तो मैंने सोच रखी हैं। हमें एक नाटक करना पडेगा।”

सब लोमडी की तरकीब सुनने लगे। योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई। सबसे पहले चील बोली “महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। आप मुझे खाकर भूख मिटाइए।”

लोमडी ने उसे धक्का दिया “चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फंसकर रह जाएगाअ। महाराज, आप मुझे खाइए।”

भेडिया बीच में कूदा “तेरे शरीर में बालों के सिवा हैं ही क्या? महाराज! मुझे अपना भोजन बनाएंगे।”

अब चीता बोला “नहीं! भेडिए का मांस खाने लायक नहीं होता। मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए।”

चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था। अब ऊंट को तो कहना ही पडा “नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए। मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ हैं। मेरे रहते आप भूखों मरें, यह नहीं होगा।”

चापलूस मंडली तो यहीं चाहती थी। सभी एक स्वर में बोले “यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊंट खुद ही कह रहा हैं।”
चीता बोला “महाराज! आपको संकोच हो तो हम इसे मार दें?”
चीता व भेडिया एक साथ ऊंट पर टूट पडे और ऊंट मारा गया।

Moral Of The Story:

सीखः चापलूसों की दोस्ती हमेशा खतरनाक होती हैं।

9. बिल्ली का न्याय

9. बिल्ली का न्याय


एक वन में एक पेड की खोह में एक चकोर रहता था। उसी पेड के आस-पास कई पेड और थे, जिन पर फल व बीज उगते थे। उन फलों और बीजों से पेट भरकर चकोर मस्त पडा रहता। इसी प्रकार कई वर्ष बीत गए। एक दिन उडते-उडते एक और चकोर सांस लेने के लिए उस पेड की टहनी पर बैठा। दोनों में बातें हुईं।

दूसरे चकोर को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वह केवल वह केवल पेडों के फल व बीज चुगकर जीवन गुजार रहा था । दूसरे ने उसे बताया- “भई, दुनिया में खाने के लिए केवल फल और बीज ही नहीं होते और भी कई स्वादिष्ट चीजें हैं । उन्हें भी खाना चाहिए। खेतों में उगने वाले अनाज तो बेजोड होते हैं। कभी अपने खाने का स्वाद बदलकर तो देखो।”

दूसरे चकोर के उडने के बाद वह चकोर सोच में पड गया। उसने फैसला किया कि कल ही वह दूर नजर आने वाले खेतों की ओर जाएगा और उस अनाज नाम की चीज का स्वाद चखकर देखेग।

दूसरे दिन चकोर उडकर एक खेत के पास उतरा। खेत में धान की फसल उगी थी। चकोर ने कोंपलें खाई। उसे वह अति स्वादिष्ट लगीं। उस दिन के भोजन में उसे इतना आनंद आया कि खाकर तॄप्त होकर वहीं आखें मूंदकर सो गया। इसके बाद भी वह वहीं पडा रहा। रोज खाता-पीता और सो जाता। छः – सात दिन बाद उसे सुध आई कि घर लौटना चाहिए।

इस बीच एक खरगोश घर की तलाश में घूम रहा था। उस इलाके में जमीन के नीचे पानी भरने के कारण उसका बिल नष्ट हो गया था। वह उसी चकोर वाले पेड के पास आया और उसे खाली पाकर उसने उस पर अधिकार जमा लिया और वहां रहने लगा। जब चकोर वापस लौटा तो उसने पाया कि उसके घर पर तो किसी और का कब्जा हो गया हैं। चकोर क्रोधित होकर बोला – “ऐ भाई, तू कौन हैं और मेरे घर में क्या कर रहा हैं?”

खरगोश ने दांत दिखाकर कहा – “मैं इस घर का मालिक हूं। मैं सात दिन से यहां रह रहा हूं, यह घर मेरा हैं।”

चकोर गुस्से से फट पडा – “सात दिन! भाई, मैं इस खोह में कई वर्षो से रह रहा हूं। किसी भी आस-पास के पंछी या चौपाए से पूछ ले।”

खरगोश चकोर की बाटह् काटता हुआ बोला- “सीधी-सी बात हैं। मैं यहां आया। यह खोह खाली पडी थी और मैं यहां बस गय मैं क्यों अब पडोसियों से पूछता फिरुं?”

चकोर गुस्से में बोला- “वाह! कोई घर खाली मिले तो इसका यह मतलब हुआ कि उसमें कोई नहीं रहता? मैं आखिरी बार कह रहा हूं कि शराफत से मेरा घर खाली कर दे वर्ना…।”

खरगोश ने भी उसे ललकारा- “वर्ना तू क्या कर लेगा? यह घर मेरा हैं। तुझे जो करना हैं, कर ले।”

चकोर सहम गया। वह मदद और न्याय की फरीयाद लेकर पडोसी जानवरों के पास गया सबने दिखावे की हूं-हूं की, परन्तु ठोस रुप से कोई सहायता करने सामने नहीं आया।

एक बूढे पडोसी ने कहा – “ज्यादा झगडा बढाना ठीक नहीं होगा । तुम दोनों आपस में कोई समझौता कर लो।” पर समझौते की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी, क्योंकि खरगोश किसी शर्त पर खोह छोडने को तैयार नहीं था। अंत में लोमडी ने उन्हें सलाह दी – “तुम दोनों किसी ज्ञानी-ध्यानी को पंच बनाकर अपने झगडे का फैसला उससे करवाओ।”

दोनों को यह सुझाव पसंद आया। अब दोनों पंच की तलाश में इधर-उधर घूमने लगे। इसी प्रकार घूमते-घूमते वे दोनों एक दिन गंगा किनारे आ निकले। वहां उन्हें जप तप में मग्न एक बिल्ली नजर आई। बिल्ली के माथे पर तिलक था।

गले में जनेऊ और हाथ में माला लिए मॄगछाल पर बैठी वह पूरी तपस्विनी लग रही ती। उसे देखकर चकोर व खरगोश खुशी से उछल पडे। उन्हें भला इससे अच्छा ज्ञानी-ध्यानी कहां मिलेगा। खरगोश ने कहा – “चकोर जी, क्यों न हम इससे अपने झगडे का फैसला करवाएं?”

चकोर पर भी बिल्ली का अच्छा प्रभाव पडा था। पर वह जरा घबराया हुआ था। चकोर बोला -”मुझे कोई आपत्ति नही है पर हमें जरा सावधान रहना चाहिए।” खरगोश पर तो बिल्ली का जादू चल गया था। उसने कहा-”अरे नहीं! देखते नहीं हो, यह बिल्ली सांसारिक मोह-माया त्यागकर तपस्विनी बन गई हैं।”

सच्चाई तो यह थी कि बिल्ली उन जैसे मूर्ख जीवों को फांसने के लिए ही भक्ति का नाटक कर रही थी। फिर चकोर और खरगोश पर और प्रभाव डालने के लिए वह जोर-जोर से मंत्र पडने लगी। खरगोश और चकोर ने उसके निकट आकर हाथ जोडकर जयकारा लगाया -”जय माता दी। माता को प्रणाम।”

बिल्ली ने मुस्कुराते हुए धीरे से अपनी आंखे खोली और आर्शीवाद दिया -”आयुष्मान भव, तुम दोनों के चहरों पर चिंता की लकेरें हैं। क्या कष्ट हैं तुम्हें, बच्चो?”

चकोर ने विनती की -”माता हम दोनों के बीच एक झगडा हैं। हम चाहते हैं कि आप उसका फैसला करें।”

बिल्ली ने पलकें झपकाईं -”हरे राम, हरे राम! तुम्हें झगडना नहीं चाहिए। प्रेम और शांति से रहो।” उसने उपदेश दिया और बोली -”खैर, बताओ, तुम्हारा झगडा क्या है?”

चकोर ने मामला बताया। खरगोश ने अपनी बात कहने के लिए मुंह खोला ही था कि बिल्ली ने पंजा उठाकर रोका और बोली “बच्चो, मैं काफी बूढी हूं ठीक से सुनाई नहीं देता। आंखे भी कमजोर हैं इसलिए तुम दोनों मेरे निकट आकर मेरे कान में जोर से अपनी-अपनी बात कहो ताकि मैं झगडे का कारण जान सकूं और तुम दोनों को न्याय दे सकूं।

वे दोनों भगतिन बिल्ली के बिलकुल निकट आ गए ताकि उसके कानों में अपनी-अपनी बात कह सकें। बिल्ली को इसी अवसर की तलाश थी उसने ‘म्याऊं’ की आवाज लगाई और एक ही झपट्टे में खरगोश और चकोर का काम तमाम कर दिया। फिर वह आराम से उन्हें खाने लगी।

वे दोनों भगतिन बिल्ली के बिलकुल निकट आ गए ताकि उसके कानों में अपनी-अपनी बात कह सकें। बिल्ली को इसी अवसर की तलाश थी उसने ‘म्याऊं’ की आवाज लगाई और एक ही झपट्टे में खरगोश और चकोर का काम तमाम कर दिया। फिर वह आराम से उन्हें खाने लगी।

Moral Of The Story:

दो के झगडे में तीसरे का ही फायदा होता हैं, इसलिए झगडों से दूर रहो।

10. मुर्ख गधा

10. मुर्ख गधा


किसी जंगल में एक शेर रहता था। एक सियार उसका सेवक था। एक बार एक हाथी से शेर की लड़ाई हो गई। शेर बुरी तरह घायल हो गया। वह चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गया। आहार न मिलने से सियार भी भूखा था।

शेर ने सियार से कहा-‘तुम जाओ और किसी पशु को खोजकर लाओ, जिसे मारकर हम अपने पेट भर सकें।’

सियार किसी जानवर की खोज करता हुआ एक गाँव में पहुँच गया। वहाँ उसने एक गधे को घास चरते हुए देखा। सियार गधे के पास गया और बोला-‘मामा, प्रणाम! बहुत दिनों बाद आपके दर्शन हुए हैं। आप इतने दुबले कैसे हो गए?’ गधा बोला-‘भाई, कुछ मत पूछो। मेरा स्वामी बड़ा कठोर है।

वह पेटभर कर घास नहीं देता। इस धूल से सनी हुई घास खाकर पेट भरना पड़ता है।’ सियार ने कहा-‘मामा, उधर नदी के किनारे एक बहुत बड़ा घास का मैदान है। आप वहीं चलें और मेरे साथ आनंद से रहें।’गधे ने कहा-‘भाई, मैं तो गाँव का गधा हूँ। वहाँ जंगली जानवरों के साथ मैं कैसे रह सकूँगा?’ सियार बोला- ‘मामा, वह बड़ी सुरक्षित जगह है।

वहाँ किसी का कोई डर नहीं है। तीन गधियाँ भी वहीं रहती हैं। वे भी एक धोबी के अत्याचारों से तंग होकर भाग आई हैं। उनका कोई पति भी नहीं है। आप उनके योग्य हो!’ चाहो तो उन तीनों के पति भी बन सकते हो। चलो तो सही।’सियार की बात सुनकर गधा लालच में आ गया। गधे को लेकर धूर्त सियार वहाँ पहुँचा, जहाँ शेर छिपा हुआ बैठा था।

शेर ने पंजे से गधे पर प्रहार किया लेकिन गधे को चोट नहीं लगी और वह डरकर भाग खड़ा हुआ।

तब सियार ने नाराज होकर शेर से कहा-‘तुम एकदम निकम्मे हो गए! जब तुम एक गधे को नहीं मार सकते, तो हाथी से कैसे लड़ोगे?’ शेर झेंपता हुआ बोला-‘मैं उस समय तैयार नहीं था, इसीलिए चूक हो गई।’ सियार ने कहा-‘अच्छा, अब तुम पूरी तरह तैयार होकर बैठो, मैं उसे फिर से लेकर आता हूँ।’

वह फिर गधे के पास पहुँचा। गधे ने सियार को देखते ही कहा-‘तुम तो मुझे मौत के मुँह में ही ले गए थे। न जाने वह कौन-सा जानवर था। मैं बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागा!’सियार ने हँसते हुए कहा-‘अरे मामा, तुम उसे पहचान नहीं पाए। वह तो गधी थी। उसने तो प्रेम से तुम्हारा स्वागत करने के लिए हाथ बढ़ाया था।

तुम तो बिल्कुल कायर निकले! और वह बेचारी तुम्हारे वियोग में खाना-पीना छोड़कर बैठी है। तुम्हें तो उसने अपना पति मान लिया है। अगर तुम नहीं चलोगे तो वह प्राण त्याग देगी।’गधा एक बार फिर सियार की बातों में आ गया और उसके साथ चल पड़ा। इस बार शेर नहीं चूका।

उसने गधे को एक ही झपट्टे में मार दिया। भोजन करने से पहले शेर स्नान करने के लिए चला गया। इस बीच सियार ने उस गधे का दिल और दिमाग खा लिया।

शेर स्नान करके लौटा तो नाराज होकर बोला-‘ओ सियार के बच्चे! तूने मेरे भोजन को जूठा क्यों किया? तूने इसके हृदय और सर क्यों खा लिए ?’

धूर्त सियार गिड़गिड़ाता हुआ बोला-”महाराज, मैंने तो कुछ भी नहीं खाया है। इस गधे का दिल और दिमाग था ही नहीं, यदि इसके होते तो यह दोबारा मेरे साथ कैसे आ सकता था। शेर को सियार की बात पर विश्वास आ गया। वह शांत होकर भोजन करने में जुट गया।

Moral Of The Story:

जो दिल और दिमाग से काम नहीं लेते है, वो हमेशा किसी का शिकार हो जाते है चाहे वो जानवर हो या फिर इंसान ।

11. दो घड़े

11. दो घड़े


एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतलवाले से काफी फासले पर रखना चाहा।

पीतलवाले घड़े ने कहा, ”तुम डरो नहीं दोस्त, मैं तुम्हें धक्के न लगाऊँगा।”

मिट्टीवाले ने जवाब दिया, ”तुम जान-बूझकर मुझे धक्के न लगाओगे, सही है; मगर बहाव की वजह से हम दोनों जरूर टकराएंगे। अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारे बचाने पर भी मैं तुम्हारे धक्कों से न बच सकूँगा और मेरे टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इसलिए अच्छा है कि हम दोनों अलग-अलग रहें।”

शिक्षा – जिससे तुम्हारा नुकसान हो रहा हो, उससे अलग ही रहना अच्छा है, चाहे वह उस समय के लिए तुम्हारा दोस्त भी क्यों न हो।

12. कैसे कौए हुए काले?

12. कैसे कौए हुए काले?


एक बार की बात है । एक ऋषि ने एक कौवे को अमृत की तलाश में भेजा लेकिन कौवे को ये चेतावनी भी दी कि केवल अमृत के बारे में पता करना है उसे पीना नहीं है अन्यथा तुम इसका कुफल भोगोगे । कौवे ने हामी भर दी और उसके बाद सफेद कौवे ने ऋषि से विदा ली ।

एक साल के कठोर परिश्रम के बाद कौवे को आखिर अमृत के बारे में पता चल गया । वह इसे पीने की लालसा रोक नहीं पाया और इसे पी लिया जबकि ऋषि ने उसे कठोरता से उसे नहीं पीने के लिए पाबंद किया था । सो उसने ऐसा कर ऋषि को दिया अपना वचन तोड़ दिया ।

पीने के बाद उसे पछतावा हुआ और उसने वापिस आकर ऋषि को पूरी बात बताई तो ऋषि ये सुनते ही आवेश में आ गये और कौवे को शाप दे दिया और कहा क्योंकि तुमने अपनी अपवित्र चोंच से अमृत की पवित्रता को नष्ट किया है इसलिए आज के बाद पूरी मानवजाति तुमसे घृणा करेगी और सारे पंछियों में केवल तुम होंगे जो सबसे नफरत भरी नजरो से देखे जायेंगे । किसी अशुभ पक्षी की तरह पूरी मानवजाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी ।

और चूँकि अमृत का पान किया है इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होगी । कोई बीमारी भी नहीं होगी और तुम्हे वृद्धावस्था भी नहीं आएगी । भाद्रपद के महीने के सोलह दिन तुम्हे पितरो का प्रतीक मानकर आदर दिया जायेगा । तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी इतना कहकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डुबो दिया । काले रंग का बनकर कौवा उड़ गया तभी से कौवा काले रंग के हो गये ।

हालाँकि ये कहानियां लोककथाओं के रूप में प्रचलित है लेकिन फिर भी मेने अक्सर कई लेखो और मान्यताओं में किसी एक के किये कर्मो की सजा उसकी पूरी जाति को भुगतनी पड़ी हो ऐसा देखा है लेकिन मेरे विचार ये केवल काल्पनिक लेख ही होंगे क्योंकि आधुनिक युग की परिभाषा में जन्हा लोग तर्क करने की क्षमता रखते है किसी भी धारणा का अँधा अनुकरण करने से पहले ये सब पहले के जमाने में लोगो को कुछ शिक्षाओं को उनके मानसिक स्तर पर समझाने का ये प्रयास ही रहा होगा । ऐसा हम मान सकते है ।

13. सिंह को जीवित करने वाले

किसी शहर में चार मित्र रहते थे। वे हमेशा एक साथ रहते थे। उनमें से तीन बहुत ज्ञानी थे। चौथा दोस्त इतना ज्ञानी नहीं था फिर भी वह दुनियादारी की बातें बहुत अच्छी तरह जानता था।

एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वे दूर देश घूम-घूमकर देखेंगे और कुछ दौलत कमाकर लाएंगे। वे चारों एक साथ निकल पड़े। जल्दी ही वे एक घने जंगल में पहुँचे। रास्ते में उन्होंने किसी जानवर की हड्डियाँ ज़मीन पर खड़ी देखीं। एक ज्ञानी बोला, ‘‘हमें अपना ज्ञान परखने का मौका मिला है।’’

“ये हड्डियाँ किसी मरे हुए जानवर की हैं। मैं उसे फिर से जिन्दा कर दूँगा। मुझे पता है कि इन हड्डियों को कैसे जोड़ा जा सकता है।’’

दूसके मित्र ने कहा। ‘‘मैं इस जानवर पर माँस, खून और खाल चढ़ा दूँगा।’’

तीसरे मित्र ने कहा, ‘‘मैं अपने अमूल्य ज्ञान से इस जानवर को जिन्दा कर दूँगा।’’

अब तक पहले वाले ज्ञानी युवक ने उस जानवर की हड्डियाँ लगा दी थीं और दूसरे मित्र ने उस पर माँस, खून और खाल चढ़ा दी थी।

चौथा युवक चिल्लाया, ‘‘अरे ! अरे ! उस जानवर में प्राण नहीं डालना यह एक सिंह है !’’

परन्तु ज्ञानी मित्रों ने उसकी बात नहीं सुनी। उन्होंने सिंह को जिन्दा करने का निश्चय कर लिया था। दुनियादारी जाननेवाला मित्र झट से पास के एक पेड़ पर चढ़ गया और देखने लगा। तीसरे मित्र ने सिंह में जान डाल दी। जैसे ही सिंह जिन्दा हुआ वह गुर्राने लगा और तुरन्त ही तीनों मित्रों पर टूट पड़ा। उन तीनों मित्रों को दबोचकर मार डाला। चौथा मित्र अपने मित्रों की मृत्यु देख बहुत दुखी हुआ।

14. दुष्टता का फल

कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के घर में रसोई में एक कबूतर ने घोंसला बना रखा था । किसी दिन एक लालची कौवा जो है वो उधर से आ निकला । वंहा मछली को देखकर उसके मुह में पानी आ गया । तब उसके मन में विचार आया कि मुझे इस रसोघर में घुसना चाहिए लेकिन कैसे घुसू ये सोचकर वो परेशान था तभी उसकी नजर वो कबूतरों के घोंसले पर पड़ी ।

उसने सोचा कि मैं अगर कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद मेरी बात बन जाएँ । कबूतर जब दाना चुगने के लिए बाहर निकलता है तो कौवा उसके साथ साथ निकलता है । थोड़ी देर बाद कबूतर ने पीछे मुड़कर देखता तो देखा कि कौवा उसके पीछे है इस पर कबूतर ने कौवे से कहा भाई तुम मेरे पीछे क्यों हो इस पर कौवे ने कबूतर से कहा कि तुम मुझे अच्छे लगते हो इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ इस पर कौवे से कबूतर ने कहा कि हम कैसे दोस्त बन सकते है हमारा और तुम्हारा भोजन भी तो अलग अलग है मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े । इस पर कौवे ने चापलूसी दिखाते हुए कहा “कौनसी बड़ी बात है मेरे पास घर नहीं है इसलिए हम साथ साथ तो रह ही सकते है है न और साथ ही भोजन खोजने आया करेंगे तुम अपना और मैं अपना ।”

इस पर घर के मालिक ने देखा कि कबूतर के साथ एक कौवा भी है तो उसने सोचा कि चलो कबूतर का मित्र होगा इसलिए उसने उस बारे में अधिक नहीं सोचा । अगले दिन कबूतर खाना खोजने के लिए साथ चलने को कहता है तो कौवे ने पेट दर्द का बहाना बना कर मना कर दिया । इस पर कबूतर अकेला ही चला गया क्योंकि कौवे ने घर के मालिक को यह कहते हुए सुना था नौकर को कि आज कुछ मेहमान आ रहे है इसलिए तुम मछली बना लेना ।

उधर कौवा नौकर के रसोई से बाहर निकलने का इन्तजार ही कर रहा था कि उसके जाते ही कौवे ने थाली और झपटा और मछली उठाकर आराम से खाने लगा । नौकर जब वापिस आया तो कौवे को मछली खाते देख गुस्से से भर गया और उसने कौवे को पकड़ कर गर्दन मरोड़ कर मार डाला ।

जब शाम में कबूतर वापिस आया तो उसने कौवे की हालत देखी तो सारी बात समझ गया । इसलिए कहा गया है दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसके किये की सज़ा अवश्य मिलती है ।

15. खरगोश की चतुराई

15. खरगोश की चतुराई


किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही नहीं, दो नहीं कई-कई जानवरों का काम तमाम देता। जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा।

सारे जंगल में सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे। अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें। दूसरे दिन जानवरों के एकदल शेर के पास पहुंचा। उनके अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम सब यहां क्यों आ रहे हो ?’’

जानवर दल के नेता ने कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो बहुत जानवर मार डालते हैं। आप सबको खा भी नहीं पाते। इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही होता रहा तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई भी नहीं बचेगा। प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है ? यदि हम सभी मर जायेंगे तो आप भी राजा नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें। आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें। हर रोज स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे। इस तरह से राजा और प्रजा दोनों ही चैन से रह सकेंगे।’’ शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है। उसने पलभर सोचा, फिर बोला अच्छी बात नहीं है। मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं। लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिये पूरा भोजन नहीं भेजा तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा।’’ जानवरों के पास तो और कोई चारा नहीं। इसलिये उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गये।

उस दिन से हर रोज शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा। इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था। कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई। शेर के भोजन के लिये एक नन्हें से खरगोश को चुना गया। वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था। उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकीब ढूंढ़नी चाहिये जिसे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाये। आखिर उसने एक तरकीब सोच ही निकाली।

खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा। जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी।

भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था। जब उसने सिर्फ एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते देखा तो गुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, ‘‘किसने तुम्हें भेजा है ? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो। जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा। एक-एक का काम तमाम न किया तो मेरा नाम भी शेर नहीं।’’

नन्हे खरोगश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, ‘‘महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे। वे तो जानते थे कि एक छोटा सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, ‘इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया। उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया।’’

यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, ‘‘क्या कहा ? दूसरा शेर ? कौन है वह ? तुमने उसे कहां देखा ?’’

‘‘महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है’’, खरगोश ने कहा, ‘‘वह ज़मीन के अन्दर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था। वह तो मुझे ही मारने जा रहा था। पर मैंने उससे कहा, ‘सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अन्धेर कर दिया है। हम सब अपने महाराज के भोजन के लिये जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है। हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे। वे ज़रूर ही यहाँ आकर आपको मार डालेंगे।’

‘‘इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुम्हारा राजा ?’ मैंने जवाब दिया, ‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है।’

‘‘महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ही वह गुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा सिर्फ मैं हूं। यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं। मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूं। जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो। मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है।’ महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया।’’

खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा गुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा। उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा। ‘‘मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ’’, शेर ने दहाड़कर कहा, ‘‘जब तक मैं उसे जान से न मार दूँगा मुझे चैन नहीं मिलेगा।’’ ‘‘बहुत अच्छा महाराज,’’ खरगोश ने कहा ‘‘मौत ही उस दुष्ट की सजा है। अगर मैं और बड़ा और मजबूत होता तो मैं खुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता।’’

‘‘चलो, ‘रास्ता दिखाओ,’’ शेर ने कहा, ‘‘फौरन बताओ किधर चलना है ?’’

‘‘इधर आइये महाराज, इधर, ‘‘खगगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ‘‘महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है। जरा सावधान रहियेगा। किले में छुपा दुश्मन खतरनाक होता है।’’ ‘‘मैं उससे निपट लूँगा,’’ शेर ने कहा, ‘‘तुम यह बताओ कि वह है कहाँ ?’’

‘‘पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था। लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया। आइये मैं आपको दिखाता हूँ।’’

खरगोश ने कुएं के नजदीक आकर शेर से अन्दर झांकने के लिये कहा। शेर ने कुएं के अन्दर झांका तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी।

परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अन्दर से आती हुई अपने ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है। दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा।

कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई। दुश्मन के मारे जाने की खबर से सारे जंगल में खुशी फैल गई। जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।

16. झगडालू मेढक

एक कुएं में बहुत से मेढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त बहुत झगडालू स्वभाव का था। आसपास दो तीन और भी कुएं थे। उनमें भी मेढक रहते थे। हर कुएं के मेढकों का अपना राजा था। हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का झगडा चलता ही रहता था।

वह अपनी मूर्खता से कोई गलत काम करने लगता और बुद्धिमान मेढक रोकने की कोशिश करता तो मौका मिलते ही अपने पाले गुंडे मेढकों से पिटवा देता। कुएं के मेढकों में भीतर गंगदत्त के प्रति रोष बढता जा रहा था। घर में भी झगडों से चैन न था। अपनी हर मुसीबत के लिए दोष देता।

एक दिन गंगदत्त पडौसी मेढक राजा से खूब झगडा। खूब तू-तू मैं-मैं हुई। गंगदत्त ने अपने कुएं आकर बताया कि पडौसी राजा ने उसका अपमान किया हैं। अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मेढकों को आदेश दिया कि पडौसी कुएं पर हमला करें सब जानते थे कि झगडा गंगदत्त ने ही शुरु किया होगा।

कुछ स्याने मेढकों तथा बुद्धिमानों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा “राजन, पडौसी कुएं में हमसे दुगने मेढक हैं। वे स्वस्थ व हमसे अधिक ताकतवर हैं। हम यह लडाई नहीं लडेंगे।”

गंगदत्त सन्न रह गया और बुरी तरह तिलमिला गया। मन ही मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों को भी सबक सिखाना होगा। गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भडकाया “बेटा, पडौसी राजा ने तुम्हारे पिताश्री का घोर अपमान किया हैं। जाओ, पडौसी राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो कि वे पानी मांगने लग जाएं।”

गंगदत्त के बेटे एक दूसरे का मुंह देखने लगे। आखिर बडे बेटे ने कहा “पिताश्री, आपने कभी हमें टर्राने की इजाजत नहीं दी। टर्राने से ही मेढकों में बल आता हैं, हौसला आता हैं और जोश आता हैं। आप ही बताइए कि बिना हौसले और जोश के हम किसी की क्या पिटाई कर पाएंगे?”

अब गंगदत्त सबसे चिढ गया। एक दिन वह कुढता और बडबडाता कुएं से बाहर निकल इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक भयंकर नाग पास ही बने अपने बिल में घुसता नजर आया। उसकी आंखें चमकी। जब अपने दुश्मन बन गए हो तो दुश्मन को अपना बनाना चाहिए। यह सोच वह बिल के पास जाकर बोला “नागदेव, मेरा प्रणाम।”

नागदेव फुफकारा “अरे मेढक मैं तुम्हारा बैरी हूं। तुम्हें खा जाता हूं और तू मेरे बिल के आगे आकर मुझे आवाज दे रहा हैं।

गंगदत्त टर्राया “हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज्यादा अपने दुख देने लगते हैं। मेरा अपनी जाति वालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया हैं कि उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता मांगने आना पडा हैं। तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मजे करो।”

नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला “मजे, कैसे मजे?”

गंगदत्त ने कहा “मैं तुम्हें इतने मेढक खिलाऊंगा कि तुम मुटाते-मुटाते अजगर बन जाओगे।”

नाग ने शंका व्यक्त की “पानी में मैं जा नहीं सकता। कैसे पकडूंगा मेडक?”

गंगदत्त ने ताली बजाई “नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम आएगी। मैने पडौसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस मेडकों से गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं। हर कुएं तक उनका रास्ता जाता हैं। सुरंगें जहां मिलती हैं। वहां एक कक्ष हैं। तुम वहां रहना और जिस-जिस मेढक को खाने के लिए कहूं, उन्हें खाते जाना।”

नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो गया। क्योंकि उसमें उसका लाभ ही लाभ था। एक मूर्ख बदले की भावना में अंधे होकर अपनों को दुशमन के पेट के हवाले करने को तैयार हो तो दुश्मन क्यों न इसका लाभ उठाए?

नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया। गंगदत्त ने पहले सारे पडौसी मेढक राजाओं और उनकी प्रजाओं को खाने के लिए कहा। नाग कुछ सप्ताहों में सारे दूसरे कुओं के मेढक सुरंगों के रास्ते जा-जाकर खा गया। जब सब समाप्त हो गए तो नाग गंगदत्त से बोला “अब किसे खाऊं? जल्दी बता। चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड गई हैं।”

गंगदत्त ने कहा “अब मेरे कुए के सभी स्यानों और बुद्धिमान मेढकों को खाओ।”

वह खाए जा चुके तो प्रजा की बारी आई। गंगदत्त ने सोचा “प्रजा की ऐसी तैसी। हर समय कुछ न कुछ शिकायत करती रहती हैं। उनको खाने के बाद नाग ने खाना मांगा तो गंगदत्त बोला “नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र बचे हैं। खेल खत्म और मेढक हजम।”

नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा “मेढक, मैं अब कहीं नही जाने का। तू अब खाने का इंतजाम कर वर्ना हिस्स।”

गंगदत्त की बोलती बंद हो गई। उसने नाग को अपने मित्र खिलाए फिर उसके बेटे नाग के पेट में गए। गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेढकी जिन्दा रहे तो बेटे और पैदा कर लेंगे। बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा “और खाना कहां हैं? गंगदत्त ने डरकर मेढकी की ओर इशार किया। गंगदत्त ने स्वयं के मन को समझाया “चलो बूढी मेढकी से छुटकारा मिला। नई जवान मेढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊंगा।”

मेढकी को खाने के बाद नाग ने मुंह फाडा “खाना।”

गंगदत्त ने हाथ जोडे “अब तो केवल मैं बचा हूं। तुम्हारा दोस्त गंगदत्त । अब लौट जाओ।”

नाग बोला “तू कौन-सा मेरा मामा लगता हैं और उसे हडप गया।

सीखः अपनो से बदला लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता हैं उसका अंत निश्चित हैं।

17. रंग में भंग

एक बार जंगल में पक्षियों की आम सभा हुई। पक्षियों के राजा गरुड थे। सभी गरुड से असंतुष्ट थे। मोर की अध्यक्षता में सभा हुई। मोर ने भाषण दिया “साथियो, गरुडजी हमारे राजा हैं पर मुझे यह कहते हुए बहुत दुख होता हैं कि उनके राज में हम पक्षियों की दशा बहुत खराब हो गई हैं। उसका यह कारण हैं कि गरुडजी तो यहां से दूर विष्णु लोक में विष्णुजी की सेवा में लगे रहते हैं।

हमारी ओर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता। हमें अओअनी समस्याएं लेकर फरियाद करने जंगली चौपायों के राजा सिंह के पास जाना पडता हैं। हमारी गिनती न तीन में रह गई हैं और न तेरह में। अब हमें क्या करना चाहिए, यही विचारने के लिए यह सभा बुलाई गई हैं।
हुदहुद ने प्रस्ताव रखा “हमें नया राजा चुनना चाहिए, जो हमारी समस्याएं हल करे और दूसरे राजाओं के बीच बैठकर हम पक्षियों को जीव जगत में सम्मान दिलाए।”

मुर्गे ने बांग दी “कुकडूं कूं। मैं हुदहुदजी के प्रस्ताव का समर्थन करता हूं”

चील ने जोर की सीटी मारी “मैं भी सहमत हूं।”

मोर ने पंख फैलाए और घोषणा की “तो सर्वसम्मति से तय हुआ कि हम नए राजा का चुनाव करें, पर किसे बनाएं हम राजा?”।

सभी पक्षी एक दूसरे से सलाह करने लगे। काफी देर के बाद सारस ने अपना मुंह खोला “मैं राजा पद के लिए उल्लूजी का नाम पेश करता हूं। वे बुद्धिमान हैं। उनकी आंखें तेजस्वी हैं। स्वभाव अति गंभीर हैं, ठीक जैसे राजा को शोभा देता हैं।”

हार्नबिल ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा “सारसजी का सुझाव बहुत दूरदर्शितापूर्ण हैं। यह तो सब जानते हैं कि उल्लूजी लक्ष्मी देवी की सवारी है। उल्लू हमारे राजा बन गए तो हमारा दारिद्रय दूर हो जाएगा।”

लक्ष्मीजी का नाम सुनते ही सब पर जादू सा प्रभाव हुआ। सभी पक्षी उल्लू को राजा बनाने पर राजी हो गए।

मोर बोला “ठीक हैं, मैं उल्लूजी से प्रार्थना करता हूं कि वे कुछ शब्द बोलें।”

उल्लू ने घुघुआते कहा “भाइयो, आपने राजा पद पर मुझे बिठाने का निर्णय जो किया हैं उससे मैं गदगद हो गया हूं। आपको विश्वास दिलाता हूं कि मुझे आपकी सेवा करने का जो मौका मिला हैं, मैं उसका सदुपयोग करते हुए आपकी सारी समस्याएं हल करने का भरसक प्रयत्न करुंगा। धन्यवाद।”

पक्षि जनों ने एक स्वर में ‘उल्लू महाराज की जय’ का नारा लगाया।

कोयलें गाने लगी। चील जाकर कहीं से मनमोहक डिजाइन वाला रेशम का शाल उठाकर ले आई। उसे एक डाल पर लटकाया गया और उल्लू उस पर विराजमान हुए। कबूतर जाकर कपडों की रंगबिरंगी लीरें उठाकर लाए और उन्हें पेड की टहनियों पर लटकाकर सजाने लगे। मओरों की टोलियां पेड के चारों ओर नाचने लगी।

मुर्गों व शतुरमुर्गों ने पेड के निकट पंजो से मिट्टी खोद-खोदकर एक बडा हवन तैयार किया। दूसरे पक्षी लाल रंग के फूल ला-लाकर कुंड में ढेरी लगाने लगे। कुंड के चारों ओर आठ-दस तोते बैठकर मंत्र पढने लगे।

बया चिडियों ने सोने व चाण्दी के तारों से मुकुट बुन डाला तथा हंस मोती लाकर मुकुट में फिट करने लगे। दो मुख्य तोते पुजारियों ने उल्लू से प्रार्थना की “हे पक्षी श्रेष्ठ, चलिए लक्ष्मी मंदिर चलकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।”

निर्वाचित राजा उल्लू तोते पंडितों के साथ लक्ष्मी मंदिर के ओर उड चले उनके जाने के कुछ क्षण पश्चात ही वहां कौआ आया। चारों ओर जश्न सा माहोल देखकर वह चौंका। उसने पूछा “भाई, यहां किस उत्सव की तैयारी हो रही हैं?

पक्षियों ने उल्लू के राजा बनने की बात बताई। कौआ चीखा “मुझे सभा में क्यों नहीं बुलाया गया? क्या मैं पक्षी नहीं?”

मोर ने उत्तर दिया “यह जंगली पक्षियों की सभा हैं। तुम तो अब जाकर अधिकतर कस्बों व शहरों में रहने लगे हो। तुम्हारा हमसे क्या वास्ता?”

कौआ उल्लू के राजा बनने की बात सुनकर जल-भुन गया था। वह सिर पटकने लगा और कां-कां करने लगा “अरे, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया हैं, जो उल्लू को राजा बनाने लगे? वह चूहे खाकर जीता हैं और यह मत भूलो कि उल्लू केवल रात को बाहर निकलता हैं। अपनी समस्याएं और फरियाद लेकर किसके पास जाओगे? दिन को तो वह मिलेगा नहीं।”

कौए की बातों का पक्षियों पर असर होने लगा। वे आपस में कानाफूसी करने लगे कि शायद उल्लू को राजा बनाने का निर्णय कर उन्होंने गलती की हैं। धीरे-धीरे सारे पक्षी वहां से खिसकने लगे। जब उल्लू लक्ष्मी पूजन कार तोतों के साथ लौटा तो सारा राज्याभिषेक स्थल सूना पडा था। उल्लू घुघुआया “सब कहां गए?”

उल्लू की सेविका खंडरिच पेड पर से बोली “कौआ आकर सबको उल्टी पट्टी पढा गया। सब चले गए। अब कोई राज्याभिषेक नहीं होगा।”

उल्लू चोंच पीसकर रह गया। राजा बनने का सपना चूर-चूर हो गया तब से उल्लू कौओं का बैरी बन गया और देखते ही उस पर झपटता हैं।

सीखः कई में दूसरों के रंग में भंग डालने की आदत होती हैं और वे उम्र-भर की दुश्मनी मोल ले बैठते हैं।

18. मूर्ख बातूनी कछुआ

एक तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। उसी तलाब में दो हंस तैरने के लिए उतरते थे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। कछुए और उनमें दोस्ती होते देर न लगी। हंसो को कछुए का धीमे-धीमे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा। हंस बहुत ज्ञानी भी थे।

वे कछुए को अदभुत बातें बताते। ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस तो दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए दूसरी जगहों की अनोखी बातें कछुए को बताते। कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता। बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। उन तीनों की घनिष्टता बढती गई। दिन गुजरते गए।

एक बार बडे जोर का सुखा पडा। बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा। उस तालाब का पानी सूखने लगा। प्राणी मरने लगे, मछलियां तो तडप-तडपकर मर गईं। तालाब का पानी और तेजी से सूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाब में खाली कीचड रह गया।

कछुआ बडे संकट में पड गया। जीवन-मरण का प्रश्न खडा हो गया। वहीं पडा रहता तो कछुए का अंत निश्चित था। हंस अपने मित्र पर आए संकट को दूर करने का उपाय सोचने लगे। वे अपने मित्र कछुए को ढाडस बंधाने का प्रयत्न करते और हिम्म्त न हारने की सलाह देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे। वे दूर-दूर तक उडकर समस्या का हल ढूढते।

एक दिन लौटकर हंसो ने कहा “मित्र, यहां से पचास कोस दूर एक झील हैं।उसमें काफी पानी हैं तुम वहां मजे से रहोगे।” कछुआ रोनी आवाज में बोला “पचास कोस? इतनी दूर जाने में मुझे महीनों लगेंगे। तब तक तो मैं मर जाऊंगा।”

कछुए की बात भी ठीक थी। हंसो ने अक्ल लडाई और एक तरीका सोच निकाला।

वे एक लकडी उठाकर लाए और बोले “मित्र, हम दोनों अपनी चोंच में इस लकडी के सिरे पकडकर एक साथ उडेंगे। तुम इस लकडी को बीच में से मुंह से थामे रहना। इस प्रकार हम उस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे उसके बाद तुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी।”
उन्होंने चेतावनी दी “पर याद रखना, उड़ान के दौरान अपना मुंह न खोलना। वरना गिर पडोगे।”

कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस, लकडी पकडकर हंस उड चले। उनके बीच में लकडी मुंह दाबे कछुआ। वे एक कस्बे के ऊपर से उड रहे थे कि नीचे खडे लोगों ने आकाश में अदभुत नजारा देखा। सब एक दूसरे को ऊपर आकाश का दॄश्य दिखाने लगे। लोग दौड-दौडकर अपने छज्जों पर निकल आए। कुछ अपने मकानों की छतों की ओर दौडे। बच्चे बूडे, औरतें व जवान सब ऊपर देखने लगे। खूब शोर मचा। कछुए की नजर नीचे उन लोगों पर पडी।

उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हें इतने लोग देख रहे हैं। वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और चिल्लाया “देखो, कितने लोग हमें देख रहे है!” मुंह के खुलते ही वह नीचे गिर पडा। नीचे उसकी हड्डी-पसली का भी पता नहीं लगा।

19. लालची कुत्ता

19. लालची कुत्ता


एक गाँव में एक कुत्ता था. वह बहुत लालची था. वह भोजन की खोज में इधर – उधर भटकता रहा. लेकिन कही भी उसे भोजन नहीं मिला. अंत में उसे एक होटल के बाहर से मांस का एक टुकड़ा मिला. वह उसे अकेले में बैठकर खाना चाहता था. इसलिए वह उसे लेकर भाग गया.

एकांत स्थल की खोज करते – करते वह एक नदी के किनारे पहुँच गया. अचानक उसने अपनी परछाई नदी में देखी. उसने समझा की पानी में कोई दूसरा कुत्ता है जिसके मुँह में भी मांस का टुकड़ा है.

उसने सोचा क्यों न इसका टुकड़ा भी छीन लिया जाए तो खाने का मजा दोगुना हो जाएगा. वह उस पर जोर से भौंका. भौंकने से उसका अपना मांस का टुकड़ा भी नदी में गिर पड़ा. अब वह अपना टुकड़ा भी खो बैठा. अब वह बहुत पछताया तथा मुँह लटकाता हुआ गाँव को वापस आ गया.

20. खरगोश की कहानी

20. खरगोश की कहानी


एक खरगोश जंगल में रहता था। उसके कई दोस्त थे। उसे अपने दोस्तों पर गर्व था। एक दिन खरगोश ने जंगली कुत्तों के जोर से भौंकने की आवाज़ सुना। वह बहुत डरा हुआ था। उसने मदद मांगने का फैसला किया।

वह जल्दी से अपने मित्र हिरण के पास गया। उन्होंने कहा, “प्रिय मित्र! कुछ जंगली कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। क्या आप उन्हें अपने तीखे एंटीलर्स से दूर कर सकते हैं? ” हिरन ने कहा, “यह सही है, मैं कर सकता हूँ।” लेकिन अभी मैं व्यस्त हूं।

खरगोश भालू के पास दौड़ा। “मेरे प्यारे दोस्त! आप बहुत मजबूत हैं।कृपया मेरी सहायता करे। कुछ जंगली कुत्ते मेरे पीछे हैं। कृपया उनका पीछा करें” उन्होंने भालू से अनुरोध किया।

भालू ने उत्तर दिया, “मुझे क्षमा करें। मैं भूखा और थका हुआ हूँ। मुझे कुछ खाने को खोजने की जरूरत है। कृपया मदद के लिए बंदर से पूछें”

बेचारा खरगोश बंदर के पास गया, हाथी, बकरी और उसके अन्य सभी दोस्त के पास गया।

खरगोश को दुःख हुआ कि कोई भी उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था। वह समझ गया कि उसे खुद से बाहर निकलने का रास्ता सोचना होगा। वह एक झाड़ी के नीचे छिप गया। वह बहुत स्थिर था। जंगली कुत्तों को खरगोश नहीं मिला।

वे अन्य जानवरों का पीछा करते हुए चले गए। खरगोश ने सीखा कि उसे खुद से जीवित रहना सीखना हैं, उसके अनछुए दोस्तों पर निर्भर नहीं रहना।

Moral of the Story:-
दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय खुद पर भरोसा करना बेहतर है।

21. बन्दर और सुगरी

सुन्दर वन में ठण्ड दस्तक दे रही थी , सभी जानवर आने वाले कठिन मौसम के लिए तैयारी करने में लगे हुए थे . सुगरी चिड़िया भी उनमे से एक थी , हर साल की तरह उसने अपने लिए एक शानदार घोंसला तैयार किया था और अचानक होने वाली बारिश और ठण्ड से बचने के लिए उसे चारो तरफ से घांस -फूंस से ढक दिया था .

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक ही बिजली कड़कने लगी और देखते – देखते घनघोर वर्षा होने लगी , बेमौसम आई बारिश से ठण्ड भी बढ़ गयी और सभी जानवर अपने -अपने घरों की तरफ भागने लगे . सुगरी भी तेजी दिखाते हुए अपने घोंसले में वापस आ गई , और आराम करने लगी . उसे आये अभी कुछ ही वक़्त बीता था कि एक बन्दर खुद को बचाने के लिए पेड़ के नीचे आ पहुंचा .

सुगरी ने बन्दर को देखते ही कहा – “ तुम इतने होशियार बने फिरते हो तो भला ऐसे मौसम से बचने के लिए घर क्यों नहीं बनाया ?” यह सुनकर बन्दर को गुस्सा आया लेकिन वह चुप ही रहा और पेड़ की आड़ में खुद को बचाने का प्रयास करने लगा .

थोड़ी देर शांत रहने के बाद सुगरी फिर बोली, ” पूरी गर्मी इधर उधर आलस में बिता दी…अच्छा होता अपने लिए एक घर बना लेते!!!” यह सुन बन्दर ने गुस्से में कहा, ” तुम अपने से मतलब रखो , मेरी चिंता छोड़ दो .”

सुगरी शांत हो गयी.

बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी और हवाएं भी तेज चल रही थीं, बेचारा बन्दर ठण्ड से काँप रहा था, और खुद को ढंकने की भरसक कोशिश कर रहा था.पर सुगरी ने तो मानो उसे छेड़ने की कसम खा रखी थी, वह फिर बोली, ” काश कि तुमने थोड़ी अकल दिखाई होती तो आज इस हालत….”

सुगरी ने अभी अपनी बात ख़तम भी नहीं की थी कि बन्दर बौखलाते हुए बोला, ” एक दम चुप, अपना ये बार-बार फुसफुसाना बंद करो ….. ये ज्ञान की बाते अपने पास रखो और पंडित बनने की कोशिश मत करो.” सुगरी चुप हो गयी.

अब तक काफी पानी गिर चुका था , बन्दर बिलकुल भीग गया था और बुरी तरह काँप रहा था. इतने में सुगरी से रहा नहीं गया और वो फिर बोली , ” कम से कम अब घर बनाना सीख लेना.” इतना सुनते ही बन्दर तुरंत पेड़ पर चढ़ने लगा ,……. “भले मैं घर बनाना नहीं जानता लेकिन मुझे तोडना अच्छे से आता है..”, और ये कहते हुए उसने सुगरी का घोंसला तहस नहस कर दिया. अब सुगरी भी बन्दर की तरह बेघर हो चुकी थी और ठण्ड से काँप रही थी.

22. सुनी सुनाई बात

22. सुनी सुनाई बात


बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे जंगल के बीच में एक बहुत बड़ा तालाब था जहाँ से जानवर पानी पीते थे इस तालाब के किनारे पर एक पपीते का बहुत ऊँचा पेड़ था उस पर बहुत बड़े बड़े पपीते लगते थे एक बार कुछ खरगोश पानी पी कर तालाब के किनारे पर खेल रहे थे,

एक पका हुआ बड़ा सा पपीता टूट कर पानी में गिर गया जिस से बहुत जोर की आवाज आई गडम करके गडम की आवाज सुन कर खरगोश डर गए और भाग निकले .खरगोशों को भागते हुए देख कर एक लोमड़ी ने पूछा क्यों भाई क्या बात है क्यों भाग रहे हो खरगोश ने कहा गडम आ रहा है।

भागो लोमड़ी भी उनके साथ भाग ली आगे चल कर उनको एक हाथियों का झुण्ड मिला, एक हाथी ने पूछा क्यों भाग रहे हो तो उत्तर मिला गडम आ रहा है भागो, हाथी भी साथ भागने लगे धीरे धीरे गडम आ रहा है सुन कर बहुत सारे जानवर एकसाथ भागने लगे. यह जानवरों का झुण्ड जब बब्बर शेर की मांद के पास से दौड़ रहा था।

तो शेर ने पूछा क्यों भाग रहे हो उत्तर मिला गडम आ रहा है भागो जैसे ही एक शेर भागने को तयार हो रहा था तो दूसरे शेर ने कहा तुम क्यों भाग रहे हो तुम तो जंगल के राजा हो
तुम्हारे पास शक्तिशाली पंजे हैं तुम जिसे चाहो अपने पंजों से चीर सकते हो भागने से पहले सच्चाई तो जानलें. इस पर शेर ने एक जानवर से पूछा कि तुम्हें किसने कहा कि गडम आरहा है।

तो उसने कहा मुझे तो हाथी ने कहा. हाथी से पूछा तो उसने कहा मुझे तो लोमड़ी ने कहा, लोमड़ी ने कहा मुझे तो खरगोश ने कहा था. जब खरगोश से पूछा तो उसने कहा हम जहाँ पर खेल रहे थे वहां पर गडम की आवाज आई थी जिस को सुन कर हम भागे थे शेर ने कहा मुझे उस स्थान पर ले चलो. सभी उस स्थान की ओर चल पड़े।

जैसे ही सभी जानवर तालाब के किनारे पर पहुंचे एक बड़ा सारा पपीता टूट कर पानी में गिर गया और बहुत जोर से गडम की आवाज आई. शेर ने कहा यह तो पानी की आवाज है जो पपीते के गिरने से हुई.।

खरगोश ने कहा हम तो यही आवाज सुनकरकर ही डर के मारे भागे थे. तब शेर ने समझाया कि इसमें डरने की कोई बात नहीं है. यह सब सुनी सुनाई बात से हुआ है शेर ने कहा आगे से कभी भी सुनी सुनाई बात पर विश्वास मत करना

दोस्तों आपको ये Story Of Animals In Hindi कहानियां कैसी लगी? आप हमें नीचे दिए गए कम्मेंट सेक्शन में ज़रूर बताये।
 

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