सूर्यातप क्या है? (विस्तारपूर्वक समझिये) । Insolation in Hindi


हेलो दोस्तों, हमारे ब्लॉक में आपका स्वागत है, आज हम सूर्यातप क्या है? । Insolation in Hindi और सूर्यातप एवं तापक्रम को प्रभावित करने वाले कारक के बारे में जानेंगे, तो चलिए शुरू करते है

सूर्यातप क्या है? । Insolation in Hindi

सूर्य, वायुमण्डल तथा पृथ्वी की ऊष्मा का प्रधान स्रोत है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को ही सूर्यातप कहा जाता है। ट्विार्था के अनुसार, “लघु तरंगों के रूप में संचालित (ल. 1/250 से 1/670 मिलीमीटर) और 1,86,000 मील प्रति सेकेण्ड की गति से भ्रमण करती हुई प्राप्त सौर्यिक ऊर्जा को ‘सूर्यातप’ कहते हैं।” बायर्स के अनुसार, पृथ्वी की सतह पर प्रत्यक्षतः प्राप्त सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। ट्विार्था का कथन है कि, “ सूर्य एक ” विशाल इंजन है जो धरातल पर पवनों, समुद्री धाराओं और विभिन्न ऋतुओं को उत्पन्न करता है।

वायुमण्डल तथा पृथ्वी की ऊष्मा का मुख्य स्रोत सूर्य है। वास्तव में धरातल पर सूर्य से विकिरित लघु तरंगों के रूप में प्राप्त ऊर्जा को सूर्यातप कहते हैं। ट्रिवार्था के अनुसार, “सूर्य से ताप का विकिरण लघु तरंगों के रूप में होता है जो 1/250 1/6700 किमी लम्बी होती है तथा 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकण्ड की गति से चलती है, सूर्यातप कहलाती है।

सूर्यातप का वितरण

सर्वाधिक सूर्यातप भूमध्य रेखा के 10° उत्तर तथा दक्षिण के मध्यवर्ती क्षेत्र को प्राप्त होता है, क्योंकि यहाँ वर्ष भर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। ध्रुवों पर सूर्यातप केवल 40 प्रतिशत ही प्राप्त होता है। इस प्रकार धरातल पर सूर्य का वितरण अलग-अलग होता है।

1. निम्न अक्षांशीय मण्डल (उष्ण कटिबन्ध)

इसका विस्तार कर्क और मकर रेखाओं के मध्य पाया जाता है। इस भाग में वर्ष भर ऊच्च सूर्यातप प्राप्त होता है। सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने के साथ इस क्षेत्र का प्रत्येक स्थान वर्ष में दो बार अधिकतम और दो बार न्यूनतम सूर्यातप प्राप्त करता है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य सूर्य की किरणें वर्ष में दो बार लम्बवत् चमकती है इसलिए भूमध्य रेखा के आसपास वाले भागों में अधिकतम तापमान रहने के कारण शीत ऋतु नाममात्र की भी नहीं होती है जबकि कर्क एवं मकर रेखाओं के समीपवर्ती भागों में क्रमश: ग्रीष्म एवं शीत ऋतुएँ प्रारम्भ हो जाती है। अतः विषवत् रेख (भूमध्य रेखा) के समीप दोनों ओर शीत ऋतु रहित इस कटिबन्ध को उष्ण कटिबंध की संज्ञा दी जाती है।

2. मध्य अक्षांशीय मण्डल (शीतोष्ण कटिबन्ध)

इसका विस्तार 23 2 ° से 66 2 अक्षांशों के मध्य है। यह क्षेत्र वर्ष में कभी सूर्यातप से शून्य नहीं रहता है। इस क्षेत्र के प्रत्येक स्थान पर वर्ष में एक बार अधिकतम और एक बार न्यूनतम सूर्यातप प्राप्त होता है। यह ताप कटिबंध दोनों गोलार्द्धां में 23° से 66½2° उत्तरी एवं दक्षिणी गोलाद्धों के मध्य विस्तीर्ण है। इस कटिबंध में सूर्य की किरणें अपेक्षा कृत तिरछी पड़ती हैं। यहाँ न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न तो अधिक सर्दी पड़ती है और तापमान ऋतुओं के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। इसके साथ ही दिन और रात्रि की अवधि भी ऋतुओं के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। इस कटिबंध में औसत तापमान उष्ण-कटिबंध से कम परन्तु शीत कटिबंध से अधिक पाया जाता है। इसी कारण से इसे शीतोष्ण कटिबंध की संज्ञा दी जाती है।

3. ध्रुवीय मण्डल (शीत कटिबन्ध)

यह मण्डल 661° अक्षांश से ध्रुवों तक विस्तृत है। इस क्षेत्र में वर्ष में एक बार अधिकतम और एक बार न्यूनतम सूर्यातप प्राप्त होता है। वर्ष के कुछ महीनों में सूर्य के अभाव के कारण यहाँ सूर्यातप शून्य हो जाता है। यह कटिबंध दोनों गोलाद्धों में 66½2° अक्षांशों से लेकर ध्रुवों तक विस्तीर्ण है। इस कटिबंध में सूर्य क्षितिज से ऊपर नहीं जा पाता है। अतः सूर्य की किरणें सदैव तिरछी पड़ती हैं। इसीलिए इस कटिबंध में सदैव न्यूनतम तापमान पाया जाता है। यहाँ दिन रात की अवधि 24 घंटे से लेकर ध्रुवों पर 6 माह तक हो जाती है और ध्रुवों पर क्रमशः 6 महीने का दिन और 6 महीने की रात्रि होती है। यह कटिबंध वर्ष भर बर्फाच्छादित रहता है और अत्यधिक ठण्ड पड़ती हैं, इसीलिए इसे शीत कटिबंध की संज्ञा दी जाती है।

वाष्पीकरण

जल के वाष्प में बदलने की प्रक्रिया को ‘वाष्पीकरण’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रतिदिन, प्रतिक्षण सूर्यताप पृथ्वी के जल को गैस (वाष्प) में परिवर्तित करता रहता है। इस क्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। समुद्र के जल की विशाल मात्रा का वाष्पीकरण होता रहता है।

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक । Factors Affecting Insolation in Hindi

1. सूर्य से दूरी

पृथ्वी की कक्षा अण्डाकार है, अत: सूर्य से उसकी दूरी बदलती रहती है। उपसौर की स्थिति में 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के निकटतम (91.5 मिलियन मील) स्थित होती है।

2. सौर कलंक

चन्द्रमा के समान सूर्य तल पर कलंक या धब्बे मिलते हैं। इनका कोई स्थाई रूप नहीं होता है, वरन् ये बनते-बिगड़ते रहते हैं तथा इनकी संख्या घटती-बढ़ती रहती है। यह अन्तर चक्रीय रूप में सम्पन्न होता है। औसत रूप में एक चक्र ग्यारह वर्ष में पूरा होता है। जब सौर कलंकों की संख्या अधिक हो जाती है तो सूर्यातप की मात्रा भी अधिक हो जाती है, परन्तु इनकी मात्रा में कमी हो जाने के कारण प्राप्त होने वाला सूर्यातप कम हो जाता है। सौर कलंकों के कारण सूर्य विकिरण में अन्तर आता रहता है।

3. सूर्य की किरणों का कोण

पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण सूर्य की किरणें धरातल पर सर्वत्र समान कोण पर नहीं पड़तीं। विषुवत रेखा पर सीधी अथवा ऊर्ध्वाधर किरणें पड़ती हैं, जिनसे अधिक ताप की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत ध्रुवों पर तिरछी या अनुप्रस्थ किरणें पड़ती हैं, जिन्हें अधिक क्षेत्र में फैलना पड़ता है; फलतः वे कम ताप पहुँचाती हैं। अनुप्रस्थ किरणों को अधिक वायुमण्डल पार करना पड़ता है, जिससे ताप की कुछ मात्रा नष्ट हो जाती है। इसलिए ध्रुवों पर कम ताप की प्राप्ति होती है।

4. दिन की लम्बाई

दिन लम्बा होने पर सूर्यातप ज्यादा देर तक मिलता है। साधारणतया जहाँ सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है वहाँ दिन भी ज्यादा लम्बा होता है। अतः जहाँ सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है वहाँ न सिर्फ प्रति घंटा सूर्यातप ज्यादा मिलता है अपितु वहाँ सूर्यातप ज्यादा समय तक भी मिलता है। सूर्य की किरणों का कोण और दिन की लम्बाई एक अक्षांश रेखा पर समान होती है। अतः एक ही अक्षांश रेखा पर स्थित सभी जगहों को समान सूर्यातप मिलता है। सूर्यातप की मात्रा अलग-अलग अक्षांश रेखाओं पर भिन्न होती है।

5. ऊँचाई

क्षोभमंडल में प्रति किलोमीटर तापक्रम 6.5°C कम हो जाता है। अत: ऊँचाई के साथ तापक्रम कम होता जाता है। इसी कारण शिमला एवं मसूरी का तापक्रम दिल्ली और अन्य कम ऊँचाई के क्षेत्र से कम होता है।

4. ढाल

जिस ढाल पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती हैं वहाँ तापक्रम ज्यादा और विपरीत ढाल पर कम होती है। उदाहरणार्थ-हिमालय के दक्षिणी ढाल पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती हैं। अतः हिमालय के दक्षिणी ढाल पर तापक्रम ज्यादा और उत्तरी ढाल (विपरीत ढाल) पर कम होती है।

5. वायुमण्डल की पारदर्शकता

वायुमण्डल पार करते समय जलवाष्प, मेघ और धूलकण ताप का अवशोषण (Absorption), प्रकीर्णन तथा परावर्तन करते हैं। पृथ्वी से सौर शक्ति का जो भाग परावर्तित होता है, उसे अलबीडो कहते हैं। अलबीडो की मात्रा पर मेघों की मात्रा व सतह के गुण, हिमावरण, वनाच्छादन, आदि का विशेष प्रभाव पड़ता है। किम्बले के अनुसार पूर्ण मेघाच्छादित आकाश होने पर केवल 22% सौर विकिरण की प्राप्ति होती है।

6. थल और जल का विभिन्न स्वभाव

जल की अपेक्षा थल भाग शीघ्र गर्म व ठण्डा होता है। जल का आपेक्षिक ताप (Specific heat) थल के आपेक्षिक ताप से कहीं अधिक होता है। उदाहरण के लिए एक किलोग्राम रेत व जल को गर्म किया जाए तो जल को गर्म करने के लिए पाँच गुना अधिक ताप की आवश्यकता होगी। थल की अपेक्षा जल में सौर किरणें अधिक गहराई तक प्रवेश करती हैं। अतः जल पर पड़ने वाली किरणों को अधिक द्रव्यमान पर गर्म करना पड़ता है। इसीलिए सूर्य की किरणें थल की ऊपरी परत के सीमित भाग को शीघ्र गर्म कर देती हैं, जबकि गतिशील जल को देर में गर्म कर पाती हैं।

इन्हें भी पढ़ेंजलमंडल क्या है? (हिन्दी में जानें) । Hydrosphere in Hindi

दोस्तों आज हमने आपको सूर्यातप क्या है? । Insolation Definition in Hindi और सूर्यातप एवं तापक्रम को प्रभावित करने वाले कारक के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा और आपको इससे बहुत कुछ सिखने को भी मिला होगा, तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके बताये ताकि मुझे और अच्छे अच्छे आर्टिकल लिखने का अवसर प्राप्त हो, मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा धन्यवाद्
 

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