होमी जहांगीर भाभा (1909 -1966)
- जन्म – 30 oct 1909
- जन्मस्थान – मुंबई
- मृत्यु – 24 जनवरी 1966 (मोंट ब्लांक, फ्रांस)
- पिता का नाम – जहांगीर होरमुस जी भाभा
- माता का नाम – मेहरेन
- राष्ट्रीयता – भारतीय
- शिक्षा – कैंब्रिज विश्व विद्यालय
होमी जहांगीर भाभा का जन्म, जन्म स्थान तथा शिक्षा दीक्षा
होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था। भाभा जी के पिता एक जाने-माने मशहूर वकील थे और इनकी माता दी बड़े घराने से थे।भाभा जी जब छोटे थे तब इनको बहुत कम नींद आती थी और इनको कोई बीमारी भी नहीं थी इसका कारण यह था उनका दिमाग तेज होने के कारण उनके विचारों की गति बहुत तेज होती थी। भाभा जी ने इंटर की परीक्षा मुंबई से ही पास की मात्र 15 वर्ष की आयु में आइंस्टीन के सापेक्षता का सिद्धांत को अच्छी तरीके से पढ और समझ भी लिए थे।
एलफिंस्टन कॉलेज मुंबई और राय इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी पास किया मुंबई से पढ़ाई पूरी करने के बाद भाभा वर्ष 1927 में ब्रिटेन के कैअस कॉलेज कैंब्रिज इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए 1930 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में रहकर स्नातक की उपाधि ग्रहण की। 1934 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
पढ़ाई के दौरान अपनी मानसिक कुशलता के कारण लगातार वे छात्रवृत्ति लेते रहे और पढ़ाई के दौरान ही उनको सर आइज़क न्यूटन फैलोशिप भी मिला और उनको विश्व के महान वैज्ञानिकों जैसे रदरफोर्ड डेराक तथा नील्स बैग आदि के साथ काम करने का अवसर भी मिला था।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो उन्होंने अपने घर वालों के कहने पर की थी बाकी उनकी रुचि भौतिक विज्ञान में बहुत ज्यादा थी और बाद में उन्होंने उस पर काम करना चालू कर दिया।
फिर उसके बाद भाभा जी भारत लौटे 1940 में उस समय तक होमी जहांगीर भाभा पूरे दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना चुके थे और वह चाहते तो किसी भी देश में एक बड़े पद पर कार्य कर सकते थे लेकिन देश प्रेम और देश के प्रति लगा होने के कारण वह भारत वापस लौट आए उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर सी बी रमन से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए।
होमी जहांगीर भाभा के जीवन का सफर
दूसरे विश्वयुद्ध के आरंभ होने के बाद वर्ष 1939 में होमी जहांगीर भाभा भारत वापस लौट आए जैसा कि उस दौरान भाभा जी का भी ज्यादा ख्याति प्राप्त कर चुके थे और फिर वे बेंगलुरु के इंडियन स्कूल ऑफ साइंस से जुड़ गए और 1940 में लीडर पार किया यहां से उन्होंने अपने नए जीवन के सफर की शुरुआत और फिर वे अंतिम समय तक अपने देश की सेवा मैं लगे रहे। और फिर उसी स्कूल जहां पर उन्होंने रीडर पद पर कार्य किया था कॉस्मिक किरणों की खोज के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की।उन्होंने जेआरडी टाटा की मदद से मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की और वर्ष 1945 में इसके निदेशक बन गए।
वर्ष 1941 में मात्र 21 वर्ष की आयु में जहांगीर को हराया सोसायटी का सदस्य चुना गया जो उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी और उनके जीवन में भी और फिर उन्होंने 1944 में प्रोफेसर की उपाधि धारण की इंडियन स्कूल ऑफ साइंस के तत्कालिक अध्यक्ष और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर सीवी रमन भी होमी जहांगीर भाभा से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व जहांगीर ने बहुत अच्छे तरीके से किया वर्ष 1948 में डॉ जहांगीर ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की इसके अलावा और कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों आदि के प्रमुख भी बने रहे।
जहांगीर जी परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के प्रबल सहायक थे वे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर 1958 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जिनेवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उप सचिव रहे।
वे संयुक्त राष्ट्र की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य थे और 1966 से 1981 तक अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य रहे।
डॉक्टर सेठना उनके संस्थानों के अध्यक्ष और निदेशक भी रहे।
और उनके अथक प्रयास और कुशल नेतृत्व से 1959 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में प्लूटोनियम पृथक करने के प्रथम संयंत्र का निर्माण संभव हो सका इसके डिजाइन और निर्माण का पूरा काम भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने ही अपने कंधों पर रखा था और आगे चलकर इसे संयत्र में पृथक किए गए प्लूटोनियम सेवा परमाणु यूपी तैयार की गई जिसके विस्फोटक से 18 मई 1974 को पोखरण में बुद्ध मुस्कुराए।
होमी भाभा का संगीत तथा नृत्य कला में रुचि
होमी भाभा विज्ञान परमाणु ऊर्जा शास्त्री संगीत मूर्तिकला चित्रकला तथा अन्य क्षेत्रों में भी उनकी और अच्छी पकड़ थी वे चित्रकारों मूर्ति कारों को प्रोत्साहन देने के लिए उनके चित्रों और मूर्तियों को खरीद कर तांबरे स्थित संस्थान में सो जाते थे और संगीत कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया करते थे मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन की पहली प्रदर्शनी का मुंबई में उद्घाटन डॉक्टर भाभा ने ही किया था।नोट → डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा पांच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया परंतु विज्ञान की दुनिया का सबसे बड़ा यह पुरस्कार उनको कभी नहीं मिल पाया।
होमी जहांगीर भाभा का निधन 24 जनवरी 1966 को फ्रांस में एक विमान दुर्घटना में हुआ था।
उपलब्धियां
- वर्ष 1983 में ऐडम्स पुरस्कार मिला होमी जहांगीर भाभा को
- वर्ष 1959 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने डॉक्टर आफ साइंस की डिग्री प्रदान की।
- वर्ष 1954 में भारत सरकार ने डॉक्टर होमी जहांगीर बाबा को पदम विभूषण से सम्मानित किया।
- वर्ष 1948 में हापकिंसन पुरस्कार से सम्मानित किया गया
- 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु में डॉक्टर होमी भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया।
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