लौहगढ़ का किला-भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग - Lohagarh Fort History in hindi

लौहगढ़ का किला-भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग, मिट्टी का यह किला तोपों पर पड़ा था भारी,13 युद्धों में भी नहीं भेद पाए थे अंग्रेज।

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लोहागढ़ का किला समुद्र तल से लगभग 3400 फीट की ऊंचाई पर एक खूबसूरत पहाड़ी पर स्थित है। महाराष्ट्र राज्य का एक प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। लोहागढ़ का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में भी अपनी जगह बना चुका है। यह ऐतिहासिक किला पुणे से लगभग 52 किलोमीटर की दूरी पर और लोनावाला हिल स्टेशन से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। लोहागढ़ किला एक खूबसूरत पहाड़ी पर स्थित है। लोहागढ़ किले में प्राचीन वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता का परिपूर्ण समागम देखने को मिलता है। लोहागढ़ किला ट्रेकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श डेस्टिनेशन के रूप में कार्य करता है।


लौहगढ़ दुर्ग शिवाजी महाराज अपना खजाना रखते थे​

माना जाता हैं कि यह वही किला हैं जिसमे छत्रपति शिवाजी महाराज अपना खजाना रखते थे। लोहागढ़ किले की जड़े अपने पडोसी विसापुर किले से भी मिलती हैं। लोहागढ़ किला की यात्रा करना अपने आप में एक अद्भुत आनंद हैं, क्योंकि इसके साथ ही साथ पर्यटक लोनावाला, लोहागढ़ किला और विसापुर किले का दौरा भी कर सकते हैं।

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13 बार अंग्रेजों ने लौहगढ़ किले पे आक्रमण किया परन्तु भेद नहीं पाये​

राजस्थान के भरतपुर जिले में स्तिथ‘ लौहगढ़ के किले’ को भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है क्योंकि मिट्टी सेबने इस किले को कभी कोई नहीं जीत पायाय हाँ तक की अंग्रेज भी नहीं जिन्होंने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों के साथ आक्रमण किया था। . तोप के गोले समा जाते थे दीवार के पेट में,यह राजस्थान के अन्य किलों के जितना विशाल नहीं है, लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है।

क्यो कैसे और कब कराया गया था लौहगढ़ दुर्घ का निर्माण?​

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इस किले का निर्माण 285 साल पहले यानी 19 फरवरी, 1733 को जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। चूंकि उस समय तोप और बारूद का प्रचलन अधिक था, इसलिए इस किले को बनाने में एक विशेष तरह का प्रयोग किया गया था, जिससे कि बारूद के गोले भी किले की दीवार से टकराकर बेअसर हो जाएं।

जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह और करौली के महाराजा राजा बदनसिंह ने भरतपुर रियासत का निर्माण करवाया था सूरजमल जाट के लिए ,इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है। निर्माण के समय पहले किले की चौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गयी। इन पर तोपो के गोलो का असर नहीं हो इसके लिये इन दीवारों के चारो ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गयी और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमे पानी भरा गया।

ऐसे में पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नही अस्म्भव था। यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं था। क्योंकि तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती थी। ऐसी असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है। इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर सके।राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें जो मिट्टी से बनी हुई हैं।इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं था।

कहावत हैकि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली थी​

इस फौलादी किले को राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार भी कहा जाता है।यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इस किले को सुरक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। दूसरी तरफ अंग्रेजोंने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए।

अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। 13 आक्रमणों में एक बार भी वो इस किलेको भेद न सके। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश होगई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत हैकि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली थी।


लौहगढ़ किले मे होल्कर नरेश जशवंत राव ने शरण ली थी​

होल्कर नरेश जशवंत राव भागकर जब जाट राजा रणजीत सिंह के पास आए और शरण मांगी तो इस जाट सम्राट ने उनकी सुरक्षा की पूर्ण जिम्मेदारी लेते हुए वचन दिया कि वे अपना सब कुछ न्यौछावर करके भी अपने अतिथि की रक्षा करेगे.

यह बात ब्रिटिश कमांडर लार्ड लेक को बहुत बुरी लगी तथा उसने रणजीत सिंह को एक संदेश भिजवाया और कहा गया कि वे होल्कर को उनके हवाले कर दे.

यदि वे ऐसा नहीं करते है तो अपनी मृत्यु के जिम्मेवार स्वयं होंगे. इस पर उन्होंने लेक को जवाब भिजवाया कि जाटों ने अपनी वीरता के दम पर सिर उठाकर जीना सीखा है सिर झुकाना नही.

यदि तुम्हारे कुछ सपने है तो आजमा कर देख ले. रणजीत सिंह के इस जवाब में अंग्रेजी हुकुमत को खुली चुनौती थी. जिसे लेक ने स्वीकार किया तथा अपार सेना बल तथा बन्दूकों तथा तोप के साथ लोहागढ़ को घेर लिया, तोपे गोले दागती रही,

मगर हर एक गोला गोरी सरकार पर तमाचे की तरह निष्फल होकर गिरता रहा. अंग्रेजों ने लोहागढ़ को अपना लक्ष्य बना लिया कुल तेरह बार तोप गोलों से किले पर आक्रमण किया मगर किले को जीतना तो दूर वे एक छेद करने में भी नाकाम रहे।

जवाहर सिंह जाट 1765 ई. में दिल्ली पर आक्रमण कर चित्तौड़ का वो दरवाजा वहां से उठा लाए जो अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ से छिना था​

किले के एक द्वार पर लगा अष्टधातु का विशाल द्वार भी मध्यकाल में जाटों की वीरता का प्रतीक था. यह विशाल दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ आक्रमण के समय अपने साथ दिल्ली ले आया था।

मगर जवाहर सिंह जाट 1765 ई. में दिल्ली पर आक्रमण कर इन्होने वो दरवाजा वहां से उठा लाए और अपने किले के द्वार पर लगा दिया।

इस विजय के उपलक्ष्य में लोहागढ़ में फतह बुर्ज का निर्माण करवाया गया था. भरतपुर के शासकों का राज्याभिषेक किले के जवाहर बुर्ज में किया जाता था।

राजस्थान का सिंहद्वार और पूर्वी सीमान्त का प्रहरी लोहागढ़ का किला जाट राजाओं की वीरता और शौर्यगाथाओं को अपने में समेटे हुए हैं।

भरतपुर के महाराजा सूरजमल द्वारा विनिर्मित यह किला अपनी अजेयता और सुद्रढ़ता के लिए प्रसिद्ध रहा है. इस किले ने मुगल आक्रमणों का सामना किया और अंग्रेज भी इसे नहीं जीत पाए।

लौहगढ किला की बनावट व विशेषता​

यह किला आयताकार है जो 6.4 किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत हैं. यह किला दोहरी प्राचीर से घिरा हुआ हैं. इसकी भीतरी प्राचीर इट पत्थर की बनी हुई हैं और बाहरी प्राचीर मिट्टी की बनी हुई है. मिट्टी की प्राचीर पर तोप के गोलों का कोई असर नहीं होता था।

लोहागढ़ के चारो ओर एक गहरी खाई और मिट्टी का विशाल परकोटा किले के सुरक्षा कवच का कार्य करता था. किले की प्राचीर में 8 विशाल बुर्जे, 40 अर्धचन्द्राकार बुर्जे तथा दो विशाल दरवाजे हैं।

किले का उत्तरी द्वार अष्टधातु दरवाजा महाराजा जवाहरसिंह 1765 ई में मुगलों के शाही खजाने से लूटने के साथ ऐतिहासिक लाल किले से उतार लाए थे।

जवाहर बुर्ज जवाहरसिंह की दिल्ली विजय की स्मृति में निर्मित हैं. फतेह बुर्ज 1806 ई में अंग्रेजों पर विजय के फलस्वरूप बनाई गई. किले में दस दरवाजे हैं, जिनमें सूरजपोल प्रमुख हैं।

लौहगढ़ किले को न भेद पाने के कारण मजबूर होकर अंग्रेजों को जाटों से संधी करनी पड़ी​

लोहागढ़ के किले पर मराठों के अनेक आक्रमण हुए पर उन्हें सफलता नहीं मिली. महाराजा रणजीत सिंह द्वारा जसवंत राव होल्कर को शरण देने से नाराज अंग्रेजो ने जनवरी 1805 से अप्रैल 1805 तक जनरल लेक के नेतृत्व में किले को घेरे रखा परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली. अन्तः विवश होकर अंग्रेजों को जाट राजा से संधि करनी पड़ी।

परन्तु राजघराने के आंतरिक का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने लौहगढ़ किले पर कब्जा कर लिया​

जनवरी 1826 में भरतपुर राजघराने के आंतरिक कलह का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर लिया. लोहागढ़ के किले में कोठी खास, महल खास, रानी किशोरी और रानी लक्ष्मी के महल का शिल्प दर्शनीय हैं. गंगा मंदिर, राजेश्वरी मंदिर, बिहारी जी का मंदिर तथा जामा मस्जिद का शिल्प बेजोड़ हैं।
 
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