Raja Mansingh Amer Real History in Hindi - अकबर के सेनापति मानसिंह की असली पहचान

Mughal Samrat Akbar के सेनापति Raja Mansingh Amer की असली सच्चाई।

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लेखक तेजसिंह तरुण अपनी पुस्तक ‘‘राजस्थान के सुरमा’’ के अनुसार राजा मानसिंह आमेर वैसा नहीं था जैसा आज जन सामान्य में प्रचलित है। यह तो उस समय की राजनीतिक मजबूरी थी जो उसे मुगल साम्राज्य की सेवा में रहना पड़ा था। अन्यथा मानसिंह स्वयं स्वतंत्रता प्रिय व धर्मवान शासक था। मैं यहाँ पुनः हल्दी घाटी के युद्ध की बात कर रहा हूँ जिसमें कहने को मानसिंह और महाराणा प्रताप के बीच संघर्ष हुआ था लेकिन पार्श्व में ऐसे कई प्रसंग है जिनकी गहराई में यदि जाएं तो स्पष्ट हो जाता है कि मानसिंह ने प्रताप को हर तरह से मदद की थी, चूंकि वह चाहता था कि कम से कम एक हिन्दू शासक ऐसा हो जो मुगल साम्राज्य से स्वतन्त्र हो। यही कारण था कि मुगल सेना के खमनोर पहुँचने के उपरांत भी तुरंत युद्ध प्रारम्भ नहीं किया। प्रताप को तैयारी का समय दिया और बाद में भी युद्ध के मैदान से उन्हें सुरक्षित निकल जाने दिया।


महाराणा प्रताप से बार बार मात खाने के बाद अकबर को भी राजामानसिंह की मानसिकता पर संदेह हो गया था।​

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मानसिंह की इस मानसिकता का आभास अकबर को भी हो गया। उसने मानसिंह पर नाराजगी व्यक्त करते हुए अपने प्रिय नौरत्न की डचोढी बंद कर दी थी। इन पंक्तियों के लेखक ने 1970 में प्रकाशित एक लेख एवं अपनी पुस्तक ‘‘प्रातः स्मरणीयः महाराणा प्रताप’’ में स्पष्ट लिखा है कि महाराणा प्रताप एवं मानसिंह के बीच सद्भावपूर्ण सम्बन्ध थे जिसके कारण ही प्रताप एवं मेवाड़ को हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व व बाद में कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ।

यह प्रसंग विशेषकर उठाया जा रहा है चूंकि मानसिंह के सम्बन्ध में जन सामान्य में अभी भी कई भ्रांतियां विद्यमान है, जबकि वास्तविकता यह है कि अगर मानसिंह अकबर के दरबार में और उसका प्रिय न होता तो शायद देश में मुस्लिम कट्टरता का तांडव नृत्य देखने को मिलता, जैसा कि स्वयं अकबर ने अपनी उपस्थिति में 1567 ई. में चित्तौड़ पर किये आक्रमण के समय किया था। बाद में उसे सही दिशा देने एवं निरंकुश नहीं होने देने में मानसिंह का विशेष योगदान रहा है जिसे हमें नहीं भूलना चाहिए।

एक और तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट करना समीचीन होगा कि सामरिक इतिहास के इस सबसे तेजस्वी पुरुष के काल में आम्बेर राज्य की सीमा का प्रसार तो नहीं हुआ लेकिन वैभव और शक्ति में अपार वृद्धि हुई थी। मानसिंह स्वयं एक कवि था। अतः एक प्रबल योद्धा होने के बावजूद कभी भी वह क्रूर नहीं हुए। हो भी कैसे सकते थे, कवि सदैव संवदेनशील होता है। उनके अनेक स्फुट छंद मिलते हैं। उनके राज्यकाल में आम्बेर ने अनेक कवि, पंडित, गुणीजन व कालावन्त दिये और अपार साहित्य-सृजन हुआ।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि 77 युद्धों का यह नायक राजस्थान की वह विभूति है जिस पर हर राजस्थानी को गर्व का अनुभव होता है चूंकि इतिहास में ऐसा सफल समर-योद्धा युगों-युगों में होता है।

काबुल के आक्रांता हकीम खान को हराकर भारत को ग़ुलाम होने से बचाया था राजा मानसिंह आमेर ने​

भारत पर विशाल आक्रमण करने केलिए, गजनवी की तरह ही भारत को लूटने के लिए काबुल के हकीम खान ने तुरान के शाशक अब्दुल्लाह से संधि कर ली

जून 1581 ईसवी में राजा मानसिंह आमेर अपने कच्छवाहा राजपूतों की एक विशाल सेना रूपी विजय वाहिनी लेकर काबुल के विद्रोही मिर्जा हकीम के विरुद्ध सिंधु नदी के उस पार पेशावर के लिए रवाना हुए।

इस अवसर पर राजा मानसिंह की सेना को अटक नदी (सिंधु नदी) को पार कर दूसरी तरफ जाना था, लेकिन कच्छवाहा राजपूत सैनिक अटक के उस पार जाने में संकोच व आनाकानी करने लगे। उनका मत था कि उस युग में भारत के बाहर जाना धर्म विरुद्ध माना जाता था, उक्त अवसर पर मान सिंह ने अपने सैनिकों को समझाया और उनका संदेश दूर किया।

राजा मानसिंह इस अवसर पर कहते हैं कि -

सबै भूमि गोपाल की , या में अटक कहां?
जा के मन में अटक है, सोई अटक रहा।


तुरान देश में वर्तमान में जो देश आते है, उनका नाम भी जान लीजिए,

तुर्की, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज्जकिस्तान, आदि बड़े देश आते है, इनके साथ ईरान भी हो लिया, काबुल अफगानिस्तान था ही, वर्तमान बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान का लगभग 70% है, वह भी भारत पर आक्रमण को तैयार था, वर्तमान पाकिस्तान का साथ तो निश्चित था ही,


उस समय मुस्लिम आक्रमणकारियों की जनसंख्या का अनुपात राजपूत वीरो से बहुत ज्यादा था​

अनुपात देखे, तो भारत के एक एक सैनिक को मारने के लिए 150-150 मुसलमान थे का अनुपात था 1 राजपूत v/s 150 मुसलमान, ऐसे भयंकर आक्रमण को मानसिंहः जी ने रोका था, अगर मेवाड़ के चक्कर मे मानसिंहः रह जाते, तो ना तो मेवाड़ बचता, ओर ना भारत !!

ओर भारत मे राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार, गुजरात के मुसलमान और इनके साथ होते सो अलग, जब मानसिंहः जी ने यह खबर सुनी, तो वह तुरंत अफगानिस्तान के लिए रवाना हुए

ओर उन्होंने तुर्की, अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान, कज्जकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान उज्बेकिस्तान जैसे देशों को परास्त किया । यह उस समय मिलकर पांच देश बनते थे इन्ही देशों का झंडा छीनकर जयपुर घराने का पंचरंगा ध्वज बना है,

तुर्की तक तो विजय ना किसी राजा ने पिछले 1000 सालों में प्राप्त की - ना ऐसा प्रयास कोई कर पाया, वो किया आमेर नरेश ने,

मालवा के शेरखान फौलादी को परास्त किया, इख्तियार उल मुल्क को परास्त किया, पटना के मुसलमान शासक को मारा, सिंध लाहौर तथा पंजाब से पठानों को भगाया, बंगाल तथा उड़ीसा के मुसलमान राजाओ पर विजय प्राप्त की।

झारखंड के साहेबगंज को राजा मानसिंह ने बसाया था​

झारखंड में आजकल जो साहिबगंज कहा जाता है, वह राजा मानसिंहः जी ने ही बसाया था, उसका नाम पहले "राजमहल" हुआ करता था, जो बंगाल की राजधानी हुआ करती थी, उसके बाद अकबर के बेटे जहांगीर ने राजधानी वहां से शिफ्ट कर ढाका बनाई थी, राजमहल पर भी मुसलमानो का अधिकार हो गया, ओर उसका नाम बदलकर साहिबगंज कर दिया, झारखंड के राजमहल (साहिबगंज) में मानसिंहः जी का बनाया हुआ किला आज लगभग पूरी तरह मिट चुका है,

मानसिंहः जी की वीरता का पूरा वर्णन लिखना संभव ही नहीं है, पूरा क्या अधूरा का आधा भी नहीं लिखा गया है​

महाराज मानसिंहः जी आमेर महाधर्नुधर दिग्विजयी राजा थे, उनके स्मृतिचिन्ह इस संसार मे चिरकाल तक बने रहेंगे, दान, दासा, नरु, किशना, हरपाल, ईश्वरदास जैसे कवियों को उन्होंने एक एक करोड़ रुपया उस समय दान दिया था, उनके काल मे छापा चारण जैसे उनके दास 100-100 हाथियों के स्वामी हो गए थे, मान के गौदान की सम्पूर्ण संख्या 1 लाख थी, अपनी आयु के 44 साल तो उन्होंने युद्ध मे ही बिताएं, कई बार तो उन्होंने एक एक लाख की सेना वाले मुसलमान राजाओ को परास्त किया, जिसमे एक भी जिंदा वापस नही जा सका था, शीलामाता आदि का सम्मान, ओर उद्धार करने में भी उनका नाम अमर है, देश के अधिकांश शहर, गांव, कस्वे, तालाब आदि उन्ही के नाम पर है, बंगाल में मानभूमि , वीरभूमि, सिंहभूमि, आमेर में मानसागर, मानसरोवर, मानतालाब, मानकुण्ड, काशी में मानघाट ओर मानमंदिर, मानगांव, काबुल में माननगर, मानपुरा, अन्यत्र मान-देवीमंदिर, मानबाग, मानदरवाजा, मानमहल, मानझरोखा, ओर मानशस्त्र आदि है !! इसके अलावा शीलामाता का मंदिर - गोविन्ददेव जी मंदिर, कालामहादेव मंदिर, हर्षनाथभैरव मंदिर, आमेरमहल, जगतशिरोमणि मंदिर तथा वहां के किले, 8 परकोटे, जयगढ़, सांगानेर की नींव, पुष्कर, अजमेर, दिल्ली, आगरा के किलो की मरम्मत, मथुरा, वृंदावन, काशी, पटना ओर हरिद्वार के घाटों का निर्माण भी मानसिंहः जी ने ही करवाया है !!


राजा मानसिंह द्वारा हिंदुओ के लिये किये गये कुछ महान कार्य​

राजा मान सिंह ने उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर समेत 7000 मंदिरों से ज़्यादा मंदिरों की रक्षा की।

राजा मान ने हिंदुओं का मुक्ति स्थल गयाजी की न केवल रक्षा की, बल्कि वहां कई मंदिर बनवाये भी।

राजा मान ने एशिया की सबसे बड़ी शक्ति अफगान मूलवंश बंगाल सल्तनत का नाश किया।

राजा मान ने गुजरात को 300 साल बाद अफगान शासकों से आजादी दिलवाई

राजा मान ने द्वारिकाधीश मंदिर को मस्जिद से पुनः मंदिर बनाया

तुलसीदास का सरंक्षक राजा मान सिंह थे । उन्ही के संरक्षण के कारण तुलसीदास रामायण लिखने में सफल हो पाए,

कहा जाता है की अकबर ने तुलसी दास जी कैद कर लिया था, तब अकबर के महल पर लाखों बंदर आकर अड़कंप् मचा दिये थे तब राजा मान सिंह ने ही अकबर को समझाया की तुलसी दास जी हनुमान जी के अनन्या भक्त है, जबतक उन्हे छोड़ नहीं जायेगा तबतक बंदर नहीं जायेंगे, तब जाकर अकबर ने तुलसी दास जी को छोड़ा था।

राजा मान ने काशी में हजारो मंदिरो का निर्माण करवाया, राजा मान ने मीराबाई को पूरा सम्मान दिया, उनका भव्य मंदिर अपने ही राज्य में बनवाया।

राजा मान ने अफगानिस्तान को तबाह करके रख दिया, जहां से पिछले 500 वर्षों से आक्रमण हो रहे थे।

राजा मान ने ही पूर्वी UP से लेकर बिहार, झारखंड की रक्षा की

राजा मान ने ही सोमनाथ मंदिर का दुबारा उद्धार किया था, हालांकि बाद में औरंगजेब ने इसे तोड़ डाला

राजा मान ने ही हिंदुओ पर लगा हुआ 300 वर्ष से चल रहा जजिया कर हटवाया

राजा मान ने ही मथुरा का उद्धार किया ।।

राजा मान की प्रजा ही सबसे सुखी सुरक्षित और सम्पन्न प्रजा थी ।।

लेकिन राजा मान के सम्मान में सबके मुँह में दही जम जाता है, क्यो की उन्होंने इतना काम किया, की पिछले 500 वर्षों में उनके जोड़ का योद्धा ओर धर्मरक्षक आज तक पैदा नही हुआ ।।

लेकिन जब मैने मानसिंह की तारीफ शुरू की, तो एक सज्जन आकर बोलने लगे, राजा मानसिंह के कारण हम अपने सभी राजाओ का सम्मान दाव पर नही लगा सकते, तो इसका अच्छा अर्थ मुझे समझ आया, सबका सम्मान बचाने के लिए राजा मानसिंह को बलि का बकरा बना दो, ओर उनका अपमान करो ? उनके अपमान से सबकी कमियां ढक जाएगी

जबकि हक़ीक़त यह है, की 1576 ईस्वी तक, जो हल्दीघाटी युद्धकाल समय था, उस समय तक मुगल तो मुट्ठीभर थे, भारत मे अफगान वंश के मुस्लिम कब्जा करके बैठे थे । मुगल तो यहां 100 साल भी ढंग से राज नही कर पाए ....

इतिहास का विश्लेषण कीजिये, ऐसा न हो कहीं हम कर्नल टॉड ओर चाटुकार इतिहासकारो का इतिहास पढ़कर भारत के वीर पुत्रो का अपमान कर रहे हो..................

भारत के सनातन धर्म रक्षक, महापराक्रमी, रघुकुल तिलक आमेर नरेश महाराज मानसिंह जी कछवाहा

बहुत छुपाया शोर्य तेरा झुठे इतिहासकारों ने।

बहुत बताया गलत तुम्हें इन बिके हुए गद्दारों ने।

राजा मान सिंह गद्दार नही बस झुठा भर्म फैलाया था।

था समझौता मजबुरी का पर बुद्धि से धर्म बचाया था।

गद्दारों की हार मान सिंह यु उनका गुस्सा फुटा था

कितने मंदिर हुए सुरक्षित ना फेर जनेऊ टुटा था।
 
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