चल रे मन गोविंद शरण में – प्रस्तुत गीत प्रभु के चरणों में जाने के लिए समर्पित है। इस गीत में मनुष्य के जीवन को अनमोल बताया गया है , जिसमें सभी प्रकार का सुख है किंतु फिर भी व्यक्ति किसी अन्यत्र सुख को प्राप्त करने के लिए अपना बहुमूल्य जीवन गंवाता है।
जो हीरे के समान मनुष्य जीवन मिला है , उसको ऐसे ही गवा देता है। जिस प्रकार मृग के नाभि में कस्तूरी बस्ती है किंतु फिर भी उसके खोज में हिरण अपना जीवन गवा देता है। अंततः उसको यह समझ नहीं आता कि यह गंध स्वयं उसके नाभि से उत्पन्न हो रही है।
श्री कृष्ण को सभी ने प्रेम से ही प्राप्त किया है , इन्हें प्राप्त करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं है बस एक बार प्रेम से श्री कृष्ण का सुमिरन कर लीजिए श्री कृष्ण जिस प्रकार भीलनी के लिए उपस्थित हुए थे ठीक उसी प्रकार सभी भक्तों के लिए उपस्थित होते हैं।
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
झूठो सुख संसार में पायो , झूठो सुख संसार में पायो
सांचों हरि सुमिरन में ,
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
कस्तूरी तो नाभि में है , मृगया ढूंढ तुम वन में
कस्तूरी तो नाभि में है , मृगया ढूंढ तुम वन में
तेसे ही हरि घट में बसत है , तेसे ही हरि घट में बसत है
ज्यों सुगंध चंदन में।
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
प्रेम में तो पाया है उनको , किसने पाया धन में
प्रेम में तो पाया है उनको , किसने पाया धन में
बंधे प्रेम बंधन में हरिहर , बंधे प्रेम बंधन में हरिहर
भीलनी के बैरन में
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
कैसे तुम्हें रिझाऊं भगवन , जानू नहीं जतन मैं
कैसे तुम्हें रिझाऊं भगवन , जानू नहीं जतन मैं
सब विधि दीन हीन मनमोहन , सब विधि दीन हीन मनमोहन
पड़ो है प्रभु चरण में ,
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
झूठो सुख संसार में पायो , झूठो सुख संसार में पायो
सांचों हरि सुमिरन में ,
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
चलो रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
जो हीरे के समान मनुष्य जीवन मिला है , उसको ऐसे ही गवा देता है। जिस प्रकार मृग के नाभि में कस्तूरी बस्ती है किंतु फिर भी उसके खोज में हिरण अपना जीवन गवा देता है। अंततः उसको यह समझ नहीं आता कि यह गंध स्वयं उसके नाभि से उत्पन्न हो रही है।
श्री कृष्ण को सभी ने प्रेम से ही प्राप्त किया है , इन्हें प्राप्त करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं है बस एक बार प्रेम से श्री कृष्ण का सुमिरन कर लीजिए श्री कृष्ण जिस प्रकार भीलनी के लिए उपस्थित हुए थे ठीक उसी प्रकार सभी भक्तों के लिए उपस्थित होते हैं।
चल रे मन गोविंद शरण में
chal re man govind sharan me
चल रे मन गोविंद शरण मेंचल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
झूठो सुख संसार में पायो , झूठो सुख संसार में पायो
सांचों हरि सुमिरन में ,
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
कस्तूरी तो नाभि में है , मृगया ढूंढ तुम वन में
कस्तूरी तो नाभि में है , मृगया ढूंढ तुम वन में
तेसे ही हरि घट में बसत है , तेसे ही हरि घट में बसत है
ज्यों सुगंध चंदन में।
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
प्रेम में तो पाया है उनको , किसने पाया धन में
प्रेम में तो पाया है उनको , किसने पाया धन में
बंधे प्रेम बंधन में हरिहर , बंधे प्रेम बंधन में हरिहर
भीलनी के बैरन में
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
कैसे तुम्हें रिझाऊं भगवन , जानू नहीं जतन मैं
कैसे तुम्हें रिझाऊं भगवन , जानू नहीं जतन मैं
सब विधि दीन हीन मनमोहन , सब विधि दीन हीन मनमोहन
पड़ो है प्रभु चरण में ,
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
हीरा जन्म गवायो वीरथा सुख ढूंढत विषयन में
झूठो सुख संसार में पायो , झूठो सुख संसार में पायो
सांचों हरि सुमिरन में ,
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
चलो रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में
चल रे मन गोविंद शरण में