सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 – धारा 11 पूर्व-न्याय (Res judicata)
लैटिन भाषा के दो शब्द रेस-जूडिकेटा से लिया गया है। रेस शब्द का अर्थ एक वस्तु या वाद वस्तु और जुडिकेटा अर्थ पूर्ण निर्णीत विषय वस्तु से है। रेस-जुडिकेटा के बारे में आज आप सभी को बहुत ही सरल शब्दों में बताता हूँ, जिसमे एक वाद में एक ही संपत्ति के बाबत एक ही पक्षकारो के मध्य एक ही न्यायालय द्वारा विवाद का निस्तारण कर वाद का अंतिम निर्णय कर आदेश पारित कर दिया गया हो। लेकिन यदि उसी संपत्ति के बाबत उन्ही पक्षकारो के मध्य पुनः विवाद उतपन्न हो , तो न्यायालय द्वारा वाद में पारित आदेश दूसरे वाद में पक्षकरों के मध्य बाध्यकारी होगा।सिविल प्रक्रिया संहिता में धारा 11 निम्न प्रकार से उपबंधित की गई है
कोई भी न्यायालय किसी ऐसे वाद या विवाद्यक का विचारण नहीं करेगा जिसमें प्रत्यक्षतः और सारतः विवाद्य विषय उसी हक के अधीन मुकदमा करने वाले उन्हीं पक्षकारों के बीच या ऐसे पक्षकारों के बीच के, जिनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन वे या उनमे में से कोई दावा करते हैं, किसी पूर्ववर्ती वाद में भी ऐसे न्यायालय में प्रत्यक्षत और सारतः विवाद्य रहा है, जो ऐसे पश्चातवर्ती वाद का, जिसमें ऐसा विवाद्यक वाद में उठाया गया है, विचरण करने के लिए सक्षम था और ऐसे न्यायालय द्वारा सुना जा चुका है और अंतिम रूप से विनिश्चित किया जा चुका है।उपरोक्त धारा के बारे में सीधे अर्थो में यह कहा जा सकता हैं की कोई भी न्यायालय किसी ऐसे वाद अथवा वाद बिंदु का विचारण नही करेगा जिसमे वाद पद में वह विषय उन्ही पक्षकारो के मध्य अथवा उन पक्षकारो के मध्य जिनके अधीन वे अथवा कोई उसी हक के अंतर्गत उसी विषय बाबत दावा प्रस्तुत करता हैं तब ऐसे पश्चातवर्ती वाद में जो विवाद बिंदु उठाया गया हैं और न्यायालय विचारणमें सक्षम हैं उस विवाद बिंदु बाबत पूर्व वाद में प्रत्यक्ष व सरवान बिंदु बाबत सुना जा चूका हो तथा अंतिम रूप से न्यायालय द्वारा निर्णित किया जा चूका हो तो ऐसे पश्चातवर्ती वादों का विचारण धारा 11 पूर्व न्याय के सिद्धांत के अनुसार विचारण से प्रवरित करता हैं।
पूर्व-न्याय (Res judicata) का सिद्धान्त तीन लैटिन सूत्रों पर आधारित है
- यह राज्य के हित में है कि मुकदमेबाजी का अन्त हो।
- एक न्यायिक निर्णय को सही माना जाना चाहिए।
- किसी भी व्यक्ति को एक वाद हेतुक के लिए दोबारा तंग नहीं किया जायेगा।
सिविल मामलो में रेस जुडिकेटा के लिए आवश्यक शर्ते क्या होती है?
पहले के बाद में तथा बाद के वाद में विषय वस्तु वही होनी चाहिए
पूर्व-न्याय (Res judicata) के सिद्धांत को लागु करने के लिए यह आवश्यक है कि जहाँ विवाद में पहले के वाद में और बाद के वाद में विषय वस्तु वही होनी चाहिए। वाद की विषय वस्तु प्रत्यक्ष रूप से दोनों वादों में एक ही हो यहाँ इसका मतलब चल और अचल संपत्ति दोनों से है।किसी संपत्ति को लेकर दो पक्षों ने सक्षम क्षेत्राधिकारिता न्यायलय में यह दवा करते हुए वाद दायर किया कि अमुक संपत्ति हमारी है। न्यायलय द्वारा संपत्ति के असल मालिक के द्वारा दिखाए गए सम्पति के दस्तावेजों के आधार पर उसके पक्ष में न्यायालय द्वारा अंतिम निर्णय कर आदेश पारित कर दिया गया हो, लेकिन यदि उसी संपत्ति के लिए पक्षकारो के बीच विवाद फिर से शुरू हो जाये, तो न्यायालय द्वारा पहले वाद में पारित आदेश दूसरे वाद में पक्षकारो के मध्य बाध्यकारी होगा।
पहले के वाद में और बाद के वाद में वही पक्षकार हो
पूर्व-न्याय (Res judicata) का सिद्धांत सिविल मामलो में लागु होने के आवश्यक है कि पहले के वाद और बाद के वाद के पक्षकार वही है।पहले के वाद में और बाद के वाद में सामान शीर्षक होना चाहिए
पूर्व-न्याय (Res judicata) के लिए आवश्यक एक सिद्धांत यह भी है कि पक्षकार ने एक ही हक़ के तहत मुकदमा लड़ा हो।पहले का वाद और बाद का वाद सम्बंधित सक्षम क्षेत्राधिकार का होना चाहिए
पूर्व-न्याय (Res judicata) के सिद्धांत को लागु करने के लिए एक आवश्यक शर्ते यह भी है की जिस न्यायालय में वाद पहले दायर या प्रस्तुत किया गया था उसे ऐसे मुक़दमे में निर्णय देने का अधिकार प्राप्त था।उदाहरण
किसी विवादित मामले को सुलझाने के लिए मुंसिफ के न्यायालय में एक वाद दायर किया गया, लेकिन अब इसी वाद को अन्य न्यायालय में प्रस्तुत किये जाने पर पूर्व-न्याय (Res judicata) के सिद्धांत की शर्तो के अनुसार लगेगी जबकि मुंसिफ न्यायालय को उस विवादित मामले पर सम्बंधित वाद को निर्णीत करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त हो। यदि इस विवादित मामले पर निर्णय देने के लिए मुंसिफ न्यायलय को क्षेत्राधिकार प्राप्त न होता तो उसी विषय पर दूसरा वाद दायर करने पर कोई कानूनी रोक न होती।पहले के वाद में न्यायालय का निर्णय अंतिम होना चाहिए
पूर्व-न्याय (Res judicata) के सिद्धांत को लागु करने के लिए एक यह भी जरूरी है कि प्रथम न्यायालय द्वारा वाद पूर्णनिर्णीत कर दिया गया है।उदाहरण
किसी संपत्ति के विवाद में प्रथम न्यायालय द्वारा पूर्णयतः निस्तारण करते हुए अंतिम आदेश पारित कर दिया गया है, अब यदि उसी संपत्ति के लिए उन्ही पक्षकारो में मध्य पुनः विवाद हो तो न्यायालय द्वारा पहले वाद में पारित आदेश दूसरे वाद में पक्षकारो के मध्य बाध्यकारी होगा।
मॉडरेटर द्वारा पिछला संपादन: